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July 11, 2025
Ahaan News

डेंगू से बचाव के लिए हर सातवें दिन निभाएं सामाजिक जिम्मेदारी : डॉ गुड़िया

-एक हफ्ते में अपने घर के आसपास में जमे पानी को करें साफ

- सिविल सर्जन कार्यालय में डेंगू पर मीडिया कार्यशाला का हुआ आयोजन

-पिछले वर्ष 324 डेंगू के मरीज हुए थे प्रतिवेदित

बरसात के मौसम में डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। आने वाला एक से डेढ़ महीना डेंगू के प्रसार से अहम है। यह वह समय है जब तापमान और नमी के कारण साफ पानी में डेंगू के लार्वा ज्यादा पनपते हैं। यह लार्वा एक हफ्ते में ही मच्छर के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। अगर हम सामाजिक रूप से यह नियम बना लें कि हफ्ते में एक दिन अपने घर के आस-पास के छोटे कंटेनर का पानी उलट दें या निकाल दें, तो लार्वा को पनपने से रोका जा सकता है। ये बातें जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी ने सिविल सर्जन कार्यालय में शुक्रवार को डेंगू पर मीडिया कार्यशाला के दौरान कही। जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी ने बताया कि अभी का समय डेंगू के लिए काफी अहम है। डेंगू से कैसे बचें इस पर अभी ज्यादा बात करने की जरूरत है। इनके मच्छर साफ पानी में पनपते हैं और ज्यादातर दिन में ही काटते हैं। डेंगू के लिए सदर में 10, अनुमंदालिय अस्पताल में 5 तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 2 मच्छरदानी सहित बेड का स्पेशल वार्ड तैयार किया गया है। यहाँ 24 घंटे चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध है।

डेंगू की पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट ही मान्य:

डॉ गुडिया ने बताया कि डेंगू की पुष्टि के लिए सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर एनएस जांच किट उपलब्ध है। पॉजिटिव आने पर सदर अस्पताल में एलाइजा टेस्ट से उसकी पुष्टि होती है। सदर अस्पताल में सभी तरह की दवाएं मौजूद है। पॉजिटिव आने पर उसके घर के आस पास के करीब 100 मीटर के दायरे में फॉगिंग की जाती है।

इस वर्ष 2 केस हुए प्रतिवेदित:

डॉ गुड़िया कुमारी ने बताया कि वर्ष 2024  में कुल 324 केस प्रतिवेदित हुए थे। वहीं इस वर्ष अभी तक 2 केस प्रतिवेदित हुए हैं। दोनों ही मरीज ठीक होकर अपने घर जा चुके है। यह मामले पिछले वर्ष से काफी कम है। यह सिर्फ जागरूकता के कारण ही संभव हो पाया है। मौके पर  जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी, भीडीसीओ राजीव कुमार, भीबीडीसी धीरेन्द्र कुमार, कुमारी राधा, सीफार समन्वयक अमित कुमार सिंह, पिरामल पीएल पियूष कुमार एवं मीडिया कर्मी मौजूद थे।

डेंगू बुखार के लक्षण क्या है:

पेट दर्द, सिर दर्द, उल्टी, नाक से खून बहना, पेशाब या मल में खून आना, हड्डियों और जोड़ों में दर्द, तेज बुखार, थकावट, सांस लेने में दिक्कत, गंभीर मामलों में प्लेटलेट काउंट कम होना।

क्या डेंगू से बचा जा सकता है:

सही समय पर उचित कदम उठाने से डेंगू बुखार से आसानी से बचाव किया जा सकता है। डेंगू से बचने के लिए नीचे बताए गए उपाय किये जा सकते हैं:
मच्छरदानी का उपयोग करें।
घर में या आसपास पानी जमा न होने दें।
कूलर का पानी रोज बदलें।
पूरे बाजू के कपड़े पहने।
मच्छर से बचने वाले रिप्लेंट, क्रीम या कॉयल का प्रयोग करें।
पेड़ पौधों के पास जाएं या घर के बाहर निकलें तो शरीर को ढक कर जूते मोजे पहन कर निकलें।
पानी की टंकी को ढक कर रखें।
कीटनाशक और लार्वा नाशक दवाइयों का छिड़काव करें।
अपने घर के आसपास साफ सफाई बनाए रखने में जागरूकता फैलाएं।
स्वस्थ खान पान वाली जीवनशैली अपनाएं, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे।

डेंगू बुखार से आसानी से बचाव किया जा सकता है, लेकिन सही कदम उठाने के बाद भी डेंगू के किसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं, तो खुद से दवा लेने की भूल न करें और फौरन डॉक्टर से परामर्श लें।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 11, 2025
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घायल और अधमड़े बिहार को कोमा से बाहर निकालने का अंतिम उम्मीद ही जन सुराज और प्रशांत किशोर

बिहार की राजनीति में जातिवादी व्यवस्थाओं को पहली बार अपने परिवार के लिए वोट करने को कहां तो वह हैं जन सुराज

