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August 04, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 06

किसान की पोशाक पहने होर्डिंग्स में नजर आयें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो चौंकियेगा मत

एक माँ अपने बच्चे को लेकर महात्मा के पास गई और कहा मेरा लड़का गुड़ खाता है आप कह दीजिए कि वह गुड़ न खाया करे। महात्मा ने कहा कि सात दिन बाद आना। माॅं आठवें दिन महात्मा के पास लड़के को लेकर गई और महात्मा ने बालक से कहा बेटा गुड़ मत खाया करो। बालक की मॉं ने महात्मा से कहा कि ये बात तो आप सात दिन पहले भी कह सकते थे तो महात्मा ने कहा कि सात दिन पहले मैं खुद गुड़ खाया करता था इसलिए नहीं कह सकता था। अब जब मैंने खुद गुड़ खाना छोड़ दिया है तभी मैं बालक को गुड़ न खाने के लिए कहने का साहस पैदा कर सका हूं। महात्मा गांधी ने देश के आखिरी छोर पर खड़े आदमी को अध नंगा देखकर ही आधी धोती पहनना और आधी ओढना शुरू किया था। लाल बहादुर शास्त्री ने जब खुद एक टाईम खाना और सप्ताह में एक दिन उपवास रखना शुरू किया था तब जाकर उन्होंने आवाम से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की थी। कहने का मतलब ये है कि उंचाई पर खड़े व्यक्ति को पहले खुद आदर्श पेश करना होता है तब वह दूसरों से अपेक्षा कर पाता है। और एक भारत के प्रधानमंत्री हैं नरेन्द्र मोदी जो अपने गिरेबां में झांकने के बजाय, जब वे खुद विदेशी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं, उनके आवागमन के सारे साधन विदेशी हैं, उनका खानपान रईसी ठाठबाट का है, देश की जनता को राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित की घूंटी पिलाकर स्वदेशी अपनाने का भाषण दे रहे हैं। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में वाकई राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित की जरा भी समझ और इज्जत है तो उनको सबसे पहले खुद विदेशी वस्तुओं का, विदेशी साधनों का और राजसी ठाठ-बाट का त्याग करना चाहिए और उसके बाद ही उन्हें आवाम से स्वदेशी अपनाने की बात कहनी चाहिए। इसके पहले भी उन्होंने 29 मई को गुजरात के गांधीनगर से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो 2014 के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा स्वदेशी जागरण मंच को अस्तित्वहीन करके रखा हुआ है जबकि उसी स्वदेशी जागरण मंच ने एक समय अटलबिहारी बाजपेई की आर्थिक नीतियों का विरोध करते हुए सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थी और तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की कुर्सी डगमगा गई थी। पिछले दस बरस में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां लगातार फेल होती चली गई और अब जब अमेरिका से डील लगभग फेल सी हो गयी है और अमेरिका भारत पर 25 फीसदी टेरिफ और जुर्माना लगाने जा रहा है तो अमेरिका परस्त मोदी को स्वदेशी याद आने लगा है जो कि हथेली में सरसों जमाने से भी ज्यादा मुश्किल काम है और वह भी तब जब खुद पीएम मोदी की करनी और कथनी में जमीन आसमान का अन्तर साफ़ - साफ़ दिखाई दे रहा है। पीएम मोदी का मेक इन इंडिया तकरीबन पूरी तरह से चाइना के कच्चे माल पर आश्रित है। जिस दिन चीन कच्चे माल की सप्लाई रोक देगा उसी दिन मेक इन इंडिया की मौत हो जायेगी। यही हाल वोकल फार लोकल का है। अपने कार्पोरेट मित्र को फायदा पहुंचाने के लिए तुगलकी तीन किसान बिल लाकर मोदी सरकार ने पिछले दस बरसों से जिन किसानों को खून के आंसू रुलाये आज वे उसी किसान के पसीने की खुशबु की बात कर रहे हैं पीएम नरेन्द्र मोदी का कथन तो मगरमच्छों को भी शर्मिंदा करके रख देगा, ऐसा न हो कि कुछ मगरमच्छ आत्महत्या न कर लें।

कश्मीर की वादियों का आनंद लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि "हमारे किसान, हमारे लघु उद्योग, हमारे नवजवानों के रोजगार, इनका हित ही हमारे लिए सर्वोपरि है। देशवासियों के अंदर एक भाव जगाना होगा और वो है हम स्वदेशी का संकल्प लें। अब हम कौन सी चीजों को खरीदेंगे, कौन से तराजू से तौलेंगे। मेरे भाईयो बहनों मेरे देशवासियों अब हम कुछ भी खरीदें तो एक ही तराजू होना चाहिए। हम उन चीजों को खरीदेंगे जिसे बनाने में किसी न किसी भारतीय का पसीना बहा है"। 2014 में दिल्ली की सल्तनत हथियाने के लिए लोक लुभावने वादे किये गये थे चुनाव प्रचार के दौरान पीएम वेटिंग नरेन्द्र मोदी के द्वारा। वादा था किसानों की आय दुगनी करने का, वादा किया गया था किसानों से न्यूनतम लागत पर खरीद करने का, वादा किया गया था देश के भीतर में दिहाड़ी मजदूरी मनरेगा से ज्यादा करने का, मगर यह सब कुछ हो नहीं पाया। 15 लाख, अच्छे दिन जुमला करार दे दिए गए मोदी के खासम-खास कहे जाने वाले अमित शाह द्वारा। झारखंड और बिहार की त्रासदी तो यह है कि यहां का किसान दूसरे राज्य में जाकर मजदूर में तब्दील हो जाता है। देश के भीतर रोजगार के अवसर भी 12 हज़ार से 22 हज़ार महीने के बीच अटक कर रह गये। एमएसएमई के जरिए मिलने वाले रोजगार की हालत इतनी खस्ताहाल इसलिए हो गई कि उसको चलाने वाले छोटे और मझोले उद्योगों को चलाने वालों के सामने ही संकट खड़ा हो गया। और दूसरी तरफ कार्पोरेटस् की आय बढ़ती चली गई। देश के भीतर हर प्रोडक्ट पर बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउस कब्जा करते चले गए। एक - एक करके देश के पीएसयू प्राइवेट हाथों में चलते चले गए। सरकार अपनी जिम्मेदारी से भागती रही और देश खामोशी से देखता रहा। लोगों की आय नहीं बढ़ी लेकिन कार्पोरेटस् के खजाने के भीतर उनके अपने नेटवर्थ को बढ़ता हुआ दिखाया गया जिससे दुनिया के बड़े - बड़े रईसों की लिस्ट में भारत के भी 100 से ज्यादा नाम शुमार हो गये लेकिन देश के करोड़ों लोग कहां पर कैसे खड़े हैं इसे नजरअंदाज कर दिया गया।

दुनिया के भीतर मान्यता प्राप्त व्हाइट कालर में रोजगार पाने वाला युवा टेक्नोलॉजी और कम्प्यूटर साइंस की नौकरी पाने की तलाश में भटकता हुआ दुनिया की बड़ी - बड़ी कंपनियों के बीच घुसता चला गया और देश ने ये मान लिया कि उसने प्रगति कर ली है। बीते 10 बरस में भारत के जो भी लाखों छात्र पढ़ाई के लिए दुनिया के दूसरे देशों में गये हैं वे लौटकर भारत नहीं आये हैं। वे वहीं के होकर रह जा रहे हैं। कोई अमेरिका में बस गया तो कोई जर्मनी, फ़्रांस, आस्ट्रेलिया में रह गया। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। वहां के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने देश चाइना ही लौटते हैं और चीन अपने तौर पर डवलपमेंट का पूरा प्रोसेस शुरू करता है लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में मोदी सरकार तो बीते 10 बरस में हेट, नफरती और अंधविश्वासी शिक्षा देने के लिए किताबों से लेकर शिक्षा पध्दति ही बदलने में लगी हुई है। पुरातन परिस्थितियों को नई हिस्ट्री के साथ पेश करने की बखूबी कोशिश की गई। आज के दौर में स्वदेशी के मायने बदल गए हैं।

आज स्वदेशी का मतलब है हमें पश्चिमी पूंजी चाहिए, पश्चिमी इंवेस्टमेंट चाहिए, पश्चिम का बाजार चाहिए, पश्चिम के हिसाब से क्वालिफिकेशन चाहिए जिससे उसी रास्ते चलकर उद्योग चलें, प्रगति हो। लेकिन जिस तरह से पीएम मोदी ने स्वदेशी का जिक्र किया उसका साफ मतलब है कि संकट बड़ा हो चला है। इस संकट का मतलब है अमेरिका के साथ जिस टेरिफ डील को लेकर बातचीत चल रही थी वह टूट चुकी है। क्योंकि जिस छठवें चक्र की बातचीत करने के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल 25 अगस्त को भारत (दिल्ली) आने वाला था अब वो नहीं आयेगा। अमेरिका जिस तरह से भारत पर टेरिफ लगाने और भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के रास्ते पर चल रहा है उससे आने वाले समय में रोजगार का संकट खड़ा होगा क्योंकि कंपनियां छटनी करेंगी। भारत को अपनी इकोनॉमी बचाने के साथ ही अपने माल को दुनिया के बाजार में पहुंचाना होगा। तो क्या अमेरिका से नाता टूटकर चीन के साथ जुड़ जायेगा? टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आने वाले चीनी माल का प्रतिशत 22 से लेकर 70 तक होता है। कह सकते हैं कि पूरा का पूरा मेक इन इंडिया चीन पर टिका हुआ है। और आज जब पीएम मोदी मेक इन इंडिया और वोकल फार लोकल का जिक्र कर रहे हैं तो उनके जहन से ये सवाल गायब हो गया है कि बीते 10 बरस में जिस रास्ते चलकर उन्होंने भारत की अर्थ नीति को सहेजा, संवारा है ग्यारहवें बरस में उनकी हथेली खाली है। बात भी सौ फीसदी सही है क्योंकि मोदी सरकार ने बीते दस बरस में ऐसा कुछ नहीं किया है कि देश के ही कच्चे माल से देश में ही माल तैयार हो। टेलीकॉम और स्मार्टफ़ोन बनाने में इस्तेमाल होने वाला 44 फीसदी माल चीन से आता है। लैपटॉप और पीसी में लगने वाला 77 परसेंट माल चीन से आता है। इसके अलावा अन्य सामानों की असेम्बलिंग में यूज होने वाला सामान भी 94 परसेंट तक चीन से ही आता है। जो इस बात को इंगित करते हैं कि भारत अपनी इकोनॉमी और इकोनॉमी पालिसी को लेकर फंसा हुआ है। उसके सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं है इसलिए आने वाले वक्त में उसे चीन पर और ज्यादा निर्भर होना पड़ेगा, रशिया से अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाना पड़ेगा। पीएम नरेन्द्र मोदी को आज नहीं तो कल तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के रास्ते चलना ही पड़ेगा जहां उन्होंने भारत की अर्थ नीति को मजबूती देने के लिए न तो अमेरिका की ओर देखा था न ही चाइना की ओर उन्होंने दुनिया के छोटे छोटे देशों के साथ संबंध और सम्पर्क बनाये थे।

