कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों में रोगियों व सहकर्मियों के प्रति करुणा, संवेदनशीलता और आपसी सहयोग की भावना को बढ़ावा देना
हाजीपुर : जिला अस्पताल, हाजीपुर में पिरामल स्वास्थ्य द्वारा दो दिवसीय कॉग्निटीवेली बेस्ड कंपेशन ट्रेनिंग (सी बी सी टी) कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि सिविल सर्जन, डीपीएम, डीभीबीडीसीओ और एसीएमओ द्वारा किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों में रोगियों व सहकर्मियों के प्रति करुणा, संवेदनशीलता और आपसी सहयोग की भावना को बढ़ावा देना था। इसमें प्रतिभागियों ने व्यावहारिक गतिविधियों के माध्यम से सीखा कि कैसे रोज़मर्रा की कार्यशैली में करुणा को शामिल कर, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को और बेहतर बनाया जा सकता है।
प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को प्रेरणादायक एवं उपयोगी बताते हुए कहा कि इससे कार्यस्थल का वातावरण और सकारात्मक बनेगा तथा रोगियों के प्रति सेवा भाव और मज़बूत होगा। इस अवसर पर जिला गुणवत्ता आश्वासन अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर, नर्सें, लैब टेक्नीशियन व अन्य स्वास्थ्यकर्मी मौजूद रहे। पिरामल स्वास्थ्य की ओर से राज्य प्रतिनिधि त्रिप्ता मिश्रा, शर्ली, अमरेश, शिवम तथा ज़िले से दीपिका, अभिषेक, शशि, मनोज, मधुबाला सहित गांधी फ़ेलोज़ ने भाग लिया।
वैशाली : मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना अंतर्गत दिल के छेद वाले चिन्हित 16 बच्चों को जांच के लिए मंगलवार को इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना भेजा गया है। यहां पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा स्क्रीनिंग की जाएगी, उसके उपरांत जिन बच्चों को ऑपरेशन की आवश्यकता होगी उन सभी का निशुल्क इलाज व ऑपरेशन कराया जाएगा। सिविल सर्जन डॉक्टर श्याम नंदन प्रसाद ने बताया के विभिन्न स्वास्थ्य प्रखंडों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत डॉक्टर, फार्मासिस्ट और एएनएम द्वारा प्रत्येक कार्य दिवस को जिले के सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर 0- 18 वर्ष के जन्मजात रोगों से ग्रसित बच्चों की निशुल्क जांच कर चिन्हित किया जाता है। हृदय रोगियों के लिए मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना वरदान साबित हो रही है। इस योजना का लाभ दिल के छेद वाले बच्चों को मिल रहा है। जिले में एक अप्रैल 2021 से लेकर जुलाई 2025 तक अब तक 138 से अधिक दिल के छेद रोग से ग्रसित बाल हृदय रोगियों को चिन्हित कर ऑपरेशन कराया गया है।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉक्टर कुमार मनोज ने बताया के वैशाली राज्य में सबसे अधिक ऑपरेशन करने वाले जिले में तीसरे स्थान पर है। आईजीआईएमएस पटना में अभी तक 20 बच्चों का स्क्रीनिंग किया गया था जिसमें से 8 बच्चों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन कराया गया है। डीसी आरबीएसके डॉ शाइस्ता ने बताया कि आईजीआईएमएस पटना के आरबीएसके नोडल डॉ प्रियंकर सिंह, अस्पताल समन्वयक डॉ विवेकानंद और विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम द्वारा बच्चों का सफल ऑपरेशन में प्रमुख योगदान दिया गया है। इसी क्रम में वैशाली से फिर 16 बच्चों को निशुल्क जांच के लिए आज आईजीआईएमएस पटना भेजा जा रहा है। बीमारी की पुष्टि होने के उपरांत बच्चों को डिवाइस क्लोजर एवं सर्जरी हेतु भेजा जाएगा। मौके पर डीईआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके डॉ शाइस्ता, फार्मासिस्ट अभिषेक कुमार और नवीन कुमार उपस्थित थे, जबकी आईजीआईएमएस पटना में फार्मासिस्ट राजीव कुमार और शशिकांत कुमार उपस्थित होकर बच्चों और अस्पताल संस्थान के साथ समन्वय स्थापित करते हुए बच्चों का आगमन, ससमय इको, जांच और एंबुलेंस के द्वारा प्रस्थान सुनिश्चित करेंगे।
जब हार (तय) सामने दिखाई दे रही हो तो साजो-सामान समेट कर लौट जाना ही समझदारी है (बड़े बुजुर्गों की सीख)
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही है प्रक्रिया को लेकर जिन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के भीतर से जिस तरह की टिप्पणियां निकल कर देश के सामने आ रही हैं वे साफ - साफ संकेत दे रही है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है। यह अलग बात है कि बीच-बीच में सुप्रीम कोर्ट इस तरह की टिप्पणियां भी करता रहता है कि आम लोगों को लगे कि सुप्रीम कोर्ट निष्पक्षता के तराजू में तौल कर फैसले देगा मगर अधिकांशत: जब भी अंतिम फैसला आया तो वह सत्तानुकूल ही आया। कुछ फैसले तो ऐसे आये जो न इधर के रहे न उधर के यानी न तुम जीते न हम हारे फिर भी पलडा सत्ता की तरफ ही झुका दिखाई दिया। बिहार में चल रही एसआईआर के मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर तथ्यों के साथ गडबडियां सामने आई तो पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने ही आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करने को कहा था लेकिन चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को हवा हवाई बना दिया। मगर अब जब सुनवाई आगे बढ़कर फैसले के करीब आती जा रही है तो न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां एक - एक करके चुनाव आयोग की प्रक्रिया को हरी झंडी देती हुई दिखाई दे रही है। तो क्या ये मान लिया जाय कि अब जो भी हो रहा है और आगे होने वाला है वह केवल औपचारिक ही होगा और फैसला भी वही आयेगा जिसके संकेत न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां दे रही हैं। चुनाव आयोग ने जिस तरह का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उसने खुद की साख के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की