बिहार की राजनीति देश में कुछ अलग ही चलता है। भारत को हर वक्त एक नया नेतृत्व देने के प्रयास में अव्वल रहती बिहार स्वयं के लिए कभी आवाज़ नहीं बन पाया। जातिवादी व्यवस्थाओं के कारण और द्वेष को बढ़ावा देकर बिहार से कई राष्ट्रीय नेता जरूर बने लेकिन सब अपने परिवार में ही सिमटकर रह गए। बिहार में दलितों के नेता के रूप में पिछले 50 वर्षों से राम विलास पासवान अकेले चेहरा बने हुए हैं और आज स्मृति शेष होने के बावजूद भी उनके पुत्र पिता का चेहरा लेकर अपने चाचा, भाई, बहनोई के अलावा कई रिश्ते को संसद से लेकर विभिन्न आयोगों में स्थापित कर दिया। वहीं दूसरी ओर देखेंगे तो दलितों के लिए दलित सेना बनाकर रामविलास पासवान ने पुरे समाज को जिन्हें दलितों के नाम से पुकारा और उन्हें एक जुटकर वंशज को सदनों में अय्याशी का हिस्सा बनाया और लगातार बनाये रखने का माध्यम बनाकर रखा हुआ है जो बीज के रूप में था वह फसल परिवार को ही फायदा पहुंचा रही हैं। स्मृति शेष रामविलास पासवान ने अपने भाईयों, दमादों, भतीजे और सारी शक्ति सभी से लेकर पुत्र चिराग पासवान को सुपूर्द कर दिया। वहीं चिराग पासवान ने जातिवादी व्यवस्थाओं को लेकर बिहार में पिता के विरासत को बढ़ाकर दलितों का उत्थान नहीं होने दे रहे हैं और शोषण के विभिन्न आयामों को केंद्रीय मंत्रिमंडल से लागू कराते हैं। दलितों के लिए मतदाता बनने का भी संकट मंडरा रहा है।

वहीं पिछड़ा और गरीब - गुरबों के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी लगभग 50 वर्षों से बिहार से लेकर देश की राजनीति में गहरा प्रभाव डाला। यादवों की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव खुद एक अच्छी शिक्षा ली लेकिन बिहार के यादवों को दारू, बालू, चरस, गांजा जैसे अवैध धंधों में झोंके रखा और 15 साल संरक्षक बनकर उनकी तीन पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया। अगर बिहार में यादवों में शिक्षित, व्यवसायी और सभ्यताओं के साथ ढ़ुढ़ेंगें तो 5-10% ही मिलेंगे और वह भी वो लोग हैं जो लालू प्रसाद यादव से कभी प्रभावित नहीं हुए और ना ही उस सिद्धांत पर चलने का प्रयास किया। लालू प्रसाद यादव ने खुद चारा घोटाले के बाद जेल जाते हुए पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया जिसका शिक्षा जैसे शब्द से कोई वास्ता नहीं था। इसी कारण अपने दोनों बेटे जो कि सभी बहनों में छोटे हैं पढ़ाई-लिखाई से वंचित रहें, क्योंकि जिस समय दोनों पुत्रों (तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव) का जन्म हुआ बिहार में शिक्षा के लिए जगह नहीं था। 

कोई भी नेता यह नहीं कर सका जिसके लिए लोगों ने इतना बड़ा व्यक्तित्व बनाया उसने अपने ही जातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार और सुरक्षा से वंचित रखा। रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार यह सब देश की सत्ता से लेकर बिहार की सत्ता अपने जेब में रखा, लेकिन जनता के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जो याद रखें जाएं। दलितों, पिछड़े और गरीबों के उपरोक्त तीनों मसीहा स्वयंभू हुए लोगों के लिए सिर्फ भाषण दिए। वहीं इन तीनों के अलावें भी छिटपुट नेताओं का बिहार में आगमन हुआ और वह भी जाति के आधार पर जैसे उपेन्द्र कुशवाहा, नागमणि कुशवाहा, वहीं ताजा ताज़ा हुए मुकेश सहनी जो स्वयं के जातियों के लिए खतरा बने बढ़ें है। वहीं आपको याद होगा कि उपेन्द्र कुशवाहा नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ पहले कार्यकाल में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री, भारत सरकार रहें और शिक्षा पर ही आंदोलन करने सड़कों पर उतरे, जो बड़े आश्चर्य की बात रही। सदन और सत्ता में बैठकर मलाई खाने वाले उपेन्द्र कुशवाहा किसी ना किसी गठबंधन को जाति के आधार पर प्रभावित करतें हैं लेकिन जाति का भला से ज्यादा अपने लिए सत्ता लोलुपता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

वहीं कांग्रेस के बाद भारत की राजनीति में हिन्दुत्व के मुद्दे के सहारे दुसरी बार केन्द्रीय सत्ता में आने वाले बड़ी राजनीतिक दल भाजपा हैं। भारतीय जनता पार्टी ने लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार के सहयोगी बनकर बिहार को लगातार लूटने में लगे हैं। वहीं पिछले एक दशक में केंद्रीय नेतृत्व में बिहार से 80-90% तक लोकसभा सीट और विधानसभा चुनाव में 60-80% सीट लेने के बावजूद मजदूर सप्लाई राज्य बनाकर गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश (नोएडा), हरियाणा, राजस्थान के साथ देश के दर्जनों राज्यों को मजबूत करने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी आज भारतीय जुगार पार्टी बनकर किसी भी तरह सत्ता हासिल करने के सिद्धांत के साथ लगातार 11 वर्षों से लगी है। भारत के राज्यों में डबल इंजन की सरकार बनाना ही लक्ष्य लेकर भाजपा चल रही है और उसमें कई बार देखा गया कि सत्तारूढ़ होने से वंचित हो गए मगर केन्द्रीय सत्ता के बल पर सत्ता को जबरदस्ती छिन्न - भिन्न कर प्राप्त किया।

