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September 09, 2025
Ahaan News

सी.पी. राधाकृष्णन बने देश के 15वें उपराष्ट्रपति

जीवन यात्रा ने गढ़ी विशेष पहचान

भारत ने आज अपने नए उपराष्ट्रपति का स्वागत किया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज कर देश के 15वें उपराष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया। उन्हें 452 वोट मिले, जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी और पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए। यानी राधाकृष्णन ने 152 मतों के अंतर से यह चुनाव जीता। परिणाम की घोषणा राज्यसभा के महासचिव प्रमोद चंद्र मोदी ने की।

किसान परिवार से राष्ट्रीय राजनीति तक
20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुपुर में जन्मे चंद्रपुरम पोनुसामी राधाकृष्णन का जीवन सफर एक किसान परिवार से शुरू होकर राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष पद तक पहुंचा। उन्होंने वी. ओ. चिदंबरम कॉलेज, तुलूकोड़ी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (BBA) की पढ़ाई की। शुरुआती दिनों में उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से हुआ और वे 1974 में जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति में शामिल हुए।

राजनीति और संसदीय अनुभव
भाजपा में संगठनात्मक जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। 1996 में वे तमिलनाडु भाजपा के सचिव और 2004 से 2007 तक राज्य अध्यक्ष रहे। 1998 और 1999 में वे कोयंबटूर लोकसभा सीट से लगातार दो बार सांसद चुने गए और हर बार डीएमके के उम्मीदवार को बड़े अंतर से हराया। संसद में रहते हुए वे वित्त, वस्त्र और सार्वजनिक उपक्रम जैसी समितियों के सदस्य और अध्यक्ष भी रहे। 2003 में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में किया।

तमिलनाडु में जन्म, RSS से जुड़ाव, 40 साल का सियासी सफर... जानें- कौन हैं  NDA के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन - Who is CP Radhakrishnan  Maharashtra ...

प्रशासनिक और संवैधानिक भूमिकाएँ
राजनीति से आगे बढ़कर राधाकृष्णन ने प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ भी संभालीं। 2016 से 2020 तक वे कोइर बोर्ड के अध्यक्ष रहे और इस दौरान कोइर उत्पादों के निर्यात को रिकॉर्ड 2,532 करोड़ रुपए तक पहुंचाया। 2020-22 में उन्हें भाजपा का केरल प्रभारी बनाया गया। फरवरी 2023 में वे झारखंड के राज्यपाल नियुक्त हुए और बाद में तेलंगाना के राज्यपाल व पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभाला। जुलाई 2024 में उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद की शपथ ली।

उपराष्ट्रपति पद की ओर
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद अगस्त 2025 में भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने राधाकृष्णन को एनडीए का उम्मीदवार घोषित किया। विपक्ष की ओर से न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी मैदान में उतरे। 9 सितंबर को हुए मतदान में राधाकृष्णन को स्पष्ट बहुमत मिला और उन्होंने जीत दर्ज की।

आगे की जिम्मेदारी और राजनीतिक संकेत
अब राधाकृष्णन न केवल देश के उपराष्ट्रपति होंगे बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में सदन का संचालन भी करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिणाम संसद में एनडीए की संख्यात्मक मजबूती और विपक्ष की सीमित एकजुटता का संकेत देता है। साथ ही, राधाकृष्णन का संगठनात्मक अनुभव और संयमित व्यक्तित्व उन्हें इस नई भूमिका में मजबूती प्रदान करेगा।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 09, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 21

पेंच भी फंसा है - इज्ज़त भी दांव पर लगी है !

बीजेपी का लक्ष्य केवल सत्ता हासिल करना नहीं, देश को बड़ा बनाना है: पीएम  मोदी - BJP s goal is not just to gain power it is to make the country bigger

"ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं" लगता है कि यह वाक्य बीजेपी का मूल मंत्र सा बन गया है और अब यही वाक्य भाजपा के गले की फांस बनता हुआ दिखाई दे रहा है। वैसे तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को चींटी समझकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मसला था मगर वो चींटी मरी नहीं बल्कि हाथी की सूंढ में घूसने के माफिक गुजरात लाॅबी की नाक में दम कर रही है वह भी तब जब धनखड़ से ही खाली हुई उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के लिए आज चुनाव होने जा रहा है। जिस तरह से देशी राजनीति के भीतर हलचल हो रही है वो इस बात को बताने के लिए काफी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह या कहें पूरी गुजरात लाॅबी अपनी कुर्सी और अपनी राजनीति को बचाने के लिए जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है। एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जिस समाजवादी नेता राजीव राय के घर पर 2022 के चुनाव के पहले इनकम टैक्स का छापा डलवाया गया है उसी राजीव राय को अमित शाह जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। जबकि बीमारी के चलते पद त्याग करने वाले धनखड़ की तबीयत का हालचाल जानने की फुर्सत न तो गृहमंत्री अमित शाह के पास है न प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। ऐसा ही एक वीडियो और वायरल हो रहा है जिसमें अमित शाह बाढ़ पीड़ितों से मिलने गए हैं लेकिन वहां पर एक भी आम नागरिक नहीं है तो अमित शाह कह रहे हैं कि अरे यार इस तरफ जाकर 4-5 लोगों को तो पकड़ लाओ। कैसी हालत हो गई है नरेन्द्र मोदी के सेनापति की या कहें भाजपा के चाणक्य की कि अब उन्हें खुद आगे आकर लोगों से व्यक्तिगत संबंध बनाने पड़ रहे हैं। वर्ना मोदी-शाह की जोड़ी तो बीते 11 सालों से रिंग मास्टर की तरह पार्टी और पंचायत से लेकर संसद तक के माननीयों को चाबुक से हांक रहे हैं।

Anish Kumar على X: ""ये दौलत भी ले लो.. ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे  मेरी जवानी… मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन …. बचपन की जवानी…. वो

जिस तरह से जिंदगी में पीछे लौटने का साधन नहीं होता भले ही गीतकार ये गाता रहे कि "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी" ठीक इसी तरीके से राजनीति में भी कोई रिवर्स गेयर नहीं होता है। यदि होता तो वर्तमान परिस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और गुजरात लाॅबी जगदीप धनखड़ का चरणामृत पान करते हुए उन्हें फिर से उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा देती। जिस अहंकार से ग्रसित होकर पीएम और एचएम ने देश को जिस तरह का मैसेज देने के लिए जगदीप धनखड़ को चंद मिनटों के भीतर उपराष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया था वही मैसेज अब इनके गले की फांस बन गया है। राजनीतिक गलियारों में तो इस तरह की भी चर्चाओं का बाजार गर्म है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव परिणाम कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फेयरवेल पार्टी में तो तब्दील नहीं हो जायेगा। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि अपने 11 वर्षीय शासनकाल में बीजेपी को अंगुली पर नचाने वाले नरेन्द्र मोदी को इतने बुरे दिन देखने पड़ेंगे जैसे उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखा रहा है। पहले तो एनडीए के सहयोगियों को लेकर माथे पर चिंता की लकीरें थीं कि कहीं चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान, महाराष्ट्र की दल तोडू पार्टियां बिदग ना जायें लेकिन ये तो नरेन्द्र मोदी सहित किसी ने भी सपने में भी कल्पना नहीं की होगी कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी बगावती स्वर सुनाई दे सकते हैं। बीजेपी के सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज पर उपराष्ट्रपति चुनने के लिए वोट कर सकते हैं। इसमें उन सांसदों की संख्या सारी बाजी पलटने के लिए पर्याप्त है जो कहीं न कहीं पीएम मोदी और एचएम शाह से गाहेबगाहे अपमानित होते रहे हैं या कहें जिनके साथ मोदी - शाह ने हाथ में छड़ी लेकर हेड मास्टर की तरह बर्ताव किया है।

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बीजेपी के अंदर से जो कहानी निकल कर आ रही है वह यही कहती है कि दोनों मास्टर तो अंबानी अडानी की यारी से अपने आर्थिक हित साधते रहते हैं लेकिन बाकी को हरिश्चन्द्र की औलाद बनने को मजबूर करते हैं। कांग्रेस के इस व्यक्तव ने देश के भीतर कुछ इस तरह का मैसेज दिया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी के माध्यम से भारत की हैसियत चपरासी से भी बदतर कर रखी है। "अमेरिका वालों अपने कान और आंख खोल कर सुन देख लो ये अलग बात है कि हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप के सामने कमजोर पड़ते हैं लेकिन भारत बहुत ताकतवर राष्ट्र है। दो महीने में तो आप ही माफी मांगेंगे। भारत न किसी के दबाव में झुका है न झुकेगा। भारत अपनी अर्थव्यवस्था को स्वयं देख सकता है। अपनी सैन्य शक्ति के दम पर विजय प्राप्त कर सकता है। ये तो बीजेपी के नरेन्द्र मोदी की सरकार है जो आप ऐसा कह रहे हैं। काश आज कांग्रेस की सरकार होती तो आपको मुंह की खानी पड़ती। जिस तरह से आपका सातवां बेड़ा वापस कर जबाब दिया गया था वैसा ही करारा जबाब आज भी दिया जाता"। भारत ने पहले भी पाबंदियां झेली हैं। सवाल यह है कि क्या देश अपने आत्मसम्मान को छोड़ कर अमेरिका के सामने सरेंडर कर देगा ? क्या हमारा स्वाभिमान खत्म हो जायेगा ? लगता है कि नरेन्द्र मोदी का कोई पर्सनल मामला डोनाल्ड ट्रंप के पास फंसा हुआ है। सोशल मीडिया पर भी कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के पास नरेन्द्र मोदी की कोई खुफिया जानकारी है। अब यह कहां तक सही और गलत है ये तो मोदी और ट्रंप ही बता सकते हैं। वैसे कुर्सी बचाये रखने के लिए नरेन्द्र मोदी बहुत बड़ा दिल रखते हैं उसका सबसे बड़ा उदाहरण आप से भाजपा हो चुके कपिल मिश्रा है। कपिल मिश्रा ने आप पार्टी का विधायक रहते हुए दिल्ली विधानसभा में आन रिकार्ड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किस तरीके से चरित्र चित्रण किया था उसे भूल कर बीजेपी ज्वाइन करा लिया गया। और अब वही कुर्सी उपराष्ट्रपति चुनाव में आकर फंस गई है।

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कुछ दिनों पहले ही आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। इस बात की बहुत चर्चा है कि नारा लोकेश ने साफ तौर पर मांग की है कि केन्द्र में चंद्रबाबू नायडू को गृह या रक्षा मंत्रालय तथा खुद के लिए आंध्र प्रदेश की राजगद्दी के साथ ही प्रदेश को भारी भरकम पैकेज दिया जाय। इसे एक प्रकार की राजनीतिक ब्लैकमेलिंग ही कहा जा सकता है। कहा जाता है कि आज की तारीख में चंद्रबाबू नायडू से बड़ा कोई दूसरा राजनीतिक ब्लैकमेलर नहीं है। जब भी मोदी की कुर्सी डांवाडोल होती दिखती है वह दिल्ली आकर अपना हिस्सा बसूल कर ले जाते हैं। तो क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ब्लैकमेल कर रहे हैं। जिस तरह से पीएम मोदी पर चौतरफा प्रहार किया जा रहा है उसमें एक कड़ी अमेरिका की भी भारत के सबसे बड़े कार्पोरेट घराने में से एक मुकेश अंबानी के जरिए जुड़ती हुई दिख रही है। जबसे मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट वनतारा की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की है जिसने वनतारा पर ताला लटकने तक का अंदेशा पैदा कर दिया है तबसे नरेन्द्र और मुकेश के बीच दरार पैदा होने की खबरें हैं और 12 तारीख को अमेरिका में मुकेश अंबानी की राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मुलाकात होना तय बताया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि उपराष्ट्रपति चुनाव के पूर्व मुकेश अंबानी की कंपनी ने बीजेपी के 140 सांसदों से सम्पर्क भी किया है। दर्शन शास्त्र कहता है कि धुआँ वहीं उठता है जहाँ आग होती है। तो क्या ये माना जाय कि आग चंद्रबाबू, नितीश की तरफ से नहीं बल्कि अमेरिका की तरफ से लगाई गई है और मोदी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मुकेश अंबानी इसका बड़ा आधार बन गये हैं।