अमेरिका साफ - साफ संकेत दे रहा है कि दुनिया की कोई भी इकोनॉमी अमेरिका के साथ धंधा करके अब उस रईसी को नहीं जी सकती जो जी रही थी और अब यह अमेरिका की नेशनल पालिसी में तब्दील होगी फिर चाहे सत्ता में रिपब्लिकनस् रहें या डेमोक्रेटस्। अमेरिका के भीतर चल रही बहस बहुत साफ तौर पर बता रही है कि अमेरिका किसी भी देश को लाभ उठाने का मौका देगा नहीं। अमेरिका की टार्गेटेट निगाहों में जो टाप सिक्स देश हैं उनमें शामिल हैं चीन, रशिया, भारत, फ्रांस, जर्मनी और जापान। क्या अमेरिका भारत की बढ़ती हुई इकोनॉमी को टार्गेट पर लेने जा रहा है और इसीलिए छठवें दौर की बातचीत बंद कर दी गई है। पैदा हुई नई परिस्थिति के बाद पीएम मोदी खुद मान रहे हैं कि मुश्किल घड़ी है तभी तो कह रहे हैं "आज दुनिया की अर्थव्यवस्था कई आशंकाओं से गुजर रही है। अस्थिरता का माहौल है। ऐसे में दुनिया के देश अपने अपने हितों पर फोकस कर रहे हैं। अपने - अपने देश के हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं" । बीते 10 बरस में मोदी सरकार देश से पलायन कर रही योग्यता को रोक पाने में असक्षम रही है। राष्ट्रीय सम्पत्ति, राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय रोजगार भी चुनावी जुमला बनकर रह गये हैं। बीते 11 बरसों का सरकारी आंकड़ा बताता है कि देश के भीतर का 1.3 परसेंट एग्रीकल्चर लैंड रियल एस्टेट को दे दिया गया है। 7 परसेंट कटे जंगल भी उसी रियल एस्टेट के कब्जे में हैं और अब वहां कंक्रीट का जंगल उगा दिया गया है। पब्लिक सेक्टर प्राइवेट सेक्टर के हाथों सौंपे जा चुके हैं। मोदी गवर्नमेंट ने बीते 11 सालों में एकबार भी न तो ह्यूमन रिसोर्स का जिक्र  किया है न ही उन्हें रोजगार से जोड़ने का जिक्र किया है। सर्विस सेक्टर पर आने वाला संकट बेंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद, तमिलनाडु आदि शहरों की चमक खत्म कर देगा। सोचने वाली बात है कि 140 करोड़ का देश चीन पर निर्भर है।

पीएम मोदी स्वदेशी का जिक्र कर रहे हैं, देशी पसीने की बात कह रहे हैं मगर सरकारी आंकड़ा बताता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुख सुविधा वाला 8.5 करोड़ रुपए के विमान के रखरखाव के सारे कलपुर्जे विदेशी हैं। पीएम मोदी के आगे - पीछे जो 6 गाड़ियों का काफिला चलता है वे सारी गाड़ियां विदेशी हैं। पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर को हटाने के लिए जो खरीदारी की जा रही है वह देशी मिजाज की नहीं है। जो यह बतलाता है कि मोदी अभी भी केवल कह ही रहे हैं, करने का इरादा नहीं है। क्योंकि करने की शुरुआत खुद से करनी होगी विदेशी साजो सामान को त्याग कर। हर देश अपना राष्ट्रहित देख रहा है तो भारत को भी अपना राष्ट्रहित देखना होगा। 140 करोड़ की जनसंख्या में 80 से 90 करोड़ लोग एग्रीकल्चर सेक्टर से जुड़े हुए हैं। इंडस्ट्री सेक्टर से जुड़ी हुई तादाद 8 से 10 करोड़ के बीच में है। सरकार ने राष्ट्रवाद का जिक्र किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सेनानी की वर्दी में खड़े हो गए तो  राष्ट्रहित की बात करने के बाद क्या कल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसान के कपड़ों की शक्ल में पोस्टर पर लटके नजर आयेंगे और राष्ट्रहित हो जायेगा ? टेक्सटाइल, एग्रीकल्चर का 90 फीसदी सामान विदेशों से आता है। मतलब भारत के पास कुछ भी नहीं है। तो सवाल है कि क्या सरकार तैयार है देश के किसानों, मजदूरों को मुख्यधारा की इकोनॉमी से जोड़ने के लिए ? क्या सरकार ऐसी नेशनल पालिसी बनाने को तैयार है जहां पहली प्राथमिकता देश के लोगों की हो (ह्यूमन सोर्स) ? अगर कार्पोरेटस् सरकार के साथ खड़े नहीं होते हैं तो बीते 11 बरसों में मोदी सरकार ने खड़ा किया क्या है ? जिस दिन कार्पोरेटस् ने सरकार से हाथ खींच लिया,  जिस पूंजी से देश की राजनीति चलती है, चलाई जा रही है, सत्ता का खेल बनाया और बिगाड़ा जाता है अगर वह डहडहाकर गिर गई तब कौन बचेगा, कौन सम्हलेगा ?


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 04, 2025
Ahaan News

हिन्दी-बज्जिकाके कवि, साहित्यकार " मुंशी प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान" से सम्मानित होने के लिए जयपुर (राजस्थान) से आमंत्रित

जयपुर के प्रस्तावित प्रेमचंद सम्मान समारोह में इन्हे 2023 में भी सिर्फ कविता में ही सम्मानित किया गया था

वैशाली : बिहार के हिन्दी, बज्जिका के वरिष्ठ कवि,साहित्यकार रवीन्द्र कुमार रतन को "मुंशी प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान समिति-2025 जयपुर (राजस्थान)द्वारा काव्य और कहानी के क्षेत्र में अलग-अलग सम्मानित होने का आमंत्रण मिला है। विदित हो कि महान साहित्यकार, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद  की 145वीं जयंती के उपलक्ष्य में जयपुर के प्रस्तावित प्रेमचंद सम्मान समारोह  में इन्हे 2023 में भी सिर्फ कविता में ही सम्मानित किया गया था।

विदित हो कि रवीन्द्र कुमार रतन हिन्दी कविता, कहानी, समीक्षा लिखने के साथ- साथ बज्जिका जो यहां की मातृभाषा है, उसमें भी लिखते हैं और उसकी मान्यता की संयुक्त  संघर्ष  समिति के उपाध्यक्ष पद पर संघर्षरत है। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,राजस्थान, जयपुर की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर इस "प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान " का आयोजन संस्था के महामंत्री अरुण सक्सेना के मुताबिक  यह सम्मान  बगैर किसी भेदभाव केउत्कृष्ठ काव्य पाठ और कहानी में चयनित उम्मीदवार  को ही दिया जाता है।

राष्ट्रीय  स्तर पर " प्रेमचंद साहित्य रत्न से सम्मानित होने के लिए आमंत्रित होने पर स्थानीय  सुरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव, डाॅ रंजन,आयकर अधिकारी कामेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, डाॅ पूर्णिमा कुमारी श्रीवास्तव, सरोज वाला सहाय, अनिल कुमार गुड्डू, अधिवक्ता, डाॅ सुधांशु चक्रवर्ती, ओम प्रकाश साह ,सुरेश चंद्र वर्मा, अधिवक्ता दीपक कुमार सिंहा, पूर्व मुखिया एवं अभाकाम के प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन सिन्हा आदि प्रमुख है।

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August 03, 2025
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फिदा डांस अकैडमी के द्वारा नित्यध्वनि कार्यक्रम का आयोजन

कांके रोड स्थित ऑड्रे हाउस में किया गया, कार्यक्रम में तराना, बंदिश, सरगम , तत्कार पर अच्छी प्रस्तुति

फिदा डांस अकैडमी के द्वारा नित्यध्वनि कार्यक्रम का आयोजन कांके रोड स्थित ऑड्रे हाउस में किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य कथक की प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना है। कार्यकम में नन्हे कलाकारों से लेकर बड़े कलाकारों ने हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। कार्यक्रम में तराना, बंदिश, सरगम, तत्कार पर अच्छी प्रस्तुति दी।


बच्चों को आज के आधुनिक दुनिया में क्लासिकल और कत्थक जैसे शास्त्रीय नृत्य को सीखना और प्रसारित करना ही फिदा का मुख्य उद्देश्य है। कार्यकम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ राजकुमारी सिंहा, डॉ कुलदीप ट्रिकी, यश एन सिंहा, विजय छाबड़िया, आनंद शाही उपस्थित हुए और दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। फिदा डांस एकेडमी के निर्देशक श्रीमति नमिता सिन्हा जी, संदीप सिन्हा जी एवं नृत्य शिक्षिका नीना श्रीवास्तव जी के द्वारा कार्यक्रम नित्यध्वनि की रूप रेखा तैयार की गई।


