नमो गंगे सभागार में आयोजित16 वी आरोग्य संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों के आए होमियोपैथिक के पुरोधाओं की उपस्थिति
सिवान जिले के प्रखंड लकड़ी नवीगंज के मूसेपुर गांव के निवाशी सुप्रसिद्ध होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ० शैलेश पांडेय एवं मालती देवी के सुपुत्र तथा प्रख्यात समाजसेवी ,शिक्षाविद एवं होमियोपैथी को ग्रामीण स्तर पर उतारने वाले महान चिकित्सक स्व० डॉ०तपेश्वर पांडेय जी के सुपौत्र डॉ० रौशन पाण्डेय जी को उनके होमियोपैथिक के क्षेत्र में रिसर्च संबंधित इलाज करने एवं जन जागरूकता के माध्यम से लोगों को स्वास्थ के प्रति सचेत एवं जागरूक करने तथा होमियोपैथिक को जन जन की चिकित्सा पद्धति बनाने के लिए किए जा रहे उनके प्रयासों के लिए उन्हें भारत रत्नाकर पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है।
ये पुरस्कार उन्हें गाजियाबाद के मोहन नगर स्थित नमो गंगे सभागार में आयोजित16 वी आरोग्य संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों के आए होमियोपैथिक के पुरोधाओं की उपस्थिति में दिया गया।। डॉ० रौशन पाण्डेय ने इस आरोग्य संगोष्ठी में होमियोपैथी दवाओं द्वारा खुद के प्रयास से किए गए रिसर्च संबंधित इलाज को प्रस्तुत भी किया गया।। डॉ० पांडेय इस रिसर्च समिट में बिहार का नेतृत्व करने वाले एक मात्र होमियोपैथिक चिकित्सक थे।
पिता डॉक्टर शैलेश पाण्डेय ने इस मौके पर बहुत ही खुशी जताते हुए बताया कि डॉ० रौशन ने गांव के मान सम्मान को तो बढ़ाया ही है साथ ही साथ प्रखंड जिला और पूरे बिहार को भी गौरवान्वित किया है।।माता मालती देवी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि हमारे पूरे परिवार को गर्व है अपने बेटे पर।उनके इस सम्मान से पूरे गांव में खुशी का माहौल है ।। इस सम्मान के लिए गोरेयाकोठी के वर्तमान विधायक देवेशकांत सिंह ने बधाई देते हुए कहा कि डॉ० रौशन पाण्डेय ने न सिर्फ होमियोपैथी के सम्मान को बढ़ाया बल्कि पूरे बिहार का नेतृत्व किया है जो हम सभी के लिए गर्व का पल है, हम सभी उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना देते है।
पटना एम्स के कैंसर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० जगजीत पांडेय जी ने डॉ० पांडेय के इस सम्मान पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि आज हम सभी बहुत खुश है साथ ही पूरे सारण समेत महराजगंज लोकसभा क्षेत्र के लोगों के तरफ से है उन्हें बधाई देते है।। डॉक्टर रौशन पाण्डेय के इस उपलब्धि पर गोरेयाकोठी के पूर्व प्रमुख सह कांग्रेस नेता अशोक सिंह,मुखिया मनोज सिंह,सरपंच लवलीन चौधरी,भाजपा मंडल उपाध्यक्ष राकेश पांडेय जी,भाजपा के क्षेत्रीय प्रभारी राजीव तिवारी,पूर्व विधायक डॉ० देव रंजन सिंह , डॉ० अन्नू बाबू, डॉ० मोतीलाल पांडेय, डॉ० अविनाश पांडे, डॉ० अमृता पांडेय,सतीश पांडेय,विकाश पांडेय,बहन डॉ० मधु पांडेय ,अधिवक्ता शिवाकांत पांडेय,कौशल सिंह,शिक्षक मोतीलाल प्रसाद समेत तमाम ग्रामीण बंधुओं ने बधाई दिया।।
कहाँ गुम हो गए केंचुआ को कठपुतली बनाकर नाच दिखाने वाले
सत्ता का वरदहस्त अगर मिल जाय तो घोड़ा ढ़ाई घर नहीं साढ़े पांच घर चलता है यानी उसे फिर किसी की परवाह नहीं होती है चाहे फिर वह सुप्रीम कोर्ट ही क्यों ना हो। सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को लगातार समझा रहा था बिहार में किये जा रहे एसआईआर की रीति-नीति को लेकर, वह एडवाइज कर रहा था स्वीकार किए जा रहे दस्तावेजों को लेकर, वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख वोटरों के नाम को लेकर। मगर चुनाव आयोग तो हवा में उड़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिन दस्तावेजों को स्वीकार करने का परामर्श दिया चुनाव आयोग ने उसकी अनसुनी कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख लोगों की लिस्ट शपथ-पत्र के साथ कारण बताते हुए पेश करने को कहा तो चुनाव आयोग ने शपथ-पत्र में लिख दिया कि वह कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है यानी वह सुप्रीम कोर्ट से भी सुप्रीम है। एक कहावत है कि लातों के देव बातों से नहीं मानते। कुछ यही हाल चुनाव आयोग का है और हो भी क्यों ना, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए चुनाव आयोग को आदेश देना पड़ा कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गये हैं मय कारण उनकी सूची बूथवार लगाई जावे। यानी देशवासियों के बीच तकरीबन - तकरीबन खत्म हो चुकी चुनाव आयोग की साख को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही आगे आना पड़ा और उसने एक बार फिर अपने आदेश में साफ तौर पर कह दिया कि जो नाम हटाये गये हैं अब उसके लिए कोई जरूरी नहीं है कि मतदाता सशरीर चुनाव प्रक्रिया से जुड़े, किसी अधिकारी के सामने पेश होकर ये बताये कि मैं जिंदा हूं (सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कह कर चुनाव आयोग को इस शर्मिंदगी से बचा लिया कि वह किस मुंह से कहता है कि हमने पहले आपको मार डाला था अब जिंदा कर रहे हैं) जिलेवार लगने वाली मृतकों की कतार को खत्म करते हुए कह दिया गया कि आप जहां पर हैं वहीं से आनलाईन आवेदन कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने भी मारिया के आगे भूत भी डरता है कि तर्ज पर कह दिया कि आधार कार्ड के आधार पर भी वोटर आईडी कार्ड बना कर दे दिया जाएगा। जिस काम को चुनाव आयोग को प्रारंभ में ही कर लेना था उस काम को उसने सुप्रीम कोर्ट की डांट खाने के बाद, देश भर में अपनी छीछालेदर कराने के बाद, अपनी साख को बट्टा लगाने के बाद करना पड़ा। तो सवाल उठता है कि आधार कार्ड को नहीं मानने का फैसला किसका था ? और जिसने ऐसा करने को कहा वह चुनाव आयोग की इज्जत बचाने सामने क्यों नहीं आया ?
बिहार की धरती पर इन दिनों चुनाव आयोग के ही दस्तावेजी विश्लेषण से निकला वोट चोरी का सच चहुंओर गूंज रहा है। चुनाव आयोग के ही दस्तावेजों का भगीरथी मंथन करने के बाद जिन चार-पांच तरीके से वोटों की हेराफेरी का खेला किया गया और उसके बाद जब मुख्य चुनाव आयुक्त अपनी टीम के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने सामने आये तो लगा कि वे वोट चोरी जैसे घिनौनै आरोप का मुंह तोड़ जवाब देंगे लेकिन वे तो प्रेस कांफ्रेंस में अपना ही मुंह न केवल तुड़वा बैठे बल्कि कालिख तक लगा लिए। वह तो अच्छा हुआ कि उनके द्वारा जो - जो बोला गया उनने चुल्लू भर पानी में डुबकी नहीं लगाई ! चुनाव आयोग की वोट चोरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चिपक कर नारे की शक्ल में तब्दील होकर चिपक सा गया है। वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा न केवल बिहार की गलियों में चारों खूंट गूंज रहा है बल्कि गत दिनों सदन की कार्यवाही के अंतिम दिवस जब प्रधानमंत्री बतौर रस्म अदायगी सदन में दाखिल हो रहे थे तो उनका स्वागत करते हुए विपक्ष ने एक स्वर में वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा गुंजायमान किया था और इस नारे को लेकर 1 सितम्बर के बाद राज्य दर राज्य पूरे देश में ले जाने की तैयारी भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर किये जाने की खबर है। क्योंकि 2024 का लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए तमाम चुनाव में वोट चोरी का साया छा सा गया है खासतौर से महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली। वैसे देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी न तो बिहार के रहने वाले हैं न ही बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हां यह बात जरूर है कि बीजेपी के पास बिहार में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी बदौलत बीजेपी चुनावी नैया पार लगा सके उसके पास तो गांव की पंचायत से लेकर देश की पंचायत तक की चुनावी नैया पार करने के लिए एक ही चेहरा है जिसका नाम है नरेन्द्र मोदी। और शायद इसीलिए नरेन्द्र मोदी से चिपका हुआ हर नारा चुनाव के दौरान लगाना प्रासंगिक हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग जमीन की ओर देखने की जहमत उठाता हुआ दिखाई दे रहा है। चुनाव आयोग ने पहली बार कहा है कि सभी राजनैतिक दल मिलकर सामने आयें और काटे गये नामों को जोड़ने में सहयोग करें। जबकि बिहार में एसआईआर शुरू करने के पहले ऐसा कोई आव्हान नहीं किया गया था जो कि उसे करना चाहिए था। मजेदार बात यह है कि देश की सत्ता भी खामोश थी। तो क्या सब कुछ दिल्ली सत्ता के लिए ही किया जा रहा था ? और अब जब बिहार की जमीन से नारों की शक्ल में सीथे - सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करती हुई आवाजें आने लगी हैं जो 2024 में हुए लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए सभी चुनावों को लपेटे में लेने लगी हैं तो इलेक्शन कमीशन सुप्रीम कोर्ट के सामने चर्चा के दौरान कहता है कि हम पर भरोसा रखिए, हमें कुछ समय दीजिए, हम बेहतर तस्वीर सामने रखेंगे और साबित करेंगे कि किसी को बाहर नहीं निकाला गया है। शायद चुनाव आयोग के जहन में ये बात आ रही है कि जब हमारी साख ही नहीं बचेगी तो फिर न तो चुनाव आयोग का कोई मतलब रह जायेगा और न ही चुनाव का। तो क्या बिहार से ये आवाज आ रही है कि अब बीजेपी अपना बोरिया-बिस्तर समेट ले या फिर ये मैसेज है कि कुछ भी हो जाय बीजेपी जीत जायेगी ?
बोरिया-बिस्तर समेट लेने की बात पर तो विपक्ष भी भरोसा नहीं कर रहा है इसीलिए वह कहीं भी ढील देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस तो बकायदा एक रणनीति के तहत देश के भीतर चुनाव आयोग के दस्तावेजों के जरिए निकले सबूतों के साथ यह बताने के लिए निकलने का प्रोग्राम बनाने जा रही है जिसमें वह बताएगी कि नरेन्द्र मोदी ने फर्जी वोटों से जीत हासिल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी हथियाई है। जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक नरेन्द्र मोदी को वोट चोरी में लपेटा जा रहा है उसकी काट अभी तक न तो मोदी ढूंढ पाये हैं न बीजेपी। बिहार में आकर पीएम नरेन्द्र ने जिन मुद्दों का जिक्र किया उन मुद्दों ने पीएम नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को ही नाकारा, निकम्मा करार देते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है ! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनमानस के बीच कहा कि "देश में घुसपैठियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। बिहार के सीमावर्ती जिलों में तेजी से डेमोग्राफी बदल रही है। इसलिए एनडीए सरकार ने तय किया है कि देश का भविष्य घुसपैठियों को नहीं तय करने देंगे" । बात तो ठीक ही कर रहे हैं नरेन्द्र मोदी। लेकिन ऐसा कहते हुए वो ये भूल जाते हैं कि बीते 11 बरस से वे ही तो देश के प्रधानमंत्री हैं। सीमाओं की सुरक्षा उनकी सरकार की जिम्मेदारी है और अगर देश के भीतर घुसपैठ हो रही है तो यह पीएम मोदी और उनकी समूची सरकार का फेलुअर है। यानी आप और आपकी सरकार पूरे तरीके से नाकारा और निकम्मी है। क्योंकि ये घुसपैठिए आज दो-चार-छै महीने में नहीं आये हैं। तो इसका मतलब ये भी है कि आपकी जीत, नितीश कुमार की जीत, चिराग पासवान की जीत, आप लोगों की पार्टी की जीत घुसपैठियों के वोट से हुई है यानी आप लोगों की जीत फर्जी है।
नरेन्द्र मोदी का घुसपैठियों को लेकर दिया गया बयान कहीं न कहीं चुनाव आयोग को सपोर्ट करता हुआ भी दिखाई देता है। दरअसल पीएम मोदी की नींद इसलिए भी उड़ी हुई है कि तमाम मुद्दों की जद में बिहार चुनाव आकर खड़ा हो गया है। इज्जत दांव पर लगी हुई है उस शख्स की जो बीते दो दशकों से ज्यादा समय से सूबे का मुखिया है तथा बीते 11 बरस से जो केंद्र की सरकार चला रहा है वह उसके साथ गलबहियाँ डाले खड़ा है इसके बावजूद भी हाई वोल्टेज चुनाव में अगर हार हो जाती है तो इसके मतलब और मायने बहुत साफ होंगे कि उस बिहार की जनता, जो देश में सबसे गरीब है, जहां सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, जहां किसानों की आय सबसे कम है, जहां की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, जहां का हर दूसरा व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है, ने केंद्र सरकार की नीतियों और तमाम दावों को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग दुनिया भर की बातें तो करता है लेकिन जब वोटर लिस्ट की बात आती है तो खामोश हो जाता है और वोटर लिस्ट को लेकर ही राहुल गांधी द्वारा रैली दर रैली सवाल उठाए जा रहे हैं और बिहार में विपक्ष द्वारा जो रैली निकाली जा रही है उसमें जो भीड़ उमड़ती है इसके बावजूद जबकि यह मुद्दा न तो बेरोजगारी से जुड़ा हुआ है, न ही मंहगाई से, न ही पिछड़े-एससी-एसटी तबके से यह मुद्दा तो देश के भीतर लोकतंत्र की रक्षा करने, संविधान के साथ खड़े होने, कानून का राज होने के साथ ही लोकतांत्रिक पिलर्स को बचाने की एक ऐसी कवायद से जुड़ा हुआ है जिसमें सबसे बड़ा पिलर कोई दूसरा शख्स नहीं बल्कि जनता ही है। यानी यह किसी भी स्कैम, किसी भी करप्शन से बड़ा मुद्दा है। मगर इन सबके बीच चलने वाली पारंपरिक राजनीति पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कोशिश यह कहते हुए की कि "एनडीए सरकार भृष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा कानून लाई है जिसके दायरे में देश का पीएम भी है, इस कानून में मुख्यमंत्री और मंत्री को भी शामिल किया गया है। जब ये कानून बन जायेगा तो प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या फिर कोई भी मंत्री उसे गिरफ्तारी के 30 दिन के अंदर जमानत लेनी होगी और अगर जमानत नहीं मिली तो 31 वें दिन उसे कुर्सी छोड़नी पड़ेगी"।