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उपराष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान आदि पर नजर रखने के लिए इंटेलिजेंस लगाने तथा फोन टेपिंग किये जाने तक की चर्चाएं हैं। कहते हैं कि इसी समय एक ऐसी रिपोर्ट निकल कर आई जिसने पूरी गुजरात लाॅबी को झकझोर कर रख दिया है। कहा जाता है कि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि सहयोगी दलों के सांसद तो एक रह सकते हैं लेकिन बीजेपी के बहुत सारे सांसद टाटा टाटा-बाय बाय करने वाले हैं। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र होना भी बताया जाता है कि इसकी पटकथा संघ प्रमुख मोहन भागवत के कहने पर लिखी गई है। उस अपमान का बदला लेने के लिए जो 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कह कर किया था कि अब बीजेपी बहुत मजबूत हो गई है, वह अपने फैसले खुद कर सकती है अब हमें संघ के साथ की जरूरत नहीं है। तो क्या इस नाजुक घड़ी में जब उपराष्ट्रपति के चुनाव का पेंच फंसा हुआ है तब संघ बीजेपी को अपनी हैसियत का अह्सास कराना चाह रहा है। अपनी पृष्ठभूमि बताना चाहता है कि अगर हम पर कोई नकारात्मक कमेंट करता है तो हम उसको कैसे निपटाते हैं। इस रिपोर्टात्मक खबर की शुरुआत राजस्थान की सबसे बड़ी कद्दावर नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सरसंघचालक मोहन भागवत के बीच हुई गुफ्तगू से होने की खबर है। इसी बीच बीजेपी के संस्थापक सदस्य वयोवृद्ध मुरली मनोहर जोशी की भी संघ प्रमुख के साथ गुफ्तगू हुई है। स्वाभाविक है इस खबर से मोदी-शाह की नींद उडनी ही थी। आनन-फानन तय किया गया कि राजस्थान के सभी सांसदों को दिल्ली बुलाया जाय। बताते हैं कि इसकी जिम्मेदारी एक प्रभावशाली अफसर को यह कहते हुए दी गई कि एक चार्टर्ड प्लेन को हायर कर सभी सांसदों को दिल्ली लाया जाय।

NDA की एकजुटता पर क्या बोले नीतीश, चंंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान - PM  Modi as NDA Parliamentary party Leader all Alliance leaders Endorsed Modi  Name ntc - AajTak

नरेन्द्र मोदी को भी यह बात समझ में आ गई कि मामले को सुलझाना वजीर के बस में नहीं रह गया है इसलिए लगाम अब वजीरेआजम को ही संभालनी होगी। इसीलिए तय किया गया कि पहली डिनर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर होगी तथा दूसरा डिनर पीएम मोदी ने आवास पर आयोजित किया जायेगा जहां पर खुद पीएम मोदी सांसदों से रूबरू होकर चर्चा कर उनकी नाराजगी दूर करेंगे। लेकिन कहते हैं न कि "जब दुर्दिन आते हैं तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है" । यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसने बेड़ा गर्क करके रख दिया। खबर आई कि डिनर पार्टी में बीजेपी के दो दर्जन से ज्यादा सांसद नहीं आ रहे हैं। जिसने नरेन्द्र मोदी को साफ - साफ मैसेज दे दिया कि अब आपके रिटायर्मेंट प्लान को लागू करने का समय आ गया है। अमित शाह को भी यही संदेश था कि आप भी किताबें पढ़ने और पेड़ लगाने के लिए तैयार रहिये। इसलिए तत्काल नड्डा और मोदी आवास पर तय डिनर पार्टी को केंसिल कर दिया गया। जिसके लिए बहुत ही हास्यास्पद कारण बताया गया जिसे देश ने तत्काल खारिज भी कर दिया ! पंजाब और दूसरे सूबों में आई भीषण बाढ़ के कारण डिनर का आयोजन केंसिल किया गया है। हकीकत यह है कि यदि डिनर पार्टी होती और उसमें दो दर्जन से अधिक पार्टी सांसदों की भागीदारी नहीं होती तो एनडीए के भीतर यही संदेश जाता कि बीजेपी के भीतर बगावत हो चुकी है और एनडीए के प्रमुख सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान एवं अन्यों को पल्टी मारने में दस मिनट भी नहीं लगता और इंडिया एलायंस के उम्मीदवार का जीतना तय हो जाता। वैसे भी चंद्रबाबू नायडू पर बहुत दबाव है क्योंकि इंडिया एलायंस का उम्मीदवार आंध्रप्रदेश का है। जिसके साथ आंध्रप्रदेश की अस्मिता भी जुड़ी हुई है। अब आंध्र और आंध्र के लोगों का सवाल है। नायडू को लगने लगा है कि यदि वे खुलकर आंध्रप्रदेश की अस्मिता को बचाने मैदान में नहीं आते हैं तो फिर उनकी भविष्य की राजनीति मुश्किल भरी हो जायेगी। यानी उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी का संकट बड़ा तो है।

लोकसभा चुनाव 2024 परिणाम LIVE: चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार के बीच अहम  बैठक, कल एनडीए की बैठक: सूत्र

नरेन्द्र मोदी के दिमाग में ये बात बखूबी दर्ज होगी कि जब 2024 में लोकसभा के चुनाव परिणाम आये थे और पार्टी 240 पर सिमट कर रह गई थी तो उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का संकट आकर खड़ा हो गया था। तय था कि अगर बीजेपी संसदीय दल की बैठक में नेता चुना जाता तो नरेन्द्र मोदी आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नहीं होते इसीलिए रणनीति के तहत एनडीए की बैठक बुलाकर अपने नाम पर मोहर लगवाई गई। बीजेपी संसदीय दल की बैठक तो आज तक नहीं बुलाई गई। जैसे ही ये खबर सामने आई कि राजस्थान सांसदों के साथ ही दो दर्जन से ज्यादा सांसद डिनर करने नहीं आ रहे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करना उचित समझा। मोदी की राष्ट्रपति से मुलाकात को गोदी मीडिया ने भाटगिरी करते हुए चीन यात्रा से जोड़ कर सौजन्य भेंट बताया है। राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि न तो नरेन्द्र मोदी इतने भोले हैं न ही उनमें राष्ट्रपति पद का इतना लिहाज है कि वे विदेश यात्रा से लौटकर राष्ट्रपति को ब्रीफिंग करने जायें, वह भी डिनर छोड़ कर। वैसे भी प्रधानमंत्री उसी दिन चीन से लौटकर तो आये नहीं। वे तो चीन से लौटकर बिहार हो आये। वहां जाकर रुदन कर आये। हां बाढ़ पीडित सूबों में जरूर नहीं गए ठीक उसी तरह जैसे वे मणिपुर, पहलगाम नहीं गये थे। जैसे उनके मुखारबिंद से मणिपुर का म नहीं निकला था वैसे ही बाढ़ का ब भी नहीं निकला है। हां कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जरुर पंजाब गये मगर वे भी नागरिक उड्डयन मंत्री और रेल मंत्री की तरह रील बनाने में लग गए। लगता है जैसे मोदी सरकार रीलबाज सरकार बन गई है।

नीतीश, नायडू और चिराग...मोदी सरकार के बजट से NDA के सहयोगियों को क्या-क्या  मिला? | Budget 2025 NDA allies get Modi government Nitish Kumar chandrababu  naidu or chirag paswan

मोदी को जैसे ही ये बात समझ में आई कि जरा सी चूक भी राजनीति की आखिरी पारी साबित हो सकती है तो उन्हों अपने मित्र गौतम अडानी को इंडिया एलायंस के संकटमोचन कहे जाने वाले शरद पवार को साधने के लिए भेजा कारण गौतम अडानी का शरद पवार से भी याराना है। बंद कमरे क्या बातें हुईं पता नहीं मगर समझा जा सकता है कि बीजेपी को बहुत करीब से समझ चुके शरद पवार ने किस तरह से उनकी पार्टी को तोड़ा, किस तरह से उस बाला साहब ठाकरे की शिवसेना का दो फाड़ किया जिसने महाराष्ट्र में बीजेपी को पैर रखने के लिए जमीन दी। जबकि नागपूर में आरएसएस का हेडक्वार्टर होने के बाद भी वह महाराष्ट्र में खड़ी नहीं हो पा रही थी। बीजेपी ने कैसे पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन करने के बाद अकाली दल को ही निगल लिया। तो सवाल यही है कि क्या शरद पवार मैनेज हो पायेंगे ? चंद्रबाबू नायडू भी समझ गये हैं कि अमित शाह द्वारा हाल ही में लाया गया बिल उन्हें ही आईना दिखाने के लिए लाया गया है क्योंकि उन्हें पता है कि उनके कई मामले बहुत ही संवेदनशील हैं। विपक्ष तो समझ ही गया है कि मोदी-शाह पूरा गेम विपक्ष की राजनीति खत्म करने के लिए ही खेल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात आने वाले संभावित राजनीतिक खतरों, मसलन पीएम की कुर्सी से बेदखल करना, से बचने के लिए बी प्लान तैयार की संभावना तलाशने के लिए हुआ होगा। सवाल है कि बी प्लान क्या हो सकता है? क्या देश में एक बार फिर से सत्ता बरकरार रखने के लिए इमर्जेंसी लगाई जायेगी? इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी न तो इतने परिपक्व हैं न ही उनमें इतना साहस कि वे इमर्जेंसी लागू करा सकें।

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बीजेपी के भीतर ही अमित शाह को छोड़ कर कोई दूसरा नेता नहीं है जो नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा हो सके। अब तो बीजेपी के भीतर से ही ये आवाज आने लगी है कि नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक क्षमता खत्म हो गई है। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक पारी का दि एंड होने की कगार पर है इसलिए उन्हें 17 सितम्बर 2025 को स्वयं ही ससम्मान पीएम पद को छोड़ कर उन्हीं वरिष्ठ जनों की कतार में जाकर बैठ जाना चाहिए जहां उन्होंने 11 साल पहले 75 पार कर चुके पार्टी के वरिष्ठ जनों को बैठाया था। वहां पर रखी खाली कुर्सी आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है। उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देने के बाद अदृश्य हो चुके जगदीप धनखड़ के 10 सितम्बर को प्रगट होने की खबर आ रही है। हो सकता है वे इस्तीफा दिये जाने की परिस्थितियों का खुलासा करें। इस बात की भी खबर मिल रही है कि 10 सितम्बर को ही राहुल गांधी द्वारा एक बार फिर वोट चोरी जैसे किसी कांड का खुलासा किया जायेगा जिसमें हरियाणा और उत्तर प्रदेश की बनारस (पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र) शामिल हो सकता है। देश के भीतर राजनीतिक दलों द्वारा अमेरिका को छोड़ कर उस चीन के साथ, जो पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक है, पीएम द्वारा दोस्ती का हाथ बढ़ाने को लेकर आलोचना की जा रही है।यानी "आंधियों से इतने बदहवास हुए लोग, जो तने खोखले थे उनसे ही लिपट कर रह गए" । उत्तर प्रदेश में संघ और बीजेपी की छात्र विंग विद्यार्थी परिषद के लोग सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नारे लगा रहे हैं - "जब जब योगी डरता है पुलिस को आगे करता है" ।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 09, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 20

प्रकृति से लड़ेंगे तो प्रकृति आपको खत्म कर देगी

Uttarakhand Landslide Hinders Chardham Yatra Uttarkashi Cloudburst Dharali  - Amar Ujala Hindi News Live - Uttarakhand:आपदा से थम गईं चारधाम यात्रा की  रफ्तार, धराली में आई आपदा के साथ जगह-जगह ...