भारतीय जनता पार्टी के पास लगभग 06 अप्रैल 1980 से आज तक बिहार में एक भी नेता तैयार नहीं कर सका। नवनिर्मित राजनीतिक दल के रूप में भाजपा ने पहले लालू प्रसाद यादव को मदद कर बिहार सरकार में स्थापित कराया तो वहीं लालू प्रसाद यादव से तंग होकर नीतीश कुमार को बिहार सरकार की बागडोर में सहयोगी बनी हुई हैं। आज भाजपा को जब से नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संभाला हैं तब से राजद यानी लालू प्रसाद यादव के द्वारा सींचें गए गुलाम नेताओं को लेकर संगठन चला रही हैं। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को भाजपा विहीन कर राजद युक्त बना दिया है। बिहार भाजपा के लगातार प्रदेश अध्यक्ष राजद से उधार लेकर बनाया गया है जिसका कोई भी फायदा अब तक नहीं हुआ और भाजपा के कोर वोटर व संगठनकर्ताओं को मार्गदर्शन मंडल में बैठने को मजबूर कर दिया है। 

बिहार में एक सुदृढ़ सरकार की आवश्यकता है और आम आदमी भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा कर भी रही थी क्योंकि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के विकल्प में वहीं मौजूद थे। लेकिन भाजपा बिहार अपने पैरों पर 45 वर्षों में खड़ा नहीं हो सकी और संगठन को बर्बाद कर दिया गया जिसे सींचने में बिहार के महत्वपूर्ण लोगों का योगदान था। 

लेकिन अब बिहार के लिए एक बड़ी उम्मीद और अंतिम उम्मीद जन सुराज और जन सुराज के सुत्र धार प्रशांत किशोर हैं।

अब तक बिहारियों के पास लालू प्रसाद यादव का डर था और उस डर के विपक्ष में नीतीश कुमार और भाजपा (NDA) पर भरोसा कर लेती थी। वहीं प्रशांत किशोर ने बिहारियों के अंतिम उम्मीद के रूप में आकर बिहार के लोगों को संजीवनी देने का काम किया है। यहीं प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने दो विपरीत ध्रुवों को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को एकजुट कर नरेंद्र दामोदर दास मोदी के घमंड को चकनाचूर कर दिया था बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में। वहीं प्रशांत किशोर ने लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे को सदन में बिठाकर सुधरने का मौका दिया लेकिन परिवार से मिली लूट नीति काम और सैद्धांतिक सहमति के लिए बाधा बनकर खड़ी हो जाती है और राजनीतिक दृष्टिकोण से अब अंतिम दौर चल पड़ा है।

बिहार की राजनीति को समझने के लिए धरातल पर उतरने की आवश्यकता थी और हर घर तक जाकर बिहारियों को समझने के लिए उनके साथ समय देना आसान डगर नहीं था। लेकिन प्रशांत किशोर ने अमेरिका से लेकर भारत स्तर पर अपनी सोच़ और सुझबुझ का लोहा मनवाया है। बिहार में अब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार व (NDA) का विकल्प बनकर प्रशांत किशोर ने ऐसी लकीर खींच दी हैं कि अगर बिहारियों में थोड़ी भी समझ बची रही और स्वयं के साथ अपने परिवार के बारे में सोच़ ली तो सच मानिए बिहार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। वहीं प्रशांत किशोर के नेतृत्व में बिहार एक ऐसी व्यवस्था के साथ जन सुराज पार्टी को विकल्प से हटाकर उम्मीद बनाकर रख देगी।

आज एक फेसबुक से प्राप्त श्लोगन है कि -

घायल तो यहां हर परिंदा है..

मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है..

जन-जन की यही पुकार. 

अबकी बार जन सुराज..

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 11, 2025
Ahaan News

बैठकी ~~~~~ "धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इस्लामिकरण" (भाग-3)

ए भाई,इ त हिंदुए के देश में हिंदुअने के संग,बड़ा घोर अन्याय आ धोखाबाजी हो रहल बा।--मुखियाजी गंभीर लगे।


सरजी, हमारे संविधान में "धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद" सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं के हिस्से के देश से सनातन और सनातनियों को समाप्त करने के लिये हीं ठूंसा गया, जिसे देश की परिस्थितियां चीख चीखकर कर साबित कर रहीं हैं। देश का एक बड़ा तबका संविधान की जगह शरीयत को महत्व देता है, जिस देश में रहता है,सारी सुविधाओं का लाभ उठाता है,उस देश का जयकारा नहीं लगाता, भारत माता की जय कहने,राष्ट्रीय गीत गाने से परहेज़ करता है। ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है जिसमें धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की रेखा खींची गई है!! धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर एक समुदाय को, बहुसंख्यकों के प्रति, नफरती शिक्षा देने हेतु सरकारी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। उनके धार्मिक पर्यटन जैसे हज आदि करने के लिए सरकारी सहायता दी जाती है वही अन्य को नहीं।--सुरेंद्र भाई बैठते हीं अपनी कहे।