साख को भी दांव पर लगा दिया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भूसे में से एक सुई ढूंढने की तर्ज पर जिस तरीके से 2024 के लोकसभा चुनाव को प्रभावित किये जाने का खुलासा किया है और वह भी चुनाव आयोग के द्वारा ही दिए गए दस्तावेजों के जरिए। तो उसने तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी की साख को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है देखना है कि वह अपने फैसले से किस तरह लोकतंत्र को जिंदा रहने का रास्ता प्रशस्त करता है, लोगों के मन में संविधान पर आस्था कायम रहेगी, देश की आवाम चुनाव आयोग और चुनाव पर विश्वास कर पायेगी, या फिर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से सब कुछ धराशायी हो जायेगा। क्योंकि सवाल तो दो ही हैं क्या नरेन्द्र मोदी फर्जी वोटों के आसरे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं ? चुनाव आयोग की सारी मशक्कत के बाद भी बिहार के अंदर अगर बीजेपी चुनाव हार गई तो उसका पूरा परसेप्शन जो उसने तथाकथित राष्ट्रवाद के जरिए बनाया है एक झटके में बिखर जायेगा ? मतलब एक तरफ 2024 के लोकसभा का चुनाव परिणाम है तो दूसरी तरफ बिहार में नम्बर के महीने में होने वाला विधानसभा चुनाव है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी आये मगर इतना तो तय है कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है उसके अनुसार वह दोनों परिस्थितियों में भारत की राजनीति की जडों से हिलाकर रख देगा। राजनीतिक विश्लेषकों के भीतर जो विचार मंथन चल रहा है उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिन याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है उन समस्त याचिकाकर्ताओं को बिना शर्त अपनी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट से वापस ले लेना चाहिए। क्योंकि यही एक रास्ता है जो सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख के साथ ही उनकी खुद की (याचिकाकर्ताओं की) साख को बचा सकता है।
एकता के सूत्र में बंध कर हम एक है,नेक है का प्रदर्शन करने के लिए अधिक से अधिक संख्या मे पधार कर कार्यक्रम को सफल बनाना
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, बिहार प्रदेश के कार्य समिति की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनूप श्रीवास्तव IRS का हर्षोल्लास के साथ स्वागत सह परिवार मिलन समारोह का आयोजन दिनांक 17 अगस्त रोज रविवार को पटना के श्री कृष्ण चेतना परिषद, दरोगा राय पथ आर ब्लाक में किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष ने सभी कायस्थ बंधुओं सेआग्रह किया है कि व्यक्तिगत ईष्या द्वेष से ऊपर उठकर, हर्ष और उल्लास के वातावरण में एकता के सूत्र में बंध कर हम एक है,नेक है का प्रदर्शन करने के लिए अधिक से अधिक संख्या मे पधार कर कार्यक्रम को सफल बनाना है।
राजीव जी ने बताया कि उस दिन उद्घाटन माननीय विधायक श्री अरुण कुमार सिन्हा, मुख्य अतिथि, डाॅ अनूप श्रीवास्तव IRS राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, अति विशिष्ट अतिथि श्री निर्मल शंकर श्रीवास्तव, पूर्व राष्ट्रीय. महा मंत्री अभाकाम ,विशिष्ट अतिथि श्रीमती रश्मि वर्मा ,विधायक नरकटियागंज एवं श्री अरविन्द श्रीवास्तव राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, अभाकाम के अलावे 5-6 अन्य विशिष्ट अतिथियों का आना तय है। वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष रवीन्द्र कुमार रतन ने कहा कि कायस्थ कोई जाति नही यह तो भारत की सभ्यता और संस्कृति है जिसके तहत हम समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में लगे रहते है,आगे वे बोले -
'ईर्ष्या-द्वेष को भूला कर के हम , नफरती दीवार को ढहा देंगे। हम सब कलम के सिपाही है , भारत को स्वर्ण विहग बना देंगे।।'
महासचिव श्रीमती माया श्रीवास्तव ने खास कर महिलाओं से आग्रह किया कि वे निश्चित रुप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। सभा के अन्त में अभाकाम के सचिव श्री अशोक कुमार ने आगत अतिथिओं का स्वागत करते हुए इस वरसात के मौसम में भी इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित होने के लिए आभार प्रकट किया।सभा समाप्त होने की घोषणा किए।
बिहार में भी हजार - दो हजार नहीं तीन लाख से ज्यादा वोटरों के मकान का नम्बर शून्य (जीरो)
तुरही बजंती, डुगडुगी पिटंती, सर्व डंका फटवावहै
देश की नजरें देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर
Election Regulation - EC replaces digital draft voter list in Bihar with scanned images that make finding errors harder - Data on digital rolls can be extracted and organised quickly using computer programmes and artificial intelligence tools. Ayush Tiwari. The Election Commission today removed digital machine-readable Bihar draft voter list from website which were uploaded on August 1. They have been replaced with their scanned. Machine-readable version that makes scrutning hader. @ SCROLLING @ECISVEEP. CHIEF ELECTORAL OFFICER BIHAR - @CEOBIHAR - Fact chek - There is no change in the draft electoral roll published since 1 August 2025 changes will be made after disposal of claims and objection by the concerned EROs. The draft electoral roll is available on the voters. eci. gov. in website. @ECISVEEPx.com. Ayush Tiwari - we're not reporting that the draft electoral roll changed, @CEOBihar, we're reporting that the format has changed - from Machine-readable. This is not a fact-check. This is a bad-faced denial which is demonstrably false. @ scroll. in.