आज के कार्यक्रम नित्यध्वनि महान कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज को समर्पित किया गया ।


कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना के साथ हुई, इसके बाद गुरु वंदना,  मालकौंस , मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे, ओरे सलोनी तेरे नैन ठुमरी, कथक सरगम, मधुबन में राधिका नाचे रे, तीन ताल, पायलिया, गिरधर कृष्ण भजन जैसे गीतों पर बच्चों ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दी। इन बच्चों ने कार्यक्रम में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। फूल कुमारी, अंजली,  इतिशा, वागीसा, ईशान्वी, आराध्या, अभ्या, रिद्धिमा, शानवी, अनीशा, शानविका, ज्योतिका, अमायरा, मिहिका, तूलिका एवं अन्य कई बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 03, 2025
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खरी-अखरी(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 05

दुश्मन का दोस्त दुश्मन - अब तो मुंह खोलो नरेन्दर बाबू


                                                                                      नाउ भाई कै बार, बाबू अगवै आई

नरेन्द्र मोदी सोच रहे होंगे कि काहे लगाये थे मैंने अबकी बार फिर से ट्रम्प सरकार के नारे । इससे अच्छे तो जो बाइडन ही थे। हमसे दोस्ती नहीं थी तो दुश्मनी भी नहीं रखते थे। मोदी को ध्यान रखना चाहिए था कि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनसे दोस्ती कर ली जाय तो किसी दूसरे को दुश्मन बनाने की जरूरत नहीं होती वह व्यक्ति ही समय आने पर दुश्मन की भूमिका निभा देता है और डोनाल्ड ट्रम्प को उसी कतार में खड़ा किया जा सकता है। भोजपुरी में एक कहावत है "नाऊ भाई कै बार, बाबू अगवै आई" मतलब कौन कितने पानी में है, किसमें कितना कलेजा है, किसकी कितनी औकात है, किसकी कितनी हैसियत है, किसमें कितनी हिम्मत है, किसकी छाती का क्या साइज है समय आने पर सब कुछ सामने आ ही जाता है। कायर व्यक्ति को कितना भी उकसाइये वह कायर का कायर ही रहेगा।

भारत के खिलाफ अमेरिका ने ट्रेड वार से आगे का कदम उठाते हुए 25 फीसदी टेरिफ और पेनाल्टी लगाने का ऐलान किया जो 31 जुलाई की रात को 12 बजते ही यानी 1 अगस्त से लागू होना था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी आदत के मुताबिक यू टर्न लेते हुए इसे अब 7 अगस्त से लागू करने की बात कही है, मगर यह 7 अगस्त से लागू हो ही जायेगा संदेहास्पद है । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से एक के बाद एक हरकत कर रहे हैं उससे बहुत साफ नजर आ रहा है कि वे भारत की घेराबंदी करके बाजार को खत्म करने का इरादा रखते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि वे पाकिस्तान के साथ खड़े होकर पींगे लड़ाने की बातें भी कर रहे हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ डील फाइनल कर ली है और अब वे पाकिस्तान में मिले तेल भंडारों का विकास करेंगे और भविष्य में पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा। ट्रंप ने यहां तक कह दिया कि भारत की इकोनॉमी मर चुकी है। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर लिखा है We are very busy in the White House today working on Trade Deals. I have spoken to the leaders of many countries, all of whom want to make the United States "extremely happy" I will be meeting with the South Korean Trade Delegation this afternoon. South Korea is right now at a 25% Tariff, but they have an offer to buy down those Tariffs. I will be interested in hearing what that offer is. We have just concluded a Deal with the country of Pakistan, whereby Pakistan and the United States will work together on developing their massive Oil Reserves. We are in the process of choosing the oil company that will lead this partnership. Who knows, may be they'll be selling oil to India someday !


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर जो साझा किया उससे तो अब पीएम मोदी की आंखों पर वो चश्मा तो उतर जाना चाहिए कि डोनाल्ड ट्रम्प अब तो खुले तौर पर पाकिस्तान के पाले में जाकर न केवल खड़े हो चले हैं बल्कि अब उसे आर्थिक और सामरिक रूप से सशक्त बनाने पर भी आमदा हो चुके हैं। पाकिस्तान ने चीन के साथ मिलकर अपनी समुद्री सीमा में तीन साल तक सर्वे किया और पिछले बरस सितम्बर के महीने में इस बात का ऐलान किया कि तेल - गैस रिजर्व की मौजूदगी है और अब जब अमेरिका के साथ डील साइन हो गई तो अमेरिका ने कहा कि यहां पर दुनिया का सबसे बड़ा चौथे नंबर का तेल और गैस भंडार होगा तो इसको पूरी तरह से विकसित करने पर तकरीबन 42 हजार करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। इस खर्च को या तो अपने बूते अमेरिका वहन करेगा या फिर जो टीम होगी या फिर कोई कंपनी होगी उसके जरिए कामकाज किया जायेगा जिसमें करीबन 5 साल लगेंगे। लेकिन अमेरिका जिस लहजे से पकिस्तान को खड़ा कर रहा है यह भारत के लिए चिंतापूर्ण से आगे की सबसे बड़ी चुनौती है। अमेरिका का पकिस्तान के साथ खड़ा होने तथा सवाल तेल और गैस का है तो ये भी महत्वपूर्ण है कि अभी हाल में ही गुजरात की एक कंपनी नायरा पर यूरोपीय यूनियन ने प्रतिबंध लगाया है और दो दिन पहले ही अमेरिकी कंपनी माइक्रोसाॅफ्ट ने नायरा के साथ फिलहाल टेम्परेरी तलाक ले लिया है। तो अब वह अंतरराष्ट्रीय तौर पर व्यापारिक समझौते नहीं कर सकता है। हाल ही में अमेरिका ने भी ईरान से तेल खरीदने वाली 6 भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, हालांकि दुनिया भर की 25 कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है जिसमें तुर्की, चीन, इंडोनेशिया, संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों की छोटी-बड़ी कंपनियां शामिल है मगर उसमें प्रतिबंध से बचने की गुंजाइश यह लिखते हुए की गई है प्रतिबंधित देश अमेरिकी ट्रेजरी विभाग से प्रतिबंध हटाने की गुजारिश करे।


भारत को रशिया से व्यापारिक रिश्तों को खत्म करने के लिए यह कह कर दबाव बनाया जा रहा है कि रशिया उसी मुनाफे का उपयोग यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में कर रहा है। ठीक वही आरोप ईरान से तेल और गैस खरीदने वाली कंपनियों पर भी लगा रहा है कि उस मुनाफे से ईरान उससे पूरे मिडिल ईस्ट में अस्थिरता फैला रहा है, सक्रिय आतंकवादी संगठनों की मदद कर रहा है। तो क्या प्रतिबंधित भारतीय कंपनियों की सम्पत्ति अमेरिका में है वह जप्त कर ली जायेगी। विदेशी बैंक उन्हें कर्जा नहीं देंगे। डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल ट्रूथ पर खुले तौर पर लिखा है कि रशिया और भारत की इकोनॉमी मर चुकी है। I don't care what India does with Russia. They can take their dead economies down together, for all I care. We have done very little business with India, their Tariffs are too high, among the highest in the world. Likewise Russia and the USA do almost no business together. Let's keep it that way and tell Medvedev, the failed former president of Russia, who THINKS he's still president, to watch his words. HE'S entering very dangerous territory !.


लेकिन भारत की तरफ से अभी तक स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। देशवासियों की सोच को सच साबित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वनिर्मित परंपरा के मुताबिक मुंह नहीं खोला है। जबकि दुनिया के दूसरे देश चाइना, रशिया, ब्राजील, ईरान आदि ने खुलकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित किये एकतरफा, मनमाने टेरिफ का विरोध करते हुए इसे ट्रम्प की तानाशाही बताया है। ईरान ने ट्यूट करते हुए लिखा है The United States continues to weaponize the economy and use # sanctions as tools to dictate its will on independent nations such as Iran and India and impede their growth and development. These coercive discriminatory actions violate the principles of international law and national sovereignty, representing a modern from of economic imperialism. Resisting such policies is a stand for a more powerful emerging non Western-led multilateral world order and a stronger Global South.


आज जिन हालातों से देश गुजर रहा है उसके लिए केवल और केवल नरेन्द्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस की विघटनकारी और नफरती राजनीति जिम्मेदार है जो 11बरस से देश में फैलाई गई है। इतिहास गवाह है कि श्रीमती इंदिरा गांधी और अटलबिहारी बाजपेई के प्रधानमंत्रित्व काल में जब अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंध लगाया था तब विपक्ष सरकार के साथ खड़ा था और संकट से उबरने के बाद सरकार ने बकायदा पार्लियामेंट के भीतर विपक्ष के सहयोग को सराहा था लेकिन नरेन्द्र मोदी ने 11बरस में एकला चलो की राह पर चलकर विपक्ष को अलग - थलग कर दिया है। विपक्ष ने सहयोग भी दिया तो सफलता का सारा श्रेय मोदी ने खुद लेकर विपक्ष को थैंक्स तक नहीं कहा। देश दुनिया ने देखा कि पहलगाम की दुखद घटना के बाद विपक्ष एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा हुआ था और आपरेशन सिंदूर पर सीजफायर के बाद जब विपक्ष ने संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाने की मांग की तो मोदी सरकार ने वही अपनी फासीवाद सोच के चलते विपक्ष की मांग को ठुकरा दिया और विपक्ष के मन में कडवाहट को भर दिया। जिसका नजारा गत दिनों संसद के भीतर आपरेशन सिंदूर को लेकर चली 16 घंटे की चर्चा में खुलकर देखने को मिला, जहां विपक्ष लगातार सरकार को अखाड़े के भीतर घसीट रहा था और सरकार अखाड़े की सीमा से बाहर निकल कर जान बचाते भाग रही थी।