ये तो कुछ भी नहीं भाईजी, भारत में धर्मनिरपेक्षता की खुबसूरती देखिये! एचआर एण्ड सीई अधिनियम 1951(हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951) लागू करके लगभग चार लाख मंदिरों को और उन मंदिरों के पैसों को हिंदुओं से छीन लिया गया। इसके ठीक उलट मुसलमानों के मस्जिदों का और ईसाईयों के चर्चों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से उन्हीं समुदायों के हाथों में होता है। डा.अंबेदकर साहब ने भी ऐसे संशोधन को गैर सेक्युलर कहा था। यह अधिनियम और ऐसे हीं राज्य सरकारों द्वारा पारित कानून, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।--डा.पिंटु मुंह बनाये।

ए भाई,इ त हिंदुए के देश में हिंदुअने के संग,बड़ा घोर अन्याय आ धोखाबाजी हो रहल बा।--मुखियाजी गंभीर लगे।

मुखियाजी, बाहरी पंथ वाले आक्रांताओं द्वारा सदियों से छल बल से हिंदूओं पर अत्याचार होता आया है और धर्मांतरण कराते रहे हैं। जो हिंदुओं के साथ अत्याचार करते रहे हैं उन्हीं समुदायों को मंदिरों की आय से विषेश सहायता दी जाती है। आंध्र और कर्नाटक में हिन्दू मंदिरों की आय से हज सब्सिडी देने की बात,कई बार साबित हो चूकी है। धर्मनिरपेक्ष संविधान में मुस्लिम पार्टी कांग्रेस ने ऐसे संशोधन किये कि हिंदूओं को मुसलमानों और ईसाईयों की तुलना में कम धार्मिक, शैक्षणिक एवं कानूनी अधिकार हैं।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।

इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में...........

आज पुरे देश में हिन्दू युवतियों के विरुद्ध लव-जिहाद का षड्यंत्र चल रहा है फिर उनका धर्मपरिवर्तन कर दिया जाता है ताकि मुसलमानों की संख्या बढ़े और हिंदुओं की घटे। मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों का शिकार कर सके इसके लिए कांग्रेस ने 1954 में "विषेश विवाह अधिनियम लाया। छोड़िये न, हिंदू परिवार को नष्ट करने के लिये 1956 में कांग्रेस ने "हिंदू कोर्ट बिल" ले आयी ताकि हिंदू एक से अधिक विवाह न कर सकें और उनकी जनसंख्या सीमित रहे । लेकिन वहीं पर लाख गंदगी और बुराइयों के बावजूद "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को नहीं छुआ गया। मुसलमानों को तीन-तीन, चार-चार विवाह की छुट रही ताकि जनसंख्या विस्फोट करके भारत का "गजवा-ए-हिंद" किया जा सके। जिसका परिणाम आज हिंदूओं के लिये चिंता का सबब बन गया है। जिस शहर या गांव में इनकी संख्या बीस प्रतिशत हुई नहीं कि हिंदूओं का जीना हराम कर रहें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।

काकाजी,हम भुले नहीं है 1975 की इमरजेंसी। उस इमरजेंसी काल में कांग्रेस ने जबरन लाखों हिंदुओं नवजवानों की नसबंदी करवा दिया था ताकि भारत की डेमोग्राफी बदल दी जाय।आज उसका परिणाम दिख रहा है। रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या रेशियो साढ़े सात प्रतिशत के करीब घटा है वहीं मुसलमानों का साढ़े तैंतालीस प्रतिशत के करीब बढ़ा है।--सुरेंद्र भाई बोल पड़े।

कांग्रेस मुस्लिम परस्त पार्टी है इसमें अब किसी को शंका नहीं रह गई है। प्रमाणित है कि गांधी पुर्णत: मुस्लिम परस्त थे जबकि नेहरू छद्म हिंदू। इंदिरा गांधी ने भी अफगानिस्तान में बाबर के मकबरे पर जाकर इसे प्रमाणित किया है। देखा नहीं आपलोगों ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय करोड़ों बंग्लादेशी मुसलमानों को कांग्रेस ने भारत में शरण दी और राजीव गांधी ने भारतीय नागरिकता। कोई भी मुस्लिम राष्ट्र, मुस्लिम शरणार्थियों को शरण नहीं देता।वो गैर मुस्लिम देश में शरण लेते हैं और जबरदस्त जनसंख्या विस्फोट करके उसे जबरन इस्लामिक राष्ट्र बना देते हैं। 57 मुस्लिम राष्ट्र इसी ढ़र्रे पर बने हैं। छोड़िये न!! आज से 100 साल पहले परसिया नामक देश था। वहां 4 हजार मुसलमानों ने शरण ली। नतीजा!!वहां के मूल निवासी पारसी खत्म हो गये और आज वो इस्लामिक राष्ट्र "इरान" है।--डा. पिंटू पैर फैलाते हुए।

कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता देखिये! सिर्फ मुसलमानों के हितार्थ,भले हीं नाम सिख, ईसाई,जैन, बौद्ध का जुड़ा हो,1992 में अल्पसंख्यक आयोग कानून बनायी ताकि मुसलमानों को हर तरह का सरकारी संरक्षण एवं आर्थिक एवं कानूनी सुविधाएं मुहैया कराया जा सके।
भला बताइये!! धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म और पंथ के नाम पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होता है क्या!! लेकिन उद्देश्य तो परोक्ष में दुसरा है। याद आया, इस्लामिक आक्रांताओं ने हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना दी हैं तो स्वतंत्र भारत में हिंदू, कानूनी तरीके से अपना मंदिर वापस न ले सके, इसके लिए धर्मनिर्पेक्ष देश में सत्ताधारी कांग्रेस ने पूजा स्थल अधिनियम-1992 लायी। फलस्वरूप हिंदुओं के 40 हजार मंदिर छीन लिये गये।--मास्टर साहब भी अपनी कहे।