पहली बार लोगों के मुंह से सुनने में आ रहा है अब उत्तरांचल खत्म हो गया है, सब कुछ तहस - नहस हो गया है। भृष्टाचार और पूंजी से बड़ा सवाल हो गया है मानसिकता का जिसमें पूरी प्रकृत्ति को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेने की ख्वाहिश है। इसके लिए न तो सुरंगों को खोदने से परहेज है ना ही बड़े-बड़े होटल, घर बनाने से परहेज है। मगर अब जब प्रकृत्ति ने नजर टेढ़ी की है तो पहाड़, उस पर खड़े वृक्ष, भवन ऐसे बिखर रहे हैं जैसे माचिस की डिबिया से तीलियां बिखर जाती हैं। चाहे वह उत्तराखंड हो, पंजाब हो, हिमाचल प्रदेश हो, हरियाणा हो या फिर जम्मू-कश्मीर ही क्यों न हो। इन राज्यों में आधुनिक होने और सब कुछ पैसों से खड़ा कर लेने की सोच के बीच परिस्थिति ने ऐसे हालात लाकर खड़े कर दिए हैं कि हर कोई सिर्फ और सिर्फ त्रासदियों को देख रहा है। त्रासदी ने उत्तरांचल, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली तक को अपनी गिरफ्त में समेट लिया है। दिल्ली से सटा हुआ है गुरुग्राम जहां पर जिसे आधुनिकतम तरीके से डवलप किया गया है। इस बार तो यहां का बजट ही तीन हज़ार करोड़ रुपये का है। लेकिन वहां की तस्वीर भी डरा रही है क्योंकि वह भी पानी - पानी हो चुकी है। पंजाब के 12 जिले के हाल बेहाल हैं या फिर हरियाणा का हिसार, सिरसा, यमुना नगर, कुरुक्षेत्र, पंचकूला ही क्यों ना हो यहां पर भी तबाही का मंजर नजर आ रहा है। अभी तक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होने की बात होती थी लेकिन इस वक्त तो जिस इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा किया गया है वही लोगों को अपने आगोश में ले रहा है। अजब विडंबना है कि सब कुछ भोगने के बाद भी किसी की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं हो रही है न ही आंखों के आंसू से, न ही दिल की भड़ास से न ही जुबां से। जैसे हर कोई सामान्य परिस्थितियों में जी रहा हो या कहें इन सारी परिस्थितियों में जीने का आदी हो चुका है।

भारत के खिलाफ ट्रम्प टैरिफ: जब विदेश नीति सोशल मीडिया पर बड़बोलेपन तक सीमित  हो गई

ऐसे ही जैसे देश के भीतर अब जो नई स्थिति विदेश नीति, कूटनीति और टेरिफ वार के जरिए पैदा हो रही है वह भी इस मायने में हैरतअंगेज है कि अकेले उत्तर प्रदेश में 20 लाख से ज्यादा लोगों के पास काम नहीं बचेगा। टेक्सटाइल्स का क्षेत्र हो या लेदर का सभी के मन में सवाल है कि संघर्ष करें तो कैसे करें। सरकार के बनाये इंफ्रास्ट्रक्चर पर चल कर उसे क्या और कैसे मिलेगा। शायद देश में ऐसी परिस्थिति पहली बार पैदी हुई है। एक तरफ लोग इन विषम परिस्थितियों में अपने भविष्य के बारे मे सोचना शुरू करते हैं तभी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजनीतिक गालियों (जिसके वे स्वयं जन्मदाता हैं!) को अपने दिल पर लेकर, अपने साथ जोड़कर उस राजनीति को साधने निकल पड़ते हैं जहां पर सिर्फ और सिर्फ उनका दर्द है । जबकि देश के भीतर हर दिन सैकड़ों माओं की मौत के बाद उनके बच्चे अपने दर्द को दिल में समेटे अस्थि विसर्जन करते हैं। देश के भीतर तो राजनीति और दिये गये भाषण हर कोई हर दिन सुन रहा है। जनता को पता है कि गालियां अब पारंपरिक नहीं रहीं, उनकी शैली बदल गई है। पंजाब के किसानों ने जब आंदोलन किया था तब उसमें 600 से ज्यादा किसानों की मौत हुई थी जिसमें 70 महिलायें भी थीं और वे सभी किसी न किसी की मां ही थीं तब पीएम मोदी की जुबान से संवेदना का सं तक नहीं निकला था लेकिन आज नरेन्द्र मोदी सिर्फ और सिर्फ अपनी मां को याद कर रहे हैं और वह भी ऐसे समय में जब देश के आधा दर्जन सूबों में पानी ही पानी है। इन प्रांतों में जो बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया गया है उसकी तबाही का खुला मंजर है।

हिमालय - विकिपीडिया

सरकार उस हिमालय की जमीन को बांध कर अपने अनुकूल करना चाहती है जिसकी इजाजत प्रकृति देती नहीं है। लेकिन उसके बावजूद भी विकसित भारत के नाम पर सपने बेचे जा रहे हैं। आसमान से बरसता पानी और कंक्रीट की सड़कों को सीमेंट की सड़कों में बदलने का कैबिनेट मिनिस्टर का ऐलान जिस पर दौड़ाई जायेंगी सरपट गाडियां तथा पेट्रोल में कैसे मिलाया जायेगा एथेनाॅल लेकिन इकोनॉमी का सच क्या है कोई नहीं जानता है। कोई इसलिए नहीं जानता है क्योंकि किसी को पता ही नहीं है कि इस देश में कितने गरीब हैं, कितनों के पास गाडियां हैं, कितनों की जेब टोल वाली सडकों पर रेंगने की इजाजत देती है, कितने व्हाइट कालर वालों की नौकरी कैसे गायब हो गई। उन्हें पता ही नहीं चला कि लाखों नौकरियां सरकार की नजर अमेरिका से हटकर चीन की तरफ चले जाने के बाद चली गई। डाॅलर की जगह रूबल देखने में गुम हो गई। एससीओ की बैठक के आसरे खुद को अंतरराष्ट्रीय राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर मान्यता देने के लिए खुद ही आगे आये लेकिन देश के भीतर की हकीकत क्या है इसका पता ही नहीं है। 2021 में होने वाली जनगणना 2025 तक (5 साल बाद) भी शुरू नहीं हो पाई अब शायद 2031 का इंतजार है। सरकार को ही पता नहीं है कि देश के भीतर का डाटा क्या है। सवाल जन्म - मृत्यु दर से आगे का है, सरकार ही नहीं जानती कि कितने लोगों की मौत हो जाती है प्राकृतिक आपदा से, नौकरियां चली जाने से। सरकार अपने जिस इंफ्रास्ट्रक्चर के रास्ते देश को बनाना चाहती है क्या वो रास्ता इतना घातक है कि हर किसी को अस्थि विसर्जन के लिए घाटों पर खड़ा कर रहा है। ऐसा हो सकता है। क्योंकि सरकार का मुखिया अपनी आंखें बंद कर सिर्फ और सिर्फ अपने दर्द को ही देश का दर्द बताना चाहता है। शायद उसने मान लिया है कि वह ही देश है। इसीलिए डूबता हुआ पंजाब, तैरता हुआ हरियाणा, मिटता हुआ हिमाचल, दम तोड़ता हुआ जम्मू-कश्मीर मदद कीजिए की गुहार लगा रहे हैं लेकिन खुद को देश का प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बात से चिंतित हैं कि उनकी मां को लेकर उन्हें गाली दी गई जिसका जिक्र पूरी नाटकीयता के साथ बिहार की एक सभा में किया गया। पीएम की भर्राई आवाज पर प्रदेशाध्यक्ष को भी तो कुछ करना जरूरी था सो उन्होंने अपनी आंखों से पानी बहाना शुरू कर दिया क्योंकि चंद महीने के भीतर ही बिहार में चुनाव होना है। वह भी उस बिहार में जिसकी आर्थिक स्थिति देश में सबसे नाजुक है, हर दूसरा आदमी गरीबी रेखा के नीचे है, गरीब है, बेरोजगार है, सबसे ज्यादा विस्थापन बिहार में ही होता है। बिहारी शब्द का राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करने से सियासत भी चूकती नहीं है ।

आवरण कथा, खतरे में हिल स्टेशन: शिमला और मनाली की तबाही के लिए दोषी कौन?

पहाडों से, नदियों से, पूंजी बनाने के लिए जमीनों से खिलवाड़ और उसके आसरे चकाचौंध और दुनिया की बड़ी इकोनॉमी बनने के सपने की राजनीति ने देश को कितना खोखला कर दिया है। देश अपने सबसे बुरे हालात में जी रहा है। हिमाचल में 60 बरस का रिकॉर्ड टूट रहा है। किस तरह से पहाड़ ने पूरे गाँव को लील लिया। कल तक जो गांव था वहां पर धड़कनें बची ही नहीं। जम्मू-कश्मीर के भीतर प्राकृतिक आपदा ने चौतरफा तहस नहस कर रखा है। हरियाणा के भीतर का पानी विभाजन के दौर की याद दिला रहा है। इस तरह की भयावह परिस्थितियों के बीच क्या किसी ऐसे नेता की जरूरत है जिसे दिल से यह महसूस हो रहा हो कि उसे राजनीतिक दलों के मंचों से मां की गाली दी गई जिसे वह राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर देश को ऐसे समझा रहे हैं जैसे देश में अपढ - कुपढ लोगों की जमात है। जिन पांच राज्यों में तबाही का मंजर खुलेआम नजर आ रहा है उनमें बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही 20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये गये हैं। इसके भरोसे जमीनों की कीमत को आसमान की ओर उछाल कर उसे उन दरवाजों की चौखट पर उतारा गया जहां पर रोटी - पानी तक के लाले पड़े हैं तो वह अपनी रोटी - पानी के जुगाड़ में जमीन बेच देगा। पैसा है तो आप सब कुछ खरीद बेच सकते हैं और रईसी में जी रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने बचपन की गरीबी के इमोशनल ब्लैकमेलिंग का कार्ड फेंट रहे हैं। भारत के भीतर न तो गरीबी की कोई लकीर है न ही खींची जा सकती है। गरीबी रेखा का मतलब आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक के आंकड़े नहीं हैं। गरीबी की हकीकत सुल्तान की नाक के नीचे देखी जा सकती है। गाजीपुर में लगे कूड़े के पहाड़ पर कूड़ा चुनते लोगों को देख कर, कूड़ा घर में सुबह - सुबह वहां पर फेके गए खाने को बटोर कर खाते हुए लोगों को देख कर समझा जा सकता है देश की गरीबी का आलम यानी गरीबी का कोई पैमाना नहीं है। देश तो सिर्फ और सिर्फ इतना जानता है कि 140 करोड़ की आबादी में 80 करोड़ की आबादी ऐसी है जो 5 किलो आनाज भी खरीदने की हालत में नहीं है इसलिए उसे 5 किलो अनाज मुफ्त दे दिया जाता है।

Bharat ki janganana-2011 | Census of India-2011 | भारत की जनगणना-2011

2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश में 120 - 121 करोड़ लोग थे और उसके बाद शामिल हुए 19 - 20 करोड़ लोगों के बाद से एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक आर्थिक स्थिति ने जितना विपन्न बनाया दूसरी तरफ भारत की राजनीति उतनी ही रईस हुई । कोविड काल में जब देश के चारों खूंट लोग मर रहे थे तो उसी समय दिल्ली के भीतर हजारों करोड़ रुपये का सेंट्रल विस्टा सिर्फ और सिर्फ इसलिए बन रहा था क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिद थी कि अब संसद नई इमारत में ही सजेगी। उसी दौर में पीएम केयर फंड में जिसमें हजारों करोड़ों रुपये बिना किसी हिसाब - किताब के कारपोरेस्, इंटरनेशनल इंडस्ट्रिलिट्स, देशभर के सरकारी कर्मचारियों के वेतन से जबरिया कटौती कर जमा किया गया यानी एक नैक्सस सिस्टम के लिहाज से तैयार किया कि कोई कुछ कहे नहीं और एक ही शक्स वही देश है, सिर्फ और सिर्फ उसकी माँ ही देश की मां है। आजादी के सौ बरस होने पर विकसित भारत का सपना है, अगले पांच साल में तीसरे नम्बर की इकोनॉमी बनने की सोच है यानी सब कुछ पूंजी के आसरे है लेकिन वह जमीन नहीं है जहां पर देशवासी सांस लेते वक्त ये सोच कर सांस ले पायें कि वो सुरक्षित हैं, उनकी जमीन सुरक्षित है, कोई उन्हें लालच देकर घर से बेदखल नहीं करेगा। उनके इर्द गिर्द के पेड़, पहाड़, नदियां सब कुछ सुरक्षित रहेगी। लोगों की नौकरियां और देश की इकोनॉमी पालिसी पटरी पर चलेगी लेकिन इस दौर में ये सब कुछ गायब है क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रुदन कर रहे हैं। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 19

देश मरे तो मरे - सियासत जिंदा रहनी चाहिए

Aatmnirbhar bharat yojna: कोरोना की भयंकर महामारी में Life Line साबित हुआ

भारत के काबिल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कालखंड में आत्मनिर्भर भारत बनाने का सबसे नायाब नमूना है बाढ़ पीड़ितों को अपने हाल पर छोड़ देना। अगर उन्हें मदद दे दी गई तो वो आत्मनिर्भर नहीं बन पायेंगे शायद यही सोच कर राहत पैकेज की अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से तो संवेदना का ट्यूट तक देखने को नहीं मिला। पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर के साथ ही देशवासियों की नजर लगी थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन से लौटकर बाढ़ पीडित राज्यों और राज्यवासियों की चिंता करते हुए कैबिनेट की मीटिंग बुलाएगे, उसमें विचार कर विशेष राहत पैकेज की घोषणा करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो ठीक उसी तरह से पहुंच गये बिहार और लगे चुनाव पूर्व रैली को संबोधित करते हुए करने लगे गाली पुराण का बखान करने होने वाले चुनाव में जीत की संभावनाओं को तलाशने के जैसे पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद भी पहलगाम न जाकर पहुंच गये थे बिहार और करने लगे थे चुनाव पूर्व रैली को संबोधित करने। 

Bihar Politics: आ गई बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट, अब सीटों को लेकर होगा फैसला; अमित  शाह बनाएंगे स्ट्रैटजी - Bihar BJP Core Committee Meeting Amit Shah to  Discuss 2025 Election Strategy

हां इस बात की चर्चा जरूर सुनाई दे रही है कि अमित शाह ने बिहार के चुनाव की रणनीति बनाने के लिए मीटिंग जरूर बुलाई है। यानी रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था। कह सकते हैं कि मोदी सत्ता की पहली प्राथमिकता सियासत है। करोना काल में भी जब देशभर में लाशों का मंजर दिखाई दे रहा था तब भी मोदी सत्ता सरकार गिराने और बनाने का सियासी खेल खेल रही थी, मध्य प्रदेश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है और अभी भी जब पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड बाढ़ की तबाही से बर्बाद हो रहे हैं, प्रदेशवासी अपनों की जान-माल बचाने के लिए जूझ रहे हैं तो मोदी सत्ता बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की बिसात बिछाने के गुडकतान में लगी है। जिन परिस्थितियों में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड जी रहा है उन परिस्थितियों में दुनिया का निकम्मे से निकम्मा शासनाध्यक्ष भी सब कुछ छोड़ कर सबसे पहले बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए आगे आता, अपने कैबिनेट की मीटिंग बुलाता, विचार-विमर्श कर विशेष राहत पैकेज की घोषणा करता मगर दुर्भाग्य है कि देश में एक काबिल प्रधानमंत्री है। इससे बेहतर तो वो निकला जिसके सारे खानदान को मोदी सत्ता पानी पी पी कर कोसती है लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी जो किसी राहत पैकेज का ऐलान तो नहीं कर सकता मगर पीडितों के प्रति संवेदना तो व्यक्त कर सकता है। 

Ready To Protect Constitution With My ...