इस दौर में यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि "जेल भेजता कौन है और जो जेल भेज रहा है क्या वही कानून ला रहा है ? सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री को जेल भेजेगा कौन ? नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और उनके तमाम सिपहसालारों ने अपने राजनीतिक जीवन में जिस तरह से हेड स्पीचें दी हैं अगर देश में कानून का राज होता तो ये तमाम लोग आज भी जेल में सड़ रहे होते मौजूदा कानून के रहते ही। मगर देश भर की पुलिस तो भाजपाई प्यादे के खिलाफ भी एफआईआर लिखने का साहस जुटाती हुई नहीं दिखती है। सबसे बड़ा अपराध तो यही है कि कानून का राज ही न रहे और सत्ता कानून का जिक्र करे। संविधान गायब होने की आवाज विपक्ष लगाये और सत्ता कहे कि हम जो कह रहे हैं यही कानून है। इमर्जेंसी काल में इंदिरा गांधी की तानाशाही का मुद्दा उभरा था लेकिन वोटर से वोट का अधिकार छीन लिया जाये ये मुद्दा नहीं बना था। इसी तरह मंडल - कमंडल के दौर में भी देश के भीतर ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं हुई थी जैसी परिस्थिति वर्तमान दौर में देश के भीतर बनाई जा चुकी है और इसीलिए विपक्ष द्वारा देश में पहली बार डेमोक्रेसी के प्रतीक "जनता" को ही मुद्दा बना कर पेश किया जा रहा है। चुनाव आयोग पर जो दस्तावेजी वोट चोरी का आरोप लगा और चुनाव आयोग उस आरोप को दस्तावेजी तरीके से नकारने में नाकाम रहा शायद इसीलिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहारियों को समझने की कोशिश में लगे हैं कि "अगर हमें लगेगा कि चुनाव परिणाम पहले ही तय किए जा चुके हैं तो हम इस चुनाव से बाहर हो जायेंगे। तो क्या बिहार में सुलग रही आग आने वाले दिनों में पूरे देश को अपने आगोश में ले लेगी या फिर यह एक मैसेज है सचेत रहें हो जाने का मौजूदा राजनीतिक सत्ता के लिए, चुनाव आयोग के साथ ही उन तमाम संवैधानिक संस्थानों के लिए जो अपना काम नहीं कर रहे हैं। ये परिस्थिति आने वाले समय में पूरे देश को अपनी जद में नहीं लेगी, कहना मुश्किल है ये आवाज तो शुरुआत है बिहार की जमीं से।
बुधवार की दोपहर में जैसे ही 2 बजे वैसे ही लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा आइटम नम्बर 21, 22, 23 और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने खड़े होकर कहा "भारत के संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जाय। महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जाय। महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जावे"।
वैसे तो गृहमंत्री अमित शाह ने सदन के पटल पर तीन विधेयक रखने का प्रस्ताव किया लेकिन सदन के भीतर हंगामा बरपा संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने वाले प्रस्ताव को लेकर। गृहमंत्री ने प्रस्ताव में जिस संशोधन का जिक्र किया है उसमें लिखा है कि "निर्वाचित प्रतिनिधि भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं उनसै उम्मीद की जाती है कि वो राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर केवल जनहित का काम करें। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे, गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए किसी भी मंत्री से संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतो को नुकसान पहुंच सकता है। इससे लोगों का व्यवस्था पर भरोसा कम हो जाएगा। गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए किसी मंत्री को हटाने का संविधान में कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इसे देखते हुए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164, 239 एए में संशोधन की जरूरत है।
इसे पढ़ कर तो कोई भी कहेगा कि इसमें क्या गलत लिखा गया है। संविधान में इस तरह का संशोधन तो होना ही चाहिए। क्योंकि केंद्र हो राज्य हर किसी का मंत्रीमंडल गंभीरतम अपराधिक मामलों में आकंठ डूबे हुए माननीयों से भरा पड़ा है। देश देख रहा है कि आज के दौर में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य के मंत्री सभी कहीं न कहीं दागदार छबि को लिए हुए हैं। तो अगर एक ऐसा कानून बन जाय कि सिर्फ़ 30 दिन जेल में रहने पर कुर्सी चली जाय तो क्या बुरा है। इसमें तो प्रधानमंत्री को भी नहीं बख्शा गया है, उन्हें भी शामिल कर लिया गया है। सवाल है कि तो फिर विधेयक पेश होते ही सदन में हंगामा क्यों बरपा ? हंगामा बरपने के मूल में सरकार की नीति नहीं नियत है। बीते 11 सालों का इतिहास बताता है कि सरकार ने किस तरीके से अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए हर सरकारी ऐजेंसियों का खुलकर दुरुपयोग किया। यहां तक कि विरोधियों को प्रताड़ित करने के लिए अदालतों तक का उपयोग करने में कोताही नहीं बरती गई। सारे देश ने देखा कि किस तरह से ईडी, सीबीआई, आईटी के जरिए विरोधियों के सामने दो विकल्प रखे गए या तो बीजेपी ज्वाइन करिए या फिर जेल के सींखचों के पीछे जाइए। प्रधानमंत्री सरेआम जनता के बीच मंच पर खड़े होकर जिन नेताओं के लिए चक्की पीसिंग - चक्की पीसिंग का जप किया करते थे उनके बीजेपी ज्वाइन करते ही उनके सारे पाप पुण्य में बदल गये और जिन्होंने बीजेपी ज्वाइन नहीं की उन्हें लम्बे समय तक जेल में रहना पड़ा और इसमें अदालतें भी अपना योगदान देने में पीछे नहीं रहीं।
अजीत पवार, एकनाथ शिंदे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, कैप्टन अमरिंदर सिंह, फारूक अब्दुल्ला, भूपेंदर सिंह हुड्डा, बी एस यदुरप्पा, अशोक चव्हाण, मायावती, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, सिध्दारम्मैया जैसे न जाने कितने नाम हैं। सिध्दारम्मैया के मामले में तो अदालत को यह तक कहना पड़ा था कि आप ये क्या कर रहे हैं, यहां तक कि उनकी पत्नी को भी लपेटा गया था। ईडी ने तो बकायदा 129 नामों की लिस्ट देश की सबसे बड़ी अदालत को सौंपी जिसमें एमपी, एमएलए, एमएलसी शामिल थे लेकिन ईडी सिर्फ दो मामलों को छोड़कर किसी के भी खिलाफ मामला साबित नहीं कर सकी जिसके लिए उसे जेल भेजा गया था। झारखंड के पूर्व मंत्री हरिनारायण राय जिन्हें 2017 में मनी लांड्रिंग केस में 5 लाख का जुर्माना और 7 साल की सजा सुनाई गई थी। इसी तरह झारखंड के ही एक दूसरे पूर्व मंत्री अनोश एक्का को भी 2 करोड़ रुपए का फाइन और 7 साल कैद की सजा हुई थी। लेकिन डीएमके के ए राजा, कनींमोजी, दयानिधि मारन, टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय, तपस पाल, अजय बोस, कुणाल घोष, अर्पिता घोष, शताब्दी राय, स्वागत राय, काकोली राय, अभिषेक बैनर्जी, कांग्रेस में रहते हुए नवीन जिंदल, रेवंत रेड्डी, हिमन्त विश्र्व शर्मा आदि-आदि फेहरिस्त बड़ी लम्बी है ये सारे नाम एक-एक करके गायब होते चले गए।
सवाल पूछा जा सकता है कि बीजेपी जब 2019 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में थी तब उसने संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संवैधानिक संशोधन के बारे में नहीं सोचा और जब आज के दौर में सरकार बैसाखी के भरोसे चल रही है तब अचानक से गृहमंत्री ने मंगलवार को सदन के पटल पर अनुच्छेद 75, 164, 239 एए में संशोधन करने का विधेयक पेश कर दिया, आखिर क्यों ? इसकी टाइमिंग और परिस्थितियां बहुत महत्वपूर्ण है। उप राष्ट्रपति जगदीश धनखड को चलता कर दिये जाने के बाद खाली हुई कुर्सी को भरने के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। एनडीए ने जहां तमिलनाडु के रहने वाले सीपी राधाकृष्णन, जो वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं इंडिया गठबंधन द्वारा भी अखंडित आंध्र प्रदेश के पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया गया है। जहां एनडीए ने राधाकृष्णन को उम्मीदवार बना कर डीएमके पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश की है तो इंडिया गठबंधन ने भी पलटवार करते हुए सुदर्शन को मैदान में उतार कर चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी पर भावनात्मक प्रेसर डालने की चाल चली है। बैसाखी के सहारे चल रही मोदी की सबसे बड़ी बैसाखी चंद्रबाबू नायडू ही हैं। चंद्रबाबू नायडू का राजनैतिक इतिहास बताता है कि वे संभवतः रामविलास पासवान और विद्याचरण शुक्ल के बाद तीसरे राजनेता हैं जिन्होंने डूबती हुई नाव पर सवारी नहीं की है।
जगन मोहन रेड्डी ने जैसे ही ट्यूट किया कि चंद्रबाबू नायडू हाटलाइन पर सीधे-सीधे कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी से पेंगे लड़ा रहे हैं। दिल्ली दरबार के कान खड़े हो गए। क्योंकि चंद्रबाबू नायडू सत्ता का बैलेंस बनाये रखने के लिए मोदी सरकार की नजर में एक प्यादे बतौर हैं वैसे ही जैसे नितीश कुमार, चिराग पासवान हैं। और अगर ये प्यादे बजीर बन गये तो दिल्ली में बैठी मोदी सरकार को ना केवल मुश्किल होगी बल्कि मोदी सरकार अल्पमत में आकर भूतपूर्व भी हो सकती है । जिस तरह की खबरें इंडिया गठबंधन के खेमे से छनकर आ रही हैं वे मोदी सरकार की धड़कनों को असामान्य बनाने के लिए काफी हैं। खबर है कि बतौर उप राष्ट्रपति पद के लिए पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी का नाम चंद्रबाबू नायडू के कहने पर ही फाइनल किया गया है। यानी अब मामला अटकलबाजियों से बाहर निकल कर हकीकत में बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर चंद्रबाबू नायडू इंडिया गठबंधन के साथ खड़े हो रहे हैं तो मतलब साफ है कि मोदी की नाव डूब रही है तो फिर डूबती नाव पर सवार क्यों रहा जाय ? राजनीति का सच भी यही है। कल तक उप राष्ट्रपति चुनाव को औपचारिक प्रक्रिया मानने वाले नरेन्द्र मोदी की सांसें तस्वीर पलट जाने से फूली हुई है कि अगर नायडू इंडिया गठबंधन के साथ चले गए तो एनडीए की पूरी राजनीति ध्वस्त हो जायेगी और इंडिया गठबंधन को एक ऐसी जीत मिल जायेगी जो एक झटके में मोदी की बची खुची छबि को भी धूमिल कर देगी क्योंकि राजनीति में प्रतीक बहुत मायने रखते हैं। खुदा ना खास्ता इंडिया गठबंधन ने उप राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया तो यह माना जायेगा कि मोदी अपराजेय नहीं है। विपक्ष में ताकत है और वह एकजुट होकर जीत सकता है और यही डर मोदी सहित बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा रहा है।
दिल्ली से लेकर चैन्नई और हैदराबाद तक हर गलियारे में यही चर्चा है कि क्या नायडू सच में पलटी मार चुके हैं। मगर राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि नायडू पलटी मारने का फैसला तो तब ले सकेंगे न जब उनको ये फुल कांफीडेंस होगा कि पलटी मारने के बाद उनकी अपनी कुर्सी बची रहेगी। अमित शाह द्वारा लाये गये विधेयक के बारे में कहा जा रहा है कि क्यों न ऐसी व्यवस्था कर ली जाय कि पलटी मारने वाला भी गद्दी विहीन हो जाय। वैसे तो चंद्रबाबू नायडू के मामलों की सूची लम्बी है फिर भी तीन बड़े मामलों का जिक्र तो किया ही जा सकता है। पहला मामला ही 371 करोड़ रुपये के सरकारी धन के गबन का ही है। दूसरा मामला स्किल डवलपमेंट स्कैम का है और तीसरा मामला आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती में एक हजार एक सौ एकड़ जमीन घोटाले से जुड़ा हुआ है। इसमें तो नायडू सहित चार लोगों पर बकायदा आईपीसी की धारा 420, 409, 506, 166, 167, 217, 109 के साथ ही एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। वो तो राजनीतिक हवा का रुख भांप कर नायडू ने मोदी की गोदी में बैठकर अंगूठा चूसने में ही भलाई समझी और सारी फाइलों को बस्ते में बांध दिया गया। अगर उन फाइलों को खोल दिया जाय और राज्यपाल को सशक बनाने वाला नया कानून आ जाय और राज्यपाल पहले से दर्ज आपराधिक मामले में संज्ञान लेने की अनुमति दे दें तधा अदालत भी कोताही बरते बिना जेल भेज दे, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त अरविंद केजरीवाल को जेल भेज दिया गया था, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त हेमंत सोरेन को जेल भेज दिया गया था और सरकार के रुख को भांपते हुए 30 दिन जेल की रोटियाँ खिलाई जाती रहें यानी जमानत ना मिले तो 31 वें दिन कुर्सी चली जायेगी।
तो सवाल उठता है कि क्या चंद्रबाबू नायडू मौजूदा सत्ता की नजर में खलनायक के रूप में सामने आना चाहेंगे या फिर मोदी सत्ता की बैसाखी बने रह कर दक्षिणी राजनीतिक अस्मिता की नजर में खलनायक बनना पसंद करेंगे। चंद्रबाबू के सामने मुश्किल तो है अपनी कुर्सी और अपनी राजनीति, अपने वोट बैंक को बचाये रखने की। फिलहाल गृहमंत्री द्वारा पेश विधेयक जेपीसी को भेज दिया गया है। जिस पर 31 सदस्यीय कमेटी (लोकसभा के 21 एवं राज्यसभा के 10) विचार कर अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में पेश करेगी। अगर इस बीच एक झटके में नायडू अपना समर्थन वापस ले लेते हैं और हिचकोले खाती सरकार की नजाकत को समझते हुए नितीश कुमार, चिराग पासवान, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने भी नायडू की राह पकड़ ली तो इनकी सारी मुश्किलों का समाधान भी हो जायेगा। मोदी सत्ता के सहयोगियों का यह कदम केंचुआ को भी राहत की सांस दे सकता है क्योंकि इस दौर में जिस तरीके से देश भर में केंचुआ की छीछालेदर हो कर साख पर बट्टा लग रहा है उससे बाहर निकलने का रास्ता भी मिल जायेगा। सदन में रोचक परिस्थिति तब पैदा हो गई जब कांग्रेसी सांसद वेणुगोपाल की टिप्पणी पर गृहमंत्री अमित शाह नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे तो ऐसा लगा जैसे कालनेमि शुचिता का उपदेश दे रहा हो। देश में नैतिकता का पाठ पार्लियामेंट के भीतर से निकले इसकी तो कल्पना भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि पूरा देश जानता है कि 16 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा इलेक्टोरल बांड्स के दोषी कौन हैं, हर कोई जानता है कि 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा प्रधानमंत्री केयर फंड का दोषी कौन है, हर कोई जानता है कि गुडग़ांव से द्वारका के बीच बनी सड़क में किस तरह से सरकारी खजाने को लूटा गया है, पूरा देश जानता है कि किस तरह से एक ही टेलिफ़ोन नम्बर 9..9..9..9 (दस बार) से 7.50 लाख लाभार्थियों के नाम खास अस्पतालों ने प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना से पैसे लिये हैं। इन सारे घपलों घोटालों पर न सरकार ने कोई कार्रवाई की न ही अदालतों ने। यही कारण है कि सदन के भीतर विधेयक पेश होते ही हंगामा होने लगा क्योंकि मोदी सत्ता ने विधेयक पेश कर विपक्ष के साथ ही अपनी बैसाखियों और अपने सांसदों तक को ये मैसेज दे दिया है कि हमको सत्ता से उठाने का आपने तय किया तो चाहे यह कानून न्याय विरोधी, संविधान विरोधी ही क्यों न हो कोई मायने नहीं रखेगा। असली परीक्षा और उसके नतीजे की तारीख 9 सितम्बर तय है जब तय हो जायेगा कि चंद्रबाबू नायडू किस करवट बैठे हैं। फिलहाल तो बीजेपी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। मोदी का कुनबा और कुर्सी दोनों हिल रही है और इसे हिला रहा है एक ही नाम।
चलते-चलते
आईना वही रहता है चेहरे बदल जाते हैं