ए मास्टर साहब, हमरा त बुझाता कि अब हमरो देश 25-30 बरीस के मेहमान रह गईल बा।--मुखियाजी निराश दिखे।

मुखियाजी,देख नहीं रहे हैं! हमारे देश में हिंदुओं के देवी-देवताओं पर भद्दी भाषा, देवियों की अश्लील चित्रकारी, रामायण जलाना, मनुस्मृति फाड़ना, हमारे सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया कहना, हिंदुओं की आस्था गौ माता की हत्या करना,आम बात हो गई है। हमारे देश में मुस्लिमों द्वारा,देश विरोधी नारे लगाना, दुश्मन देश पाकिस्तान की जयकारें लगाना,  उनके लिए जायज है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक देश है। इनके मुल्ला मौलवी कहते हीं हैं कि हमारे लिए संविधान नहीं शरीयत प्रमुख है। देश के कानून और न्यायालय को भी इसमें अभिव्यक्ति की आजादी दिखती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू इन मुल्लों, इस्लाम परस्तों, उनके अमानवीय रसुलों, गंदे व्यवहार प्रतिमानों पर टिप्पणी करे तो सर धड़ से अलग करने की खुल्लमखुल्ला धमकी मिलती है। देश विरोधी घुसपैठियों के संरक्षण में कई मुस्लिम संगठन एक्टिव हैं। इनके पक्ष को लेकर कांग्रेस माइंडेड हिंदू वरिष्ठ वकील, न्यायालय में गुहार लगाते हैं और न्यायालय भी उनकी सुनता है। तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहां दिखेगी!!--उमाकाका क्षुब्ध थे।

ए भाई लोग,आज अब अतने रहे दिल जाव। हमार मुड खराब हो गईल।--कहकर मुखियाजी उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!

आलेख - लेखक

प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 10, 2025
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मिनिमम बैलेंस का झंझट खत्म, बैंकों की बड़ी पहल

*अब खाली खाते पर नहीं कटेगा पैसा : आम खाताधारकों को बड़ी राहत, कई बैंकों ने खत्म किया मिनिमम बैलेंस का झंझट*

बैंक में खाता रहना भारत में अनिवार्य है क्योंकि डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ता भारत सभी कामों को डिजिटल रूप में करने में लगा है। उसी दौर में बैंकिंग सेवा को भी डिजिटल रूप में बदल दिया गया है। बैंकिंग क्षेत्र में लगातार बदलाव होते जा रहे हैं तो और बड़े बदलाव हुए हैं भारत के कुछ बैंकों में। अब अगर आपके खाते में पैसा नहीं भी है, तो भी घबराने की ज़रूरत नहीं। देश के कई बड़े सरकारी बैंकों ने वह नियम ही खत्म कर दिया है, जिसके तहत खाताधारकों से मिनिमम बैलेंस न रखने पर हर महीने जुर्माना वसूला जाता था।

Canara Bank, PNB, Bank of India, Indian Bank और Bank of Baroda जैसे सरकारी बैंकों ने अपने सभी बचत खातों पर यह शर्त हटा दी है। यानी खाता खाली रहने पर भी पैसा कटेगा नहीं, और ग्राहक बिना किसी डर के अपना खाता चालू रख सकते हैं। RBI की नई गाइडलाइन में भी साफ कहा गया है कि बैंक खाताधारकों को माइनस बैलेंस में नहीं ले जा सकते। यानी अब कोई बैंक ग्राहक से जबरन शुल्क नहीं वसूल सकता।

यह फैसला खासतौर से उन लोगों के लिए बड़ी राहत है:

• जिनकी मासिक आमदनी कम है,

• जो ग्रामीण क्षेत्र या मजदूरी पर निर्भर हैं,

• बुज़ुर्ग पेंशनधारक,

• या वो लोग जो खाते को जरूरत के समय ही उपयोग करते हैं।

* बड़ी बात यह है —*

* अब बैंक का खाता रखने के लिए जेब ढीली करने की मजबूरी नहीं रही।

* यह ग्राहक के अधिकारों और विश्वास की जीत है, जिसे लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा था।

भारतीय रिजर्व बैंक ने बहुत बड़ी पहल करते हुए मिनिमम बैलेंस का सिस्टम खत्म कर आम लोगों को बड़ी राहत दी। अब बैंकिंग से आम लोगों को जुड़ने का अच्छा अवसर मिलेगा।

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 10, 2025
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मलमलिया कौड़ियां की घटना आत्मसम्मान और आत्मरक्षा क लिए उठाया गया क़दम

भारतीय संविधान में भी वर्णित हैं कि आत्मरक्षा के लिए किया गया जघन्य अपराध को भी अपराध नहीं माना जाएगा