राहुल गांधी ने ट्यूट करते हुए लिखा है कि "मोदी जी, पंजाब में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में भी स्थिति बेहद चिंताजनक है। ऐसे मुश्किल समय में आपका ध्यान और केन्द्र सरकार की सक्रिय मदद अत्यंत आवश्यक है। हजारों परिवार अपने घर, जीवन और अपनों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मैं आग्रह करता हूं कि इन राज्यों के लिए, खासतौर पर किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज (Special Relief Package) की तत्काल घोषणा की जाए और राहत एवं बचाव कार्यों को तेज किया जाए। राहुल गांधी ने 31 सेकंड का वीडियो भी जारी किया है जिसमें वे मोदी जी से गुजारिश करते हुए कह रहे हैं "नमस्कार, पंजाब में बाढ़ के कारण बहुत नुकसान हो रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड में बहुत बुरे हालात हैं। बहुत दुःख होता है ये देख कर कि लोग अपने बच्चों को, अपने परिवार को बचाने के लिए इतना संघर्ष कर रहे हैं। मोदी जी सरकार की जिम्मेदारी है लोगों की रक्षा करना। आप जल्दी से जल्दी इन स्टेट के लिए एक स्पेशल रिलीफ पैकेज तैयार कीजिए और लोगों को प्रोटेक्शन दीजिए। धन्यवाद। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 18

अमेरिका के निशाने पर भारत नहीं - मोदी हैं जबकि चीन के निशाने पर मोदी नहीं - भारत है !

टैरिफ को लेकर भारत के सामने ये 3 चुनौतियां, सरकार से मांग, Plan-B पर काम  करे देश! - Tit for tat CTI On US Tariff writes letter to PM Narendra Modi  says

जबसे अमेरिका ने टेरिफ लगाया है तबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन बातों का जिक्र बारबार करते रहते हैं - आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी और मेक इन इंडिया। पीएम मोदी के लिए आत्मनिर्भर भारत का मतलब है कार्पोरेट के पास पैसा होना चाहिए, वह पैसा सफेद हो या काला सब चलेगा, कार्पोरेट के लिए रास्ता निकलना चाहिए क्योंकि अगर कार्पोरेट कमजोर पड़ गया तो मौजूदा राजनीतिक सत्ता कमजोर पड़ जायेगी। भारत की राजनीति को कमजोर कर देगी। आत्मनिर्भरता ब्लैक हो या व्हाइट कार्पोरेट के साथ खड़े होना होगा वर्ना मोदी सत्ता की आत्मनिर्भरता के सामने संकट खड़ा हो जायेगा। मोदी के स्वदेशीकरण का मतलब है कि भारत के भीतर चीन कितनी भी इंडस्ट्री लगा ले लेकिन रोजगार भारतियों को दे। मोदी ने तो स्वदेशी को पसीने से जोड़ दिया है, मजदूरी से जोड़ दिया गया है। मेक इन इंडिया का अभी तक का सच यही है कि यदि चीन कच्चा माल देना बंद कर दे तो मेक इन इंडिया डहडहा जायेगा और अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के स्वाभिमान को दरकिनार करते हुए चीन के साथ गलबहियाँ डालने को बेताब हैं तो क्या चीन भारत के मेक इन इंडिया को पूरी तरह से गोद ले लेगा और देश के भीतर एक ऐसी परिस्थिति बन जायेगी जहां पर सब कुछ चीन तय करेगा यानी आत्मनिर्भरता का नारा, स्वदेशी का नारा और मेक इन इंडिया का नारा या कहें वोकल फार लोकल वह भी ग्लोबल के दायरे से निकलेगा क्योंकि हमें हरहांल में पूंजी चाहिए, पैसा चाहिए, रोजगार चाहिए, कच्चा माल चाहिए अन्यथा देश की इकोनॉमी चरमरा जायेगी, परिस्थितियां नाजुक हैं। 
 

Indian Economy: India has become 5th largest economy of the world,  overtakes Britain | Indian Economy: भारतीय अर्थव्यवस्था बनी दुनिया की 5वीं  सबसे बड़ी इकोनॉमी, ब्रिटेन को पीछे छोड़ा

भारत की इकोनॉमी, भारत के कार्पोरेट, भारत की पाॅलिटिक्स और मौजूदा समय में चल रही फिलासफी टकराव की है तथा टकराव की राजनीति के भीतर डाॅलर है, करेंसी है। अंतरराष्ट्रीय ग्लोबलाइजेशन के तहत मल्टी नेशनल कंपनियों का होना है जिनकी पहचान तो भारत से जुड़ी है लेकिन उनके हेडक्वार्टर दुबई, सिंगापुर, लंदन, न्यूयॉर्क में खुले हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार अमेरिका के केन्द्र में चीन खड़ा है और चीनी डिप्लोमेटस् तथा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इस बात को समझ चुकी है कि नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे, वैश्विक गवर्नेंस की परिस्थिति जो ट्रंप के बाद से नाजुक हो गई है उसको बेहतर बनाना पड़ेगा तभी सुरक्षा, इकोनॉमी, आपसी संबंध इन सभी सवालों को लेकर एससीओ की भूमिका व्यापक होगी। 2001 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का गठन किया गया था जिसका विस्तार करते हुए 2017 में भारत, पाकिस्तान, ईरान और बेलारूस को शामिल किया गया। तियानजिन में हो रही बैठक को एससीओ प्लस इसलिए कहा जा रहा है कि इसमें पर्यवेक्षक देश के तौर पर अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, तुर्की, मिस्र, मालदीव, नेपाल, म्यांमार तथा बतौर अतिथि देश इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, वियतनाम की मौजूदगी भी है। यानी कुल मिलाकर 22 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शिरकत कर रहे हैं। जिस तरह से ट्रंप के टेरिफ वार को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्तों में दूरी बढ़ी है उसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को एक सुनहरा अवसर दे दिया है इस मायने में कि अमेरिकी प्रभाव से मुक्त दुनिया को कैसे बनाया जाय। चीन उस दिशा में काम भी कर रहा है। मध्य एशिया के अधिकतर नेताओं की मौजूदगी के बीच चीन ने 3 दिसम्बर को बीजिंग में बकायदा अपने मिसाइलों और युध्दक विमानों की सैन्य परेड निकाली है और उस वक्त वहां पर 18 राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी भी थी, भारत को छोड़कर । इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि दुनिया की आधी आबादी तथा 25 फीसदी जीडीपी एससीओ के साथ है साथ ही 25 फीसदी भू-भाग भी एससीओ के भीतर है। इसीलिए चीनी डिप्लोमेटस् और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एससीओ को दुनिया की सबसे अहम बैठक के तौर पर बनाने का प्रयास कर रही है।

India unemployment rate: देश में 15 फीसदी युवा बेरोजगार, जानें कितने लोगों  को नहीं मिल रहा काम - joblessness steady at above five percent in june know  youth jobless rate - Navbharat Times

भारत की जनता, वोटर, बेरोजगारी, किसान, मजदूर, 99 फीसदी वह लोग जिनकी प्रति व्यक्ति आय दुनिया में सबसे कम है और एक फीसदी की ताकत के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इतना तो समझ ही गये हैं कि अगर अमेरिका उनकी गद्दी को डिगाने की दिशा में कदम उठाता है तो उन्हें समय रहते बड़े देशों को साथ लेना पड़ सकता है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय तौर पर एक तरफ ट्रंप खड़े हैं तो दूसरी तरफ मोदी लेकिन इन सबके बीच अभी तक शी जिनपिंग अमेरिका के निशाने पर नहीं हैं लेकिन मोदी को शी जिनपिंग का साथ चाहिए लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से मोदी को लेकर सहमति बनी नहीं है। किसानी को लेकर अमेरिका के रास्ते जो संकट आता हुआ दिखाई दे रहा है वह चीन की सरपरस्ती से पूरी तरह से खत्म हो जायेगा या फिर आने वाले समय में खाद की तरह से बीज के संकट को भी दूर करेगा। क्योंकि आज भी टेक्टर के सामान से लेकर खेती के उपयोग में आने वाले तमाम संसाधन ही नहीं बल्कि हर टेक्नोलॉजी का कच्चा माल चीन से ही आता है और इस बात को हर कोई जानता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 4 बार मिलाया फोन, PM मोदी ने बात करने से किया  इनकार... जर्मन अखबार की रिपोर्ट में बड़ा दावा - pm modi ignored trumps  calls claims ...

फ्लैशबैक में झांके तो पांच महीने पहले की ही तो बात है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाशिंग्टन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठकर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को ऊंचाई देने का लब्बोलुआब रखा था। इसके पहले भी जब ट्रंप ने राष्ट्रपति की शपथ ली थी जनवरी में तो सबसे पहली बैठक भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की क्वाड को लेकर ही हुई थी जिसमें क्वाड की बैठक साल के अंत में भारत में होना तय किया गया। यह भी तय किया गया कि क्वाड की बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप भी शामिल होंगे। यानी अमेरिका के निशाने पर चीन था। भारत और अमेरिका की प्रगाढ़ता का जिक्र न्यूयार्क टाइम्स और फाक्स न्यूज के साथ ही सीएनएन ने भी खुलकर किया था। मगर पिछले पांच महीने ने प्रगाढ़ता की सारी कहानी को उलट पलट कर रख दिया है और अब साल के अंत में भारत के भीतर होने वाली क्वाड की बैठक में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी नहीं होगी । जनवरी 2025 में अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ हुई भारतीय विदेश मंत्री की बातचीत में भारतीय विदेश मंत्री ने ऐसी कौन सी खता कर दी कि चीन में हो रही एससीओ की बैठक में मोदी ने जयशंकर को ले जाने के लायक ही नहीं समझा जबकि जयशंकर लम्बे समय तक चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और इसी योग्यता के आधार पर ही तो उन्हें मोदी ने अपने मंत्रीमंडल में जगह देकर विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है। मोदी और जिनपिंग के बीच हुई प्रतिनिधि मंडल की बैठक में चीनी विदेश मंत्री अपने राष्ट्रपति के बगल में बैठे नजर आये। मोदी के प्रतिनिधि मंडल में उस विदेश सचिव को शामिल किया गया है जो आपरेशन सिंदूर के दौरान हुए सीजफायर की ब्रीफिंग के वक्त पत्रकारों का जवाब तक नहीं दे पाया था।

अमेरिका की भूमिका, वर्ल्ड ऑर्डर और... क्या रंग दिखा सकता है भारत-रूस-चीन का  साथ ? - india russia china growing proximity should america be worried sco  showcases trilateral equation hints at ...