दूसरों थूका गया थूक खुद पर ही पलट कर आता है या यूं कहें कि इतिहास खुद को दुहराता है केवल किरदार बदल जाते हैं इसका नजारा संसद सत्र के आखिरी दिन लोकसभा और राज्यसभा में उस समय जीवंत हो गया जब लोकसभा में सत्र समापन दिवस पर रस्म अदायगी के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए विपक्ष ने एक स्वर में नारे लगाये "वोट चोर गद्दी छोड़" तथा राज्यसभा में उपस्थित गृहमंत्री अमित शाह के लिए नारे लग रहे थे" तड़ीपार गो बैक - गो बैक" । जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को ही जरूरत है शुचिता और नैतिकता का पाढ़ पढ़ने की।
कानून के अनुरूप हर राजनीतिक दल का जन्म चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन से ही होता है तो फिर चुनाव आयोग उन्ही राजनीतिक दलों से भेदभाव कैसे कर सकता है। चुनाव आयोग के लिए ना तो कोई विपक्ष है ना कोई पक्ष है सब समकक्ष हैं। चाहे किसी भी राजनीतिक दल का कोई भी हो चुनाव आयोग अपने संवैधानिक कर्तव्य से पीछे नहीं हटेगा (यानी ज्ञानेश ज्ञान दे रहे हैं कि चुनाव आयोग हर पंजीकृत राजनीतिक दल का बाप है और उसके लिए सारे लड़के बराबर हैं मगर वे यह भूल गए कि बाप की नजर में कोई लड़का ज्यादा प्यारा भी होता है वैसे ही चुनाव आयोग की नजर में कोई दल ज्यादा लाडला भी है जिसे सत्ता में बनाये रखने के लिए वह वोट की हेराफेरी जैसे काम भी कर सकता है)। जमीनी स्तर पर सभी मतदाता, सभी राजनीतिक दल और बीएलओ मिलकर एक पारदर्शी तरीके से कार्य कर रहे हैं, सत्यापित कर रहे हैं, हस्ताक्षर भी कर रहे हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि राजनीतिक दलों के जिलाध्यक्ष और उनके द्वारा नामित बीएलए के सत्यापित दस्तावेज, उनकी आवाज उनके स्वयं के राज्य स्तर के या राष्ट्रीय स्तर के नेताओं तक या तो पहुंच नहीं पा रही है या फिर जमीनी सच को नजरअंदाज करते हुए भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। (क्या चुनाव आयोग के कानों में बीएलओ को आने वाली रुकावटों की बात पहुंच रही है) सच तो यह है कि सभी कदम से कदम मिलाकर बिहार में एसआईआर को पूर्ण रूप से सफल बनाने के लिए कटिबद्ध हैं, प्रयत्न कर रहे हैं और कठिन परिश्रम कर रहे हैं। एसआईआर हड़बड़ी में कराने का भ्रम फैलाया जा रहा है। मतदाता सूची चुनाव से पहले शुध्द की जाती है चुनाव के बाद नहीं। इसका अधिकार चुनाव आयोग को लोक प्रतिनिधित्व कानून देता है कि हर चुनाव से पहले आपको मतदाता सूची शुध्द करनी होगी। ये चुनाव आयोग का कानूनी दायित्व है। कानून के अनुसार अगर समय रहते मतदाता सूची की त्रुटियों को साझा ना किया जाय, मतदाता द्वारा अपना प्रत्याशी चुनने के 45 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर ना की जाय और फिर चोरी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके जनता को गुमराह करने का असफल प्रयास किया जाय तो यह भारत के संविधान का अपमान नहीं तो और क्या है ? समय पर गलतियों को बताना, समय परिध के बाद गलतियां बताना (राजनीतिक स्टेटमेंट), समय बाद गलतियों को बतला कर मतदाताओं और चुनाव आयोग पर चोरी का आरोप लगाना तीनों में फर्क है। रजिस्ट्रेशन आफ इलेक्शन रूल्स का रूल 20(3)(b) में दिए गए निर्देशों के मुताबिक साक्ष्य के साथ शिकायत करनी चाहिए। संविधान के पूरी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है लेकिन लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव आयोग तो एक छोटा सा 800 लोगों का एक समूह है। चुनाव के दौरान हर जिले के अधिकारी और कर्मचारी चुनाव आयोग के भीतर डेपुटेशन पर काम करते हैं। जहां तक मशीन रीडेबल मतपत्र सूची का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में कहा था कि मतदाता की निजता का हनन हो सकता है। तो क्या चुनाव आयोग को सीसीटीवी वीडियो साझा करना चाहिए ? बिहार में बताये गये मृत मतदाता की संख्या पिछले 20 वर्षों सहित है। मतदाता सूची और मतदान अलग - अलग विषय है। कई लोगों के पास घर नहीं होता है लेकिन उनका नाम मतदाता सूची में होता है उन्हें फर्जी मतदाता कहना उनके साथ खिलवाड़ करने के समान है । कम्प्यूटर फीडिंग में वह बिना मकान नम्बर वाले मतदाता के पते पर घर का नम्बर जीरो रीड करता है। इसका मतलब ये नहीं है कि वे मतदाता नहीं है। मतदाता बनने के लिए पते से ज्यादा नागरिकता और 18 वर्ष की आयु का पूरा होना आवश्यक है। एक दो शिकायत होती है तो स्वत: संज्ञान लेकर भी जांच कर ली जाती है लेकिन डेढ़ लाख शिकायतों की जांच करने के लिए बिना सबूत, बिना शपथ पत्र कैसे नोटिस जारी कर दिये जांय। इसका नियम ही नहीं है। मतदाता सवाल कर सकता है कि आपने हमें बिना सबूत कैसे बुलाया है तो ऐसे में हमारी साख गिरेगी या बढ़ेगी ? बिना सबूत किसी का भी नाम मतदाता सूची से नहीं कटेगा। चुनाव आयोग मतदाता के साथ चट्टान की तरह खड़ा है। हलफनामा देना होगा या देश से माफी मांगनी होगी तीसरा विकल्प नहीं है। अगर 7 दिन में हलफनामा नहीं मिला तो इसका मतलब होगा कि सारे आरोप निराधार हैं।
ये वो बातें हैं जो देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश गुप्ता ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा कर्नाटक में बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र की एक विधानसभा महादेवपुरा की वोटर लिस्ट का 6 महीने तक गहन विश्लेषण करने के बाद कैसे 5 तरीकों डुप्लीकेट वोटर्स (11965), फेक इनवेलिड अड्रेस (40009), वल्क वोटर्स इन सिंगल अड्रेस (10452), इन वेलिड फोटोज (4132), मिस यूज फार्म-6 (33692) से वोटों की चोरी करके बीजेपी के कैंडीडेट को जिताया गया। खास बात यह है कि ये सारे आंकड़े चुनाव आयोग द्वारा दी गई मेनुअल वोटर लिस्ट के भीतर से ही निकाले गए हैं। देशभर में चुनाव आयोग के साथ ही बीजेपी और सरकार की छीछालेदर हुई। चुनाव आयोग ने राहुल गांधी द्वारा बताये गये आंकड़ों पर स्पष्टीकरण देने के बजाय राहुल गांधी को चल रही प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच ही नोटिस जारी कर शपथ-पत्र देने को कह दिया। चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से देश को कोई सफाई नहीं दी बल्कि बीजेपी के नेता गोदी मीडिया चैनलों पर बैठ कर चुनाव आयोग की कारगुजारियों का बचाव करते देखे गए। बीजेपी की ओर से सांसद अनुराग ठाकुर ने प्रेस कांफ्रेंस में जो कुछ कहा उसने राहुल गांधी द्वारा लगाए गए वोट चोरी के आरोप पर मुहर लगा दी। गौरतलब है कि राहुल गांधी ने तो एक ही विधानसभा में वोट चोरी के आंकड़े चुनाव आयोग द्वारा दी गई वोटर लिस्ट की छानबीन के बाद बताये लेकिन बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने तो बिना किसी सबूत या आंकड़ों के ही एक दो नहीं पांच - पांच लोकसभा और एक विधानसभा में वोट चोरी के आरोप लगा कर चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर दिया। सांसद अनुराग ठाकुर की प्रेस कांफ्रेंस नासमझ दोस्त से समझदार दुश्मन ज्यादा बेहतर होता है कि तर्ज पर बीजेपी के लिए बोझ बन गई है।
सीईसी ज्ञानेश गुप्ता की यह पहली प्रेस कांफ्रेंस थी वह भी चुनाव आयोग की रीति - नीति पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उठाए गए गंभीर सवालों का जवाब देने के लिए। 17 अगस्त रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त अपने लावलश्कर के साथ हाजिर होकर सामने आये तो देश ने यही सोचा था कि वे कुछ ऐसा जवाब देंगे कि ना केवल राहुल गांधी बल्कि बीजेपी को छोड़कर सारी पार्टियां बिल्ली को देखकर चूहे की तरह बिल में छिप जायेंगी मगर जैसे-जैसे पत्रवार्ता आगे बढ़ती गई खुद चुनाव आयोग भीगी बिल्ली में तब्दील होता चला गया या कहें सीईसी ज्ञानेश गुप्ता की पत्रवार्ता सीईसी ज्ञानेश गुप्ता की पाठशाला बनती चली गई। उन्होंने ना तो कांग्रेस नेता एवं लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी के द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दिया ना ही भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर द्वारा लगाये गये आरोपों का जवाब दिया। सीईसी ज्ञानेश ने तो राहुल गांधी को 7 दिन के भीतर हलफनामा दिये जाने की चेतावनी दी मगर भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर को तो हफ्ता होने को आया अभी तक चिट्ठी तक जारी नहीं की ना ही कोई जिक्र किया। और उस पर मुख्य चुनाव आयुक्त फरमाते हैं कि उनकी नजर में ना कोई विपक्ष है ना ही कोई पक्ष है बल्कि सभी समकक्ष हैं। गजब की समकक्षता है सीईसी ज्ञानेश गुप्ता की । सीईसी ने राहुल गांधी के इस दावे का कोई जवाब नहीं दिया कि फार्म 6 जो कि पहली बार मतदाता बनने वाले 18 साल से 22 - 23 साल आयु वाले युवाओं द्वारा भरा जाता है उसमें कैसे सौ दौ सौ, हजार दो हजार नहीं तैंतीस हजार छै सौ बानबे 20-30 साल के नहीं बल्कि 90 और 90 से ज्यादा आयु के लोग कैसे शामिल किये गये। ना ही ग्यारह हजार नौ सौ पैंसठ डुप्लीकेट वोटर्स कैसे हो गये, चार हजार एक सौ बत्तीस इनवैलिड फोटोज वाले वोटर्स पर कोई सफाई दी। सीईसी ज्ञानेश गुप्ता तो इस बात का रोना लेकर बैठ गए कि चुनाव आयोग तो 800 लोगों का एक छोटा सा समूह है और उसके कांधे पर पूरे देश का बोझ लाद दिया गया है। सीसीटीवी वीडियो देने की बात पर वे बहू - बेटियों के आंचल में जाकर छुप गये। ऐसा लगा कि जैसे वे कह रहे हैं कि छोटे - मोटे अपराध करना पाप है लार्ज स्केल पर घपला करिये कुछ नहीं होगा यानी वो अफलातून की इस बात पर सही का निशान लगा रहे हैं कि यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है कि कानून सबके लिए बराबर है, कानून के जाल में केवल छोटी मछलियां फंसती हैं बड़े मगरमच्छ तो जाल फाड़ कर निकल जाते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार डा. मुकेश कुमार ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ट्यूट किया है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए किस निष्ठा के साथ बैटिंग कर रहा है ज्ञानेश गुप्ता... कह रहा है कि बहू बेटियों का फुटेज साझा करना चाहिए क्या...... क्यों नहीं करना चाहिए........ चुनाव आयोग पोलिंग बूथ पर वीडियो रिकार्डिंग क्यों करवाता है...... इसीलिए ना कि धांधली को रोका जाय और अगर हो तो धांधली करने वाले को पकड़ा जा सके। मगर ये आदमी इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर उतारू है। मोदी सरकार के ऐजेंट की तरह कुतर्क पर कुतर्क दिए जा रहा है। साफ दिख रहा है कि धांधली को छिपाने के लिए ज्ञानेश कितना गिर गया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सीईसी ज्ञानेश की पाठशाला में सवालों को भेजते हुए कहा कि प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने तो अपनी पत्रवार्ता के माध्यम से आपके (चुनाव आयोग) सामने तमाम प्वाइंट जो आपके द्वारा ही दिए गए दस्तावेजों से निकल कर आये हैं वह भी 6 महीने की मशक्कत के बाद रखे । मगर आपने महादेवपुरा असेंबली का जवाब नहीं दिया। बिहार में आपके द्वारा कराई जा रही एसआईआर पर कई शंकाएं जाहिर की मगर आपने उनको हवा में उड़ा दिया। आपके ना - ना करने के कारण देश की सबसे बड़ी अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा। आपने जिन लोगों को मरा हुआ घोषित कर दिया वो राहुल गांधी के साथ चाय पी रहे हैं। तब भी आपको शर्म नहीं आई। प्रेस कांफ्रेंस में आपने माफी भी नहीं मांगी। आप कह रहे हैं कि आप पक्ष विपक्ष को बराबर मानते हैं तो बताईये अनुराग ठाकुर को नोटिस कब दे रहे हैं । राहुल गांधी को तो आपने प्रेस कांफ्रेंस के बीच में ही नोटिस दे दिया था। अब आपकी आयु बीजेपी के ऐजेंट बनने की नहीं है। अपने पद की मान-मर्यादा का ख्याल रखिए। आपको शायद ये लालच होगा कि रिटायर्मेंट के बाद कुछ पद वगैरह मिल जायेगा तो ये आपका भरम है। अब आप तो चलाचली की बेला में हैं मगर अपने से जुड़े बहुतायत अधिकारियों - कर्मचारियों का भविष्य तो खराब मत करिए। आप कहते हैं सीसीटीवी फुटेज जारी कर देंगे तो महिलाओं की इज्जत खराब हो जायेगी। किस तरह का तर्क दे रहे हैं । सच तो यह है कि आप सीसीटीवी फुटेज डिलीट करके चुनाव आयुक्त, चुनाव आयोग, लोकतंत्र, चुनाव की इज्जत पर बट्टा लगा रहे हैं। अगर सीसीटीवी के फुटेज निजता भंग करते हैं तो उन्हें बनाते ही क्यों हैं.? चुनाव सम्पन्न होने के 45 दिन तक निजता भंग नहीं होती है और 46 वें दिन से निजता भंग होने लगती है। बड़ा बचकाना सा तर्क है आपका।
सीईसी ज्ञानेश गुप्ता ने अपनी डेढ़ घंटे की प्रेस कांफ्रेंस में इस बात का जवाब नहीं दिया कि क्या बीजेपी ने 2024 का लोकसभा चुनाव फर्जी तरीके से जीता है और उसमें चुनाव आयोग की सहभागिता थी ? चुनाव आयुक्त ने इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं दिया कि महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव होने के पहले 6 महीने के भीतर लाखों की तादाद में नये वोटरों का इजाफा क्यों और कैसे हो गया ? क्या चुनाव आयोग ने शाजिसन वोटरों का इजाफा करके बीजेपी को चुनाव जिताने में मदद की ? चुनाव आयुक्त ने इसका भी समाधान नहीं किया कि ईवीएम में जितने वोट पड़े थे हजारों ईवीएम मशीनों ने उससे ज्यादा और कम वोट कैसे उगले ? मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश गुप्ता ने तो एक ऐसा हास्यास्पद तर्क दिया जो शायद आज तक दुनिया में किसी ने नहीं दिया होगा। राहुल गांधी अगर 7 दिनों में हलफनामा नहीं देते या देश से माफी नहीं मांगते तो उनके आरोप निराधार माने जायेंगे। यानी सीईसी ज्ञानेश गुप्ता किसी आरोप की एक्सपायरी डेट तय कर रहे हैं। ये तो ऐसे ही जैसे कोई किसी से कहे खाओ विद्या कसम नहीं तो हफ्ते भर में खत्म हो जाओगे। तो क्या राहुल गांधी के पहले भी जितने नेताओं ने आरोप लगाये हैं वे सभी निराधार मान लिए गये हैं। सीईसी ज्ञानेश गुप्ता के प्रवचन से तो यही लगा कि उन्होंने खुद सहित तमाम नेताओं की माफी मांगने का भार राहुल गांधी पर डाल दिया है। ऐसा लगता है कि सीईसी की प्रेस कांफ्रेंस ने गोदी मीडिया का संड़े खराब करके दिया क्योंकि वह विपक्ष पर हमलावर नज़र नहीं आया। उसका जवाब आक्रामक ना होकर प्रियात्मक दिखा। प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित मीडिया कर्मियों ने भी देश को निराश नहीं किया। सभी ने चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल पूछे। यह अलग बात है कि कुछ सवालों के जवाब आये, कुछ सवालों के जवाब नहीं आये, सभी सवालों के जवाब नहीं आये। प्रेस कांफ्रेंस का सार इतना ही है कि चुनाव आयोग के पास जवाब ही नहीं हैं क्योंकि उसके पास मात्र 800 लोग हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त की प्रेस कांफ्रेंस कहीं चुनाव आयोग के पतन का एतिहासिक दस्तावेज ना बन जाये क्योंकि विपक्ष सीईसी ज्ञानेश गुप्ता के खिलाफ महाभियोग लाने पर विचार कर रहा है !