ये वो सवाल जवाब की चैटिंग है जो एक ऐजेंसी वाले पत्रकार आयुष तिवारी और बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी के बीच हुई है। पहली बार जब आयुष तिवारी ने जांच-पड़ताल के बाद लिखा कि इलेक्शन कमीशन ने एक झटके में उस फार्मेट को ही बदल दिया है जिसमें मशीन पढ करके सारी विसंगतियों को चंद मिनट में सामने रख सकती है जो चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई वोटर लिस्ट के भीतर होती है और डिजिटल वोटर लिस्ट की जगह स्कैन की गई वोटर लिस्ट को अपलोड कर दिया गया है। जिससे चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई वोटर लिस्ट के भीतर की गई धांधलियां एक झटके में पकड़ में आने से बच जाय। तो इलेक्शन कमीशन ने कहा कि हमने ऐसा नहीं किया है। इलेक्शन कमीशन के जवाब पर काउंटर करते हुए आयुष तिवारी ने लिखा कि उसने जो स्टोरी फाइल की है वह पूरी तरह से सही है। और इस काउंटर के बाद इलेक्शन कमीशन में सन्नाटा पसर गया। उसे समझ ही नहीं आया। उसने सोचा होगा कि जब डिजिटल वोटर लिस्ट गायब कर दी गई है तो उसे तुरंत तो कोई पकड़ ही नहीं पायेगा। मगर पांसा उल्टा पड़ गया।
कुछ दिनों पहले अखबारों में एक खबर छपी थी कि जालंधर में रहने वाली बसंत कौर भारत की सबसे उम्रदराज महिला हैं जिनकी उम्र 124 साल है। इस खबर के बाद एक दूसरी खबर मिली कि मध्यप्रदेश के सिवनी में भी 115 साल की शांति देवी रहती है। इस खबर के बाद लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड को अपना खाता-बही दुरुस्त करना पड़ा क्योंकि उसने चंद दिनों पहले जानकारी दी थी कि आंध्र प्रदेश की कुंजनम भारत की सबसे उम्रदराज महिला थीं जिनकी 112 वर्ष में मृत्यु हो गई है। उम्रदराज महिलाओं का भले ही कोई महत्व ना हो लेकिन वर्तमान में इनका जिक्र करना प्रासंगिक है क्योंकि बिहार चुनाव आयोग द्वारा जो नई वोटर लिस्ट तैयार की जा रही है वह बताती है कि गोपालगंज में एक मनपुरिया देवी रहती हैं जिनकी आयु 119 साल है। इसी तरह भागलपुर की आशा देवी की उम्र 120 वर्ष, सिवान की मिंतो देवी की उम्र 124 साल है। मतलब उम्रदराजी के सारे रिकॉर्ड बिहार में आकर चुनाव आयोग द्वारा बनाई जा रही वोटर लिस्ट तैयार करते वक्त टूट रहे हैं।
चुनाव आयोग का दोगलापन भी बिहार में उजागर होकर सामने आ रहा है। बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के नाम पर दो वोटर आईडी कार्ड हैं जो कि अलग अलग जिले और अलग अलग विधानसभा क्षेत्र के हैं। एक वोटर आईडी कार्ड पटना जिले की 182 बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र का है तो दूसरा लखीसराय जिले की 168 लखीसराय विधानसभा क्षेत्र का है। वह भी अलग अलग लिपिक नम्बर से दर्ज हैं। एक कार्ड में उम्र 60 साल दर्ज है तो दूसरे पर 57 साल दर्ज है। दोनों वोटर आईडी कार्ड में डिप्टी सीएम और उनके पिता का वही नाम दर्ज है जो कि उनके नाम हैं। ये मामला सामने आने के बाद चुनाव आयोग को सांप सूंघ गया है और वह कोमा में चला गया है जबकि कुछ दिनों पहले बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बताया था कि उनको दो वोटर कार्ड जारी किए गए हैं तो चुनाव आयोग ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था कि हमने वो वोटर कार्ड जारी नहीं किए हैं और दो वोटर कार्ड रखना अपराध है मगर जब उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के पास दो वोटर कार्ड सामने आये तो वह उसे अपराध कहने का साहस नहीं जुटा पाया उल्टे मुंह में दही जमा बैठा। तेजस्वी यादव भी राहुल गांधी की तरह हाथ में लिस्ट लेकर पत्रकारों के सामने आये और बताया कि बिहार में भी हजार - दो हजार नहीं तीन लाख से ज्यादा वोटरों के मकान का नम्बर शून्य (जीरो) लिखा हुआ है चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट में। जिसने भी इस तरह की जानकारी वोटर लिस्ट में दर्ज कराई है या की है, और यह चुनाव आयोग की धाराओं के तहत गंभीर अपराध है। मगर इस पर भी चुनाव आयोग मौन है। यह जानकारी भी सामने आ रही है कि बिहार में भी हजारों स्थानों पर एक कमरे के मकान में अद्भुत समाजवाद (हर आयु वर्ग, हर जाति वर्ग, हर आय वर्ग) का नजारा पेश करते हुए 250 लोग तक रह रहे हैं। मतलब चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट में दर्ज है। ये कर्नाटक या बिहार भर की बात नहीं है ये नजारा तो कमोबेश भारत के हर राज्य में नजर आ जायेगी। मध्य प्रदेश के भीतर भी वोटर लिस्ट में तकरीबन 1700 ऐसे पते दर्ज हैं जहां पर एक कमरे के मकान में 50 से ज्यादा लोग रहते हैं। यहां तक कि सरकार और चुनाव आयोग की नाक के नीचे राजधानी भोपाल में ही वोटर लिस्ट में 80 से ज्यादा ऐसे अड्रेस हैं जहां एक कमरे के मकान में 50 से ज्यादा वोटर निवास करते हैं। नेल्लोर सिटी (आंध्र प्रदेश) से एक अजूबे की भी खबर मिल रही है जहां पर वोटर लिस्ट में 01 वर्ष से लेकर 352 वर्ष की उम्र दर्ज है। इसी तरह के आंकड़े महाराष्ट्र और उडीसा से सामने आ रहे हैं। और आगे चल कर देश के हर राज्य से इस तरह की खबर निकल कर आने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
अगर ये गल्ती से हुई गड़बड़ियां हैं तो इन्हें डिजिटली जमाने में चुटकी बजाते दुरुस्त किया जा सकता है। मगर चुनाव आयोग जिस तरह की मशक्कत करते हुए नजर आ रहा है उससे ऐसा नहीं लगता है कि इस तरह की गड़बड़ियां गल्ती से हुई गड़बड़ी है। यह सब कुछ जानबूझकर सत्ता के इशारे पर सत्ता की सत्ता को बरकरार रखने के लिए किया जा रहा है। बिहार में विधानसभा चुनाव के पूर्व जिस तरह से वोटर लिस्ट तैयार की जा रही है और विपक्षी दलों से लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा विरोध दर्ज कराया जा रहा है और मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया और जो तकरीबन 65 लाख से अधिक लोगों ने नाम अलग - अलग तौर पर हटाये गये हैं उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को हलफनामा दर्ज करने को कहा और चुनाव आयोग ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा जमा किया और उसमें जो लिखा है वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि चुनाव आयोग की नजर में सुप्रीम कोर्ट की कोई औकात नहीं है। चुनाव आयोग का हलफनामा बताता है कि देश में लोकतंत्र नहीं बल्कि राजशाही काम कर रही है। और राजशाही को कायम रखने के लिए भारत का चुनाव आयोग सभी लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने के लिए तैयार है।