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जब कहा कि भारत की इकोनॉमी डेड (मर) हो चुकी है तो लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए ट्रम्प की बात का समर्थन करते हुए कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प सही कह रहे हैं। मोदी सरकार ने भारतीय इकोनॉमी को डेड करके रखा हुआ है। राहुल ने यह भी कहा कि पिछले 11 बरस में भारत की विदेश नीति और कूटनीति फेल हो चुकी है। इसका अक्श भी आपरेशन सिंदूर के बाद खुलकर दिखाई दिया जब दुनिया का एक भी देश, पीएम नरेन्द्र मोदी की तकरीबन 60-70 फीसदी विदेश यात्राओं और उन देशों के सर्वोच्च सम्मान बटोरने के बाद भी, भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ। अब तो वह अमेरिका भी, जिसकी सरपरस्ती करते-करते पीएम नरेन्द्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने लम्बवत हो गये, भारत के सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया है। जो इस बात का साफ-साफ इशारा कर रहा है कि जिस नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को शुभंकर मानकर देशवासियों ने दिल्ली की सल्तनत सौंपी थी वो वह शुभंकर 11 बरस में अशुभंकर में तब्दील हो चुका है।


लगता तो यही है कि अमेरिका 25 फीसदी टेरिफ और पेनाल्टी के जरिए भारत को ब्रिक्स और रशिया के खिलाफ एक वैपन की तरह इस्तेमाल कर घेराबंदी करने का इरादा रखता है ! अमेरिका का इरादा टेरिफ वार का नहीं बल्कि इससे आगे का लगता है। 25 फीसदी टेरिफ और जुर्माना लगाये जाने का सबसे पहला असर तो शेयर बाजार पर ही पड़ा जहां से विदेशी निवेशकों ने पैसा निकालने की शुरुआत कर दी। सवाल यह है कि देश में ह्यूमन रिसोर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद होने के बाद भी क्या भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बचा पायेगा ? अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में पहली बार इकोनॉमी को लेकर जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ खड़ा होकर खुलेआम भारत को चुनौती दे रहा है और युद्ध के दौरान चाइना पाकिस्तान की मदद कर रहा है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत कौन सी रणनीति अपनायेगा ? भारत की कूटनीति और विदेश नीति को लेकर जितने भी सवाल सवालों की दुनिया में तैर रहे हैं उन सवालों का अंत तब तक नहीं होगा जब तक भारत खुले तौर पर नेशनल इंट्रेस्ट से जनता को नहीं जोड़ेगा। क्योंकि जहां शेयर बाजार का 50 फीसदी मुनाफा कार्पोरेट कमाता है वहीं बमुश्किल 5 फीसदी मुनाफा भी आम आदमी की जेब में नहीं आता है। और पिछले 10 बरस में ये खाई बरस दर बरस बढ़ती चली गई है। तो फिर सवाल ये भी है क्या भारत अपनी इकोनॉमी पालिसी को आम जनों से जोड़कर बड़ा करेगा या फिर पूरे तरीके से उसी कार्पोरेट पर निर्भर होगा जिस कार्पोरेट के सामने ये चुनौती मुंह बाये खड़ी है कि वह किस रास्ते पर चले, क्या वह जाकर अमेरिका से माफी मांगे और अमेरिकी ट्रेजरी से कहे कि हम पर प्रतिबंध ना लगाये, हमारी संपत्तियों ना छीने ? नरेन्द्र मोदी के सामने भी चुनौती है देश को अमेरिका परस्ती से बाहर निकाल कर अपने पैरों पर खड़ा करने स्वावलंबी बनाने की। क्या वे ऐसा कर पायेंगे या फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सामने घुटने टेक कर उसी की शर्तों पर ट्रेड डील को फाइनल करेंगे.? 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 03, 2025
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खरी-अखरी(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 04

देश - दुनिया ने खुली आंखों देखा पप्पू का साहस और गप्पू की कायरता का नजारा

सवाल तो दो ही थे और उत्तर भी एक ही था। पहला सवाल था - पहलगाम में कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद क्यों नहीं था और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? और दूसरा सवाल था - कि जब भारत पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करने जा ही रहा था तो सीजफायर क्यों किया गया और किसने सीजफायर करने का निर्णय लिया ? इन दो सवालों पर चर्चा और जवाब देने के लिए निर्धारित किये गये थे 16 घंटे। जबकि इन दोनों सवालों का जवाब केवल तीन लोगों को देना था, तथा उन्हें केवल दो लाईनें बोलनी थी और उसमें समय बमुश्किल दस मिनट भी नहीं लगते। पहले जवाब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह देते "हाँ यह सही है पहलगाम में जहां आतंकवादियों ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया है वहां पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती नहीं थी, मैं उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र देता हूं । दूसरे नम्बर पर गृहमंत्री अमित शाह को जवाब देना था कि सीमा पार से चार आतंकवादी घुसकर पहलगाम तक पहुंच गये ये मेरे अधीन आने वाली तमाम इंटेलिजेंस का फेलुअर है। मैं इसकी नैतिक जवाबदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देता हूं। तीसरे नम्बर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जवाब देना था कि सीजफायर की जिस घोषणा को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जरिए देश और दुनिया ने जाना है वह घोषणा तो सबसे पहले मुझे ही करनी थी। यह मेरी आजतक की सबसे बड़ी अक्षम्य राजनैतिक अक्षमता है। मैं इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं और अपने पद से इस्तीफा देता हूं। तो देश के 15 घंटे 50 मिनट जाया नहीं होते और पार्लियामेंट के भीतर सरकार की छीछालेदर भी होने से रुक जाती । मगर जैसी कि उम्मीद थी कि सरकार दोनों सवालों का जवाब देने में खामोशी बरतेगी, वही हुआ। सरकार की ओर से एक भी नेता ने यहां तक कि डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह, होम मिनिस्टर अमित शाह और प्राइम मिनिस्टर नरेन्द्र मोदी ने अपने लंबे-चौड़े भाषण में दुनिया भर की बातें तो की लेकिन किसी ने भी ना तो ये बताया कि पहलगाम में सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी किन कारणों से नहीं की गई थी, इसके लिए कौन जिम्मेदार है ना ही ये बताया गया कि जीत के करीब पहुंच गई भारतीय सेना को वापस लौटने के लिए सीजफायर क्यों किया गया, इसका निर्णय किसने लिया ।


निश्चित ही पहलगाम में मारे गए 26 लोगों के परिजनों को निराशा हुई होगी। पहलगाम में मारे गए सैनिक की विधवा के इस बयान पर "ऐसा लगा कि सरकार ने हमें अनाथ छोड़ दिया है" रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पार्लियामेंट के भीतर 16 घंटे की चर्चा के दौरान पहलगाम में मारे गए 26 लोगों में से एक भी मृतक का जिक्र न करके उस विधवा के बयान पर सही होने का निशान लगा दिया है कि हां सरकार ने पहलगाम में आये सैलानियों को अनाथ छोड़ दिया था, भगवान भरोसे छोड़ दिया था।


पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने एक घंटे से ज्यादा चले उबासी भरे भाषण में एकबार फिर वही हल्की (सड़कछाप) भाषा और हलकटपन (छिछोरेपन) का नजारा पेश किया। गृहमंत्री अमित शाह भी पीछे नहीं रहे। दोनों अपने भाषण में  वर्तमान से भाग कर अतीत के पीछे छिपते नजर आये। दोनों ने इतने गंभीर सवालों की गंभीरता को नजरअंदाज करते हुए सारे टाइम कांग्रेस को कैसे टार्गेट पर लिया जाय यही गुडकतान करते नजर आये। वहीं विपक्ष ने गंभीरता का परिचय देते हुए सवालों को सिलसिलेवार उठाया, सरकार की कथनी और करनी को कटघरे में खड़ा किया, पीएम नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पर सवालों का जवाब देने की चुनौती दी मगर सरकार सीधे-सीधे जवाब देने के बजाय नेहरू के पीछे छिपती नजर आई, सवालों से भागती नजर आई। सवाल तो दो ही थे लेकिन बहस ने कुछ ऐसी परतों को खोल दिया जिसने सीधे तौर पर पहली बार इस सवाल को खड़ा कर दिया कि प्रधानमंत्री सच बोल रहे हैं या फिर सेना सच बोल रही है। देशवासियों को पूरा यकीन है कि सेना कभी झूठ नहीं बोल सकती क्योंकि वह राजनीतिक पैंतरेबाजी से बहुत दूर है। भारतीय सेना का अभी तक राजनीतिकरण नहीं हुआ है। सियासतदां ही अपनी सियासी रोटियाँ सेंकने के लिए न केवल झूठ बोलते हैं बल्कि आवाम की आंखों में धूल भी झोंकते रहते हैं। 


आपरेशन सिंदूर के बाद इंडोनेशिया में  तैनात  अटैची  कैप्टन शिव कुमार ने 10 जून को जकार्ता में हुए एक सेमिनार  में कहा था कि पहले दिन भारत ने कुछ फाइटर जेट्स  इसलिए खोये कि उनके हाथों को सरकार ने बांध दिया था (INDIA LOST SOME FIGHTER JETS ON THE FIRST DAY OF ITS RECENT MILITARY CLASH WITH PAKISTAN BECAUSE THE GOVERNMENT INITIALLY RESTRICTED STRIKE TO TERRORIST TARGETS ONLY AND NOT PAKISTAN MILITARY BASES) कुछ इसी तरह की मिलती-जुलती बात सीडीएस ने भी कही है। यानी सेना को खुली छूट नहीं दी गई थी। जबकि पार्लियामेंट के भीतर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की तरफ से जवाब देने खड़े हुए तो कहा कि हमने सेना को खुली छूट दे दी थी। सेना अपने तरीके से अपनी रणनीति बनाये और युद्ध को कामयाब करे। मतलब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक झटके में सैन्य अधिकारियों के द्वारा बयान की गई हकीकत को खारिज कर अपनी शर्ट को सेना की शर्ट से ज्यादा सफेद और चमकदार बताने की नाकामयाब कोशिश की। नाकामयाब इसलिए क्योंकि देश का कितना ही बड़ा सियासतदार क्यों न हो अगर वह भारतीय सैन्य अधिकारियों के उन बयानों को जो सेना से जुड़े हुए हैं उन्हें झुठलाने की कोशिश करेगा तो देशवासी सैन्य अधिकारियों की बात को ही सच मानेंगे न कि सियासतदार की बात को सच मानेंगे। यानी ऐसा कहकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों के भीतर अपनी ही विश्वसनीयता को कमतर किया है।


लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने सीधे तौर पर प्वाइंट टू प्वाइंट अपनी बात रखते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कही गई बातों के उस हिस्से का जिक्र किया जहां पर रक्षामंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि आधी रात के वक्त यानी 01.05 पर पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी ठिकानों पर हमला हुआ और 20 मिनट बाद तय किए गए टार्गेट को पूरा करके 1.35 बजे पाकिस्तान को जानकारी दे दी कि हम न तो आपके मिलिट्री बेस पर हमला कर रहे हैं न ही किसी दूसरी जगह पर। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार खुले तौर पर कहा था कि जिन्होंने आतंकवाद को पनाह दे रखी है, पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर कह चुके हैं कि दरअसल कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है (आतंकवाद शब्द का नाम नहीं लिया) वह गले की नस है और हम उनका साथ देंगे। पाकिस्तान की राष्ट्रीय नीति ही आतंकवाद को पोषित करने की है। तो फिर वह एक टेररिस्ट स्टेट है और उस टेररिस्ट स्टेट पर हमला करने का मतलब सिर्फ टेररिस्ट अड्डों पर हमला कर वापस लौटना नहीं होता है बल्कि उस स्टेट को नेस्तनाबूद करना भी होता है। तो फिर सवाल यही है कि क्या आपरेशन सिंदूर पाकिस्तान के खिलाफ था ? अगर वह पाकिस्तान के खिलाफ नहीं था तो फिर आपरेशन सिंदूर को विराम (सीजफायर) देने के बाद अंतरराष्ट्रीय तौर पर जिन सांसदों और डिप्लोमेट्स को अलग अलग देशों में टीम बना कर भेजा और वे वहां जाकर आतंकवाद और पाकिस्तान की माला जपते रहे उसका क्या मतलब था ? दुनिया भर के देशों ने आतंकवाद की निंदा तो की लेकिन किसी ने भी देश ने सीधे तौर पर आतंकवाद से पाकिस्तान को कनेक्ट नहीं किया। यहां तक कि क्वार्ड और ब्रिक्स की बैठक में भी आतंकवाद के साथ पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया गया। हद तो तब हो गई जब यूनाइटेड नेशनसं में आतंकवाद पर बनी कमेटी में पाकिस्तान को वाइस प्रेसीडेंट चुन लिया गया है। मामला पराकाष्ठा तब लांघ गया जब भारत की नरेन्द्र मोदी की सरकार आपरेशन सिंदूर की सफलता पर अपनी पीठ थपथपाने की तैयारी कर रही थी और पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष असीम मुनीर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के न्यौते पर जाकर व्हाइट हाउस में बैठकर ट्रम्प के साथ लंच कर रहा था। और राष्ट्रवाद की बातें करने वाली मोदी सरकार लब बंद किए टिकुर-टिकुर देखती रही।


यह आजाद भारत में नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति (जिसे वे मोदी नीति में तब्दील कर चुके हैं) और भारतीय कूटनीति की सबसे बड़ी असफलता है। क्या इसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लेने को तैयार हैं या फिर इस असफलता के लिए जिम्मेदार नेहरू और गांधी को ठहराया जायेगा ? आपरेशन सिंदूर में यह बात भी खुलकर सामने आई कि भारत को जो नुकसान उठाना पड़ा उसके पीछे चीन का हाथ था। जिस पर विपक्ष ने साफ तौर पर कहा कि भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है। एक वक्त मुलायम सिंह यादव, जार्ज फर्नांडिस ने भी पार्लियामेंट के भीतर चीन को भारत का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। लेकिन मोदी सरकार चाइना से प्रगाढ़ रिश्ते बना रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगस्त में चाइना यात्रा प्रस्तावित है। विपक्ष की चुनौती के बाद पीएम नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालारों की हिम्मत नहीं हुई कि वे चीन और डोनाल्ड ट्रम्प का नाम लेकर कह सकें कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है और डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं। अपनी आदत के मुताबिक मोदी सरकार ने 1971 का जिक्र कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पलटवार करते हुए कहा कि तब की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को दो टूक जवाब दे दिया था कि आप सातवां बेड़ा भेजो या आठवां बेड़ा भारत अपने मकसद को अंजाम देकर रहेगा और उन्होंने जनरल मानेकशॉ को खुली छूट दी थी कि आपको जितना समय चाहिए लीजिए मगर मकसद को अंजाम तक पहुंचाइये। मगर मौजूदा वक्त में मोदी सरकार अमेरिका के आगे नतमस्तक है।


भरी संसद में लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुली चुनौती देते हुए कहा कि अगर उनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जैसा फिफ्टी परसेंट भी साहस है तो वे पार्लियामेंट में खड़े होकर इस बात का ऐलान करें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगातार 29 बार बोली गई बात कि सीजफायर उन्होंने कराया है झूठ हैं, डोनाल्ड ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं। मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद के भीतर इतना साहस नहीं जुटा पाये कि वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का नाम लेकर यह सकें कि वे झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने अपनी सुविधानुसार बहस की दिशा मोड़ते हुए अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस का नाम लिया और उनसे हुई बातचीत का ब्यौरा बताया। इसी तरीके से जब कांग्रेस को घेरते हुए सत्ता पक्ष ने मुंबई कांड़ का जिक्र किया तो कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने पलटवार करते हुए कहा कि मुंबई कांड़ के दोषियों को तत्काल मार गिराया गया था, एक जो बचा था उसे भी फांसी पर लटका दिया गया। घटना के तत्काल बाद केन्द्रीय गृहमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया था। मगर मोदी सरकार के गृह मंत्री अमित शाह आज भी मंत्री बने हुए हैं ये इस्तीफा कब देंगे? कल तक तो पीएम नरेन्द्र मोदी नेहरू को सामने रखकर अपनी बात कहते थे लेकिन आज गृहमंत्री अमित शाह भी नेहरू के पीछे खड़े होकर अपनी बात कहते नजर आये।


यह कल्पना करना कितना भयावह है कि 11बरस से जो पालिटिकल पार्टी सत्ता में है, जो नेता पिछले 11 बरस से देश का प्रधानमंत्री बना बैठा है, जो नेता मौजू वक्त में देश का गृहमंत्री है उसे आजादी के ठीक बाद की परिस्थितियों या कहें 70 साल पुरानी परिस्थितियों को याद करके मौजूदा समय में अपनी ताकत का अह्सास उस लोकतंत्र के मंदिर के भीतर कराने की जरूरत पड़ रही है जहां सिर्फ और सिर्फ 16 घंटे का वक्त था आपरेशन सिंदूर को लेकर जो किया उसे बताने का। वो कैसे किया, कैसे अंजाम दिया। मगर सरकार ने इतने चक्रव्यूह बनाये कि जो सुन रहे थे खास तौर पर वे लोग जिन्होंने पहलगाम में अपने प्रियजनों को खो दिया है उनके दिल पर क्या बीती होगी नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालारों को सुन कर। शायद एक मलहम प्रियंका गांधी वाड्रा ने यह कह कर लगाने का प्रयास किया है कि पहलगाम में आतंकवादियों ने जिन्हें मारा है उन्हें सत्ताधारी इंसान माने या ना माने मगर वो इंसान हैं, वे सत्तापक्ष की राजनीतिक बिसात के प्यादे नहीं हैं। उन्होंने बकायदा उन 25 भारतीय शहीदों के नाम पार्लियामेंट के भीतर पढ़े जिनकी शहादत पहलगाम में हुए आतंकी हमले में हुई है, बकायदा उन्हें भारतीय कहते हुए जबकि सत्तापक्ष वहीं मनुवादी सोच से ग्रसित होकर बीजेपी सांसद हिन्दू - हिन्दू चिल्ला रहे थे। जिन 25 शहीदों के नाम पार्लियामेंट के भीतर कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा ने पढ़े कायदे से उन नामों का उल्लेख सरकार को करना चाहिए था मगर मोदी सरकार ये साहस नहीं जुटा पाई।


16 घंटों में चीन, अमरिका, पाकिस्तान, आतंकवाद, कूटनीति, विदेश नीति इन सबसे होते हुए एक नया सवाल तो खड़ा हो ही गया है कि प्रधानमंत्री ने सच बोला है या सेना ने सच कहा है.? कहीं इन दो सचों की टकराहट में लोकतंत्र के मंदिर के भीतर देश का सच तो गायब नहीं हो गया है ? प्रधानमंत्री की इमेज बचाने के लिए सेनाओं का प्रयोग देश और सेना दोनों के लिए खतरनाक है। भारत की सेना किसी प्रधानमंत्री की इमेज को बचाने का साधन नहीं है। ऐसी परिस्थिति भारत के सामने इस रूप में कभी नहीं रही। देश को भविष्य की ओर देखने की शुरुआत करनी होगी वरना वर्तमान सत्ता तो अतीत के आसरे सारी परिस्थितियों को एक झटके में गुम कर ही रही है और निशाने पर भारतीय सेना तक को लेने से नहीं चूक रही है। चलते-चलते अखबारों की हेडलाइन पर नजर डालते चलें। एक अखबार लिखता है. - - कांग्रेस के छिछोरेपन ने देश का मनोबल गिराया, पहलगाम हमले में भी वो राजनीति तलाश रहे थे - पीएम मोदी। तो दूसरे अखबार की हेडलाइन है - -  प्रधानमंत्री के भाषण के बीच खड़े हुए राहुल तो पानी पीने लगे मोदी। कैमरे ने बचाई इज्जत ओम बिरला की तरफ मुंह करके।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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August 03, 2025
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भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक उद्देश्य का संगम है बाढ़ में आयोजित श्रावणी पूजा समारोह : नेहा सिंह