इस बरस के अंत तक रशिया, चाइना और भारत की बैठक होने के आसार हैं। चीनी शासनाध्यक्ष शी जिनपिंग की भी पीएम मोदी के न्यौते पर दिल्ली अगवानी की खबर है, लेकिन अभी तक कम्युनिस्ट पार्टी ने कोई सहमति जताई नहीं है (चाइना का राष्ट्रपति कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति के बिना पंखा भी नहीं झल सकता है)। 2025 बीतते - बीतते भारत की राजनीति के भीतर संकट, इकोनॉमी का संकट, भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में व्यापक बदलाव क्या ये सिर्फ एक परिस्थिति है जिसमें भारत ने हर बार कहा कि किसानों, पशुपालकों, छोटे व्यापारियों को नुकसान से बचाने के लिए अमेरिकी सामानों को भारत आने नहीं दिया जायेगा लेकिन अगर चीन के साथ सहमति बन जाती है तो क्या भारत के किसान, पशुपालक, छोटे व्यापारियों का संकट टल जायेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में तो पीएम ने खुलकर कहा है कि भारत के भीतर उद्योग लगने चाहिए पूंजी का काला या सफेद होना कोई मायने नहीं रखता है। देश के भीतर किसानों से बड़ा संकट तो उन कारपोरेटस् के सामने खड़ा दिखाई दे रहा है जिसने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नेटवर्थ को हवाई उड़ान दी। भारत के कार्पोरेट का लिया हुआ कर्ज डाॅलर की शक्ल में है। अमेरिका डाॅलर और करेंसी की लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिका के वाइस प्रेसीडेंट के अलावा फाइनेंस मिनिस्टर ने तो फाक्स न्यूज पर इंटरव्यू देते समय कहा था कि आज की तारीख में रुपया बेहद कमजोर है, जैसे वह कह रहे थे कि हम चाहें तो एक झटके में एक डाॅलर को एक सौ रुपये का कर सकते हैं और इससे कारपोरेटस् हाउस की नींद उड़ जायेगी।

भारत, चीन और रूस के बीच कोई त्रिपक्षीय बैठक की नहीं हुई चर्चा, आरआईसी पर  नहीं बनी सहमति - No meeting of the RIC Russia India China format has been  agreed to

अगर भारत के अंदर कारपोरेटस् नहीं होंगे तो राजनीतिक सत्ता डांवाडोल हो जायेगी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चाइना पहुंचने पर न्यूयार्क टाइम्स और फाक्स न्यूज में छपी यह खबर चर्चा में बनी रही कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इसलिए निशाने पर लिया गया है क्योंकि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का साथ नहीं दिया जो वह नोवल प्राइज के लिए चाहते थे। एससीओ और ब्रिक्स की अगुवाई चीन कर रहा है फर्क सिर्फ इतना ही है कि एससीओ में पाकिस्तान शामिल है मगर ब्रिक्स में नहीं। ग्लोबल गवर्नेंस के तौर तरीकों को बदलने की सोच के साथ एससीओ काम पर लगा हुआ है। शायद इसीलिए शी जिनपिंग ने दुनिया की दो संस्कृति का जिक्र किया है। पीएम मोदी इस बात को समझते हैं कि देश के कारपोरेटस् को अमेरिका से दरकिनार नहीं किया जा सकता है। डाॅलर की सीमा रेखा से बाहर लाना नामुमकिन है। अमेरिका द्वारा फोल्डर बंद करने के बाद भी बातचीत जारी रखने की कवायद की जा रही है। चीन इस दौर में सबसे शक्तिशाली होकर सामने आ रहा है तथा दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रशिया के बीच की फिलासफी में चीन हासिये पर था लेकिन पहली बार चीन के जरिए एक ऐसी स्थिति उभर रही है जहां सवाल तेल का हो या गैस का, ग्रीन इनर्जी का हो या मैन्युफैक्चरिंग का, या फिर डिजिटल इकोनॉमी का ही क्यों न हो सब कुछ सम्हालने की स्थिति में चीन आकर खड़ा हो गया है।

क्या आपको पता है मुकेश अंबानी कितना देते हैं टैक्स, 14 राज्यों की जीडीपी भी  नहीं है इतनी | Patrika News | हिन्दी न्यूज

भारत के भीतर कारपोरेटर मुकेश अंबानी का अपना एक थिंक टैंक भी चलता है जिसे अमेरिका में विदेश मंत्री जयशंकर का बेटा ही देखता है तो क्या भारत के बारे में तमाम जानकारी अमेरिका तक उसी थिंक टैंक के जरिए पहुंच रही है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत की राजनीतिक परिस्थितियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कमजोर हो चले हैं। अगर कार्पोरेट न रहे तो क्या और कमजोर हो जायेंगे। उनको लेकर बीजेपी और आरएसएस के भीतर जो सवाल उठ रहे हैं उसके जरिए भी वे कमजोर हो रहे हैं। भारत की डेमोक्रेसी को लेकर भी ढेर सारे सवाल हैं। भारत की इकोनॉमी को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। तो क्या इन सारी परिस्थितियों के बीच अमेरिका हस्तक्षेप कर सकता है। लगता है उठ रहे ढेर सारे सवालों का कोई जवाब पीएम मोदी के पास है नहीं,  इसलिए वे चीन के पाले में जाकर खड़े हो गए हैं और दो महीने पहले तक आपरेशन सिंदूर के बाद भारत के भीतर चीन की भूमिका को लेकर जो वातावरण बना था उसे एक झटके में बदलने की कोशिश की जा रही है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आजादी के बाद भारत की बदलती हुई डिप्लोमेशी के भीतर ये एक बिल्कुल नया पाठ है जिसमें भारत की राजनीतिक सत्ता, किसान, कार्पोरेटस्, इकोनॉमी के साथ ही दुनिया के अलग - अलग देशों के साथ किये जा रहे द्वि-पक्षीय व्यापार संबंध सब कुछ या तो दांव पर हैं या फिर एक नई बिसात बिछाई जा रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 17

यह तो आखिरी लड़ाई की मुनादी है !

The Indian Elections: What Narendra ...

भारतीय राजनीति का इतना पतन कभी नहीं हुआ जितना 2014 के बाद से हुआ है। देश ने भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेताओं का दौर भी देखा है जिन्होंने शब्दों की मर्यादाओं के भीतर रह कर सत्तापक्ष और विपक्ष की तीखी आलोचनाएं भी की हैं और सामने वाले का सम्मान भी बरकरार रखा है। मगर देश ने बीजेपी के भीतर अटल-अडवाणी दौर के बाद होने वाले बदलाव से निकलने वाले नेताओं ने जिस तरह से राजनीत को गर्त में ले जाने के लिए अमर्यादित भाषा के चलन या कहें गाली संस्कृति को जन्म दिया उसके जनक संयोग से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। कहा जा सकता है कि देश की राजनीति को पतन के रास्ते ले जाने के लिए अगर कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है तो उसका नाम नरेन्द्र मोदी ही है। 2002 में जब गुजरात के भीतर भीषण दंगों के बाद हुए विधानसभा चुनाव के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रैली में बेहद शर्मनाक बयानबाजी करते हुए मुस्लिम महिलाओं को "बच्चा पैदा करने की मशीन" कहा था जबकि वे खुद 7 भाई बहन हैं। इसी विधानसभा चुनाव के दौरान निकाली गई गौरव अभियान यात्रा को संबोधित करते हुए नेहरू गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को "जर्सी गाय तथा हाईब्रीड बछड़ा" कहा था। 28 अक्टूबर 2012 को हिमाचल प्रदेश के ऊना में चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस सांसद तथा तत्कालीन मंत्री शशि थरूर की पत्नी स्वर्गीय सुनंदा पुष्कर के लिए "50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड" जैसे घटिया शब्द का उपयोग किया गया था। 2013 में अपने ही गृह प्रदेश गुजरात के मध्यम वर्ग की महिलाओं की अस्मिता को तार तार करते हुए टिप्पणी की गई थी कि "सौंदर्य के प्रति जागरूक माॅं अपनी बेटी को स्तनपान कराने से मना करती हैं क्योंकि उन्हें अपने शरीर के मोटा होने का डर होता है" । वे तो मुसलमानों की तुलना एक कुत्ते के बच्चे से करने में नहीं हिचके थे यानी जैसे वे कह रहे हैं कि "मुस्लिम मातायें कुत्ते के पिल्ले को जन्म देती हैं"। 4 दिसम्बर 2018 में राजस्थान के जयपुर में चुनावी रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी ने बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी को "कांग्रेस की विधवा" तक कह डाला था । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उपहास उठाते हुए "दीदी ओ दीदी" तथा कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी को "सूर्पनखा" कहा गया है। 2015 में तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की माताश्री के चरित्र पर भी उंगली उठाते हुए कह दिया गया कि इनका तो "डीएनए ही खराब" है।। 16 जनवरी 2020 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर तो बतौर घूस" लड़कियां सप्लाई करने" का घिनौना आरोप तक लगा दिया गया। ऐसे सैकडों उदाहरणों से इतिहास भरा हुआ है। जब भारतीय राजनीति में कटुता और निम्नस्तरीय शब्दों का समावेश करके जिन बीजों को बोया गया है और अब वे फसल बनकर लहलहा रहे हैं तो उस फसल को काटेंगे भी तो नरेन्द्र मोदी ही यानी वही शब्द अब नरेन्द्र मोदी पर ही पलटवार करते हुए दिखाई दे रहे हैं। बिहार में कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी की चल रही वोट अधिकार रैली के दौरान एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जिस तरह के अशोभनीय, अमर्यादित शब्द का उपयोग किया उसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है। मगर जिस तरह की बातें सामने आ रही है उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने नाबर्दाश्तेकाबिल हरकत की है वह तो बीजेपी समर्थक है और बिहार में होने वाले चुनाव में मुद्दा बनाने के लिए बीजेपी ने ही प्रीप्लानिंग के तहत उस व्यक्ति को भीड़ में भेजकर अपने ही नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अपशब्द कहलवाये हैं। साधारण तौर पर कहा जा सकता है कि कोई भी कैसे इतना नीचे गिर सकता है कि चुनावी फायदा उठाने के लिए खुद को ही गाली दिलवाये। मगर नरेन्द्र मोदी कालखंड में जिस तरह से राजनीति का पतन हुआ है उसमें कुछ भी असंभव नहीं है। मोदी और उनकी टीम तो आज भी जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को मरणोपरांत तथा सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा तथा राबर्ट वाड्रा को कोसने से चूक नहीं रहे हैं। यह जानते बूझते हुए भी कि दर्द सबको होता है, चोट सबको लगती है। इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि सदायें लौट कर जरूर आती हैं।

Passing off Politics as Economics - The ...

बीजेपी भले ही लगातार चुनाव जीत रही है मगर उसने जिस तरह से राजनीति में गंदगी घोली है खासतौर पर अटल-अडवाणी दौर के बाद से मोदी कालखंड के दौरान वह अपनी वैचारिक विश्वसनीयता खो चुकी है थोड़ी बहुत विश्वसनीयता जो थी वह थी उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की उसे भी गत दिनों सरसंघचालक मोहन भागवत ने गवां दिया है। कुछ समय पहले अपने स्वयंसेवकों के बीच भागवत ने संघ स्वयंसेवक मोरोपंत पिंगले की आड़ लेकर कहा था कि "मेरी मुश्किल यह है कि मैं खड़ा होता हूं तो लोग हंसने लगते हैं, मैंनें हंसने लायक कुछ बोला नहीं है तब भी लोग हंसते हैं क्योंकि मुझे लगता है कि लोग मुझे गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब मैं मर जाऊंगा तब भी पहले लोग पत्थर मार कर देखेंगे कि सच में मर गया है या नहीं। 75 वर्ष आपने किया लेकिन मैं इसका अर्थ जानता हूं। 75 वर्ष की शाल जब ओढी जाती है तो उसका अर्थ ये होता है कि अब आपकी आयु हो गई है अब जरा बाजू हो जाओ, दूसरे को आने दो। अपनी ही बातों के भावार्थ से यू-टर्न ले लिया है। उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इशारे - इशारे में जो संकेत नरेन्द्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए दिया गया है वह खुद के लिए भी आड़े आ रहा है। मोदी से पहले तो खुद मोहन भागवत 11 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष की आयु पूरी करने जा रहे हैं जबकि नरेन्द्र मोदी 17 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष के होंगे तो मोदी से पहले भागवत को सरसंघचालक की कुर्सी छोड़कर नजीर पेश करनी होगी और इतना साहस उनके पास है नहीं ! वैसे भले ही राजनीति टैक्सपेयर के पैसों से मिले वेतन-भत्ते और पेंशन से चलती है मगर इसमें रिटायर्मेंट का कोई प्रावधान नहीं है। रिटायर्मेंट का शिगूफा तो खुद नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार करने के लिए पैदा किया था और अब वही शिगूफा नरेन्द्र मोदी के सामने सबसे बड़े सवाल के रूप में सामने खड़ा होकर कह रहा है कि "खुद भी अमल करो" मगर इसके लिए कलेजा चाहिए और 56 इंची सीना कह देने भर से मर्दानगी साहस नहीं आता है !