जाति आधार पर राजनीतिक दलों द्वारा चुना जाता हैं अब भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, पहले आदिवासी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति होगें OBC
हां जी हां, देश का दूसरा नागरिक गायब हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला भारत और भारत में पहली बार हुआ है जब देश का दूसरा नागरिक अपने पद (उपराष्ट्रपति) से इस्तीफा दिया हो और इस्तीफा के बाद महीनों से गायब हो चुका हैं। वहीं इस्तीफा देकर गायब देश के दुसरे नागरिक के गायब होने के बाद भी भारत के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के चेहरे पर चिंता नहीं दिखाई दे रहा है तो वहीं यह बताने की जरूरत भी नहीं समझ रहे हैं कि पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जिंदा हैं और सुरक्षित है। वहीं जगदीप धनखड़ को एक सम्मान जनक विदाई भी नहीं दी गई और अब नये उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की घोषणा राजनीतिक पार्टी आधारित कर दी गई है।
भाजपा और गठबंधन की ओर से वर्तमान राज्यपाल, महाराष्ट्र को भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए चयनित किया है। जिसके संबंध में दो प्रमुख नेताओं के वक्तव्य महत्वपूर्ण है। जिसमें सबसे पहला सोशल मीडिया पर दिया गया या कहें लिखा हुआ लेख हैं केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान का। अपने सोशल मीडिया पर चिराग पासवान लिखते हैं उसे पढ़िए और उस पोस्ट का स्क्रीनशॉट यहां लगाया गया है ताकि कल चिराग पासवान पलटी मारे या पोस्ट मिटावें तो प्रमाण यह सकें। चिराग कहते हैं कि -
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) देश के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार आदरणीय श्री सीपी राधाकृष्णन जी को पूर्ण समर्थन देती है।
तमिलनाडु से आने वाले और OBC समाज के सशक्त प्रतिनिधि के रूप में उनका चयन, प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सामाजिक न्याय एवं समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता का ऐतिहासिक उदाहरण है।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने हमेशा “सामाजिक न्याय, समावेश और सबका साथ-सबका विकास” की नीति को प्राथमिकता दी है। राधाकृष्णन जी का उम्मीदवार बनना इसी संकल्प का जीवंत उदाहरण है, जो यह संदेश देता है कि देश के हर वर्ग और हर क्षेत्र की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान और प्रतिनिधित्व मिलेगा।
भारत सरकार की जगह मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री चिराग पासवान तीसरी बार सांसद बने और अपने पिता रामविलास पासवान के मृत्यु के बाद केन्द्रीय मंत्री बने हैं। अपने पिता रामविलास पासवान के द्वारा बनाई पार्टी के चुनाव चिह्न झोपड़ी में पहले चिराग लगाकर जला दिया और बाद में चाचा और भाईयों से रिश्ते तोड़ लिए। खैर यह चिराग पासवान का व्यक्तित्व और व्यक्तिगत प्रोफाइल हैं। लेकिन अपने पिता से जातिवादी व्यवस्थाओं में 2-4 क़दम और बढ़ कर बात रखते हैं।
चिराग पासवान वर्तमान में मोदी सरकार में 9 जून 2024 से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय संभाल रहे हैं। वहीं महाराष्ट्र के माननीय राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन जी को उपराष्ट्रपति पद हेतु NDA का उम्मीदवार बनाए जाने पर चिराग पासवान ने मोदी और शाह की जोड़ी पर तंज कसा ताकि यह बता सकें कि आपका OBC खेल अब भी जारी है। चिराग पासवान ने अपने और सभी राजनीतिक दलों या राजनीतिक व्यक्ति में पहले चिराग हैं जिन्होंने उपराष्ट्रपति की जाति से ही अपना पोस्ट शुरू किया।
वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को विपक्ष से अपील की है कि वे NDA के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन करें, ताकि नए राज्यसभा अध्यक्ष का चुनाव सामान्य समिति के माध्यम से संपन्न हो सके। मोदी ने NDA की संसदीय बैठक में कहा कि सी.पी. राधाकृष्णन एक बेहतरीन विकल्प हैं, उनका जीवन विवादमुक्त रहा है और वे बहुत ही विनम्र व्यक्तित्व के धनी हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि राजनाथ सिंह सभी दलों के नेताओं के साथ इस मामले में बातचीत कर रहे हैं और लगातार चर्चा में हैं। इससे पहले सोमवार को पीएम मोदी ने दिल्ली में सी.पी. राधाकृष्णन से मुलाकात की और उन्हें NDA के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने की बधाई दी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि राधाकृष्णन जी का लंबे समय तक सार्वजनिक सेवा में अनुभव हमारे देश के लिए मूल्यवान होगा।
सी.पी. राधाकृष्णन का जीवन परिचय और राजनीतिक जीवन परिचय
सी.पी. राधाकृष्णन का पूरा नाम चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन हैं और उनका जन्म - 4 मई 1957 को हुआ। सी.पी. राधाकृष्णन भारतीय राजनेता हैं, जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से भारत के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार है।, 2024 से महाराष्ट्र के 24वें और वर्तमान राज्यपाल हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे और कोयंबतूर से दो बार लोकसभा के लिए चुने गए थे।1998 के कोयंबतूर बम धमाकों के बाद 1998 और 1999 के आम चुनावों में उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। राधाकृष्णन 1998 में 150,000 से अधिक मतों के अंतर से और 1999 के चुनावों में 55,000 के अंतर से जीते। वहीं 1999 में, उन्होंने कहा कि कोयंबतूर के मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए मनाने की जरूरत नहीं है। वह तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी थे। झारखंड के राज्यपाल बनने से पहले वे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य थे और उन्हें पार्टी के आलाकमान द्वारा केरल भाजपा प्रभारी नियुक्त किया गया था। वह 2016 से 2019 तक अखिल भारतीय कॉयर बोर्ड के अध्यक्ष थे, जो लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम मंत्रालय (एमएसएमई) के अधीन है।
2004 में, उन्होंने कहा कि भाजपा ने किसी भी पार्टी की पीठ में छुरा नहीं घोंपा है या अन्य दलों के साथ संबंधों में दरार पैदा नहीं की है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ अपने संबंधों को समाप्त करने के बाद 2004 में गठबंधन बनाने पर काम करने वाले राज्य के नेताओं में से एक थे। राधाकृष्णन ने बाद में 2004 के चुनावों के लिए अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साथ संबंध बनाने के लिए राज्य इकाई के साथ काम किया। 2012 में, राधाकृष्णन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता पर हमला करने वाले दोषियों के खिलाफ निष्क्रियता का विरोध करने के लिए मेट्टुपालयम में गिरफ्तारी दी।
वह दक्षिण और तमिलनाडु से भाजपा के सबसे वरिष्ठ और सम्मानित नेताओं में से हैं और 16 साल की उम्र से 1973 से 48 साल तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ से सीधे संगठन से जुड़े रहे हैं। 2014 में, उन्हें कोयंबतूर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए भाजपा का उम्मीदवार नामित किया गया था और तमिलनाडु की दो बड़ी पार्टियों, डीएमके और एआईएडीएमके के गठबंधन के बिना, उन्होंने 3,89,000 से अधिक मतों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया, जो तमिलों में सबसे अधिक था। तमिलनाडु में सभी उम्मीदवारों के बीच सबसे कम अंतर से हारने वाले बीजेपी उम्मीदवार। उन्हें कोयंबतूर से 2019 के चुनाव के लिए एक बार फिर पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया।
वहीं सी.पी. राधाकृष्णन को झारखंड का 10वां राज्यपाल 18 फरवरी 2023 को बनाया गया था और 30 जुलाई 2024 तक यानी 1 साल 163 दिन अपने पद पर बने रहें और बाद में महाराष्ट्र के राज्यपाल 31 जुलाई 2024 से अब तक बने हुए हैं। झारखंड के राज्यपाल बने और राजनीतिक परिदृश्य में बड़े-बड़े बदलाव किए और वहीं महाराष्ट्र में सरकार बनाने में भी कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जो एक राज्यपाल के क्षेत्र में नहीं था। और शायद इसी लिए जगदीप धनखड़ की तरह सी.पी. राधाकृष्णन का चयन राजनीतिक वफादारी के लिए उपराष्ट्रपति पद से नवाजा जा रहा है।
देश की राजनीति में अब और नया अध्याय लिखने का समय आ गया है। सी. पी. राधाकृष्ण को उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी मिलना जातिवादी व्यवस्थाओं को मजबूती प्रदान करने वाला है और मोदी -शाह को इस पर गर्व है। चिराग पासवान से यह नहीं पुछा जाएगा कि हिन्दुत्व की पार्टी के साथ गठबंधन में आप जातिवादी व्यवस्थाओं पर जोर देकर समाज में व्याप्त कुव्यवस्था को राजनीतिक दलों का गठजोड़ खुलकर क्यों बता रहे हैं। खैर विभिन्न माध्यमों से यह पता चला कि उपराष्ट्रपति उम्मीदवार जगदीप धनखड़ से 2-4 कदम और आगे हैं। मोदी -शाह के लिए उनकी ईमानदार छवि, समर्पण और राष्ट्रहित की जगह मोदी - शाह के सोच से भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाने में सहयोगी बनेंगे। हम सबको मिलकर उनके साथ खड़ा होना है, जैसे जगदीप धनखड़ के साथ आज लोग खड़े दिखाई दे रहे हैं।
डॉ. संजीव कुमार ने अपने पद को दरकिनार करते हुए सामाजिक मुद्दों पर सदन में ब्रह्मर्षियों के आवाज़ बने
"अब हर ब्राह्मण, दूसरे ब्राह्मण का साथी बनेगा और पूरी दुनिया को दिखा देगा कि ब्राह्मण एक है, और अजेय है।" इसी संदेश के साथ श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल 17 अगस्त 2025 के ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन में गवाही दे रहा था कि भूमिहार समाज का स्वाभिमान जिंदा है, अटल है और अजेय है। ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन पटना की सरजमीं पर इतिहास बन गया है। डॉ. संजीव कुमार सिंह, विधायक, परबत्ता, खगड़िया के नेतृत्व में उमड़ा जन सैलाब, मंच से लेकर हॉल की हर कुर्सी तक उमड़े लोगों का जुनून साफ कर दिया कि हमारा स्वाभिमान अब दबने वाला नहीं है। साढ़े चार साल से डॉ. संजीव कुमार ने विधानसभा में हर उस मुद्दे को उठाया जो कि ब्रह्मर्षि स्वाभिमान के लिए आवश्यक है।
डॉ. संजीव कुमार ने चाहे वो समाज के इतिहास से छेड़छाड़ का विषय हो या किसानों की पीड़ा को लेके हो या EWS छात्रों की बात हो सभी विषयों पर बिहार विधानसभा में बात रखी।
डॉ. संजीव कुमार कहते हैं कि ये लड़ाई वोट बैंक की नहीं, स्वाभिमान की है। 17 अगस्त 2025 को पटना की गूंज ने साबित कर दिया कि भूमिहार समाज साथ देने के लिए पीछे सिर्फ खड़ा नहीं है…बल्कि संग - संग कंधे से कंधा मिलाकर चलने और लड़ने को तैयार है। सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए ये चेतावनी से भरी हुई थी श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना। है। बिहार की राजनीति अब भूमिहारों को नकारकर नहीं चलेगी, यह संदेश सभी ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन में आये ब्रह्मर्षियों ने दिखा दिया। भारतीय राजनीति में श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना की बैठक उनकी सोच को धक्का दे गई। अब भूमिहारों को दरकिनार कर कोई सत्ता तक नहीं पहुँच सकता, यह प्रतिकात्मक सन्देश के लिए ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन को याद किया जाएगा।
डॉ. संजीव कुमार आगे बढ़ते हुए कहते हैं कि जो हमें नकारेगा वो राजनीति से ही नकार दिया जाएगा। हम किसी जाति समाज का हक नहीं मारते, बल्कि मदद करते आयें हैं ! पर अपने ब्रह्मर्षि समाज का हक मारने भी नहीं दूंगा ! चाहे मेरी जान क्यों न चली जाए!