नेहा सिंह — बाढ़ की बेटी, समाजसेविका और राम लक्ष्य फाउंडेशन की संस्थापक

पटना : श्रावण मास की पावन बेला में राम लक्ष्य फाउंडेशन द्वारा ANS कॉलेज सभागार, बाढ़ में एक भव्य श्रावणी पूजा समारोह का आयोजन किया जा रहा है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, सामाजिक और जागरूकता से परिपूर्ण आयोजन है, जिसकी अगुवाई कर रही हैं नेहा सिंह — बाढ़ की बेटी, समाजसेविका और राम लक्ष्य फाउंडेशन की संस्थापक।

कार्यक्रम की जानकारी देने हेतु आज होटल रेड वेलवेट में एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें नेहा सिंह और राम आयेंगे तो अंगना सजाऊंगी फेम स्वाति मिश्रा ने प्रेस को संबोधित करते हुए बताया कि यह आयोजन भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक उद्देश्य का संगम है। उन्होंने कहा कि “श्रावणी पूजा के इस मंच के माध्यम से हम महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों को जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं।”

नेहा सिंह ने यह भी कहा कि धार्मिक आयोजनों का प्रभाव तब और गहरा होता है जब वे सामाजिक जिम्मेदारियों से जुड़ जाते हैं। उन्होंने इस कार्यक्रम को स्त्री सम्मान, शिक्षा और सुरक्षा के मुद्दों पर संवाद का माध्यम बताया और कहा कि “हमें बेटियों को सिर्फ पढ़ाना नहीं, उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाना है।”



 

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध भक्ति गायिका स्वाति मिश्रा, जो स्वयं बाढ़ की बेटी हैं, ने कहा कि "यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मुझे अपने ही नगर बाढ़ में एक ऐसे आयोजन का हिस्सा बनने का अवसर मिल रहा है, जो न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है, बल्कि सामाजिक जागरूकता का भी सशक्त माध्यम है।" उन्होंने कहा कि “राम लक्ष्य फाउंडेशन द्वारा महिला सशक्तिकरण और 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे अभियानों को धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों से जोड़ना वास्तव में एक सराहनीय पहल है। ऐसे मंचों से समाज में सकारात्मक सोच फैलती है और लोगों को सामाजिक जिम्मेदारियों का भी एहसास होता है।”

स्वाति मिश्रा ने यह भी कहा कि “भक्ति केवल मंदिरों और गीतों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि जब उसमें समाजसेवा और जनजागृति का भाव जुड़ जाए, तभी वह सच्चे अर्थों में सार्थक बनती है।” उन्होंने नेहा सिंह के प्रयासों की खुले दिल से सराहना की और कहा कि “बाढ़ की बेटियाँ अब समाज में नेतृत्व कर रही हैं, यह बदलाव का संकेत है।” गौरतलब है कि वे विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगी। उनकी उपस्थिति से कार्यक्रम को आध्यात्मिक और सांगीतिक ऊर्जा मिलेगी, वहीं नेहा सिंह के नेतृत्व में स्थानीय युवाओं और महिलाओं में नई प्रेरणा का संचार होगा।

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 01, 2025
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3 से 5 अगस्त तक पटना में आयोजित होगा बिहार बिजनेस महाकुंभ, तैयारी तेज

3 से 5 अगस्त तक आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में 500 से अधिक ब्रांड्स अपने स्टॉल लगाएंगे और 40,000 से 50,000 तक आगंतुकों के आने की संभावना

पटना : राज्य के सबसे बड़े व्यापारिक आयोजन बिहार बिजनेस महाकुंभ 2025 की तैयारी अब अंतिम चरण में पहुँच चुकी है। इसी क्रम में आज राजधानी पटना के ऑर्चिड मॉल स्थित गोल्डन फ्लेवर रेस्टोरेंट में एक पूर्व-सम्मेलन (Pre-event Conference) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्टॉल धारकों, उद्यमियों, मीडिया प्रतिनिधियों और कारोबार से जुड़े लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

सम्मेलन की शुरुआत आयोजन समिति द्वारा बिहार बिजनेस महाकुंभ के उद्देश्य, आयोजन की रूपरेखा और व्यवस्थाओं की विस्तार से जानकारी के साथ हुई। समिति ने बताया कि 3 से 5 अगस्त तक आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में 500 से अधिक ब्रांड्स अपने स्टॉल लगाएंगे और 40,000 से 50,000 तक आगंतुकों के आने की संभावना है। इसके साथ ही देशभर से निवेशक, निर्यातक, स्टार्टअप प्रतिनिधि, MSME संगठनों और मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की भी विशेष भागीदारी सुनिश्चित की गई है।

आयोजन स्थल पर लाइव डेमो ज़ोन, इन्वेस्टर पिच मंच, और MSME सहायता डेस्क जैसी सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। आयोजकों ने स्टॉल लगाने वालों को बताया कि स्टॉल सेटअप की तारीखें, प्रवेश पास की प्रक्रिया, ऑनग्राउंड सपोर्ट और प्रचार सामग्री कैसे उपलब्ध कराई जाएगी। इस अवसर पर स्टॉल धारकों ने भी अपने सवाल रखे, जिनका समाधान विस्तारपूर्वक किया गया।

पूर्व-सम्मेलन के अंत में ओपन Q&A सेशन और टी नेटवर्किंग सेशन का आयोजन किया गया, जहाँ विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने आपस में संवाद स्थापित किया और महाकुंभ को लेकर अपने विचार साझा किए। इस दौरान एकजुटता और सहयोग की भावना देखने को मिली, जिससे आयोजन को लेकर उत्साह और भी बढ़ गया।

मौके पर सुमन कुमार, शुभम यादव, राहुल, तनिष्क, राजा, अर्चना जी, मिली सिंह, राजेश, विपुल, गौरव पांडे, चंदन कुमार सहित कई अन्य प्रतिनिधि मौजूद रहे। आयोजकों ने सभी उपस्थितों का आभार जताते हुए कहा कि यह सिर्फ एक एग्जीबिशन नहीं, बल्कि बिहार के उद्यमिता भविष्य की नींव है, जिसे हम सब मिलकर साकार करेंगे।

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August 01, 2025
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प्रशांत किशोर की कार्यशैली की सराहना की, कहा - सच्चाई, संकल्प और संघर्ष से हूँ प्रभावित

चर्चित फिल्म निर्माता व उद्यमी चेतना झाम ने ली जन सुराज पार्टी की सदस्यता

पटना : चर्चित फिल्म निर्मात्री, युवा उद्यमी और समाजसेविका चेतना झाम आज जन सुराज पार्टी में शामिल हो गयी. पटना में आयोजित एक समारोह में उन्होंने प्रशांत किशोर के समक्ष औपचारिक रूप से जन सुराज की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी कार्यालय में आयोजित संवाद के दौरान उन्होंने प्रशांत किशोर की कार्यशैली और दृष्टिकोण की खुलकर सराहना की। चेतना ने उन्हें “महात्मा तुल्य नेता” बताया जो आज के समय में दुर्लभ हैं।
चेतना झाम ने कहा कि जब सभी राजनीतिक दलों के नेता एसी कमरों में बैठकर बयानबाजी करते हैं, वहीं प्रशांत किशोर गांव-गांव घूमकर जन संवाद कर रहे हैं, लोगों की पीड़ा को महसूस कर रहे हैं और बिहार के विकास की जमीन तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने उनमें सच्चाई, संकल्प और संघर्ष की भावना देखी है। इसीलिए मैं आज जन सुराज के साथ खड़ी हूं और आने वाले समय में इस आंदोलन की सशक्त आवाज बनूंगी।”

प्रशांत किशोर के विजन से प्रभावित होकर चेतना ने कहा कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में एक जन-क्रांति लाना चाहते हैं। चेतना ने अपने संबोधन में भावुक होते हुए कहा, “जिस तरह एक माँ अपने बच्चों की चिंता करती है, वैसे ही प्रशांत किशोर बिहार के हर नागरिक की चिंता करते हैं। मैं इस मिशन की सच्ची सिपाही बनूंगी।”
समस्तीपुर निवासी चेतना झाम की कहानी भी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। उन्होंने 3000 रुपये से अपना करियर शुरू किया, दिल्ली में संघर्ष के दिन देखे, भूखी भी रहीं लेकिन बिहार की मिट्टी से मिले आत्मबल ने उन्हें हारने नहीं दिया। आज वे एक सफल उद्यमी, समाजसेविका और फिल्म निर्माता के रूप में देशभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनकी बनाई फिल्मों और अभियानों में बिहार की संस्कृति, संघर्ष और सौंदर्य प्रमुखता से उभरकर सामने आता है।
जन सुराज पार्टी में शामिल होकर चेतना झाम ने न केवल बिहार की बेटियों को एक नई प्रेरणा दी है, बल्कि यह भी बताया है कि यदि नीयत साफ हो, तो राजनीति भी समाज सेवा का सशक्त माध्यम बन सकती है। अब वे पार्टी की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बिहार के विकास और बदलाव के लिए सक्रिय भूमिका में होंगी।

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 01, 2025
Ahaan News

प्रशांत किशोर की कार्यशैली की सराहना की, कहा - सच्चाई, संकल्प और संघर्ष से हूँ प्रभावित