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे के चौथे और पांचवें पेज में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि बिहार में जिन 65 लाख लोगों के नामों को वोटर लिस्ट से हटाया गया है ना तो उनकी सूची को साझा किया जायेगा, ना ही इसका कारण बताया जायेगा और ना ही वह यह सब बताने के लिए बाध्य है। वैसे यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है और ना ही इस तरह का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पहली बार दर्ज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब मोदी सरकार से पेगासस को लेकर जानकारी मांगी थी तब सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल ने देश की सुरक्षा की आड़ लेकर साफ - साफ कह दिया था कि हम आपको नहीं बता सकते हैं। इसी तरीके से जब राफेल का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया और सुप्रीम कोर्ट ने उच्चतम कीमत पर राफेल खरीदने की विस्तृत जानकारी देने को कहा तो एकबार फिर सरकार ने देश की सुरक्षा की चादर के पीछे खड़े होकर कह दिया कि हम आपको कोई जानकारी नहीं देंगे। और सुप्रीम कोर्ट खामोशी से सरकार के आगे अपनी औकात की तुलना करता रह गया। कुछ इसी तरह का मामला मोदी सरकार द्वारा लिए गए चुनावी चंदे को लेकर था बड़ी ना-नुकुर के बाद बैंक ने जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी और सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनावी चंदे को असंवैधानिक बताया मगर असंवैधानिक काम करके काली कमाई करने वालों को ना तो सलाखों के पीछे भेजा गया ना ही उस अवैध पैसों को जप्त किया गया। आज भी उसी अवैध पैसों (ब्लैक मनी) से ठप्पे के साथ ऐश किया जा रहा है।
मगर अब तो सवाल देश के आम नागरिक के अधिकारों का है। और किसी चीज में हो ना हो कम से कम वोटिंग के लिए दिए गए समानता के अधिकार का सवाल है। और आजादी के बाद पहली बार आम आदमी के वोटिंग पर आंच आ गई है और वह भी चुनाव आयोग के जरिए। और तपन भी इतनी जबरदस्त है कि चुनाव आयोग अपने हलफनामे के जरिए देश की सबसे बड़ी अदालत को भी अपने आगोश में लेने के लिए तैयार है। तो क्या एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग द्वारा दी जा रही चुनौती के आगे घुटने टेक कर अपनी औकात का आंकलन करेगा या फिर स्व संज्ञान लेकर चुनाव आयोग को सीधे तौर पर कहेगा कि आप इस तरह की बातों का जिक्र हलफनामे में नहीं कर सकते आपके द्वारा जिन 65 लाख लोगों के नाम हटाये गये हैं उन नामों की सूची साझा करनी होगी, आपको हटाये गये नामों का कारण बताना होगा, आप कोर्ट और नागरिकों को सब कुछ बताने के लिए बाध्य हैं। और जब तक आप सारी बातें साझा नहीं करते तब तक चल रही प्रक्रिया पर रोक लगाई जाती है। क्योंकि अब मामला लोकतंत्र, संविधान और सुप्रीम कोर्ट की साख से जोड़ दिया है चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल करके।
देश भी अब सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहा है कि आम आदमी के अधिकारों पर आई आंच को रोकने के लिए चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने के लिए स्व संज्ञान लेगा या नहीं ? ऐसा नहीं है कि पहले कभी सुप्रीम कोर्ट ने स्व संज्ञान ना लिया हो। देश में जब पेपर लीक होने की खबर आई थी तब और जब पश्चिम बंगाल के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में एक लड़की के साथ हुए बलात्कार की खबर आई थी तब सुप्रीम कोर्ट ने स्व संज्ञान लेते हुए सुनवाई की थी यह बात दीगर है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पीड़ित पक्ष के हक में नहीं आये। इसके बावजूद भी देश में मौजूद सुप्रीम कोर्ट को ही संविधान द्वारा आम आदमी को प्रदत्त अधिकारों की व्याख्या करनी होगी। देश उम्मीद लगाए बैठा है कि सुप्रीम कोर्ट अब ऐसी गलती नहीं करेगा जो उसने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनाये गये पैनल को मोदी सरकार ने कानून बनाकर सीजेआई को किनारे कर दिया और सुप्रीम कोर्ट संसद द्वारा बनाये गये कानून की समीक्षा करने के बजाय मूकदर्शक बनकर रह गया।
देश के भीतर तो इस तरह का माहौल बना दिया गया है जहां सत्ता खुद को ही भारत मानने लग गई है। हम ही भारत हैं और कोई भी हमारे खिलाफ सवाल नहीं कर सकता और ऐसा ही संवैधानिक संस्थान भी सोचने लग गये हैं इसमें चुनाव आयोग भी शामिल है। तभी ना चुनाव आयोग अपने ही दस्तावेजों के आधार पर विपक्ष के नेता द्वारा उठाए गए सवालों को सुनने के बजाय हलफनामा दिये जाने की बात कर रहा है। हमसे माफी मांगिए क्योंकि हम ही तो देश हैं। इस तरह का भ्रम एक जमाने में श्रीमती इंदिरा गांधी को भी हो गया था तभी तो कहा गया था कि इंदिरा इज इंडिया - इंडिया इज इंदिरा। और ऐसा ही भ्रम शायद पीएम नरेन्द्र मोदी को हो गया लगता है। इलेक्शन कमीशन ने जिस तरह की प्रक्रिया शुरू की और बीजेपी-मोदी-शाह ने जो मुगालता पाला उसमें 2024 के आम चुनाव के दौरान कई सवालों को खड़ा किया और चुनाव परिणाम ने उसके जवाब भी दिए। पहला सवाल तो यही खड़ा हुआ कि क्या धर्म के आसरे वोट मिलेगा, इसका उत्तर अयोध्या से निकल कर आया। दूसरा सवाल यह निकला कि जिस तरह से नरेन्द्र मोदी खुद को पिछड़े तबके का कहते हैं तो क्या पिछड़ा तबका बीजेपी को वोट करेगा और वह तब जब देश के भीतर पिछड़ी और इसी क्रम की दूसरी जातियों से जुड़े तबके के अधिकारों का जिक्र देश की गवर्नेंस में होता ही नहीं है तो इसका जवाब 240 सीटों ने दिया। तीसरा सबसे बड़ा सवाल संविधान को लेकर था कि क्या मोदी सरकार ने जो 400 पार की रट लगाई है और अगर वह सच हो गया तो वह संविधान को बदल देगी इसका जवाब भी देश की जनता ने दे दिया बीजेपी को 240 सीटों पर समेट कर। सवालों का उठना यहीं पर नहीं रुका। सवाल तो लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली से भी उठे। मगर देश का दुर्भाग्य है कि चुनाव आयोग हर सवाल पर गांधी के तीन बंदरों की भूमिका में नजर आया।