मुजफ्फरपुर से आये हुए अमर पाण्डेय कहते हैं कि आज श्रीकृष्ण मेमोरीयल हाॅल, पटना में सभा को सम्बोधित करने का मौका मिला ! आज की इस आयोजित ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन के आयोजनकर्ता माननीय डा.संजीव कुमार, परबत्ता विधायक का मैं तहे दिल से धन्यवाद और आभार व्यक्त करता हूं ज़िन्होने इस तरह का आयोजन करने का सुकार्य किया है ! इसमें भूमिहार ब्राह्मण समाज की कुछ मांगों को केंद्रिय व राज्य सरकार से रखा गया हैं, जिसपर सरकार अनदेखी करती रही है ! हमसब ब्रह्मर्षि भुमिहार ब्राह्मण समाज मांगों को सरकार द्वारा स्वीकार नहीं करने पर आंदोलन भी करने को मजबूर होंगे ! हम लड़ना भी जानते है और मदद करना भी जानते है !
हमलोग अपनी हकमारी नहीं होने देंगें नहीं किसी जाति की हकमारी करेंगे !
सरकार हमारे साथ चाल खेला रहा है कि पहले 15 बीघा से ज्यादा किसी के नामित जमीन नहीं रहेगा, ऐसा नियम को लाया गया ! अब सरकारों का सोच है की 02 बीघा का नियम लाने का प्रयास है ताकि भूमिहार ब्राह्मण की जमीने छीन ली जाये ! हमलोग ऐसा नहीं होने देंगें ! कुछ माँगे मेरे द्वारा" ब्रह्मर्षि राष्ट्र महासंघ " के बैनर तले रखी गई है। जो भूमिहार समाज का शेर – डॉ. संजीव कुमार एक मात्र लाडला एक मात्र सच्चा सपूत के द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है।
अमर पाण्डेय आगे कहते हैं कि डॉ. संजीव कुमार एक मात्र लाडला एक मात्र सच्चा सपूत जो हर पल समाज के लिए जीता है, जो हर आवाज़ पर सबसे पहले खड़ा होता है, वो है – डॉ. संजीव कुमार। आज कि राजनीति में भूमिहार का एकलौता बेटा, जो पूरे समाज का सच्चा रखवाला है। जब भी भूमिहार समाज की बात आती है, जब भी कोई संकट या आवश्यकता होती है, एक नाम सबसे पहले दिल और ज़ुबान पर आता है — डॉ. संजीव कुमार। वहीं आगे कहते हैं कि डॉ. संजीव कुमार न केवल एक होनहार डॉक्टर हैं, बल्कि वे भूमिहार समाज के लिए समर्पित योद्धा भी हैं। समाज की सेवा, युवाओं का मार्गदर्शन, बुज़ुर्गों का सम्मान और हर एक वर्ग की चिंता – यह सब उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है।
भूमिहार समाज का एकलौता ऐसा बेटा जो दिन-रात समाज के उत्थान के लिए लगा रहता है, जो हर कार्यक्रम, हर समस्या में सबसे आगे रहता है। उनका सपना है – एक शिक्षित, संगठित और स्वाभिमानी भूमिहार समाज। हम सबको गर्व है कि हमारे समाज में डॉ. संजीव कुमार जैसे कर्मठ, विद्वान और सच्चे नेता हैं।
डॉ. संजीव कुमार अपने वक्तव्य में कहते हैं कि मैं जदयू में हूं और यहीं रहकर अपनी बात रखता रहूंगा। वहीं पार्टी के कई बड़े नेता ने यह फोन और विभिन्न माध्यमों से संदेश भेजा कि आप ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन नहीं करें। लेकिन डॉक्टर संजीव कुमार, विधायक, परबत्ता खगड़िया ने कहा कि - जी बोले। वहीं कहा कि पार्टी के कई नेता अपना - अपना जाति का सम्मेलन किए तो किसी को कोई समस्या नहीं हुआ। हम अपना जाति का सम्मेलन कर रहे है तो पार्टी में बैठे कई लोगो को दर्द क्यों शुरू हो गया? इन्होंने बोला अब रैली नहीं रैला होगा और आज आप सभी कि उपस्थिति ने सभी को जबाब दे दिया है ।
आगे बताते हैं कि बस इतना ही बात है कि उसके बाद EOU का नोटिस सरकार ने भेजा हैं। एक बात सरकार जान ले सरकार जितना डरायेगी उतना यह भूमिहार शेर मजबूती से समाज के लिए लड़ेगा। नोटिस का जबाब देने का और सरकार के तारीख का इंतजार किए बगैर अगले दिन ही जबाब दे दिया और जैसे जबाव दिया सबकी बोलती बंद हो गई।
डॉ. संजीव कुमार कहते हैं कि - बाभन शब्द से हमारा एक बहुत पुराना और मजबूत इतिहास रहा है। ऐसे में भूमिहार ब्राह्मण की जगह भूमिहार बाभन उच्चारित करना ज्यादा अच्छा है। चुकी देहात में भी बाभन ही कहा जाता है। हमलोग को कुछ पूर्वांचल साइड थोड़ा अलग वातावरण है लेकिन बिहार के बाभन भूमिहार ही हैं, अब इतिहास को बचाते बचाते नाम तक भी नहीं बच रहा है। हमें आने वाले पीढ़ी को सावधान करना चाहिए कि भूमिहार तो नया शब्द है उससे पहले तो हम सब बाभन ही कहे जाते थे। आज के डेट में हमें इस परंपरा को बचाए रखना चाहिए।
17 अगस्त 2025 की प्रमुख मांगे
1. डॉ श्री कृष्ण सिंह (श्री बाबू को भारत रत्न क्यों नहीं ? जब बिहार सरकार के कहने पर श्री कर्पूरी ठाकुर को दिया जा सकता है तो श्री बाबू को क्यों नहीं ?
2. EWS स्टूडेंट्स के लिए, वो व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती है जो OBC स्टूडेंट्स के लिए है ? जैसे उम्र सीमा में छूट, फॉर्म भरने के पैसे में डिस्काउंट, इत्यादि,
3. आप हर जिले में एससी एसटी ओबीसी में छात्रावास की घोषणा कर रहे हैं, तो EWS के स्टूडेंट्स के लिए क्यों नहीं ?
4. एक बहुत आवश्यक विषय- जाति हमारी रही भूमिहार ब्राह्मण या बाभन, अब आपने बना दिया भूमिहार, इसकी लड़ाई अंग्रेज़ों से भी लड़ी गई थी उनके समय में, हमारे जितने पुराने दस्तावेज हैं, अंग्रेज़ ज़माने के, या आज़ादी के समय के खेत खलिहान ज़मीन के, उसको देखिए उसमे हमारी जाती लिखी गई है भूमिहार ब्राह्मण या कहीं कहीं। बाभन, अब आपने कास्ट सर्वे किया उसमे हमे लिखा भूमिहार, अब आप लैंड सर्वे कर रहे है, जहाँ जहाँ पुराने दस्तावेज की आवश्यकता होगी वहाँ यदि हम अपने पुराने दस्तावेज दिखायेंगे, तो सरकार को कहने में देर नहीं लगेगी, या जहाँ हमारी संख्या बल कम है वहाँ सर्वेयर कह देंगे ये काग़ज़ तो आपके हैं नहीं, इसलिए हमे भूमिहार ब्राह्मण की श्रेणी में हो रहने दें। ( आप सभी को बता दूँ की इस पर कोर्ट में भी लड़ाई लड़ी जा रही है )
5. हमारे पूर्वजों ने जो ज़मीने दान दी है, जिसपर कॉलेज और स्कूल आपने जयप्रकाश नारायण या कर्पूरो ठाकुर या किसी अन्य के नाम पर कर रखे हैं, या जहाँ नाम नहीं हैं, वैसे जगह में हमारे पूर्वजों का नाम आना चाहिए, जैसे अभी बेतिया राज की ज़मीन पर आप मेडिकल कॉलेज बना रहे है तो उसका नाम महारानी जानकी कुँवर के नाम पर रखिए, ज़मीने हमारी, और इतिहास से हम ही गायब ??
6. हर ज़िले में एक लाइब्रेरी की व्यवस्था बच्चों के लिए करवाई जाय जिसका नाम रामधारी सिंह दिनकर लाइब्रेरी रखी जाय !
डॉ. संजीव कुमार ने उपरोक्त सभी विषयों पर गंभीरता से चर्चा कि और लोगों के बीच रखा। उन्होंने कहा कि यही कुछ मुद्दे है, ग़ैर राजनैतिक हैं लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से आवश्यक है ! ये और कुछ अन्य मुद्दे जो समाज से उभर कर आयेंगे, वो सरकार में कानों तक पहुंचानी हैं !
17 अगस्त 2025 के ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन के महत्वपूर्ण सहयोगी रहे हैं। जिसमें अंकित चंद्रयान का सराहनीय प्रयास रहा और हर एक से बढ़कर आगे संवाद कर आमंत्रित किया। वह कहते हैं कि - हम भूमिहार के लिए ही बने है। हमको राजनीति समझ में ही नहीं आता।हमको बस एक ही बात समझ में आता है वह अपना भूमिहार समाज।
कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस समझ रही है या उसे मलाल है कि मोदी "वोट चोरी" करके प्रधानमंत्री बन गये हैं
सरजी,15 अगस्त को 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिल्ली के लालकिला से प्रधानमंत्री मोदीजी ने तिरंगा फहराया। ये राष्ट्रीय कार्यक्रम था लेकिन इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में लोकसभा के विपक्ष के नेता राहुल गांधी,कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी या सांसद प्रियंका वाड्रा आदि नहीं दिखाई दिये। ये तो राष्ट्रीय कार्यक्रम था जिसमें उपस्थित रहना इन लोगों का राष्ट्रीय नैतिक दायित्व था लेकिन कोई दिखाई क्यों नहीं दिया! कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस समझ रही है या उसे मलाल है कि मोदी "वोट चोरी" करके प्रधानमंत्री बन गये हैं,नहीं तो शासन कांग्रेस का होता और लालकिले से 15 अगस्त का ध्वजारोहण, राहुल गांधी स्वयं कर रहे होते!!--बैठकी जमते हीं मास्टर साहब मुस्कुराते हुए।
मास्टर साहब, मुगलिया सल्तनत बाबर के वारिस,उर्फ भारत का शाही नेहरू परिवार, जिसे सिर्फ शासन करने की,अपनी सुनाने की आदत पड़ गई हो उसे एक चाय वाले ने सिंघासन से 11 बर्षों से दूर कर रखा है और उसके प्रधानमंत्री बन जाने से तथा जो कभी उनकी प्रजा रहें हों,उन्हें भारत का शासक,क्यों मान लें! उसके नेतृत्व में श्रोता और दर्शक क्यों बनें! ये तो तथाकथित गांधी परिवार की सरासर तौहीनी सिद्ध होगी न!! वो भी तब जब राहुल के शब्दों में,वैसा प्रधानमंत्री जो, वोट चोरी करके बना हो!!--उमाकाका भी मुस्कुराते हुए।
हां काकाजी,इधर चुनाव आयोग द्वारा बिहार में वोटर पुनरीक्षण कार्यक्रम के मद्देनजर सभी विपक्षियों को आपने कोर वोटर , "घुसपैठियों" की छंटनी का डर समा गया है।इसी क्रम में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और भाजपा पर, कर्णाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में फर्जी वोटरों की बढ़ौतरी को लेकर,"वोट चोरी" का आरोप लगाया है। जब चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया और उनसे शपथपत्र के साथ प्रमाण देने की बात कही तो ऐसा नहीं कर रहे क्यों!!लेकिन आज भी अपनी बात पर अड़े हैं और उड़ा रहे हैं कि विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा "वोट चोरी" नहीं करती तो कांग्रेस को 25 लोकसभा सीटों का और फायदा होता जिससे सरकार, कांग्रेस की बनती।पुरे देश में इंडी गठबंधन,चुनाव आयोग के वोटर पुनरीक्षण कार्यक्रम का विरोध कर रही है।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए। इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में........