चर्चित फिल्म निर्माता व उद्यमी चेतना झाम ने ली जन सुराज पार्टी की सदस्यता

पटना : चर्चित फिल्म निर्मात्री, युवा उद्यमी और समाजसेविका चेतना झाम आज जन सुराज पार्टी में शामिल हो गयी. पटना में आयोजित एक समारोह में उन्होंने प्रशांत किशोर के समक्ष औपचारिक रूप से जन सुराज की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी कार्यालय में आयोजित संवाद के दौरान उन्होंने प्रशांत किशोर की कार्यशैली और दृष्टिकोण की खुलकर सराहना की। चेतना ने उन्हें “महात्मा तुल्य नेता” बताया जो आज के समय में दुर्लभ हैं।
चेतना झाम ने कहा कि जब सभी राजनीतिक दलों के नेता एसी कमरों में बैठकर बयानबाजी करते हैं, वहीं प्रशांत किशोर गांव-गांव घूमकर जन संवाद कर रहे हैं, लोगों की पीड़ा को महसूस कर रहे हैं और बिहार के विकास की जमीन तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने उनमें सच्चाई, संकल्प और संघर्ष की भावना देखी है। इसीलिए मैं आज जन सुराज के साथ खड़ी हूं और आने वाले समय में इस आंदोलन की सशक्त आवाज बनूंगी।”

प्रशांत किशोर के विजन से प्रभावित होकर चेतना ने कहा कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में एक जन-क्रांति लाना चाहते हैं। चेतना ने अपने संबोधन में भावुक होते हुए कहा, “जिस तरह एक माँ अपने बच्चों की चिंता करती है, वैसे ही प्रशांत किशोर बिहार के हर नागरिक की चिंता करते हैं। मैं इस मिशन की सच्ची सिपाही बनूंगी।”
समस्तीपुर निवासी चेतना झाम की कहानी भी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। उन्होंने 3000 रुपये से अपना करियर शुरू किया, दिल्ली में संघर्ष के दिन देखे, भूखी भी रहीं लेकिन बिहार की मिट्टी से मिले आत्मबल ने उन्हें हारने नहीं दिया। आज वे एक सफल उद्यमी, समाजसेविका और फिल्म निर्माता के रूप में देशभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनकी बनाई फिल्मों और अभियानों में बिहार की संस्कृति, संघर्ष और सौंदर्य प्रमुखता से उभरकर सामने आता है।
जन सुराज पार्टी में शामिल होकर चेतना झाम ने न केवल बिहार की बेटियों को एक नई प्रेरणा दी है, बल्कि यह भी बताया है कि यदि नीयत साफ हो, तो राजनीति भी समाज सेवा का सशक्त माध्यम बन सकती है। अब वे पार्टी की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बिहार के विकास और बदलाव के लिए सक्रिय भूमिका में होंगी।

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 29, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 03

कौन सा पत्ता पहले खिसक कर एनडीए के महल को धराशायी करेगा.?

मुझे इस बात का दुख होता है कि अपने द्वारा दिये गये समर्थन का, जहां पर अपराध पूरे तरीके से बेलगाम हो चुका है, इस पर नियंत्रण पाना जरूरी हो गया है नहीं तो इस तरीके से बिहार और बिहारियों की जिंदगी से होता हुआ खिलवाड़ बिहार को बहुत बुरे अंजाम में पहुंचा देगा। ये बयान किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे का नहीं है ना ही ये बयान किसी विपक्षी पार्टी के नेता द्वारा दिया गया है। ये बयान एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान का है जो दिल्ली दरबार में मोदी सरकार में मंत्री हैं और बिहार ही उनकी राजनीतिक जमीन है जो इस समय विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दा बन चुका है। चिराग पासवान ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि बिहार में जिस तरीके से हत्या, अपहरण, लूटमार, डकैती, बलात्कार एक के बाद एक श्रंखलाबद्ध तरीके से हो रहे हैं। अब तो ऐसा लग रहा है कि प्रशासन पूरे तरीके से नाकामयाब है इन घटनाओं को रोकने के लिए। अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये आने वाले दिनों में बहुत भयावह परिस्थिति उत्पन्न कर देगा। बड़ी डरावनी स्थिति हमारे प्रदेश में उत्पन्न हो चुकी है। चिराग ने मीडिया से आगे कहा कि जिन परिवारों ने अपनों को खोया है उनके हालात पूछिए, जिन बच्चियों के साथ दुष्कर्म हो रहा है उनके हालात पर गौर कीजिए। इन सब को रोकने की, नियंत्रित करने की जिम्मेदारी तो प्रशासन की है। पासवान ने सवालिया लहजे में पूछा कि कोई भी अपराधी आपके राज्य में आपराधिक घटनाओं को कैसे अंजाम दे रहा है, प्रशासन के रहते हुए। चिराग पासवान ने आरोपित लहजे में कहा कि हो रहे अपराधों में या तो प्रशासन की मिली भगत है या फिर प्रशासन इसमें लीपापोती करने में लगा हुआ है अथवा प्रशासन पूरे तरीके से निकम्मा हो चुका है और इनके बस में कुछ नहीं है।

चिराग पासवान का ये बयान नितीश कुमार की अगुवाई में चल रही डबल इंजन की सरकार और दिल्ली सल्तनत ने मुंह पर तमाचा है। चिराग पासवान की राजनीति की टोटल जमीन बिहार में ही है जिसमें उनका एकमुश्त वोट बैंक भी है जिसको ना तो जातीय समीकरण के आसरे ना ही विकास की राजनीति के आसरे डिगा पाने की स्थिति में फिलहाल तो कोई भी नहीं है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में चिराग पासवान का कद जितना बढ़ना चाहिए था बढ़ चुका है अब तो विधानसभा चुनाव में उनकी कोशिश अपने वोट बैंक को दूसरे हल्कों में बढ़ाने की है और चिराग पासवान को समझ में आने लगा है कि बिहार में नितीश कुमार के साथ खड़े होकर वोटों में विस्तार तो हो नहीं सकता है। उनको इसकी समझ भी आ गई है कि वे कितना भी ऐलान करते रहें कि दिल्ली दरबार में मेरी बहुत पकड़ और पहुंच है लेकिन इससे बिहार के वोटरों के हालात तो सुधरेंगे नहीं। उसके लिए तो पार्टी को विस्तार देना होगा।

एक छोटे चैनल के साथ बात करती हुई एक नन्ही बालिका ने बिहार में 20 सालों से राज कर रहे सुशासन बाबू के चेहरे पर से नकाब नोच कर भर नहीं फेंका बल्कि नितीश कुमार के घिनौने चेहरे को बड़ी मासूमियत के साथ सबके सामने नंगा कर दिया है। दरभंगा के मधुबनी में होने वाले मखाने को लेकर जिसका जिक्र पिछले दिनों खूब हुआ था वहां के स्कूल में पढ़ने वाली एक सात-आठ साल की बच्ची से जब मीडिया कर्मी ने पूछा कि तुम सुशासन बाबू की सरकार से क्या चाहती हो उसने कंपकंपाती आवाज में कहा कि सरकार स्कूल में दीवार खड़ी करवा दे, छप्पर डलवा दे, बरसात में यहां - वहां भागना पड़ता है, बरसात थमने के बाद जब फिर स्कूल आते हैं तो पढ़ने की खातिर बैठने के लिए सूखी जगह ढ़ूंढ़नी पडती है जो बमुश्किल नसीब होती है, गर्मी में झुलसाती धूप लगती है तो शीतकाल में बहुत ठंड लगती है। बच्ची की कंपकंपाती हुई आवाज बिहार सरकार को सरे बाजार दिगंबर करती है क्योंकि वह बच्ची दलगत और छल प्रपंच की राजनीति से बहुत दूर है।

राजनीतिक गलियारों में पीएम नरेन्द्र मोदी को लंबी-लंबी अविश्वसनीय बातों को फेंकने का सिरमौर माना जाता है तो स्वाभाविक है उनके पिछलग्गू कहां पीछे रहने वाले हैं वह भी मोदी की मौजूदगी में। ऐसा ही वाक्या सामने आया जब पीएम नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नितीश कुमार की उपस्थिति में बिहार में बीजेपी के कोटे से उप मुख्यमंत्री बने सम्राट चौधरी ने मंच से खुले तौर पर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 बरस में बिहार को 14 लाख करोड़ रुपये दिए हैं। ऐसा कह कर सम्राट चौधरी ने नितीश सरकार और मोदी सरकार को भृष्टाचार के दलदल में फंसा दिया है। बिहार में पिछले 20 बरस से नितीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं और पिछले दस बरस से बीजेपी नितीश के साथ मिलकर डबल इंजन की सरकार चला रही है। अगर एक बार सम्राट चौधरी की बात को ही सच मान लिया जाय (जबकि यह बात पूरी तरह से अस्वीकार योग्य है) तो फिर आज की तारीख में बिहार को सबसे पिछड़े राज्यों में क्यों गिना जाता है.? मतलब बहुत साफ है कि केन्द्र में मिलने वाला पैसा विकास कार्यों में लगने के बजाय भृष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।

पीएम नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दसईयों बार खुलेआम कहा है कि एनडीए ताश का महल नहीं है जो एक पत्ता निकल जाने से भरभरा कर गिर जायेगा। एनडीए बहुत मजबूत है और उसके कुनबे में शामिल राजनैतिक दल पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बिछाई बिसात पर चलते हैं। लेकिन मोदी और शाह द्वारा कही गई बात बीते दिनों की बात हो चली है। आज की स्थिति में जो नजारा नजर आ रहा है अगर उससे एक भी पत्ता सरका तो एनडीए भरभरा कर गिर जायेगी। पहला सवाल तो एक पखवाडे़ के भीतर चंद्रबाबू नायडू के जरिए निकल कर तब आया जब उनने अपने प्रदेश की राजधानी अमरावती के लिए अपने अनुकूल बजट और कार्पोरेट के साथ ही चुनाव आयोग के एसआईआर को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि यह हमें कतई मंजूर नहीं है। दूसरा सवाल नितीश कुमार के साथ जुड़ा हुआ है कि विधानसभा चुनाव के बाद जनता दल यूनाइटेड बचेगी या नहीं बचेगी। क्योंकि अगर चुनाव परिणाम नितीश कुमार के प्रतिकूल रहे तो क्या सब कुछ बीजेपी में शिफ्ट हो जायेगा, जेडीयू के बचे-खुचे सांसद और विधायक बीजेपी में मर्ज हो जायेंगे।