बार - बार कटघरे में खड़ा होते ही चुनाव आयोग ने डिजिटल फार्मेट को ही हटा दिया, देश की सबसे बड़ी अदालत को ही कह दिया कि हम आपको कुछ नहीं बतायेंगे। अब ये मामला राजनीतिक नहीं रह गया है अब ये मामला लोकतंत्र, संविधान और एक व्यक्ति-एक वोट के अधिकार की रक्षा की लड़ाई का हो गया है। इसीलिए अब सुप्रीम कोर्ट की भूमिका अहम हो गई है क्योंकि लोकतंत्र, संविधान और आम आदमी के संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने का उत्तरदायित्व देश की सबसे बड़ी अदालत के ही जिम्मे है। बीजेपी या कहें मोदी-शाह जिस तरीके का देश चाहती है और उसी विचारधारा के लोगों को चुनाव आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थानों में नियुक्त किया जा रहा है कि उसे जीत की गारंटी मिल जाय क्या इसीलिए बहुमत के साथ ऐसी व्यवस्था करने में चुनाव आयोग लगा हुआ है। अगर विरोध के स्वर देश के भीतर गांव से लेकर राज्य के साथ हर निर्वाचन क्षेत्र से उठने लगे तो यह स्थिति दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के लिए ठीक हो या ना हो लेकिन इतना तो तय है कि लोकतंत्र का तमगा भारत के हाथ से छिन जायेगा।
चलते-चलते
आपरेशन सिंदूर को लेकर संसद में हुई डिबेट में जिस तरह से मोदी सरकार दिगम्बर हुई है और उसके बाद से अचानक सैन्य प्रमुखों द्वारा बयानबाजी की जा रही है कहीं वह राजनीतिक तौर पर मुसीबत में फंसी हुई सरकार को संकट से उबारने का प्रयास तो नहीं है, क्या कहीं सेना का राजनीतिकरण तो नहीं किया जा चुका है और अगर ऐसा है तो यह देश के लिए सबसे बड़े संकट का दुर्भाग्यपूर्ण ऐलान है।
डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है
आज कल बरसात के मौसम में कई बड़े शहरों एवं गांव में बरसात के पानी जमा होने से हमारे आसपास मच्छरों का उत्पादन ज्यादा होने लगता है।।इन मच्छरों के द्वारा कई संक्रमित बीमारियां हमारे स्वास्थ को प्रभावित करती है।।जिसमें मुख्य रूप से डेंगू का प्रकोप अत्यधिक देखने को मिलता है।।आइए जानते है डेंगू क्या है और इसके कारण और लक्षण क्या है :-
डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू का इलाज समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं। मच्छर डेंगू वायरस को फैलाते हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों।
डेंगू आमतौर पर मादा एडीज़ इजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। ये खास तरह के मच्छर होते हैं, जिनके शरीर पर चीते जैसी धारियां पाई जाती हैं। ये मच्छर खासतौर पर सुबह के समय काटते हैं।
जो आदमी डेंगू से पीड़ित होता है, उसके शरीर में काफी मात्रा में डेंगू वायरस पाया जाता है। इसके अलावा जब कोई एडीज़ मच्छर किसी डेंगू के मरीज़ को काटता है तो उसका खून भी चूसता है। इसके बाद जब यह मच्छर किसी स्वस्थ शख्स को काटता है, तो उसे भी डेंगू हो जाता है। क्योंकि मच्छर के काटने से उसके शरीर में भी वायरस पहुंच जाता है। जिससे वह आदमी भी डेंगू से संक्रमित हो जाता है।
#डेंगू के लक्षण:-
डेंगू के पहले कुछ लक्षण केवल फ्लू की तरह होते हैं और मच्छर के काटने के चार से दस दिनों के बाद दिखाई देने लगते हैं। डेंगू बुखार को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: क्लासिक डेंगू बुखार, डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम। जिसमें से डेंगू रक्तस्रावी बुखार सबसे घातक और जानलेवा माना जाता है।
डेंगू के शुरुआती लक्षणों में 104 डिग्री तक तेज बुखार, ठंड लगना, शरीर में तेज दर्द और जोड़ों में दर्द, आंखों के पीछे केंद्रित दर्द, थकान, मतली, चकत्ते और उल्टी शामिल हो सकते हैं। डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी आमतौर पर पांच दिनों के भीतर ठीक हो जाता है लेकिन सही इलाज न मिलने पर स्थिति और खराब हो सकती है।
डेंगू रक्तस्रावी बुखार के लक्षणों में अत्यधिक बेचैनी, उल्टी की संख्या में वृद्धि, पेट में तेज दर्द और मल या उल्टी में रक्त शामिल हैं। ये लक्षण आमतौर पर बुखार दूर होने के एक से दो दिन बाद दिखाई देते हैं। ऐसी परिस्थितियों में स्वास्थ्य कर्मियों से परामर्श करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार का डेंगू जानलेवा हो सकता है। #डेंगू_से_बचाव:-
डेंगू से बचाव के कुछ आसान उपाय जिससे आप खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को डेंगू होने से बचा सकते है।
- डेंगू का मच्छर दिन के समय काटता है इसलिए दिन में मच्छर के काटने से बचे - बारिश के दिनो में पुरे कपड़े पहने और शरीर को ढक कर रखे - घर के आस पास पानी ना जमा होने दे - जमा हुए पानी में मिट्टी का तेल डाले - मच्छरदानी का उपयोग करे - पीने के पानी को साफ़ रखे - डेंगू होने पर डॉक्टर के पास जाये और खून की जांच कराये - नियमित दवा लेते रहे
यदि आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को डेंगू के लक्षण दिखाई दे रहें हो तो तुरंत अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जांच कराये । इसमें लापरवाही करना हानिकारक हो सकता है।
#इलाज:-
#होमियोपैथिक सिस्टम में ऐसे कई सारी दवाइयां है जिनके माध्यम से हम डेंगू का इलाज करते है।।साथ ही होमियोपैथी दवाइयों के माध्यम से हम डेंगू को फैलने से रोक सकते है जिस किसी भी एरिया में पानी का जमाव ज्यादा हो या डेंगू ज्यादा फैल रहा हो या किसी परिवार का अन्य कोई भी सदस्य इस गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो इस व्यक्ति के साथ साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी होमियोपैथिक दवा के माध्यम से बचाया जा सकता है।होमियोपैथिक में इस बीमारी से बचाव के साथ साथ इसके संपूर्ण इलाज के लिए दवाइयां मौजूद है,जो की व्यक्ति के लक्षण के आधार पे दिया जाता है।होमियोपैथिक दवाइयां डेंगू के जीवाणु को हमारे शरीर में फैलने से रोकती है ।साथ ही हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाकर इन बीमारियों से बचाव करती है।