कुंवर जी, वोट चोरी की शुरुआत हीं मोहन दास करमचंद गांधी और नेहरू ने की थी। भुल गये क्या! देश विभाजन के बाद कौन प्रभारी प्रधानमंत्री बनेगा! इसके लिए उस समय के प्रदेश कांग्रेस कमिटी के 15 सदस्यों को वोट देना था। सरदार वल्लभ भाई पटेल को 15 में 12 वोट मिले और कृपलानी को 2 वोट, एक ने वोटिंग में भाग नहीं लिया। 12 वोट लेकर जीते पटेल जी, लेकिन गांधी और नेहरू ने वोट चोरी कर ली और नेहरू प्रधानमंत्री बन गये। जब छद्म हिन्दू को हीं विभाजित भारत की बागडोर सौंप कर "ग़ज़व ए हिन्द" करने का प्लान था तो देश का विभाजन हीं क्यों हुआ फिर प्रभारी प्रधानमंत्री के लिए,चुनाव हीं क्यों करवाया गया!!--सुरेंद्र भाई ने याद दिलाया।
भाईजी, कांग्रेस तो देश के प्रथम लोकसभा चुनाव में हीं वोट चोरी की मिशाल कायम कर दी थी।--डा. पिंटू बोल पड़े। उ कईसे ए डाक्टर साहब!!--मुखियाजी डा. साहब से।
मुखियाजी,1952 के चुनाव में अंबेडकर साहब के विरुद्ध कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी मिलकर धोखाधड़ी करके, मात्र 14 हजार 5 सौ 61 वोटों से हराया था जिसमें 74336 वोटों को रद्द करवा दिया गया था,जो वोट अंबेडकर साहब के पक्ष के थे।भला बताइये! "वोट चोरी" की इससे बड़ी शाजिस कहीं देखा जा सकता है क्या!! भारत के चुनाव में,पहली चुनावी याचिका भी अंबेडकर साहब ने डाली थी लेकिन उस समय,आयोग से लेकर कोर्ट तक तो कांग्रेस की हीं चलती थी न!!--डा. साहब मुंह बनाये।
जानते हैं! कांग्रेस किस तरह की चुनावी घपला करती थी उसका उदाहरण सोनिया गांधी है। पहली बार जनवरी 1980 में सोनिया गांधी का नाम,भारत के वोटर लिस्ट में दर्ज हुआ था लेकिन उस समय वो भारत की नागरिक हीं नहीं थी। बवाल होने पर नाम हटाया गया। फिर 1 जनवरी 1983 में नई दिल्ली का वोटर लिस्ट रिवाइज हुई।उस लिस्ट में बुथ नंबर -140 और क्रम संख्या 236 में पुनः सोनिया गांधी का नाम शामिल किया गया।उस समय भी वो इटली की नागरिक थीं। दो-दो बार नागरिकता की शर्तों का उलंघन करके सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट में जोड़ा गया जबकि विवाह के 15 साल बाद 30 अप्रैल 1983 को, सोनिया गांधी को भारत की नागरिकता मिली। इसको क्या कहियेगा!!--सुरेंद्र भाई हाथ चमकाये।
भाईजी, राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर बम फोड़ना उन्हीं पर भारी पड़ गया है।--डा.पिंटू बोल पड़े।
उ कईसे डा. साहब!!--मुखियाजी खैनी ठोकते हुए।
भाजपा ने डेटा सामने ला दिया है जिससे राहुल और विपक्षियों की बोलती बंद हो गई है। इसके अनुसार रायबरेली जहां से राहुल गांधी सांसद हैं,2 लाख 89 हजार वोटर संदिग्ध हैं। इसमें 19512 वोटर डुप्लीकेट हैं,71977 वोटरों के पत्ते फर्जी हैं, और 92747 वोटर एक साथ जोड़े गये हैं।इसी तरह वायनाड जहां से प्रियंका वाड्रा सांसद हैं,93499 वोटर संदिग्ध हैं। कन्नौज जहां से अखिलेश यादव सांसद हैं,291798 वोटर संदिग्ध हैं। मैनपुरी जहां से डिंपल यादव सांसद हैं,255214 वोटर संदिग्ध हैं। पश्चिम बंगाल का डायमंड हार्बर संसदीय सीट जहां से ममता बनर्जी के भतीजे, अभिषेक बनर्जी सांसद हैं,259779 वोटर संदिग्ध हैं। तो ऐसी स्थिति में ये विपक्षी कौन सा मुंह लेकर मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर उंगली उठा रहे हैं। अरे,इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिये हीं तो चुनाव आयोग वोटर पुनर्निरीक्षण का कार्यक्रम चला रही है!! फिर आपत्ति करने का क्या मकसद है!!--मैं भी बहस में भाग लेते हुए।
ए भाई, मोदीजी,अपना भाषण में आरएसएस के सौ बरीस पुरा होंखे के उपलक्ष्य में,आरएसएस के राष्ट्र के प्रति योगदान के भी चर्चा कईले हा।--मुखियाजी बहस में भाग लेते हुए।
लेकिन ये बात कांग्रेस और अखिलेश को पची नहीं न! इस बात को लेकर विपक्षियों की आरएसएस विरोध और मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति,सामने आ हीं गयी न!!--कुंवरजी अखबार रखते हुए।
कुंवर जी, एक बात समझने की है कि कांग्रेस या विपक्षी पार्टियां, हमेशा राष्ट्रवाद को लेकर चलने वाली संस्था,"आरएसएस" के विरुद्ध और उसे समाप्त करने का हीं संकल्प क्यों व्यक्त करतीं हैं!! पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, रोहिंग्या, घुसपैठियों या भारत के संसाधनों का दोहन कर रहे लाखों पाकिस्तानी बहुयें और उनके दस-दस बच्चों आदि को लेकर कुछ क्यों नहीं बोलते। इनके मुंह में दही क्यों जम जाती है!!--डा.पिंटू बुरा सा मुंह बनाये।
मुखियाजी,अब तो सारा देश जान गया है कि चुनाव आयोग के बिहार में वोटर पुनरीक्षण का विपक्षियों द्वारा विरोध करने के पिछे उनका अपने कोर वोटरों को बचाना है,जो मुस्लिम घुसपैठियें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।
काकाजी, हमने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा है कि ये अमरीका, डीप स्टेट और यूरोपीय संघ अपने कठपुतलियों को किसी राष्ट्र की सत्ता पर बैठाने के लिए "वोट चोरी" जैसे इल्जाम, हथियार के रूप में प्रयोग करती रही है जैसे --- जाॅर्जिया(2003) में "वोट चोरी" के आरोपों के कारण रोज क्रांति हुई और अमरीका समर्पित सरकार सत्ता में आ गई। इसी तरह यूक्रेन(2014) में "वोट चोरी" के आरोपों के कारण यानुकोविच की सत्ता चली गई और अमरीका समर्थक जोकर जेलेंस्की सत्ता में आ गया। किर्गिस्तान (2005) में भी "वोट चोरी" के आरोपों के कारण अकायेव को हटाया गया और अमरीका समर्थक सरकार बनी। आइये, बंगलादेश को लिजिये,"वोट चोरी" के आरोपों के कारण शेख हसीना के सरकार को हटाया गया और अमरीका का तलवा चाटने वाली सरकार आ गई। लगभग यही स्थिति इमरान खान को हटाने के संदर्भ में,पाकिस्तान की भी समझिये। मुखियाजी, मुझे शक है कि भारत में भी "वोट चोरी" के आरोपों को मोदी सरकार के विरुद्ध, कांग्रेस अर्थात डीप स्टेट के एजेंटों द्वारा फैलाया जा रहा है। हिंसकता भी फैलाई जा सकती है। आज के डेट में अमरीका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर बने गंभीर संबंधों और अमरीका की पाकिस्तान परस्ती से भी अनुमान लगाया जा सकता है।--कुंवरजी ने आशंका प्रगट की।
मुखियाजी, देश में परिवारवादी पार्टियां झूठ बोलकर देश में अराजकता फैलाना चाहतीं हैं और यदि उस पार्टी में कोई सच कहें तो उसकी खैर नहीं!--सुरेंद्र भाई बोले।
भाईजी, बात त सौ टके के बोलनी हा बाकि केवना बात प,उहो कहीं।--मुखियाजी पुछ दिये।
कर्णाटक में वोटर लिस्ट को लेकर जब राहुल गांधी चुनाव आयोग पर बम फोड़ते हुए लोकसभा चुनाव में धांधली को लेकर,बैंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट का मुद्दा उठाया, तब उन्हीं की पार्टी के कर्नाटक सरकार के मंत्री,के एन राजन्ना ने कह दिया कि राहुल गांधी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था क्योंकि जब वोटर लिस्ट बनी थी तो उस समय कांग्रेस की हीं सरकार थी।उस समय किसी ने यह बात क्यों नहीं कही!! फिर क्या था,
मंत्री राजन्ना जी को ये सत्य कहना भारी पड़ा और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। दुसरी घटना यूपी से है।
अखिलेश यादव की पार्टी सपा की विधायक पूजा पाल ने (जिनके पति की हत्या अतीक अहमद ने करवाया था।)सदन में मुख्यमंत्री योगीजी के अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति की तारीफ क्या की,सपा नेतृत्व नाराज होकर पूजा पाल को पार्टी से हीं निष्कासित कर दिया। ये है परिवारवादी पार्टियों की तानाशाही। पार्टी नेतृत्व झूठ पर झूठ बोले,वो ठीक है लेकिन पार्टी के दुसरे, सत्य कह दे तो खैर नहीं।--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।
छोड़िये , लालकिले से अपने भाषण के दौरान मोदीजी ने घुसपैठियों और बाहरी ताकतों के संदर्भ में भी आगाह किया था। इतना तो सत्य है कि आज भारत ऐसे हाथों में है जहां भीतरी या बाहरी दुश्मन,लाख षड्यंत्र करें,सबकी काट मोदीजी के पास है। इसी लिये न लोग कहते हैं कि "मोदी है तो मुमकिन है"। फिर भी हम भारतवासी को सावधान रहना जरूरी है क्योंकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।अच्छा अब चला जाय।--कहकर मास्टर साहब उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.......!!!!!
प्रधानमंत्री कार्यालय जो काम अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में नहीं कर सका उसे उसने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में करके दिखा दिया है और अपने उद्बोधन में जिस संस्था का नाम अटल बिहारी वाजपेयी अपने प्रधानमंत्री रहते नहीं ले सके उस संस्था का नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने आजादी की 78वीं वर्षगांठ पर देश को संबोधित करते हुए लाल किले की प्राचीर से लेकर न केवल आजादी के जश्न को दागदार किया बल्कि आजादी के सेनानियों की शहादत को भी शर्मसार कर दिया। देश को आजाद कराने के लिए जिन भारतवासियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम कर अपने ही हाथों अपने गले में पहन लिया और वंदेमातरम कहते हुए शहीद हो गए निश्चित रूप से उनकी मृत आत्माओं को असीम वेदना सहनी पड़ी होगी जब उन्होंने पीएम मोदी के मुंह से एक ऐसी संस्था का नाम सुना होगा जिसके बारे में आजादी के पन्ने कोरे हैं। इतना ही नहीं मोदी सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने तो सारी सीमाओं को लांघते हुए एक ऐसा विज्ञापन प्रकाशित कर दिया जिसने देश के सिर को गर्दन के भीतर ही घुसेड़ कर रख दिया। प्रधानमंत्री का 103 मिनट का ऊबाऊ भाषण तैयार करने वाले पीएमओ कार्यालय ने प्रधानमंत्री के हाथों में वे सारे दस्तावेज पकड़ा दिये जिसका जिक्र प्रधानमंत्री बीते 100 दिनों से अलग अलग मौकों पर करते रहे हैं। बीते 100 दिनों के भीतर प्रधानमंत्री ने देश भर में की गई तकरीबन 7 रैलियों में, 4 बार सेनाओं के बीच में जाकर और बंद कमरों में होने वाली लगभग दो दर्जन बैठकों में जिस बात को कहा है वहीं बाते एक बार फिर से समेट कर प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से 103 मिनट में देश के सामने रखीं हैं।
प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर देने वाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद का नाम नहीं लिया, प्रधानमंत्री को न तो महात्मा गांधी की याद आई न ही उस दौर के किसी नेता की उन्हें याद आई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की जिसका आजादी के इतिहास में शायद ही कहीं संघर्ष करते हुए जिक्र होगा और अगर होगा भी तो फिरंगियों की मुखबिरी करते हुए या माफीनामा लिखते हुए। दस्तावेज तो यही कहते हैं कि उस दौर में आरएसएस सावरकर की राह पर चल रही थी और सावरकर भी मोहम्मद अली जिन्ना की तरह टू नेशन थ्योरी के पक्षधर थे यानी एक मुसलमानों का देश चाहता था तो दूसरा हिन्दुओं का जबकि महात्मा गांधी और उस दौर के दूसरे सभी बड़े नेता टू नेशन थ्योरी के खिलाफ थे उनकी सोच हिन्दू - मुस्लिम से हटकर हिन्दुस्तान की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में आरएसएस का जिक्र करके जहां आजादी के शहीदों के परिवारों की दुखती रग पर नमक छिड़क दिया है तो दूसरी तरफ़ इस सवाल को भी जन्म दे दिया है कि क्या वे संघ का नाम लेकर संघ से मर्सी अपील कर रहे हैं 17 सितम्बर के आगे के लिए या फिर ये मोदी का लालकिले की प्राचीर से बतौर प्रधानमंत्री अंतिम और विदाई भाषण है?