RIL के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने दोहा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से  की मुलाकात | Moneycontrol Hindi

सितम्बर 2025 में कुछ तारीखें बहुत महत्वपूर्ण हो गई हैं क्योंकि ये महज तारीखें नहीं हैं ये अपने भीतर बहुत सारे खेलों को समेटे हुए हैं। 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी के ड्रीम प्रोजेक्ट ग्रीन फ्यूल जिसे एथेनाॅल का नाम दिया गया है उसको लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 9 सितम्बर को उप राष्ट्रपति चुनाव होना है। 12 सितम्बर को कार्पोरेट मुकेश अंबानी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अमेरिका में मुलाकात होनी है। 12 सितम्बर को ही मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई 4 सदस्यीय एसआईटी कोर्ट को सौंपेगी और 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट उस पूरे मामले की सुनवाई करेगी। 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिन का केक काटेंगे।

मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी पर बड़ा अपडेट! सुप्रीम कोर्ट का आदेश,  वंतारा मामले की जांच करेगी SIT

जिस तरह से मुकेश अंबानी के बेटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है ठीक उसी तरह से यह पीआईएल नितिन गडकरी के मंत्रालय के खिलाफ दाखिल की गई और कोर्ट ने स्वीकार भी कर ली है। जिस पर 1 सितम्बर को सीजेआई जस्टिस बीआर गवई के साथ जस्टिस के विनोदचंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की बैंच सुनवाई कर तय करेगी कि क्या एथेनाॅल की प्लानिंग ने देश को लूटा तो नहीं है, जनता को कंगाल तो नहीं किया है या फिर पूरी प्लानिंग ही गलत तो नहीं है। पीआईएल इस बात को लेकर है कि पेट्रोल में जो एथेनाॅल मिलाया जा रहा है उससे गाड़ी कम माइलेज दे रही है, गाड़ी खराब हो रही है, कंज्यूमर का ध्यान नहीं रखा जा रहा है तथा कम हो रही तेल की कीमत का लाभ जनता को नहीं मिल रहा है, लाभ कोई और उठा रहा है, लाभ उठाने वाला कौन है। वैसे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नितिन गडकरी का बचाव करते हुए कि गन्ना और मक्का आधारित एथेनाॅल के उपयोग से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पेट्रोल की तुलना में 65 और 50 परसेंट कम हो जाता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है। गन्ने का बकाया भुगतान हो जाता है। मक्के की खेती में सुधार हो जाता है। किसानों की आय बढ़ जाती है। विदर्भ में होने वाली किसानों की आत्महत्या रुक जायेगी। यानी सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल एथेनाॅल को लेकर पेट्रोल के मद्देनजर जिक्र गाडियों के माइलेज, वाहनों के नुकसान को लेकर लगाई है और सरकार कह रही है कि एथेनाॅल के उपयोग से कच्चे तेल के आयात में कमी आयेगी। फायदा एथेनाॅल मिला पेट्रोल खरीदने वाले को नहीं किसानों को मिलेगा। 11 सालों में 1 लाख 44 हजार 87 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी मुद्रा की बचत हो गई। 245 लाख मीट्रिक टन कच्चा तेल नहीं लेना पड़ा। 736 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में कमी आई। 30 करोड़ पेड़ों के कटने के बराबर एथेनाॅल का इस्तेमाल करके काम कर लिया और जब 20% का मिश्रण होगा तो किसानों को 40 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया जायेगा। यानी सरकार से पूछा खेत के बारे में जा रहा है और सरकार खलिहान की कहानी बताने में लग गई है। एथेनाॅल को लेकर जो सवाल उठाये जा रहे हैं उसके पीछे की वजह ये है कि देश के भीतर एथेनाॅल बनाने वाली कंपनी सीआईएएन एग्रो इंडस्ट्री और किसी की नहीं बल्कि नितिन गडकरी के बेटे निखिल गडकरी की है तथा मिल रही जानकारी मुताबिक इस कंपनी में जो स्टाक था उसकी कीमत 40 रुपये से बढ़कर 668 रुपये हो गई यानी कीमत में 1570% की बढ़ोतरी हुई है। एथेनाॅल को लेकर सरकार की तरफ से गजब के तर्क दिये जा रहे हैं। तो क्या ये सब सरकार की उस प्लानिंग का हिस्सा है जो वह 15 साल पुराने वाहनों को कबाड़ में बदलने की है। जनता को एथेनाॅल मिला पेट्रोल देने के लिए भी सरकार तर्क दे रही है कि 2020-21 की तुलना में आज एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है यानी रिफाइन पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर कीमत कम कैसे कर सकते हैं। सवाल यह है कि जब एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर उसका उपयोग ही क्यों किया जा रहा है। किसानों को लाभ देने के लिए गाड़ी वाला अपनी गाड़ी खराब कर रहा है और एथेनाॅल बेचने वाली कंपनी 1570 फीसदी मुनाफा कमा रही है। वैसे इतनी रफ्तार से मुनाफा कमाने वाला नितिन गडकरी का लड़का भर नहीं है। इसी रफ्तार पर तो अडानी ने भी मुनाफा कमाया है। 2014 के पहले देश के भीतर अडानी को कितने लोग जानते थे। पूरा देश जानता है कि गौतम अडानी ने तो नफे की हवाई उडान नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पकड़ी है।

तुम मेरे बेटे जैसे हो...' जब नितिन गडकरी से नाराज हो गए थे धीरूभाई अंबानी,  जानें क्या थी वजह? - You are like my son When Nitin Gadkari rejected  Reliance bid and

मगर इस समय मोदी सरकार के निशाने पर मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी है वह भी उनके अपने बेटों की गर्दन पर फंदा कसके। भले ही मोदी सरकार की मंशा मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक सौदेबाज़ी करने की हो लेकिन उसने तो इस सौदेबाज़ी के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत की विश्वसनीयता को भी दांव पर लगा दिया है। बहुत साफ है कि मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी का वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र का ताला तभी खुला रह सकता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 4 सदस्यीय हाईप्रोफाइल एसआईटी अपनी रिपोर्ट की दिशा बदल देवे अन्यथा अगर सही - सही रिपोर्ट दे दी गई तो वनतारा जू में ताला लगना तय है। ठीक इसी तरह अगर सुप्रीम कोर्ट एथेनाॅल को लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर ढुलमुल रवैया अपनाती है तो सीजेआई और उनकी पीठ को संदेह की नजर से देखा जायेगा क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है अनंत अंबानी और निखिल गडकरी के गले में जो फंदा डाला गया है वो और कुछ नहीं मोदी सत्ता का अपनी सत्ता को मिल रही अंदरूनी चुनौती से निपटने के लिए मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से राजनीतिक सौदेबाज़ी करना ही है। क्योंकि जहां मुकेश अंबानी के पीछे खड़ी 140 सांसदों की कतार की कहानी है तो वहीं नितिन गडकरी के पीछे खड़े आरएसएस की छाया है। भले ही अब संघ सरसंघचालक मोहन भागवत यह कह रहे हों कि बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना बीजेपी का आंतरिक मामला है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुद ही रिटायर्मेंट का फैसला लेना है। जबकि कल तक यही सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी बातों को घुमा फिराकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन और नरेन्द्र मोदी को 75 वीं सालगिरह के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए नाक में दम किये हुये थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई सरसंघचालक हुआ हो जिसने संघ का इतना अधिक राजनीतिकरण किया हो, जनता के बीच सरसंघचालक की विश्वसनीयता को कम किया हो, अपने द्वारा दिये गये बौध्दिक को विवादास्पद और आलोचनात्मक बनाया हो जितना मोहन भागवत ने सरसंघचालक की कुर्सी सम्हालने के बाद बनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में CAA को लेकर कल सुनवाई, याचिकाओं की छंटनी के लिए दिया था 4  हफ्तों का समय - supreme court hearing on 31st october caa challenging pleas  ntc - AajTak

देश की नजर तो 01 सितम्बर, 9 सितम्बर, 11 सितम्बर, 12 सितम्बर, 15 सितम्बर और 17 सितम्बर पर टिकी हुई है जब 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की बैंच एथेनाॅल को लेकर दायर की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 09 सितम्बर को उप राष्ट्रपति का चुनाव होगा, ऊंट किस करवट बैठेगा। 11 सितम्बर को सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी 75 वीं वर्षगांठ पर दायित्व मुक्त होकर अपने पीछे खड़े किसी स्वयंसेवक के लिए रास्ता प्रशस्त करते हैं या नहीं। 12 सितम्बर को मुकेश अंबानी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से क्या निकलता वह भी तब जब पूरी अमेरिकी सत्ता भारत के नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ी हो चुकी है। 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के वनतारा जू पर ताला लगाता है या नहीं। 17 सितम्बर को नरेन्द्र मोदी अपनी 75 वीं सालगिरह के बाद खुद की ही खींची गई लकीर का मान रखते हुए अपने राजनीतिक कवच लालकृष्ण आडवाणी और दूसरे वरिष्ठतम लोगों की कतार में खड़े होकर मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बनते हैं या फिर अपने ही द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर कुर्सी से चिपके रहने को प्राथमिकता देकर जग हंसाई का पात्र बनते हैं।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 30, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 16

कारपोरेट को साथ लेकर चले और अब आमने-सामने खड़े हैं - - - अंजाम क्या होगा ?

कोयंबटूर में 12 अगस्त को मनाया जाएगा विश्व हाथी दिवस, मानव-हाथी संघर्ष कम  करने पर देशभर से जुटेंगे विशेषज्ञ

भारत और विदेशों लाये गये पशु खास तौर पर हाथियों का लाना कितना सही था या कितना गलत था ? वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 और उसके अंतर्गत बनाये गये नियमों का पालन हो रहा है या नहीं हो रहा है ? वनस्पति और विलुप्त होने वाले जीव, उन प्रजातियों के व्यापार अंतराष्ट्रीय सम्मेलन (सीआईटीआईएस) और जीवित पशुओं के एक्सपोर्ट, इम्पोर्ट के लिए जो भी कानून बनाये गये हैं उनका पालन हो रहा है या नहीं हो रहा है ? पशुपालन, पशु चिकित्सा-देखभाल, पशु कल्याण मानक, पशुओं की मृत्यु दर, उसके कारणों का भी पता लगाईये, क्या हो रहा है अंदर ? जलवायु परिवर्तन परिस्थितियों से संबंधित शिकायतें, औद्योगिक क्षेत्र अगर निकट है तो उसका पशुओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?  वेनिटी या निजी संग्रह से जो प्रजनन होता है या जो संरक्षण कार्यक्रम होता है तथा जैव विविधता संसाधनों के उपयोग से संबंधित शिकायतों की जांच ? पानी और कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग की शिकायतों की जांच ? याचिका में सामान्यतः न बोली जाने वाली कहानियां और लेख में उल्लिखित कानून के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली शिकायतें जिसके तहत पशु और पशु उत्पादकों के व्यापार और वन्य जीव तस्वीर आदि की जांच ? वित्तीय अनुपात (मनी लॉन्ड्रिंग) और वित्तीय अनियमितता की जांच ? जो भी आरोप लगाये गये हैं यदि वे किसी दूसरे मुद्दे या मामले से जुड़ते हैं तो उसकी भी जांच ? ये वे बिंदु हैं जिनकी जांच कर 12 सितम्बर तक रिपोर्ट देनी है सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई चार सदस्यीय हाईप्रोफाइल एसआईटी को मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के द्वारा संचालित किये जा रहे वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र में। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई एसआईटी हाईप्रोफाइल इसलिए भी है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे चेलमलेश्वर (की अगुआई), जस्टिस राघवेन्द्र चौहान (पूर्व चीफ जस्टिस उत्तराखंड व तेलंगाना हाईकोर्ट), मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हेमंत नागराले एवं कस्टम्स अधिकारी अनिश गुप्ता को शामिल किया गया है। यह एसआईटी टीम हाईप्रोफाइल इसलिए भी है कि मुकेश अंबानी जैसे कार्पोरेट के लिए भी इन सदस्यों को प्रभावित करना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने जिन बिंदुओं को तय कर जांच रिपोर्ट मांगी है और जिनसे जांच रिपोर्ट मांगी है उन्हें देखकर प्रथम दृष्टया तो यही कहा जा सकता है कि उसने अंबानी परिवार और एसआईटी टीम के सामने बहुत बड़ा अग्नि परीक्षा जैसा संकट खड़ा कर दिया है। कहा जा सकता है कि यदि एसआईटी टीम ने सही रिपोर्ट दे दी तो वनतारा में ताला लग जायेगा। वनतारा का ताला तभी खुला रह सकता है जब एसआईटी टीम सही रिपोर्ट ना सौंपे।