मलमलिया कौड़ियां की घटना दिल झकझोर देने वाला हुआ और ऐसी घटनाओं की हमेशा निंदा होनी चाहिए और साथ ही साथ ऐसा ना हो इसके लिए प्रयास होना चाहिए। इसके लिए प्रयास की जिम्मेवारी संवैधानिक रूप में समाज की होनी चाहिए और समाज के वो लोग जो उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधी है जैसे - पंच, सरपंच, वार्ड, मुखिया, समिति, जिला परिषद आदि को लेनी चाहिए। इससे के आवश्यक होगा कि स्थानीय जनप्रतिनिधि को अधिकार दे और ताकत मिलनी चाहिए ताकि मजबूत निर्माण ले सकें और जब ताकत या ऐसी कोई भी बात जो उनके द्वारा नहीं संभाला जा रहा है तो वह थानों के माध्यम से उच्च अधिकारियों, न्यायालयों तक पहुंचाकर समाज को मजबूती प्रदान करें।

हम अक्सर देखते हैं कि भारतीय संविधान के द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा और शासन व्यवस्था को चलाने के लिए पुलिस की व्यवस्था की गई हैं। वहीं बिहार जैसे राज्य में बिहार पुलिस थानों में दलाल बनकर रखते हैं और किसी भी क्षेत्र के लोगों का आवेदन पत्र मिलता है तो उसकी चर्चा दलालों से पहले की जाती हैं। वहीं आवेदन को क्या करना है यह आराम से सोचा जाता है और उसमें दूसरे पक्ष की राजनीतिक मजबूती के आधार पर किया जाता हैं। जिसके कारण आम लोगों के किया गया आवेदन हमेशा एक कागज़ का टुकड़ा बनकर रह जाता हैं। इसी कड़ी का एक बड़ी घटना के रूप में सामने आती हैं वह हैं आज के हेडलाइन व, जिसमें कई लोगों की जिंदगी समाप्त हो गई।

आपको बता दें कि मलमलिया कौड़ियां वैश्यटोली घटना के बारे में जब स्थानीय लोगों से बात की गई तो उनका कहना है कि यह वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी। यह पुरानी रंजिश नहीं थी, तो आखिर मामला क्या था ? इसपर बात करते हुए लोगों ने सवालिया लहजे में बताया कि आप सोचिए कि 60 वर्षीय कोई व्यक्ति इतना बड़ा जघन्य अपराध कैसे कर सकता है? मृतक पक्ष के लोगों के द्वारा शत्रुघ्न सिंह को शराब का कारोबारी बताया जा रहा है। आतंकवादी की उपाधि तक दी जा रही है, तो मृतक पक्ष के लोगों से मेरा एक सवाल है कि क्या आपका कन्हैया सिंह मंदिर का पुजारी था। अगर आपका कन्हैया सिंह मंदिर का पुजारी था तो हाल में ही घटी घटना जहरीली शराब कांड में जेल क्यों गया था ? 

वहीं आगे कहते हैं कि अब एक दो और तीखा सवाल अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वालों से अगर यह कोई पुरानी रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी तो अखिलेश सिंह मुखिया (मृतक रोहित सिंह के पिता)  2005 में शत्रुघ्न सिंह के ऊपर गोली क्यों चलाया था? उसका भी F.I.R भगवानपुर हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह के द्वारा किया गया था। जिसका कांड संख्या 94/05 है।

2005 से पूर्व भी 2001 में शत्रुघ्न सिंह के साथ मृतक पक्षों ने मार पीट की थी। जिसका F.I.R भगवान हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह द्वारा किया गया है। जिसका कांड संख्या 32/01और 33/01 है।

जब ये पुरानी रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी तो पुनः 20 साल बाद 16/06/2025 को 60 वर्षीय शत्रुघ्न सिंह पर जानलेवा हमला क्यों किया गया? उस हमला का भी F.I.R भगवानपुर हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह के द्वारा किया गया है। जिसका कांड संख्या 272/25 है।

जब घटना पक्ष के लोग साधु हैं तो—04/07/2025 यानी घटना के दिन सुबह 07:00 बजे 20 से 30 लोग शत्रुघ्न सिंह के दरवाजे पे गाली गलौज और फायरिंग क्यों किए ? इसकी भी सूचना आवेदन के माध्यम से शत्रुघ्न सिंह की पत्नी रिंकी देवी थाना प्रभारी महोदय भगवानपुर हाट को दी थी।

04/07/2025 यानी घटना के दिन शाम को 04:00 बजे मलमलिया में शत्रुध्न सिंह को द्वितीय पक्ष द्वारा जब समझौता के लिए बुलाया गया था, तो द्वितीय पक्ष के लोग 20-30 की संख्या में मलमलिया में लाठी, डंडे, गोली-बंदूके लेके क्यों गए, इसके कारणों का ( इसका भी सबूत चाहिए तो कौड़ियां वैश्यटोली से लेके मलमलिया तक के बीच लगी CCTV कैमरा का जांच किया जाए) पता चल जाएगा।

इतना बड़ा घटना होने के बाद भी मृतक पक्ष के लोगों का मन नहीं भरा तो कानून को ताख पे रख के शत्रुघ्न सिंह और उनके बड़े भाई  केदारनाथ सिंह के घर पे जाके महिलाओं के साथ छेड़छाड़ किया और उनके घर, दालान और दालान में लगी हुई ट्रैक्टर और 3 मोटरसाइकल को आग के हवाले भी कर दिया गया। इसके बाद शत्रुघ्न सिंह के बड़े भाई केदारनाथ सिंह के चिमनी को तोड़ दिया गया और चिमनी पर लगा CCTV कैमरा और हार्ड डिस्क का भी चोरी कर लिया गया। शत्रुघ्न सिंह के 3–3 हाईवा गाड़ी को तोड़-फोड़ कर दिया गया। 