प्रधानमंत्री कार्यालय के भाषण लिखितकर्ता ने पूरे भाषण को ही हंसी का पात्र बना डाला है, लगता है उसने किसी खुन्नस का बदला लिया तभी तो उसने प्रधानमंत्री से झूठ पर झूठ कहलवा दिया है ! आरएसएस में स्वयंसेवकों के रूप में युवाओं की कतार, राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में युवाओं की कतार, रोजगार के लिए संघर्ष करते युवाओं की कतार जिनमें खासकर 19 से 29 साल आयु वर्ग के युवाओं की भरमार खुलकर नजर आती है। प्रधानमंत्री ने लालकिले पर खड़े होकर जिन बातों का जिक्र किया है वो हैरान करने वाली हैं मसलन विकसित भारत, आत्म निर्भर भारत, वोकल फार लोकल, आदि इनकी चर्चा प्रधानमंत्री तकरीबन 112 बार कर चुके हैं लेकिन उनकी किसी भी बात को देश गंभीरता से नहीं ले रहा है, आखिर क्यों ? प्रधानमंत्री की अमेरिका से हो रही बातचीत चीन तक पहुंच जाती है। देश की जिस इकोनॉमी को फोकस करते हुए प्रधानमंत्री विकसित भारत का सपना परोसने से नहीं चूकते। जिस 4 ट्रिलियन डालर वाली इकोनॉमी को लेकर सरकार छाती फुलाये घूमती है उसकी हकीकत यह है कि अगर इसमें से देश के अंबानी - अडानी, टाप पर बैठे कार्पोरेटस और इंडस्ट्रियलिस्ट की पूंजी को निकाल दिया जाय तो भारत की प्रतिव्यक्ति आय दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में खड़ी हो जाती है। प्रधानमंत्री देश के किसानों, मछुआरों और पशुपालकों पर दरियादिली दिखाने वाली बातें इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर किसान, मछुआरे, पशुपालक रूठ गया तो बीजेपी को मिलने वाला 23 करोड़ वोट सिर्फ और सिर्फ 3 करोड़ पर सिमट जायेगा। जबकि यह भी देश का डरावना सच है कि किसानों की हालत यह है कि उन्हें फर्टिलाइजर्स खाद के लिए तीन दिनों तक दिन रात खड़ा रहना पड़ता है तब भी खाद नहीं मिल पाती है। कल्पना कीजिए अगर चीन फर्टिलाइजर पर रोक लगा दे तो भारत के किसानों के हालात कैसे होंगे? यानी भारत अपने बूते किसानों को फर्टिलाइजर खाद तक मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है।
प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में जो बातें कही हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि भारत को विकसित होने की जरूरत ही नहीं है वह तो आलरेडी विकसित हो चुका है। तीन करोड़ लखपती दीदी, भरपूर आय के साथ जीने वाले 9 करोड़ किसान, 3.5 करोड़ युवाओं की व्यवस्था प्रधानमंत्री ने कर ही दी है, 3 करोड़ से ज्यादा बुजुर्गो और दिव्ययांगों को मुद्रा योजना के साथ जोडते हुए तकरीबन 60 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री सबकुछ दे चुके हैं। जो बचते हैं उनमें से 18 साल से कम उम्र के बच्चों को माइनस कर दिया जाय तो हथेली में समा जाने लायक चंद करोड़ लोग ही तो बचते हैं। मगर हकीकत इसके उलट है। एक ओर उत्पादन के क्षेत्र में भारत सबसे नीचे के पायदान पर खड़ा होता है, मैन्यूफैक्चरिंग में उसका अपना विकास रेट निगेटिव में है इसके बाद भी भारत का कार्पोरेट दुनिया में सबसे रईसों की कतार में खड़ा हो गया है, वर्ल्ड बैंक तथा एमआईएफ ने लाखों लोगों को गरीबी रेखा से निकाल दिया है फिर भी प्रधानमंत्री बीते 10 सालों से लेकर अभी भी आत्मनिर्भरता का जिक्र कर रहे हैं। हकीकत भी यही है कि प्रधानमंत्री ने बीते 10 सालों में केवल और केवल सपने ही परोसे हैं। इसीलिए आज भी भारत को अपने ही भीतर भूख के खिलाफ, गरीबी के खिलाफ, बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस बात को लेकर प्रधानमंत्री के माथे पर भी शिकन दिखाई दे रही है। एक ओर अमेरिका रूठा हुआ है तो दूसरी ओर चीन से गलबहियाँ होने लगी है, रशिया से भी कई क्षेत्रों में निकटता दिख रही है। रशिया के राष्ट्रपति पुतिन निकट भविष्य में भारत आने वाले हैं। चीन के विदेश मंत्री भी भारत आयेंगे। भारत के प्रधानमंत्री इसी महीने के अंत में चीन जाने वाले हैं। विदेश मंत्री भी हफ्ते भर बाद रशिया जायेंगे। नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर चीन और रशिया घूम कर लौट आये हैं। रक्षा मंत्री भी तमाम जगह की तफरी कर चुके हैं।
देश के कार्पोरेट की पूंजी वेस्टर्न कंट्रीज और अमेरिका के रास्ते ही गुजरती है। बीते 7 वर्षों में एक्सपोर्ट घटकर कार्पोरेट और बड़े इंडस्ट्रलीज के हिस्से में आकर खड़ा हो गया है। यहां तक कि दुनिया के बाजार में बेचे जाने वाला बासमती चावल भी कार्पोरेट के जरिए बेचा जा रहा है। मतलब दुनिया में टेरिफ वार का असर जनता पर नहीं कार्पोरेट पर पड़ रहा है। चूंकि सरकार को पता है कि कार्पोरेट के लिए मुनाफा कितना जरूरी है तो उसके लिए नये रास्ते बनाने पड़ेंगे। लालकिले से प्रधानमंत्री कहिन कि "भारत के किसान, भारत के मछुआरे, भारत के पशुपालक उनसे जुड़ी किसी भी अहितकारी नीति के आगे मोदी दीवार बनके खड़ा है"। दरअसल इस सबके पीछे कार्पोरेट का जो मुनाफा संकट में है वह खड़ा है तभी तो प्रधानमंत्री भारत की नीति से हटकर चाइना के साथ यह कहते हुए खड़े हो रहे हैं कि यह हमारी जरूरत है और हमारी जरूरत उस कार्पोरेटस को मुनाफा देने के लिए है जो सिर्फ और सिर्फ 15 लाख रोजगार दे पाता है और इसमें टाप हंड्रेड कार्पोरेटस शामिल हैं। जितना पैसा देश के 99 फीसदी लोगों के पास है उससे ज्यादा पैसा देश के 200 बड़े कार्पोरेटस के पास है। सरकार ने पब्लिक सेक्टर और जिम्मेदारी लेने से मुंह मोड़ लिया है। जिसका असर यह हुआ है कि रोजगार गायब हो गया है और प्रधानमंत्री लालकिले पर खड़े होकर प्रचार कर रहे हैं एमएसएमई का, स्टार्टअप का, स्किल इंडिया का।
पार्लियामेंट में पेश की जाने वाली मंत्री और संसदीय समितियों की रिपोर्ट्स को खंगाला जाय तो पैरों तले जमीन खिसकने लगती है तभी लगता है कि प्रधानमंत्री का भाषण कौन तैयार करता है ? क्या उन्हें पता नहीं है कि लाखों स्टार्टअप क्यों बंद हो गये हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि बैंक लोन देने से कतराने लगे हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि देश के भीतर करोड़ों की तादाद में एमएसएमई बंद हो गये हैं ? आज का दौर टेरिफ वार और इकोनॉमिकली वार का है। जिसका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि "आज की परिस्थितियों में आर्थिक स्वार्थ दिनों-दिन बढ़ रहा है तब समय की मांग है कि हम उन संकटों का हिम्मत के साथ मुकाबला करें" । इस हकीकत को भी समझना जरूरी है कि भारत एग्रीकल्चर के जरिए ही देश को खिला भी रहा है और कमा भी रहा है। शायद इसीलिए मोदी सरकार ने तीन काले कृषि कानून लाकर सब कुछ कार्पोरेटस के हाथों सौंप देने की चाल चली थी। बरसात और सूखे से बर्बाद होती फसलों का जिम्मा लेने से सरकारें हमेशा भागती रहती हैं। बर्बाद फसलों की जिम्मेदारी बीमा कंपनियों को सौंप दी जाती है। हाल में ही वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि बीमा क्षेत्र में शतप्रतिशत भागीदारी विदेशी कंपनियों के लिए खोली जा रही है। फसल बीमा की हकीकत यह है कि किसान के हाथ में 22 परसेंट पैसा आता है और बीमा कंपनी 78 फीसदी पैसा कमाती है।
प्रधानमंत्री अपने भाषण में आपरेशन सिंदूर का भी जिक्र करने से नहीं चूके। उन्होंने पाकिस्तान का भी खुलकर जिक्र किया। भारत डिफेंस के क्षेत्र में भी कमाल करने वाला है यह कहते हुए उम्मीद और आस जगाने की कोशिश की, मगर उन्होंने इस सच को देश से नहीं बताया कि डिफेंस के क्षेत्र में अंबानी और अडानी के अलावा सवा सैकड़ा से ज्यादा प्राइवेट सेक्टर की घुसपैठ हो चुकी है और कमाई भी दूसरे क्षेत्रों की तुलना में लगभग 72 परसेंट से ज्यादा हो गयी है। आपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री इस हकीकत को बयान करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही खुद को भी कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूके "मेरे प्यारे देशवासियों मैं आज देश के सामने एक चिंता - एक चुनौती के संबंध में आगाह करना चाहता हूं। षड्यंत्र के तहत, सोची-समझी साजिश के तहत देश की डेमोग्राफी को बदला जा रहा है। एक नये संकट के बीज बोये जा रहे हैं। घुसपैठिए मेरे देश की बहन-बेटियों को निशाना बना रहे हैं। ये घुसपैठिए भोले-भाले आदिवासियों को भ्रमित करके उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। ये देश सहन नहीं करेगा। मोदी ये भूल गए कि बीते 11 सालों से वे ही देश के प्रधानमंत्री हैं और उनके ही कार्यकाल में देश में पुलवामा और पहलगाम जैसी असहनीय घटनाएं घटी हैं। जबकि सेना, बीएसएफ, पैरामिलिट्री फोर्स, पुलिस सब कुछ तो उनके ही अधीन है। तो फिर घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है मगर आपने और आपकी सरकार ने कभी भी कोई जवाबदेही ली ही नहीं है। अगर ली होती तो ना आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते ना आपके मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह। अभी भी समय है जब आपने लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए यह स्वीकार कर ही लिया है कि देश के भीतर घुसपैठिए आ रहे हैं यानी आप और आपकी सरकार घुसपैठियों को रोकने में सक्षम नहीं है तो भाषणबाजी छोड़कर जबावदेही लेते हुए आप तत्काल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्यों नहीं दे देते हैं ? अगर इतना साहस नहीं है तो क्या इतना साहस है कि राजनाथ सिंह और अमित शाह का इस्तीफा ले सकेंगे या बर्खास्त कर सकेंगे ? आपके भाषण के इस हिस्से को सुनकर आपके द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव में दिये गये भाषणों के वे अंश देश के जहन में तरोताजा होकर आ गये "मंगलसूत्र छीन लेंगे, भैंस खोलकर ले जायेंगे, सम्पत्ति छीनकर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों में बांट देंगे"। मजेदार बात यह है कि जब प्रधानमंत्री घुसपैठ का जिक्र कर रहे थे तब गृहमंत्री अमित शाह ताली बजा रहे थे।
अब आप अमेरिका के साथ डिफेंस डील नहीं कर रहे हैं क्योंकि आपने रास्ता बदल लिया है। अब आप रशिया के ऊपर निर्भर हैं। चीन के ऊपर आप निर्भर होने जा रहे हैं। इस दौर में ईरान के साथ भी आपकी निकटता सामने आने लगी है। इजराइल को लेकर आपने खामोशी बरत ली है। फिलिस्तीन की आवाज आपके जहन से निकलने लगी है। शायद अब आपको समझ में आने लगा होगा कि पारंपारिक परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष का मतलब होता क्या है ? क्यों नेहरू ने भारत को गुटनिरपेक्ष खड़ा कर कहा था कि हम किसी गुट में नहीं रहेंगे। लेकिन आपने तो नेहरू से ऐसी नफरत निबाही कि गुटनिरपेक्ष के मायने ही बदलकर रख दिये। आपने तो अपनी जरूरत का हवाला देकर पाला बदलना ही शुरू कर दिया कुछ इस तरह से जैसी साड़ियां बदली जाती हैं। यही कारण है कि आपकी ये राष्ट्रीय नीति अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को रास नहीं आई और शायद किसी को भी रास नहीं आयेगी।
क्या प्रधानमंत्री दो करोड़ लखपति दीदी की कतार देश में खड़ी कर पायेंगे तथा चुनाव आयोग की तर्ज पर (बिहार में जिन 65 लाख वोटरों के नाम काटे गये हैं) 2 करोड़ लखपति दीदी के नाम बेवसाइट पर डालेंगे ? क्या मोदी सरकार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत जिन 40 करोड़ लोगों को 28 लाख करोड़ रुपये दिये गये हैं उनकी पूरी सूची बेवसाइट डालेगी ? मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2022 में किसानों की आय दुगनी हो जायेगी तो क्या मोदी सरकार उन किसानों पूरी सूची बेवसाइट पर अपलोड करेगी जिनकी आय 2022 से लेकर 15 अगस्त 2025 तक दुगनी हो गई है ? इसके साथ ही क्या यह भी बतायेंगे कि 2016-17 की तुलना में 2024-25 में खेती के सामानों की कीमत में कितना इजाफा हुआ है ? प्रधानमंत्री जिस वोकल फार लोकल का स्वर अलापते हुए कहते हैं कि छोटी आंख वाले गणेश जी मत लेना तो क्या पीएमओ को जानकारी है कि 15 अगस्त 2025 के दिन कितनी संख्या में चीन में निर्मित तिरंगा झंड़े बिके हैं ? देश में जब महात्मा गांधी ने इंग्लैंड में बने कपड़ों के बहिष्कार का आव्हान किया था तब से लेकर अब तक खादी की महत्ता है ? देश में जो कपास किसान हैं उनको लेकर क्या काम किया गया है ? कपास किसानों की हालत क्या है ? खादी कपड़े की दशा और दिशा क्या है ? कहीं अमेरिकी टेरिफ के असर से तमिलनाडु और नार्थ-ईस्ट में बनने वाले कपड़े बनना बंद तो नहीं हो गये ? सूरत के डायमंड इंडस्ट्री की हालत कहीं सबसे बुरी तो नहीं हो गयी है ? प्रधानमंत्री का भाषण जिसने भी तैयार किया है (7 रेसकोर्स जिसे अब 7 लोक कल्याण मार्ग कहा जाता है) क्या उसे पता है कि जिन 6 बड़ी इमारतों को प्रधानमंत्री के घर में तब्दील किया गया है, देश तो छोड़ दीजिए, 100 किलोमीटर के दायरे में जिसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश का इलाका आता है उसकी परिस्थितियां कैसी है ? दिल्ली से गाजियाबाद-मेरठ, फरीदाबाद से नूंह तक किन परिस्थितियों में पहुंचा जाता है ? क्या वो सिर्फ और सिर्फ गुरुग्राम को देखते हैं जहां पर एक लंबी कतार में दुकानें बंद पड़ी हैं ?
मुश्किल तो इस बात की है कि प्रधानमंत्री को उनके निवास से गंतव्य तक पहुंचाने वाला जहाज भी एक लंबी सुरंग से होकर गुजरता है। तो फिर प्रधानमंत्री कैसे देख पायेंगे कि बाहर लोगों के क्या और कैसे हालात हैं ? प्रधानमंत्री इतना तो कर ही सकते हैं - बैंकों से लिस्ट मंगाकर उनको एकबार परख लें कि बैंकों ने कितनों को मुद्रा योजना के तहत लोन दिया है, कितने किसानों को कर्ज दिया है और कितनी बसूली की है। बैंकों ने कितने कार्पोरेटस को कितना - कितना लोन दिया है और सरकार ने उसके एवज में कितना रिटर्न आफ कर दिया है। कुछ मंगाकर देखेंगे भी या फिर यूं ही लच्छेदार भाषण ही देते रहेंगे ? यह अलग मसला है कि इस दौर में चुनाव आयोग कटघरे में खड़ा है जिसका जिक्र आपने लालकिले की प्राचीर से देशवासियों से नहीं किया है। देशवासियों के मन में परसेप्शन बड़ा हो चला है। बीते 11 सालों में घड़ी की सुई को उल्टा घुमाते हुए देश को उन्हीं परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया गया है जो 78 साल पहले थीं लेकिन इन सबसे हटकर प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से भाषण देने में व्यस्त हैं। यही सोच महात्मा गांधी के भीतर भी थी इसलिए आजादी के दिन वो पार्लियामेंट हाउस नहीं पहुंचे थे। नेहरू जब लालकिले की प्राचीर से भाषण दे रहे थे तब महात्मा गांधी बंगाल के नोआखाली में एक अंधेरे कमरे में बैठे हुए थे वहां पहुंचे राजगोपालाचार्य ने बापू से कहा था "रोशनी कर दूं" तो बापू ने कहा "नहीं, अभी अंधेरा कहीं ज्यादा घना है"। 78 साल बीत चुके हैं मगर कोई नहीं जानता कि वे कहां खड़े हैं और देश कहां खड़ा है ?