लेकिन इससे हटकर तीसरा सवाल चिराग पासवान को लेकर खड़ा हो गया है जिसमें वे खुले तौर पर ऐलानिया कहने लगे हैं कि जो हालात आज बिहार में दिखाई दे रहे हैं उसके मद्देनजर हमारी पार्टी नितीश कुमार की सरकार को समर्थन कैसे कर सकती है ? तो क्या बिहार चुनाव के पहले ही कोई खेला होगा जिसमें चिराग पासवान को यह लगने लगा है कि उनकी पार्टी एलजेपी अगर बीजेपी और जेडीयू के साथ मिलकर 50 सीटों पर भी चुनाव लड़ती है तो बिहार के भीतर उनकी स्थिति और भी दयनीय हो जायेगी ! भले ही सत्ता में उनकी भागीदारी नहीं है लेकिन अगर सत्ता के साथ खड़े है तो वोटिंग के स्तर पर भागीदारी का संदेश तो बिहार के उन बिहारियों में जायेगा ही जो चुनाव को लेकर आशा और निराशा के बीच झूल रहे हैं। बिहार के भीतर जितने भी स्कूल बिना छप्पर के चल रहे हैं अगर उन सभी में छप्पर डाल दिया जाये तो उस पर अधिकतम खर्चा होगा 60 हजार करोड़ रुपये का। बिहार पुलिस को ताकत और नैतिक बल देने के लिए जो बजट दिया जाना चाहिए उसमें भी अधिकतम एक लाख करोड़ रुपये ही चाहिए, जिसमें जीप, बंदूक, डंडे, पेट्रोल, डीजल सब कुछ आ जाएगा। यानी बिहार के 38 जिलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में एक लाख पैंतीस हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के निशाने पर अगर कोई है तो वह एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी शिवसेना। एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना के कोटे से बने मंत्रियों के सेक्रेटरी की पोस्टिंग मुख्यमंत्री फडणवीस की निगरानी में की जा रही है जिससे मंत्रियों को फ्री हेंड काम करने का मौका न मिल सके। एकनाथ शिंदे के मंत्री जिस तरह से खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं उसके चलते वे सोचने लगे हैं कि दोनों शिवसेना एकबार फिर एकरूप हो जाए।

एनडीए को दरकाने की शुरुआत तो चंद्रबाबू नायडू से शुरू होकर एकनाथ शिंदे और नितीश कुमार से होते हुए अपनी पराकाष्ठा पर चिराग पासवान के जरिए पहुंच चुकी है। क्योंकि बीजेपी ने अपने प्लान के मुताबिक भले ही संयोगवश ही बिहार की वोटर लिस्ट और विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बना दिया गया है। और अब बिहार में चुनाव नहीं जीतने का मैसेज एनडीए के उन घटक सदस्यों और बीजेपी के भीतर मोदी-शाह से दूरी बनाये हुए उन नेताओं के जमघट के लिए है जो यह मानकर चलते हैं कि जिस दिन चुनाव हारे और खासतौर पर वहां हारे जहां जीतना चाहते थे तब इनके साथ कौन खड़ा होगा ? शायद कोई नहीं। तब स्थिति उनके अनुकूल होगी या सत्ता के प्रतिकूल होगी, यह सवाल तो उठ ही सकता है । नरेन्द्र मोदी, नितीश कुमार 70 प्लस, अमित शाह 60 प्लस हैं। बिहार में बीजेपी के पास सुशील मोदी के बाद एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके आसरे बीजेपी अपनी जमीन बिहार के भीतर बना सके या उसे उडान दे सके । उन्हें नितीश कुमार का चेहरा चाहिए।

बिहार की राजनीति को साधने के लिए इस समय तीन युवा सामने खड़े हैं। जिसमें तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और चिराग पासवान शामिल हैं। इनको पता है कि आने वाले समय में राजनीति को नया मोड़ देना है या अपने अनुकूल करना है तो अपने बूते ही करना होगा। अतीत को कांधे पर लाद कर चलने से वोट मिलना असंभव सा है। बिहार की परिस्थितियां कितनी नाजुक हो चलीं है इसका अक्श नीति आयोग की रिपोर्ट दिखाती है जिसका जिक्र तेजस्वी यादव ने विधानसभा में यह कहते हुए किया - नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार सबसे गरीब राज्य है, बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, बिहार में सबसे ज्यादा पलायन होता है, बिहार में न कारखाने हैं न निवेश है न उद्योग है, न धंधा है। चिकित्सा, शिक्षा सबसे निचले स्तर पर है, प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, स्कूल ड्राप आउट रेट सबसे ज्यादा है। इसमें यह भी जोड़ दिया जाए कि बिहार दुनिया भर के राज्यों में से अकेला ऐसा राज्य है जहां का किसान दूसरे राज्य में जाकर मजदूर बन जाता है। मनरेगा का बजट सबसे कम है।

तो फिर बिहार और बिहार के चुनाव का मतलब क्या है ? जब नाउम्मीदी और इन परिस्थितियों में बिहार के चुनाव को देश की राजनीतिक सत्ता को गढ़ने या बिगाड़ने की दिशा में खड़ा हो चुका है। बिहार का चुनाव न केवल राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है बल्कि मोदी-शाह की पहचान बिहार चुनाव को जीतने से भी जुड़ गई है। तो कल्पना करें कि अगर बीजेपी बिहार में तमाम हडकंडो (जिसमें चुनाव आयोग का भी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में सहयोग रहेगा इसके बाद भी) चुनाव हार जाती है तो एक झटके में बीजेपी और एनडीए के सहयोगियों के बीच हडकंप मच जायेगा। उन्हें यह भी समझ आ जायेगी कि मोदी-शाह का जादू खत्म हो गया है। स्वयंसेवकों के जरिए आरएसएस द्वारा बनाई गई राजनीतिक जमीन भी खिसक चुकी है तथा जिस तरह से मोदी की रैलियों में नारे लगाने के लिए दूसरे राज्यों से लोगों को आयातित किया जाता है वह भी बेमानी साबित हो जायेगा। इलेक्शन कमीशन के द्वारा एसआईआर के जरिए बनाई जा रही नई वोटर लिस्ट और इलेक्शन कमीशन की सारी मशक्कत के बाद भी अगर बीजेपी बिहार में चुनाव हार जाती है तो फिर बीजेपी को ही मोदी-शाह की कितनी जरूरत होगी ? एनडीए को मोदी-शाह की कितनी जरूरत होगी ? तय है कि मोदी-शाह का गढा गया जबरिया तिलस्मी औरा एक झटके में बिखर जायेगा।

चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि देश में सबसे कम वोटिंग बिहार में होती है, बिहार में सबसे कम वोटिंग राजधानी पटना में होती है और पटना में सबसे कम वोट (30% से भी कम) अपर और मिडिल क्लास की आबादी वाले क्षेत्रों में पड़ते हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ाने के लिए कभी कोई मशक्कत नहीं की। सवाल यह है कि क्या एसआईआर के जरिए नई वोटर लिस्ट बनाने का खेला इसलिए किया जा रहा है कि तकरीबन 30 फीसदी उन वोटरों के नाम हटा दिए जायें जो बीजेपी की जीत के रास्ते में कांटा बने हुए हैं ताकि बीजेपी बिहार में चुनाव जीत जाय और जीत के बाद मोदी-शाह कह सकें कि हम हैं तो सब कुछ मुमकिन है। चुनाव आयोग ने जो किया हमारी जीत के लिए किया इसमें किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? सच तो ये है कि बिहार खुली हवा में सांस लेना चाहता है। हाथ में डिग्री लिए युवा रोजगार चाहता है। खेतिहर किसान अपने अनाज की न्यूनतम कीमत तय करना चाहता है। बिहार का लोग मजदूरी करने के लिए बाहर नहीं जाना चाहता यानी वह बिहार में ही काम चाहता है। क्या ये सब कुछ हो सकता है बिहार में ?

डूबते हुए राजनीतिक भविष्य के बीच उगते हुए सूर्य की तर्ज पर बिहार को देखने की शुरुआती चाहत लिए फिलहाल तीन युवा बिहार की चुनावी नैया को खेने के लिए हाथ में पतवार लिए तैयार खड़े हैं। तेजस्वी यादव चुनाव ना लड़कर भी बड़ी राजनीतिक चुनावी बिसात को बिछा सकते हैं। प्रशांत किशोर राजनीतिक तौर पर किसी पार्टी के साथ समझौता करके नई बिसात बिछाते हुए अपने  मुद्दों को राजनैतिक पटल खड़ा कर सकते हैं। चिराग पासवान एनडीए को लेकर कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं यानी चुनाव के पहले ही चिराग पासवान बीजेपी को खारिज कर सकते हैं। और अगर चिराग पासवान एनडीए से बाहर आते हैं तो उसका असर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और बिहार में नितीश कुमार की पार्टी पर भी पड़ेगा। सबको पता है कि देश की आर्थिक स्थिति कैसी है। सबको मोदी-शाह की तेज होती धड़कनें सुनाई देने लगी हैं दिल्ली की डगमगाती गद्दी को सम्हालते हुए। यानी इसका अह्सास मोदी सरकार में ऐश कर रहे जेडीयू, एकनाथ शिंदे की शिवसेना के मंत्रियों और खुद चिराग पासवान को हो चला है। इसीलिए चंद्रबाबू नायडू, एकनाथ शिंदे, चिराग पासवान और नितीश कुमार के जहन में यह सवाल बड़ा होता चला जा रहा है कि वो कौन सा पहला पत्ता होगा जिसके खिसकने से एनडीए रूपी ताश के पत्तों से बना हुआ शीशमहल भरभरा कर बिखर जायेगा।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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