..अगर आपके एरिया में डेंगू का फैलाव हो रहा है या आपके आसपास लोग डेंगू से परेशान है तो इसके बचाव के लिए आप संपर्क करे या चिकित्सा कैंप के माध्यम से हम उनलोगो को बचा सकते है।
डॉ० रौशन पाण्डेय पूर्व चिकित्सा पदाधिकारी,मध्यप्रदेश।।
मुख्य अतिथि श्री शत्रुघ्न सिन्हा (सांसद सह अभिनेता) उपस्थित हुए और कहा कि पटना कॉलेजिएट स्कूल बिहार का धरोहर
पटना कॉलेजिएट स्कूल का 190 वाँ स्थापना दिवस सह पूर्ववर्ती छात्र मिलन समारोह गणपति उत्सव हॉल, राजेन्द्र नगर में मनाया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन कर्नल (डा) अजीत कुमार सिंह ने दीप प्रजवलित कर के किया जिसमें मुख्य अतिथि श्री शत्रुघ्न सिन्हा (सांसद सह अभिनेता) उपस्थित हुए और कहा कि पटना कॉलेजिएट स्कूल बिहार का धरोहर है। इसके छात्र दुनिया भर में अच्छे पदों पर है। इस अवसर पर न्यायमूर्ति हरीश कुमार ,पटना उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति अरुण कुमार,पटना उच्च न्यायालय अरुण कुमार सिन्हा, विधायक, डा० सत्यजीत कुमार सिहं, कुणाल सिंह, अभिनेता, नवल किशोर अग्रवाल, अधिवक्ता, नरेन्द्र प्रसाद सिंह, अधिवक्ता, डा. शैलेन्द्र प्रसाद सिंह,प्रो.रंजीत कुमार सिंह प्रोफेसर जनार्दन सिंह, नरेन्द्र प्रताप सिह, नरेन्द्र कुमार झा, बृजेन्द्र कुमार सिन्हा, एवं प्रदेश एवं देश के अनेक गणामान्य लोग उपस्थित हुए।
एसोसिमेसन के उपाध्यक्ष कृष्णा नन्द सिंह ने बताया कि इस स्कूल ने दो भारत रत्न डा० विधान चन्द्र राय एंव लोकनायक जय प्रकाश नारायण के रूप में देश को दिये हैं। अशोक आनन्द, सचिव ने बताया कि इस स्कूल को बिहार का सबसे पुराना स्कूल होने का गौरव प्राप्त है, कृष्ण किशोर सिन्हा, कोषाध्यक्ष ने बताया कि यह स्कूल देश का पांचवा सबसे पुराना स्कूल है। डा0 प्रेमेंद्र प्रियदर्शी, डा. समरेन्द्र झा, दिनेश कुमार दास, ई० विवेका नन्द, विनित बरियार, मनोज कुमार, संजय पांडे, संजीत पांडे, अशोक चंद्र ,राजेश राज, मोना गुप्ता सहित कई पूर्ववर्ती छात्रों ने अपने विचार प्रकट किये।
इस अवसर पर स्कूल की पहली डायरेक्टरी का विमोचन भी हुआ जिसमें स्कूल के पुराने छात्रों की जीवनी का विवरण दिया गया है। समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ जिसमें कुमार पंकज ,शशि शंकर अजीत अकेला, एवं गिटारिस्ट प्रवीण कुमार बादल आदि कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन ई० पूर्णानंद ने दी।
मास्टर ट्रेनर स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका तथा डॉ. स्वाति सिन्हा के द्वारा सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षण
वैशाली : परिवार नियोजन के नए अस्थाई साधन एमपीए-एससी पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन स्वास्थ्य विभाग एवं पीएसआई इंडिया के तकनीकी सहयोग से जिला स्वास्थ्य समिति वैशाली के सभागार में किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ. श्यामनंदन प्रसाद के द्वारा किया गया। इस एक दिवसीय प्रशिक्षण में जिला अस्पताल सहित वैशाली जिला के अंतर्गत आने वाले सभी प्रखंडों के कुल 26 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारीयो को एमपीए-एससी पर प्रशिक्षण दिया गया। मास्टर ट्रेनर स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका तथा डॉ. स्वाति सिन्हा के द्वारा सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान सिविल सर्जन डॉ. श्यामनंदन प्रसाद के द्वारा कहा गया कि परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत बास्केट का चॉइस में एमपीए-एससी एक नया साधन है और लगाना भी बेहद आसान है। यह साधन दर्दरहित तथा दवा की मात्रा कम होने के कारण लाभार्थियों के लिए अत्यधिक सुविधाजनक है।
इस मौके पर पीएसआई इंडिया की जिला प्रबंधक कुमारी सुरभि के द्वारा कहा गया कि अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उप स्वास्थ्य केंद्रों पर आने वाले सभी लाभार्थियों को एमपीए-एससी की जानकारी दी जाए। जिससे ज्यादा से ज्यादा लाभार्थियों को परिवार नियोजन के इस नए साधन का लाभ मिल सके। डीसीएम निभा रानी ने बताया कि परिवार नियोजन कार्यक्रम को सफल बनाने में हमारे स्वास्थ्य कर्मियों की अहम भूमिका रही है। जिला अनुश्रवण एवं मूल्यांकन पदाधिकारी द्वारा एमपीए-एससी की एचएमआईएस पोर्टल पर रिपोर्टिंग की चर्चा की गई साथ ही उनके द्वारा कहा गया कि पीएसआई इंडिया का द्वारा इस कार्यक्रम को सफल बनाने में हमें निरंतर तकनीकी सहयोग मिलता रहेगा। डीसी आरबीएसके डॉ. शाइस्ता के द्वारा कहा गया कि स्वस्थ माँ और स्वस्थ शिशु हो इसके लिए परिवार नियोजन बेहद ही महत्वपूर्ण है, और आरएमएनसीएचए की शुरुआत भी प्रजनन स्वास्थ्य से की जाती है। इस मौके पर अन्य जिला स्तरीय स्वास्थ्य पदाधिकारी एवं कर्मी भी उपस्थित थे।
- स्तनपान के विश्व रैंकिंग में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँचा
- बिहार में भी विशेष स्तनपान दर 10 अंक सुधरा, 53.5% से बढ़कर 63.3% हुआ - शहरी मातृत्व की विविध चुनौतियों के बावजूद स्तनपान को है समर्थन की ज़रूरत
पटना- स्तनपान बढ़ाने और इस सम्बन्ध में माताओं के बीच जागरूकता के सरकार के प्रयासों ने देश को बड़ी उपलब्धि दिलाई है. स्तनपान की विश्व रैंकिंग में भारत ने 38 स्थानों की छलांग लगाई है और 41वें स्थान पर पहुंच गया है. वर्ल्ड ब्रैस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव की असेस्मेंट रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँच गया है. इन प्रयासों का बिहार में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में बिहार में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की दर 23.5% थी जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में बढ़कर यह 26.4% हो गयी. इसी प्रकार छह महीने तक विशेष स्तनपान की दर 53.5% से बढ़कर 63.3% हो गई.