सच तो यह है कि 25 वर्षों से लगातार शत्रुघ्न सिंह को मृतक पक्ष द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था और उनके सामने ऐसी परिस्थितियों बनाई गई जिसके कारण 60 वर्षीय शत्रुघ्न सिंह को अपने आत्मसम्मान और आत्मरक्षा के लिए जघन्य अपराध और अपराधी बनने के लिए मजबूर किया गया।

यह कई लोगों के साथ हुई बातचीत के बाद निकाली गई घटना का एक निष्कर्ष हैं। वहीं इस घटना को जातिय रंग देना बहुत ही निम्न स्तर की राजनीति हैं। लगभग 25 वर्षों से यह सम्मान की लड़ाई होते हुए और जिला प्रशासन की अबतक सही जिम्मेवारी नहीं उठाने का परिणाम आज मौत का तांडव देखने को मिला। 

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July 09, 2025
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बैठकी ~~~~~~ "धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इस्लामिकरण"(भाग-2)

इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में..........


बैठकी जमते हीं कुंवरजी बोल पड़े--"सरजी, धर्मनिरपेक्षता का हिंदूओं पर ऐसा प्रभाव पड़ा है कि आज के पढ़े लिखे, बड़ी बड़ी डिग्रीधारी लड़के लड़कियों से गायत्री मंत्र या हनुमान चालीसा हीं पुछिये तो नहीं बता पा रहा है। आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली और आजाद भारत में लगातार रहे मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने हमारे गौरवशाली इतिहास और श्रेष्ठ संस्कृति को इस कदर तोड़ मरोड़ दिया कि हमारे बच्चे अपने धर्म एवं संस्कृति से दूर होते चले गये । इसके लिए फिल्म उद्योग एवं संचार के साधनों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया।"

कुंवरजी,इस धर्मनिरपेक्षता ने सिर्फ हिंदुओं के लिए ऐसे जहर का काम किया जिसने भारतीय समाज एवं संस्कृति की रीढ़ हीं झुका दी है। हमारी पीढ़ी को अपने पूर्वजों के गौरव, अस्मिता, संस्कृति, भाषा, धार्मिक प्रतिकों, आस्थाओं के प्रति शंकालु बना दिया है। धर्मनिरपेक्षता की सहज गति है कि यह अपने महान साहित्य, धरोहरों आदि की ओर से लगाव खत्म कर देता है।--मास्टर साहब हाथ चमकाये।

इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में..........
आज अच्छे यूनिवर्सिटी के नौजवानों से पुछिये कि प्रभु राम के पिता कौन थे तो नहीं बता पाते हैं। धर्मनिरपेक्षता का हमारे हिन्दू नौजवानों पर असर का हीं परिणाम है कि उसे भारत का हिंदू समाज, हिंदू रीति-रिवाज, घोर ब्राम्हणवादी, पतनोन्मुख, विभेदकारी, जातिवादी और अंधविश्वासी दिखने लगता है। उसे सभी पंडित ठग नजर आते हैं। मुस्लिम जालिम आक्रांताओं के अत्याचारों को और साम्राज्यवादी दहन को आम मध्यकालीन व्यवहार मानकर गंभीरता से नहीं लेता।
अपनी महान और वैज्ञानिक भाषा, संस्कृत को सिर्फ पूजा पाठ की मृत भाषा समझता है। प्राचीन सनातनी ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, गणित, ज्योतिष विद्या आदि को झुठ और बकवास समझता है जब कि आज नासा के वैज्ञानिक भी उसी सनातनी धर्मशास्त्रों को आधुनिक विज्ञान का आधार कबुल करते हैं।--उमाकाका भी साथ देते हुए।

काकाजी, जहां एक ओर हिंदू धर्मग्रंथों और आधुनिक विज्ञान में कोई विरोधाभास नहीं वहीं अन्य पंथों के धार्मिक ग्रंथ, विज्ञान से कोसो दूर हैं। जैसे मुस्लिम मौलाना, मौलवियों द्वारा मदरसे में,अपने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि पृथ्वी चपटी है, सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है या चांद के दो टुकड़े हुए, आदि आदि।
खैर, इतना तो आज साबित हो गया है कि स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस जनित सेक्युलरिज्म एवं समाजवाद, भारत की कुण्डली में राहु केतु की तरह आसन जमाये बैठे हैं।--डा. पिंटू भी बहस में।

डा. साहब, आजादी के साथ हीं कांग्रेस बड़ी चतुराई से हिंदुओं को नंगा करती रही, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारे अधिकारों पर कैंची चलाती रही और हम हिन्दू, अपनी आंखें मुंदे सोते रहे। जैसे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर संविधान का अनुच्छेद 25 के माध्यम से धर्मांतरण को वैध बनाना। हिंदू तो धर्मांतरण कराता नहीं तो होगा किसका!! हिंदुओं का हीं न! हर साल हजारों हिंदू लड़कियां लव जिहाद और धर्मांतरण का शिकार हो रहीं हैं।


वाह रे! कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता!! आगे सुनिये,अनुच्छेद 28 के माध्यम से हिंदूओं से धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार, कांग्रेस ने छीन लिया। वहीं अनुच्छेद 30 के माध्यम से मुसलमानों और ईसाईयों को अपनी धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता प्रदान की गई। हिंदुओं के देश भारत में ये कैसी धर्मनिरपेक्षता!!--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।