Mukesh Ambani के बेटे अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की हो गई है सगाई, देखिए  बहुरानियों में किसका लुक रहा सबसे जुदा | Mukesh Ambani's son Anant Ambani  and Radhika Merchant got

मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी का एक महत्वाकांक्षी ड्रीम प्रोजेक्ट है वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू रिहैबिलिटेशन सेंटर वनतारा। जिसका उद्देश्य है घायल और संकटग्रस्त वन्यजीवों को बचाकर उनका उपचार करना, उन्हें प्राकृतिक आवास जैसा माहौल प्रदान कर उनका पुनर्वास करना। यह एक विशाल एनिमल रेस्क्यू सेंटर है जिसे हाथियों, तेंदुओं, मगरमच्छों और दुर्लभ प्रजाति के जानवरों का घर कहा जाता है। यहां का सालाना खर्चा लगभग 150 से 200 करोड़ रुपये का बताया जाता है। इस वन्यजीव संरक्षण केन्द्र की जांच करने वाले एसआईटी को यह भी अधिकार दिया गया है कि वह जांच में सहयोग लेने के लिए किसी भी विशेषज्ञ को हायर कर सकती है और पूरी रिपोर्ट तैयार कर 12 सितम्बर को कोर्ट में पेश करे जिसकी सुनवाई 15 सितम्बर को की जायेगी। संयोग है कि 2 दिन बाद यानी 17 सितम्बर को नरेन्द्र मोदी का बर्थ-डे है। यह जामनगर (गुजरात) में रिफाइनरी काम्प्लेक्स के ग्रीन वेल्ट में 3000 एकड़ पर फैला हुआ है। यह वही वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास संरक्षण केन्द है जो वैसे तो फरवरी 2024 को ही खुल गया था फिर भी उसका औपचारिक उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 4 मार्च 2025 को किया था तथा वन्यजीवों के साथ तरह-तरह के पोज देकर फोटोज खिंचवाये थे और वायरल किए गये थे। ये अनंत अंबानी मुकेश अंबानी का छोटा बेटा है जिस मुकेश अंबानी से मोदी की निकटता है और अनंत की शादी में नरेन्द्र मोदी ने शिरकत की थी। इस हाईप्रोफाइल शादी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका भी अपने पति और बेटी के साथ शामिल हुई थी तथा दुनिया भर के तमाम अतिरेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मौजूदगी थी। इस शादी में तकरीबन 600 मिलियन डॉलर से लेकर 01 बिलियन डॉलर तक खर्च होने का अनुमान है। सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिस घराने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इतनी निकटता हो और देश का कोई भी संवैधानिक संस्थान मोदी सत्ता की मर्जी के बगैर सांस भी नहीं ले सकता हो उस मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट एसआईटी गठित कर दे देश के गले नहीं उतर रहा है। कहीं यह सब मोदी सत्ता के ईशारे पर सुप्रीम कोर्ट के जरिए मुकेश अंबानी पर नकेल कसने के लिए तो नहीं किया जा रहा है क्योंकि मौजूदा वक्त के हालात इस तरफ साफ-साफ इशारा कर रहे हैं।

Vantara: वनतारा के जंगल में दुर्लभ जंगली जानवरों का आशियाना

ये कार्पोरेट वार नहीं है। ये देश में कार्पोरेट और नैक्सस से निकली हुई ऐसी परिस्थिति है जिसमें देश के सबसे बड़े कार्पोरेट हाउस में से एक कार्पोरेट हाउस और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक सत्ता आमने-सामने आकर खड़ी हो गई है। वह भी ऐसे वक्त जब दुनिया बदल रही है। आर्थिक तौर पर नई परिस्थितियां दुनिया के हर देश को नये संबंध बनाने की दिशा में ले जा रही है। दुनिया भर के कार्पोरेट में भी इस बात को लेकर हलचल है कि उसका अपना मुनाफा कहां पर टिका है और आगे जाकर कहां पर टिकेगा। बीते बरसों बरस जिस आसरे वह मुनाफा कमा रहा है या कहें उस कार्पोरेट ने अपनी लकीर को बड़ा किया है क्या वह एक झटके में राजनीतिक सत्ता के पाला बदलने से बदल जायेगी। भारत भर में नहीं बल्कि दुनिया भर में रिलायंस या कहें मुकेश अंबानी की पहचान भारत के सबसे बड़े कार्पोरेट घराने के तौर पर है। मुकेश अंबानी की राजनीतिक ताकत कई मौकों पर खुल कर दिखाई दी है। चाहे वह मनमोहन सिंह का दौर रहा हो या फिर राजीव गांधी का। अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी कार्पोरेटस ने सत्ता को बखूबी प्रभावित किया है। जिसमें अब्बल नम्बर रिलायंस का ही रहा है। यानी जब रिलायंस की का गठजोड़ राजनीतिक सत्ता से हो गया तो दोनों ताकतवर होते चले गए। यानी एक ओर राजनीतिक सत्ता मजबूत हुई और दूसरी ओर कार्पोरेट का नेटबर्थ हवाई उड़ान उड़ने लगा।

शादी से पहले Anant Ambani की जानवरों के लिए खास पहल, जानिए क्या है Vantara  Project? - anant ambani launches world biggest animal rescue center-mobile

देश के भीतर के दो सबसे बड़े कार्पोरेटस अंबानी और अडानी इसके सबसे बड़े जीते-जागते सबूत हैं खास तौर पर 2014 से जब इनके नेटबर्थ ने देखते-देखते गगनचुंबी उड़ान भरी है। पहले नम्बर पर अडानी और दूसरे नम्बर पर अंबानी का नाम आता है। 2014 के बाद से सरकार के साथ खड़े होकर अंबानी कमोबेश हर क्षेत्र में छाते चले गए। अंबानी के तकरीबन हर कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी देखी गई है। मसलन अस्पताल का उद्घाटन हो या फिर जियो (जियो) लांच करने का मौका हो, अखबार के पहले पन्ने पर नरेन्द्र मोदी की आदमकद फोटो चस्पा की गई थी। उसके बाद से ही दूरसंचार की सरकारी कम्पनी बीएसएनएल का ढहना और रिलायंस या कहें जियो का उठना शुरू हुआ और आज के दौर में बीएसएनएल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और जियो शिखर पर छाया हुआ है। इस सवाल को विपक्ष ने पार्लियामेंट के भीतर अनेकों बार उठाया जरूर लेकिन उसकी आवाज़ मोदी सत्ता के नगाड़े तहत दब कर दम तोड़ गई। 2016-17 आते-आते खुले तौर पर साफ हो गया कि मोदी सत्ता देश के दो सबसे बड़े कार्पोरेटस के साथ खड़ी है। देश में कार्पोरेटस का नेटबर्थ हवाई गति से बढ़ेगा भले ही देश की जीडीपी नीचे चली जाय। जहां देश के एक परसेंटेज कार्पोरेटस के पास लगभग ढाई ट्रिलियन डॉलर है तो वहीं देश के बाकी निन्यानवे फीसदी लोगों के पास तकरीबन डेढ़ ट्रिलियन डॉलर ही है। दोनों को मिलाकर ही (चार ट्रिलियन डॉलर) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी उपलब्धियों में शामिल कर बताते रहते हैं।

छोटे बेटे से हुए खुश मुकेश अंबानी! 5 साल के लिए अनंत को दी ये जिम्मेदारी | Mukesh  ambani gave anant ambani new responsibility for 5 years in reliance  industries after q4 announcement

सवाल यह है कि जब दुनिया के तमाम कार्पोरेटस में इस बात को लेकर हलचल है कि टेरिफ वार के बाद राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं तो क्या कार्पोरेट भारत की राजनीतिक सत्ता को डिगा सकता है ? क्योंकि ये सवाल बीते एक - डेढ़ महीने से लगातार देश के भीतर तैर रहा है। यह सब कुछ रिलायंस और मुकेश अंबानी को लेकर की किया जा रहा है क्योंकि आने वाले समय में उप राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है और मोदी सरकार बैसाखियों के सहारे टिकी हुई है। ब्लूमबर्ग और राइटर्स की रिपोर्ट में खुलकर खुलासा किया गया कि भारत की दो कंपनियों रिलायंस और नायरा ने रशिया से सस्ती दर पर तेल खरीद कर उसे रिफाइन कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों पर बेच कर कितना फायदा कमाया। सरकार कार्पोरेट के साथ ही खड़ी है क्योंकि सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया कि सस्ती कीमत पर खरीदे जा रहे तेल का लाभ भारतीय जनता को तेल की कीमत कम करके दिलाया जा सके। फिलहाल यह बात पीछे छूटती हुई अब इस रास्ते खड़ी हो गई है क्या वाकई मौजूदा राजनीतिक सत्ता के सामने कार्पोरेट की चुनौती खड़ी हो गई है तथा अब राजनीतिक सत्ता कार्पोरेट को ध्वस्त करने की दिशा में चल पड़ी है ? इस सवाल ने तूल तब पकड़ा जब मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी पर एसबीआई के जरिए उसके बैंक अकाउंट को फ्राड साबित करते हुए सीबीआई और ईडी की जांच और इन सबके बीच लगातार छापों की फेहरिस्त से बात आगे बढ़ते हुए मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दस बिन्दु निर्धारित करते हुए चार सदस्यीय स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम गठित करते हुए रिपोर्ट सबमिट करने की डेडलाइन 12 सितम्बर तय कर दी।

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मोदी के कालखंड में अडानी का आगे बढ़ना, हर सेक्टर में अडानी की मौजूदगी ने इस सवाल को पैदा कर दिया कि मोदी के लिए अधिक महत्वपूर्ण कौन है अडानी या अंबानी ? और ये सवाल राजनीतिक चुनौती के तौर पर अमेरिका के भीतर भी गूंजा जब अंबानी के बजाय अडानी की फाइल खोली गई। बीते एक बरस से दुनिया के तमाम बैंक जो अडानी को लोन दिया करते थे उनने लोन देना बंद कर दिया है। कह सकते हैं कि यह भी एक कारक हो सकता है मोदी और अंबानी के बीच पनप रही तल्खी के बीच का । वनतारा की जांच के जरिए यह लड़ाई कार्पोरेट विरुद्ध राजनीतिक सत्ता - उस दौर में तब्दील होती हुई दिख रही है जब इस दौर में लंगडी मोदी सत्ता को बीजेपी के भीतर से ही संघ की विचारधारा व संघ की विचारधारा को समेटे सांसदों और मंत्रियों से चुनौती मिल रही है। आरएसएस मोदी सत्ता के समानांतर रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका द्वारा लगाये गये 25 फीसदी अतिरिक्त टेरिफ से भारत की इकोनॉमी, रोजगार, एक्सपोर्ट पर पड़ने वाले असर को लेकर दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिनी सेमीनार कर रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत की पारंपरिक इकोनॉमी डगमग है। अंतरराष्ट्रीय तौर पर भारत के पारंपरिक रिश्ते डगमग हैं।

नरसिम्हा राव ने किस तरह रची थी 1991 की कहानी ? - BBC News हिंदी

1991 में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में जब प्लानिंग कमीशन की बागडोर प्रणव मुखर्जी के पास थी तथा मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और भारत की इकोनॉमी रिफार्म कर रही थी तब धीरूभाई अंबानी की रिलायंस ने चलना शुरू किया था। भारत की अर्थव्यवस्था समाजवादी पायदान से पूंजीवादी पायदान पर खड़ा होने के लिए आगे बढ़ रही थी मगर 2025 में अमेरिका या कहें ट्रंप के साथ भारत या फिर मोदी के बीच जिन परिस्थितियों ने जन्म लिया है उससे जो एक बड़ा ट्रांसफार्मेशन भारत की इकोनॉमी को लेकर हुआ है कि भारत अब एक लेफ्ट स्टेट चाइना के करीब जा रहा है। इन सारी परिस्थितियों को लेकर कारपोरेटस भी सोचने पर मजबूर हो गया है कि उसका रास्ता किधर जायेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब भी कारपोरेटस की डील होती है या कोई भी काम पड़ता है तो वह ना तो देश की सीमा देखता है ना ही देश की करेंसी उसके लिए तो सब कुछ डाॅलर में होता है। इस समय मुकेश अंबानी का नेटबर्थ तकरीबन 105 बिलियन डॉलर यानी 9-10 लाख करोड़ रुपये है। क्या मोदी सत्ता इसे ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ रही है.?  यह कोई नई खबर नहीं है कि मुकेश अंबानी अपनी मुट्ठी में 140 सांसदों को रखते हैं और उन सांसदों में सबसे ज्यादा तादाद बीजेपी के उन सांसदों की है जो आरएसएस की विचारधारा से पालित-पोषित हैं। मोदी-शाह ने जो एक राजनीतिक बिसात गुजरात में बिछाई थी जिसमें अंबानी - अडानी के साथ ही गुजरात के 20 के ज्यादा कार्पोरेट तथा देश भर के तकरीबन 55 कार्पोरेट मौजूद थे।