वैसे अभी भी ‘अर्बन ब्रेस्टफीडिंग गैप’ ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में नौकरीपेशा महिलाओं को कार्यालय में सहजता से स्तनपान कराने में परेशानी होती है. इसका प्रमुख कारण दफ्तरों में स्तनपान कक्ष का नहीं होना है. मलिन बस्ती में रहने वाली महिलाओं की समस्या अलग है. ऐसी महिलाओं को परिवार चलाने के लिए काम के लिए निकलना पड़ता है. ऐसे में वह सामान्यतः घर से शिशु को स्तनपान कराकर काम पर चली जाती हैं. बाद में घर में रहने वाले लोगों को शिशु के लिए बोतल का दूध, पानी अथवा डिब्बाबंद पूरक आहार पर निर्भर रहना पड़ता है. जबकि जन्म के बाद पहले छः महीने तक सिर्फ स्तनपान के अलावा नवजात को किसी अन्य ऊपरी आहार की जरुरत नहीं पड़ती, पानी की भी नहीं. जन्म के प्रथम घंटे का स्तनपान किसी भी नवजात के लिए पहला टीका माना जाता है. माँ के पीले गाढ़े दूध में कई पोषक तत्वों का समावेश होता है.
एम्स, पटना में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा प्रसाद बताती हैं कि स्तनपान नवजात शिशु को जीवन के पहले छह महीनों तक पूर्ण पोषण प्रदान करता है, जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और वह डायरिया, निमोनिया जैसे गंभीर संक्रमणों से सुरक्षित रहता है. इसी के मद्देनजर बिहार में स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान करवाना सुनिश्चित किया है. इसके लिए सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्तनपान कक्ष स्थापित किए गए हैं. जल्दी ही सभी संस्थानों को “बोतल मुक्त परिसर” घोषित किया जाना है. सामुदायिक स्तर पर लोगों को स्तनपान के महत्त्व से अवगत कराने के लिए अभी “विश्व स्तनपान सप्ताह” (1 से 7 अगस्त) मनाया जा रहा है. अभियान के दौरान व्यापक पैमाने पर स्तनपान के फायदों के बारे में प्रचार प्रसार किया जा रहा है.
ऐसे में तो लोकतंत्र नहीं लोकतंत्र का अह्सास बचेगा !
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरीके से चुनाव आयोग द्वारा सत्ता के साथ मिलकर या कहें मोदी सत्ता को बनाये रखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था चुनाव को हाईजैक किये जाने के ताने-बाने को मय दस्तावेजी सबूतों के साथ देश के सामने खोलकर रखा है और 24 घंटे से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत खामोश है तो फिर मानकर चला जाय कि जनता की हथेली खाली है। 2014 के बाद से आम चुनाव के हालात इतने भयानक और डरावने बना दिए गए हैं जिसके सामने न तो कोई मुद्दा मायने रखता है न ही कोई सवाल, तो फिर जनता क्या करे ? सही मायने में यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के अस्तित्व के संकट का सवाल है जिस पर खड़े होकर देश का हर व्यक्ति देश को चलाने वाले अपने प्रतिनिधि को अपने वोट के जरिए चुनता है। लेकिन यहां तो सत्ता को गारंटी दे दी गई लगती है कि उसके लिए वोट की शक्ल में जनता का फैसला कोई मायने नहीं रखता है। फैसला तो पहले से ही तय कर दिया जाता है जनता तो अपनी उंगली में लगी स्याही को देखकर इस अह्सास के जीती है कि उसने वोट डाल दिया है और देश में लोकतंत्र जिंदा है।
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई सूची में से हांडी के चावल में से एक दाने की तरह उस सच को देश के सामने रख दिया जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह वोटों की चोरी नहीं बल्कि यह तो वोटों का आतंकवाद है और आतंकवादी और कोई नहीं बल्कि सत्ता के वरदहस्त के नीचे खुद चुनाव आयोग ही है ! भारत का संविधान कहता है कि चुनाव लोकतंत्र का प्रतीक है और चुनाव कराना चुनाव आयोग के हिस्से में आता है तथा संविधान की व्याख्या करना सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आता है। मगर अगर सारे संवैधानिक संस्थान सिर्फ और सिर्फ सत्ता को बरकरार रखने के लिए जुट जायेंगे तो तय है कि पूरी प्रक्रिया और पूरा सिस्टम चरमरा कर धराशायी हो जायेगा। 2014 के बाद से एक के बाद एक संवैधानिक संस्थान के चरमराने की आवाज लगातार देश के भीतर सुनाई देती रही है। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि संविधान और लोकतंत्र को बचाये और बनाये रखने की अहम जिम्मेदारी जिसके कांधे पर है वह सुप्रीम कोर्ट भी खामोशी के साथ केवल टिकुर - टिकुर निहारता नजर आता है। जबकि सवाल डेमोक्रेसी का है, हर व्यक्ति के वोट का है, देश के भीतर लोकतांत्रिक हालातों को जिंदा रखने का है। देश में 2014 के बाद से चुनाव परिणाम के दौरान सत्ता विरोधी लहर गदहे के सींग माफिक गायब हो गई। जबकि चुनाव दर चुनाव नोटबंदी, जीएसटी, मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ, पीएसयू'स को बेचना, बेरोजगारी, मंहगाई आदि को लेकर सत्ता के खिलाफ जनता के बीच जबरजस्त विरोधी स्वर, चुनाव पूर्व और वोटिंग के तत्काल बाद आये सर्वेक्षण सब कुछ बेमानी साबित होते चले गए और चुनाव परिणाम सत्तानुकूल होते चले गए। विपक्षी पार्टियों ने हरबार चुनाव आयोग के सामने गुहार लगाई मगर चुनाव आयोग कान में रूई ठूंसे हर विपक्षी आवाज को अनसुना करता रहा यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी निरीह दिखाई दिया। चुनाव आयोग ने सत्तानुकूल चुनाव प्रक्रिया अपनाई। डिजिटल युग में भी डाटा डिलीट करता रहा जिसने न केवल विपक्षी पार्टियों के बीच बल्कि जनता के बीच भी चुनाव आयोग अपनी विश्वसनीयता खोता चला गया।
कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक राज्य की बेंगलूरु सेंट्रल लोकसभा सीट की डिजिटल वोटर लिस्ट की मांग की लेकिन चुनाव आयोग ने कांग्रेस को मेनुअल वोटर लिस्ट का जखीरा पकड़ा दिया। फिर भी कांग्रेस ने हिम्मत न हारते हुए 6 महीने की कड़ी मशक्कत के बाद वह खुलासा कर डाला जिसने चुनाव आयोग को देश के सामने नंगा करके रख दिया ! गौरतलब यह है कि चुनाव आयोग ने अपने तन ढकने के लिए बीच प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शपथ पत्र देने की मांग कर डाली जबकि राहुल गांधी चुनाव आयोग द्वारा दिए गए दस्तावेजी साक्ष्य का विश्लेषण कर मात्र एक विधानसभा सीट की जानकारी पत्रकारों के बीच साझा कर रहे थे। कायदे से तो चुनाव आयोग को हलफनामा देकर देश को सच्चाई बताना चाहिए मगर यहां तो चोर की दाड़ी में तिनका दिखाई दे रहा है।
बेंगलुरु सेंट्रल के भीतर आने वाले विधानसभा क्षेत्र सर्वज्ञ नगर, सी वी रमन नगर, शिवाजी नगर, शांति नगर, गांधी नगर, राजाजी नगर, चामराजपेट, महादेवपुरा में से कांग्रेस महादेवपुरा छोड़ कर सभी में आगे रहती है मगर महादेवपुरा में वह इतने ज्यादा वोटों से जीतती है कि बाकी सारी विधानसभाओं के वोट उस बढ़त के भीतर समा जाते हैं जो बढ़त महादेवपुरा में मिलती है और कांग्रेस कैंडीडेट चुनाव हार जाता है। कांग्रेस ने बेंगलूरु सेंट्रल की महादेवपुरा सीट का विश्लेषण किया और पाया कि यहां पर 5 तरीके से चुनाव को हाईजैक किया गया है। जिसको राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के सामने सिलसिले बार रखा। इस विधानसभा क्षेत्र में डुप्लीकेट वोटर्स की संख्या 11965 पाई गई। फेक इनवेलिड अड्रेस में वोटरों की संख्या 40009 पाई गई। इसी तरह से वल्क वोटर्स इन सिंगल अड्रेस वाले वोटर्स मिले 10452 इसी तरह चौथे क्रम में इनवेलिड फोटोज वालों को रखा गया जो कि 4132 पाये गये सबसे ज्यादा चौंकाने वाला आंकड़ा रहा मिसयूज फार्म्स - 6 का जिसमें 33692 वोटर्स पाये गये। इसमें उन वोटरों को शामिल किया जाता है जो पहली बार मताधिकार का प्रयोग करते हैं तथा इसमें अधिकांशतः 18 से 22 आयु वर्ग के युवाओं को शामिल किया जाता है लेकिन इस लिस्ट में जिनको शामिल किया गया है उनकी उम्र तो 90, 92, 95, 97 के आसपास है। भारत दुनिया का शायद पहला देश होगा जहां पर नौ दशक के बाद लोगों ने पहली बार मताधिकार का प्रयोग किया है। और खासतौर पर इन्हीं वोटरों के लिए नरेन्द्र मोदी कहते फिरते हैं कि यह वोटर तो हमें ही वोट करता है। यह भी संभवतः भारत में ही संभव है कि एक ही व्यक्ति चार-चार विधानसभा तो छोडिए चार-चार स्टेट में वोटिंग कर सकता है। एक सिंगल बेड रूम वाले कमरे में 80 लोग निवास करते हैं वह भी अलग - अलग मां-बाप की संतानें। दुनिया में शायद ही कोई मकान होगा जिसका मकान नम्बर जीरो (शून्य) हो। दुनिया में यह भी कहीं नहीं होगा जिनके बाप का नाम एबीसीडी, आईजेकेएल या डब्ल्यू एक्स वाई जेड हो मगर इस असंभव को भी भारत के चुनाव आयोग ने संभव कर दिखाया है। और ये सब कुछ तभी संभव हो सकता है जब चुनाव आयोग खुद जीतने के लिए चुनाव लड़ रहा होता है।
तो क्या फिर लोगों को सुप्रीम कोर्ट के जाग्रत होने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए ? वह इसलिए भी कि न सही आर्थिक तौर पर परन्तु वोटिंग के तौर पर तो हर एक को बराबरी का अधिकार है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती और ताकत है। जिस तरह का खुलासा राहुल गांधी ने किया है उसको देखते हुए प्रथम दृष्टया सुप्रीम कोर्ट को स्वसंज्ञान लेते हुए सभी डाक्यूमेंट अपने हाथ में ले लेना चाहिए। जांच की प्रक्रिया तय करते हुए चुनाव आयोग से सभी लोकसभा क्षेत्रों के संबंधित दस्तावेज शपथ-पत्र के साथ कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया जाना चाहिए मगर क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा करेगा ? चुनाव जीतने का जो माॅडल और फार्मूला सामने आया है वह तो यही बताता है कि देश की डेमोक्रेसी को एक लिहाज से हाईजैक कर लिया गया है। 2014 के बाद राजनीति ने जैसी करवट ली है उसने सबसे ज्यादा नुकसान तो उन्हीं का किया है जिन्होंने मौजूदा सत्ता को चुना है। देश में एक ऐसी टोली पैदा हो गई है जो लोकतंत्र को लेकर सवाल पूछने वालों को ही निशाने पर लेने लगी है और इस टोली में स्ट्रीम मीडिया भी शामिल दिखाई देता है। जो लोकतंत्र हर 5 साल में ये बताता था कि ये जनादेश जनता का है अब अगर वो जनादेश चुनाव आयोग का हो गया है और चुनाव आयोग सत्ता का हो गया है तो फिर जनता की हथेली खाली है।
जिस माॅडल और फार्मूले को आत्मसात किया गया है उससे आज जो सत्ता के साथ खड़े होकर मलाई चाट रहे हैं उनके सामने भी यह संकट तो कल खड़ा हो ही जायेगा कि न तो छत्रप बचेंगे न ही उनकी पार्टी ! फिर चाहे वह चंद्रबाबू नायडू हों या फिर नितीश कुमार, वो एकनाथ शिंदे, अजीत पवार हों या फिर चिराग पासवान। सवालों का पूरा झुंड एक ऐसे गुलदस्ते में तब्दील किया जा चुका है जिसकी खुशबू सत्ता के लिए ही बहती है और उसको पूरी तरह से ये आश्वासन और भरोसा दिला देती है कि किसी भी चुनाव में आपको कोई भी बेदखल नहीं कर सकता है। कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस ने इन सवालों को भी खड़ा कर ही दिया है कि - विपक्ष क्या करेगा ? कांग्रेस कौन सा कदम उठाएगी ? क्या कांग्रेस का नेता राहुल गांधी एक बार फिर जनता के बीच जाकर गांधीवादी तरीके से लोगों जागरूक करेगा ? क्या देश की जनता इस बात को समझ पायेगी कि उसके वोट से जो सरकार बनती बिगड़ती है दरअसल ये उसका वहम है असल में तो ये सब चुनाव आयोग के हिसाब से होता है और चुनाव आयोग सत्ता के लिए है, सत्ता का है।