"बसावन सिंह विचार मंच" की स्थापना, संयोजक मनीष कुमार सिंह, अध्यक्ष रामानंद गुप्ता और सचिव मुकेश कुमार सर्वसम्मति से नियुक्त किए गए।
15 अगस्त 2025 को वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर में निर्मित स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में 25 सालों बाद पहली बार वैशाली जिले के आम लोगों के द्वारा किया गया ध्वजारोहण। वैशाली जिले के समाजिक दायित्वों को लेकर गंभीर रहने वाले एक समूह ने यह निर्णय लिया कि 15 अगस्त 2025 को पहली बार सभी लोगों को सूचित कर ध्वजारोहण किया जाएं। इस कड़ी में जिला परिषद अध्यक्ष से मुलाकात कर एक पत्र देकर सम्मानित अध्यक्ष की सहमति और सहयोग का आश्वासन प्राप्त किया गया। वहीं सोशल मीडिया और व्यक्तिगत रूप से भी लोगों को आमंत्रित किया गया था।
तद पश्चात् स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में प्रथम बार ध्वजारोहण का कार्यक्रम संपन्न किया गया। पिछले 25 वर्षों से बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम हाजीपुर में ध्वजारोहण या झंडोत्तोलन का कार्यक्रम कभी नहीं हुआ। जिसको लेकर जन भावनाओं में यह पीड़ा थी कि स्वतंत्र सेनानियों के नाम से बने इस भवन में सरकारी स्तर पर ध्वजारोहण या झंडोत्तोलन की व्यवस्था होनी चाहिए थी। समाज के गणमान्य लोगों की सोच के कारण कुछ लोगों की सहयोग से पहली बार 2025, 15 अगस्त को ध्वजारोहण की व्यवस्था की गई और सफलतापूर्वक और लोगों के सम्मान के साथ ध्वजारोहण का कार्यक्रम संपन्न किया गया। इस कार्यक्रम में ध्वजारोहण की जिम्मेवारी प्रोफेसर बालेंद्र प्रसाद सिंह जो की सोनपुर कॉलेज के प्राचार्य से सेवानिवृत्ति हैं और मुकेश कुमार जो बसावन सिंह के नाती द्वारा सम्पन्न किया गया।
वहीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्मृति शेष रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्य प्रकाश जी दिल्ली से हाजीपुर आकर बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में लगे बसावन सिंह के मूर्ति पर माल्यार्पण किया। वहीं स्वतंत्रता सेनानीयों को लेकर लोगों के विचारों पर अपनी सहमति सहित क़दम से क़दम मिलाकर बढ़ने का वादा भी किया। ध्वजारोहण के लिए सत्य प्रकाश जी को वैशाली गढ़ पर दशकों से उनके पिता द्वारा ध्वजारोहण और झंडोत्तोलन की जिम्मेवारी को अब निभाने के लिए जाते हुए लगभग एक घंटा का समय देकर उपस्थिति सभी लोगों से बात की और पुष्पांजलि अर्पित कर वैशाली गढ़ प्रस्थान किए।
ध्वजारोहण के उपरांत उपस्थिति लोगों ने अपने संवाद कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानीयों के लिए अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित किया। वहीं सभी का यह विचार आया कि वैशाली जिले के सभी स्वतंत्रता सेनानीयों के सम्मान के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी पार्क का निर्माण होना चाहिए। उस पार्क में वैशाली जिले के तमाम स्वतंत्रता सेनानीयों की मूर्ति और उनका जीवन परिचय सहित अंकित किया जाना चाहिए। इसके लिए "बसावन सिंह विचार मंच" की स्थापना की गई।
बसावन सिंह विचार मंच के संयोजक मनीष कुमार सिंह, अध्यक्ष रामानंद गुप्ता और सचिव मुकेश कुमार (बसावन सिंह के नाती) होंगे। वहीं तीनों लोकों की जिम्मेवारी होगी कि 11 सदस्यों की कमिटी बनाकर भारत सरकार व राज्य सरकार से जमीन और स्वतंत्रता सेनानीयों के लिए पार्क बनाने के लिए फंड स्वीकृति के लिए आवेदन करें। आवेदन भेजने में जिलाधिकारी, वैशाली के माध्यम से सरकारों को सूचित किया जाए ताकि 26 जनवरी 2026 को झंडोत्तोलन के साथ भूमि पूजन और शिलान्यास एक साथ सम्पन्न कराया जा सकें।
वही महत्वपूर्ण भूमिका में प्रोफेसर प्रेम सागर सिंह, प्रोफेसर रामनाथ सिंह, प्रोफेसर जितेंद्र कुमार शुक्ला, रामानंद गुप्ता, पंकज कुमार सिंह, पुष्पांजलि कुमारी, राजीव रंजन, नीरज कुमार, प्रभाष कुमार, ब्रजेश कुमार, राज किशोर चौधरी, भारतेन्दु प्रसाद सिंह, हीरा लाल पंडित, विवेक सिंह, शैलेन्द्र कुमार सिंह, विभूति शर्मा, अरूण कुमार सिंह, गौतम कुमार, मनीष तिवारी, नीरज सिंह, राधामोहन शर्मा, लवकुश शर्मा, शैलेन्द्र कुमार सिंह, पुतुल सिंह कुशवाहा, महेश तिवारी, रितु राज शर्मा, राजीव रंजन, सुनील गुप्ता, सब्बीर आलम, शिव राम, मनोज पासवान, राहुल कुमार, प्रमोद झा, मनोज कुमार सिन्हा और अवधेश सिंह की भी उपस्थिति के साथ लगभग सैकड़ों लोगों की उपस्थिति हुई।
खुले तौर पर चुनौती दे रहा है सोशल मीडिया... गोदी मीडिया को !
"भारत का प्रधानमंत्री चोर है" ना तो ये सवाल नया है और ना ही नारा। याद कीजिए एक वक्त भारत की राजनीतिक बस्तियों में एक ही नारा सुनाई देता था "गली - गली में शोर है......" और ये नारा धीरे-धीरे राजनीति के भीतर समाविष्ट होकर राजनीति का अभिन्न अंग सा बन गया। और जिस तरह से मौजूदा समय में चोर शब्द प्रधानमंत्री के साथ जोड़ा जा रहा है तो क्या वाकई संविधान संकट में है ? देश का लोकतंत्र खतरे में है ? क्या मौजूदा वक्त में जो देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जिन सीटों के भरोसे विराजमान हैं अगर उन सीटों पर ईमानदारी के साथ चुनाव लड़ा गया होता और देश के चुनाव आयोग ने निष्पक्षता के साथ चुनावी प्रक्रिया को पूरा किया होता तो जिस पार्टी का व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा हुआ है उस पार्टी को उतनी सीटें नहीं मिल पाती जितनी मिली हैं और वह व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ पाता ? क्या बीते 10 बरस की सत्ता ने देश के लोकतंत्र को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लिया है ? क्या मौजूदा समय में लोकतंत्र के जितने भी पायदान हैं उन सबको मौजूदा सत्ता ने एक-एक करके धराशायी कर दिया है ? ये सवाल देश के भीतर देश की आजादी के 78 वीं सालगिरह में इसलिए बड़ा और खड़ा हो गया है क्योंकि बीते दस बरस में देश ने देश के भीतर जिस तरह से संवैधानिक और स्वायत्त संस्थाओं का ढ़हना, देश के भीतर में लोकतांत्रिक तौर पर मौजूद संस्था का काम ना करना या काम करना तो केवल सत्ता के लिए काम करना, और बात यहां से बढ़ते हुए देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा असल पहरुआ चुनाव आयोग का कटघरे में खड़ा होना देखा है। और जब चुनाव आयोग ही आकर कटघरे में खड़ा हो गया है तो फिर उसके बाद कुछ बचता नहीं है यानी देश के संविधान और लोकतंत्र की हथेली खाली है।
चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर ना केवल अपनी साख को दांव पर लगाया बल्कि देश के लोकतंत्र, संविधान के साथ ही प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दिया है। इतना ही नहीं अब जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में खो-खो खेल रहा है तो उससे सुप्रीम कोर्ट की भी स्थिति सांप-छछूंदर जैसी होकर रह गई है। सुप्रीम कोर्ट के सामने सबसे बड़ा संकट तो यही दिख रहा है कि वह पिछले कई वर्षों से हो रही अपनी धूमिल छबि को उजला बनाकर अपनी साख को बचाने के साथ ही लोकतंत्र और संविधान की साख को बचाये या फिर चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को बचाये। अगर पलड़ा सत्तानूकूल हुआ तो देश के भीतर यही संदेश जायेगा कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर बैठे हुए न्यायमूर्ति भलै ही चाहे नैतिकता की कितनी भी बातें करते हों लेकिन उनके फैसले सत्तानूकूल होने का दामन नहीं छोड़ पा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह के मैन्यूपुलेशन का खुलासा चुनाव आयोग के ही दस्तावेजों से निकल कर सामने आया है और अब यह बात संसद भवन के गलियारों से निकलकर खुले तौर पर सड़कों पर रेंगने लगा है तो उसने इस सवाल को भी जन-जनतक पहुंचा दिया है कि क्या नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री देशवासियों के वोट से बनने के बजाय चुनाव आयोग द्वारा मैनेज किये गये वोटों की बदौलत बने हैं ? तो क्या 2024 का लोकसभा चुनाव ऐसा चुनाव है जो लड़ा ही नहीं गया बल्कि मैनज (चोरी) कर लिया गया है ?
देश में एक तरफ वो मीडिया है जिसे सत्ता की विरुदावली गायन करने के कारण गोदी मीडिया कहा जाता है और दूसरी तरफ उसके समानांतर खड़ा हुआ है सोशल मीडिया। सोशल मीडिया के भीतर जो शोर, हंगामा है वह पहली बार मेनस्ट्रीम मीडिया या कहें गोदी मीडिया को खुलेआम चुनौती दे रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी संवाद भारत से निकल कर बाहर जा रहा है वो तो पहला मैसेज यही दे रहा है कि नरेन्द्र मोदी गलत तरीके से प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हैं। इतना भर नहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में जो भी सांसद जीता है या हारा है अपनी जीत-हार को संदेह की दृष्टि से देखने लग गया है ! ये सवाल न तो ईवीएम का है न ही बैलेट पेपर से चुनाव कराने का है बल्कि ये सवाल तो देश के भीतर में जिसकी अगुआई में या कहें जिसकी छत्रछाया में या कहिये जिसकी अम्पायरिंग में लोकतंत्र का जो खेल चुनाव के तौर पर खेला जाता है उस खेल को ही अम्पायर ने अपने अनुकूल कर लिया और अम्पायर सत्ता के अनुकूल हो गया। इस तरह की परिस्थिति देश के सामने आजादी के बाद से कभी नहीं आई है। क्या वाकई देश की जनता अपने नुमाइंदों के भरोसे उस संसद को देख रही है जिसमें बीजेपी के जो सांसद (240) हैं तो उससे कहीं ज्यादा सांसद (320) बीजेपी से हटकर हैं, जितने वोट बीजेपी को मिले हैं (37 फीसदी) उससे ज्यादा वोट (63 फीसदी) दूसरों को मिले हैं। बीजेपी को मिली 240 सीटों में से लगभग 35-40 सीटें ऐसी है जो खुले तौर पर चुगली कर रहीं हैं कि उन्हें जीतने के बजाय मैनेज (चोरी) किया गया है। जिसकी झलक चावल के एक दाने की तर्ज पर बेंगलुरू सेंट्रल (लोकसभा सीट) का परीक्षण कर देश के सामने कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रखा। इसकी कल्पना तो देश ने कभी की ही थी कि चुनाव भी चोरी हो सकता है। लोकतंत्र को इस रास्ते पर भी चल कर खत्म किया जा सकता है।
शायद यही कारण है कि पहली बार विपक्ष की सभी पार्टियों ने अपने मतभेदों को दरकिनार कर एक साथ संसद से सड़क तक बबाल काटा है। जिसमें पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोध भी नाकारा साबित हुए ! विपक्षी नेताओं का कहना था कि यह राजनीति नहीं है बल्कि संविधान बचाने की परिस्थितियों के बीच खेला जा रहा खेल है। सांसदों ने जिस तरह से सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया उससे पहली बार पार्लियामेंट और उसके बाहर उठाए गए तमाम मुद्दे बेमानी से होकर रह गये 2024 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा किये गये वोटों के मैनेजमेंट के मुद्दे के सामने। क्योंकि 2024 का चुनाव एक फेक चुनाव था और उस चुनाव में जिस तरह से जनादेश को बताया गया उसमें चुनाव आयोग की भूमिका खलनायक की तर्ज पर उभर कर सामने आयी है ! चुनाव मैनेज को लेकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता (राज्यसभा सदस्य-पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश) दिग्विजय सिंह के वे कथन लोगों के जेहन में रेंगने लगे हैं जो उन्होंने मध्यप्रदेश की धरती पर खड़े होकर एक वक्त विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि चुनाव जनता के वोट से नहीं प्रशासनिक मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। एक वक्त इंदिरा गांधी ने देश में घोषित इमर्जेंसी लगाई थी और उसका खामियाजा भी भुगता था । वर्तमान सत्ता ने उससे सबक लेते हुए घोषित इमर्जेंसी से परहेज करते हुए देश के भीतर कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी जिसने देश के भीतर घोषित इमर्जेंसी से ज्यादा भयावह हालात पैदा कर दिए।
परंपरागत रूप से कार्पोरेट खुले तौर पर सत्तानशीन पार्टी को फंडिंग करता रहा है चाहे वह छत्रपों की पार्टी ही क्यों न रही हो। बीते दस बरस में ऐसी परिस्थिति निर्मित कर दी गई है कि कोई भी कार्पोरेट किसी भी हालत में बीजेपी को छोड़कर किसी भी दूसरी पार्टी को फंडिंग नहीं कर सकता है। अगर किया तो ईडी, सीबीआई, आईटी नामक जिन्न तो हैं ही उसे सबक सिखाने के लिए। यह भी शायद पहली बार हो रहा है कि बीजेपी के सांसदों को छोड़कर किसी भी दूसरी पार्टी के सांसद का काम बिना सत्ता की इजाजत के नहीं हो सकता है और हो भी क्यों जब सत्ता अपने तौर पर अपने आप को इस रूप में रखने के लिए तैयार है कि देश में एक ही राजनीतिक दल है, एक ही जीत है, एक ही जनादेश है और उसी जनादेश के आसरे सत्ता उसी तरह बरकरार रहेगी। देश के भीतर में जनता से जुड़े हुए हर मुद्दे का अस्तित्व हरहाल में चुनावी जीत से तय होगा चाहे वह कितना भी अहम और बड़ा मुद्दा क्यों न हो। देश के भीतर जिस किसी ने भी अपने गले में बीजेपी और आरएसएस का तमगा लटकाकर रखा हुआ है तो देश के भीतर कोई भी थाना उसके खिलाफ एफआईआर लिखने की हिमाकत नहीं कर सकता है। सड़क पर उतरे हुए विपक्ष ने शायद यही संदेश देने की कोशिश की है कि देश के भीतर देश की संसदीय राजनीति ध्वस्त हो चुकी है। देश के संविधान के तहत जो चैक एंड बैलेंस की व्यवस्था थी उसे भी धराशायी कर दिया गया है।
ऐसी परिस्थिति में देश के पास एक ही रास्ता बचता है संविधान की व्याख्या करने वाली संवैधानिक संस्था सुप्रीम कोर्ट के पास जाने का। लेकिन बीते 10 बरस में जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने देश को मृगमरीचिका में भरमाते हुए अपने फैसले के तराजू के एक पलड़े को सत्ता की तरफ झुकाया है उसने अफलातून की इसी बात को सच साबित किया है कि "यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है कि न्याय सबके लिए बराबर होता है। कानून के जाल में केवल छोटी मछलियां फंसती हैं, मगरमच्छ तो जाल फाड़ कर बाहर निकल आते हैं"। अब तो ऐसा लगने लगा है कि सत्ता के गिरफ्त से बची हुई देश की सबसे बड़ी अदालत भी सत्ता की गिरफ्त में आती जा रही है। अदालतें अब न्याय नहीं निर्णय करने लगी हैं सामने वाले की हैसियत (औकात) को देखकर। पीएम मोदी की सरकार तो यही मैसेज देती हुई दिखाई दे रही है कि हमें जनता ने चुना है तो अगले चुनाव तक हम ही इंडिया हैं, हमसे कोई सवाल मत पूछिए। अगर सवाल पूछना ही है तो उस जनता से पूछिए जिसने हमें चुना है। जनता से पूछने के लिए चुनाव में जाना होगा और चुनाव में जाने के मायने और मतलब बहुत साफ है कि संवैधानिक पद पर बैठा हुआ व्यक्ति संविधान से मिली हुई ताकत का उपयोग अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं को ही धराशायी करता चला जा रहा है। शायद देश में परोसी गई शून्यता का जवाब ही है पार्लियामेंट से निकलकर सड़क पर जमा हुई सांसदों की कतार। शायद इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा क्योंकि ये भारत के भीतर अपने तरह की पहली परिस्थिति है और शायद ये परिस्थिति ही मौजूदा सत्ता के लिए लास्ट वार्निंग भी है।