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आज जब कार्पोरेट के बेटे पर हाथ डाला गया है जिसकी गूंज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर सुनाई देने लगी है तो फिर मानकर चलिए ये जंग इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है ये किसी न किसी अंजाम पर जरूर पहुंचेगी। सवाल सिर्फ इतना है कि कार्पोरेट की पूंजी के आसरे जिस देश में राजनीति होती हो, सत्ता को बेदखल करने का काम किया जाता हो, विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त होती हो, बकायदा इलेक्टोरल बांड्स के जरिए करोड़ों के वारे-न्यारे हो चुके हों, उस देश की राजनीति को डिगा पाने की क्षमता क्या कार्पोरेट में है ? या फिर कारपोरेटस को डिगा पाने की परिस्थितियां क्या मौजूदा राजनीतिक सत्ता के पास है ? वह भी तब जब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में ऐलान कर रहे हों कि मुश्किल वक्त है देश की इकोनॉमी के लिए तथा मुश्किल समय है देश के किसानों, छोटे उद्योग को चलाने वालों के लिए, फिर भी हम उनके साथ खड़े हैं और स्वदेशी का राग महात्मा गाँधी को याद कर अलापा जा रहा हो इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि जब सादगी की प्रतिमूर्ति महात्मा गांधी ने स्वदेशी का नारा लगाया था तब उनके तन पर एक धोती (आधी पहने - आधी ओढ़े) के सिवाय दूसरा कपड़ा नहीं था। जिस वक्त लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान - जय किसान का नारा लगाते हुए देशवासियों से मदद देने और उपवास रखने की अपील की थी तब सादगी बहादुर शास्त्री के साथ जुड़ी हुई थी लेकिन आज मोदी सत्ता रईसी के साथ जुड़ कर सादगी और स्वदेशी का राग अलाप रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 25, 2025
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" विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस " के उपलक्ष्य में वरिष्ठ नागरिक सेवा संघ ने स्वतंत्रता-सेनानियों केमान सम्मान की मांग करते हुए उनकी प्रतिमा लगाने की मांग की ।

भारत के कोई स्वतंत्रता सेनानी अपने या अपने परिवार के लिए कुर्वानी नहीं दी थी, सबने राष्ट्र के नव निर्माण के लिए अपने को न्योछावर कर दिया

“विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस ” के उपलक्ष्य में वरिष्ठ  नागरिक सेवा संघ  एस डी ओ रोड हाजीपुर के परिसर  में एक विचारणीय गौष्ठी की अध्यक्षता श्री त्रिलोकी राय  एवं संचालन  वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीडिया प्रभारी श्री रवीन्द्र कुमार रतन  ने किया ।  विषय प्रवेश कराते हुए  साहित्य सचिव रवीन्द्र कुमार रतन  ने  " विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस "  की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए  कहा कि वरिष्ठ नागरिक हमारे राष्ट्र के निर्माता   होते है ।अतीत से जुड़ने और भविष्य में विकास के बीच सेतु बनकर  मार्ग दर्शक का काम करते है। उन्होने कहा कि भारत के कोई स्वतंत्रता सेनानी अपने या अपने परिवार के लिए कुर्वानी नहीं दी थी, सबने राष्ट्र के नव निर्माण  के लिए  अपने को न्योछावर कर दिया । इन्ही की त्याग तपस्या के बल पर हम आज आजादी को देख पा रहे हैं।उनके प्रति सच्चीश्रद्धांजलि तभी होगी जब हम उनके नाम से सम्बन्धित सुभाष चौक ,राजेन्द्र चोक , गांधी चौक पर क्रम सह सुभाष चंद्र वोस, डा 0राजेन्द्र प्रसाद एवं  गाँधी  चौक पर गाँधी जी की प्रतिमा लगाकर वर्षों की मांग एवं चौक के नामकरण की सार्थकता को भी पुरा किया जाएगा।


आगे  अध्यक्षता रहे त्रिलोकी राय , सचिव श्री नागेन्द्र राय , संयुक्त सचिव श्री गोविन्द  कांत  वर्मा, संगठन सचिव श्री सुरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव  ने संयुक्त  वक्तव्य में कहा कि  अन्य चौक पर भी जयप्रकाश नारायण, विन्देश्वरी  प्रसाद वर्मा,वीर चंद्र पटेल,शहीद बैकुंठ शुक्ला जी, आदि की भी प्रतिमालगाकर उनके याद एवं उनके त्याग को प्रतिष्ठापित करें। इसके अलावेभी मुनिश्वर प्र0 सिंह,ललितेश्वर प्र0 शाही,विश्व नाथ प्रसाद श्रीवास्तव आदि की प्रतिमा को गाँधी आश्रम स्थित संग्रहालय मे जगह मिलनी चाहिए। राजेश्वर प्रसाद सिंह एवं डाॅ पूर्णिमा कुमारी श्रीवास्तव ने कोनाहारा घाट से लेकर बाला मठ तक पटना के मेरिन ड्राइव  की तरह बनाने का काम करे । सभा में  कमल किशोर प्रसाद, विष्णुदेव राय, वैद्यनाथ प्रसाद राय, आदि ने भी अपने विचार दिए । अंत में सरोज वाला सहाय ने सभी आगत अतिथियों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि  नामाकरण बाले सभी चौराहों पर सम्बंधित  स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति स्थापित करने की मांग बहुत पुरानी है  इसे शीघ्र कार्यन्वित किया जाय।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 25, 2025
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140 बच्चों की हो चुकी है सफल सर्जरी, दो बच्चे फिर हुए अहमदाबाद के लिए रवाना

अब तक 140 बच्चों का सफल ऑपरेशन हुआ है और उन्हें नया जीवन मिला है।

वैशाली- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत मुख्यमंत्री बाल ह्रदय योजना के तहत वैशाली जिले से अब तक 140 बच्चों का सफल सर्जरी हो चुका है। विभिन्न प्रखंड की आरबीएसके टीम द्वारा 0 से 18 वर्ष के बच्चों का स्वास्थ्य जाँच आंगनवाड़ी केंद्र और सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों मे जाकर किया जाता है। साथ ही सभी स्वास्थ्य संस्थान के प्रसव केंद्रों पर भी जन्मजात रोगों से ग्रसित बच्चों की जाँच की जाती है। इसी का परिणाम है कि पूर्ण इलाज और स्वस्थ होने की उम्मीद छोड़ चुके पीड़ित बच्चे पूरी तरह स्वस्थ्य हो रहे है और बच्चों क़ो नया जीवन मिल रहा है। अब तक 140 बच्चों का सफल ऑपरेशन हुआ है और उन्हें नया जीवन मिला है। विभिन्न अस्पतालों जैसे की श्री सत्य साईं अस्पताल अहमदाबाद मे कुल 111 बच्चे, इंदिरा गाँधी ह्रदय रोग संस्थान मे 19 बच्चे, इंदिरा गाँधी आयुर्वेज्ञान संस्थान मे 9 बच्चे और मेदांता अस्पताल पटना मे 1 बच्चे का सफल सर्जरी अब तक हो चुका हैं और सभी बच्चों का सर्जरी बिल्कुल निशुल्क हुआ है। जिसमे से 21 डिवाइस क्लोजर सर्जरी और 119 ओपन हार्ट सर्जरी हैं। डीइआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके डॉ शाइस्ता ने बताया के आयुष चिकित्सक और एएनएम की नियमितीकरण की वजह से बच्चों के प्रतिदिन जाँच के लक्ष्य मे कमी आई हैं लेकिन टीम पूरा प्रयास कर रही हैं के ज्यादा से ज्यादा बच्चे को चिन्हित कर उनका सही समय पर इलाज कराया जा सके। जिसमे जिलाधिकारी, सिविल सर्जन और डीपीएम डॉ कुमार मनोज का पूर्ण सहयोग मिला है। इस योजना के तहत ह्रदय रोग से ग्रसित बच्चों का मृत्यु दर कम हुआ है और बहुत गरीब परिवारों के चेहरे पर मुस्कान आई है।


डॉ शाइस्ता ने बताया कि पिछले तीन से चार सालों में वैशाली जिलें से लगभग 140 बच्चों की निशुल्क हृदय की सर्जरी एक भारी उपलब्धि है यह ऐसे बच्चे हैं जिनकी स्थिति इस लायक नहीं थी कि उनके माता-पिता निजी अस्पताल में सर्जरी करा सकें। उन्होंने कहा कि बच्चों में होने वाले जन्मजात रोगों में हृदय में छेद एक गंभीर समस्या है जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करती है, और समय रहते सर्जरी नहीं की गई तो बच्चे की जान भी जा सकती है।
वैशाली जिला से बाल ह्रदय योजना अंतर्गत 140 सफल सर्जरी कराने के बाद फिर से 2 बच्चे मानवी कुमारी और आशिक कुमार - हाजीपुर प्रखंड से को  गुरुवार क़ो श्री सत्य साईं ह्रदय अस्पताल अहमदाबाद सर्जरी हेतु, डॉ शाइस्ता डीईआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके, सूचित कुमार डीडीए और अशरफुल होदा डीईओ की उपस्थिति मे जिला स्वास्थ्य समिति, वैशाली से एम्बुलेंस के माध्यम से राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार, पटना और फिर पटना एयरपोर्ट के लिए ढेर सारी शुभकामनाओं और जल्द स्वस्थ्य होने की कामनाओं के साथ रवाना किया गया। जबकि  शुक्रवार को एक बच्चा रविश कुमार प्रखंड राघोपुर को डिवाइस क्लोजर सर्जरी हेतु इंदिरा गाँधी ह्रदय रोग संस्थान भेजा जाएगा।
 

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August 25, 2025
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परिवार नियोजन के साधन एमपीए सबकुटेनियस पर स्वास्थ्यकर्मियों का हुआ प्रशिक्षण

-क्लांइट मोबलाइजेशन कर ज्यादा लाभुकों को जोड़ने की बीएचएम की अपील

वैशाली- जिला अंतर्गत गरौल प्रखंड के सीएचसी गरौल में परिवार नियोजन के अस्थाई साधन एमपीए सबकुटेनियस पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, एएनएम/जीएनएम का परिवार नियोजन के नए अस्थाई साधन एमपीए पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन स्वास्थ्य विभाग एवं पीएसआई इंडिया के तकनीकी सहयोग से सीएचसी गरौल के सभागार कक्ष में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर राजेश कुमार के द्वारा की गई। इस एक दिवसीय प्रशिक्षण में गरौल प्रखंड की सभी सीएचओ, एएनएम, जीएनएम ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रशिक्षक के रूप में डॉ राजेश कुमार तथा डॉ सत्यनारायण के द्वारा सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों, एएनएम/जीएनएम को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान पीएसआई इंडिया कि मैंनेजर कुमारी सुरभि के द्वारा कहा गया कि परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत बास्केट ऑफ चॉइस में एमपीए सबकुटेनियस एक नया साधन है  तथा इसे लगाना भी बेहद सरल है एवं यह लाभार्थियों के लिए दर्दरहित है तथा दवा की मात्रा कम होने के कारण अत्यधिक सुविधाजनक है। साथ ही इनके द्वारा अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उप स्वास्थ्य केंद्रों पर आने वाले सभी लाभार्थियों को एमपीए सबकुटेनियस की जानकारी दी जाए। 

इसके अलावा एमपीए सबकुटेनियस की एचएमआईएस पोर्टल पर रिपोर्टिंग की चर्चा की गई। पीएसआई इंडिया के मैनेजर शिशिर कुमार के द्वारा एमपीए सबकुटेनियस के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई तथा किन-किन संस्थानों में एमपीए सबकुटेनियस की सुविधा उपलब्ध है इसके बारे में बताया गया। प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक रेणु कुमारी के द्वारा कहा गया कि क्लाइंट मोबिलाइजेशन पर फोकस करते हुए ज्यादा से ज्यादा लाभार्थियों को एमपीए सबकुटेनियस की सेवा दी जाए, साथ ही सभी एएनएम को प्रति माह एमपीए सबकुटेनियस लगवाने का लक्ष्य दिया। इस मौके पर प्रखंड स्तरीय चिकित्सा पदाधिकारी एवं अन्य सदस्य सम्मिलित हुए।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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