भारत में मजहब के नाम पर मदरसों और मस्जिदों में चार साल की उम्र में हीं बच्चों को कट्टर मजहबी शिक्षा दी जाती है जो धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि काफिरों के विरुद्ध हिंसात्मक होती है जो इनके इन मासूम बच्चों के मस्तिष्क से मानवीय मूल्यों और गुणों की जगह जिहादी चरित्र बनाती है जो हाई एजुकेशन लेने के बाद भी जेहन से नहीं निकलता। इन्हें कुरान की आयतों की शिक्षा दी जाती है जो गैर इस्लामियों के विरुद्ध हिंसा एवं अत्याचार का पाठ सिखाती है। यह कीड़ा ताउम्र इनके दिमाग से नहीं निकलता।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।

भला बतायीं! इ धर्मनिरपेक्ष देश में,  अइसन नफरत के पढ़ाई पढ़ावे के अनुमतीये ना मिलेके चाहीं। बाकी हम सुनले बानी जे इहे कुल नफरती सोच वाला पढ़ावे खातीर, सरकार से मौलाना, मौलवी के सरकार तलबो देले।--मुखियाजी खैनी मलते हुए।

मुखियाजी,इस धर्मनिर्पेक्ष देश में एक ओर ऐसी संवैधानिक छूट अल्पसंख्यक के नाम पर इन्हें दी गई है दुसरी ओर सनातनी हिंदुओं के बच्चों को सामान्य स्कूलों में आपस में हम भाई, भाई हैं अर्थात भाईचारा का पाठ पढ़ाया जाता है। "अहिंसा परमो धर्म", "सर्व धर्म समभाव" की शिक्षा देते हैं। सच पुछिये तो हम बच्चों को जानवरों की तरह कट जाने, डरपोक बनने की ट्रेनिंग देते हैं। हम बच्चों को दया, क्षमा, अहिंसा,भौतिक सुख समृद्धि प्राप्त करने की ओर ले जाते हैं क्योंकि हमारा सनातन किसी के प्रति घृणा की सीख नहीं देता। हमें पढ़ाया गया है कि "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना"।--डा.पिंटु गंभीर लगे।

मुखियाजी, ये तो कुछ भी नहीं! भारत एक ऐसा धर्मनिर्पेक्ष देश है जहां डर अल्पसंख्यक मुसलमानों को लगता और घर छोड़कर हिन्दू भागने को मजबूर होता है। चाहे कश्मीर हो या बंगाल।आज अब समय नहीं है,कल बताऊंगा कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के नाम पर हिंदुओं के साथ कैसे कैसे पाप किये हैं! इस हिंदुओं के देश में हिंदुओं के खिलाफ इतने कानून बनें हैं कि उसे चुनौती देना तो दूर उसके बारे में चर्चा तक नहीं करते।अच्छा चला जाय।--कहकर सुरेन्द्र भाई उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!!(क्रमशः)

आलेख - लेखक

प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)

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July 09, 2025
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राहुल गांधी को निष्पक्ष राजनीति की ओर स्वतंत्रता के साथ बढ़ना चाहिए, लालू परिवार आतंक का प्रतीक

तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव के गुनाहों की दर्जनों बार मांफी मांग चुके हैं परंतु संस्कार में परिवर्तन नहीं हुआ

लोकतंत्र में विश्वास और विरोध बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ होता हैं। जहां सरकार को नए कानून लाने और लागू करने से पहले जनमत संग्रह की व्यवस्था करनी चाहिए, तो वहीं विपक्ष में रहने वाले राजनीतिक दलों को भी जनमत संग्रह की लिखित व्यवस्था बनानी चाहिए। लेकिन आज़ाद भारत में जो भारत का संविधान बना वह राजनीतिक दलों और उनके साथ सदन में पहुंचने वालों पर लागू नहीं होता है। जिसका परिणाम यह है कि आज तक विरोध का शिकार सिर्फ और सिर्फ आम लोग होते हैं। हर राजनीतिक दल जैसे भाजपा हो, राजद हो, कांग्रेस हो या देश के हजारों पार्टियां वह सरकार और सत्ता का विरोध कभी नहीं करती हैं। बल्कि दोनों (सत्ताधारी और विपक्ष) मिलकर एक गठजोड़ सत्ता जनता के बीच लेकर जाती है कि एक पक्ष में रहेगा और दुसरा विरोध में, वहीं दोनों सड़कों पर उतर कर आम आदमी को उनके घरों में नज़रबंद कर देती आ रही हैं।

आज सोशल मीडिया के युग में भी सत्ता और विपक्ष के गठजोड़ को जनता भी नहीं समझ पाई है और जिसका परिणाम है कि आपस में जो एकसाथ रहकर बैठते हैं, चाय पीते और कभी पार्टी कर खाना पीना करते हैं वह आज जैसे बंदियों में एक दूसरे के खिलाफ सड़कों पर दिखाई देते हैं। आज पुनः बिहार में भारत सरकार के नेतृत्व में संचालित चुनाव आयोग के एक ग़लत फैसले की सज़ा बिहार के आम लोगों को भूगतना पड़ा। चुनाव आयोग का ग़लत फैसला इस मायने में हैं कि महज़ 13-14 महीने पहले भारत के लोकसभा का चुनाव हुआ और प्रधानमंत्री उसी मतदाताओं के मत से सत्ता भोग रहें हैं। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी को ऐसा रूप दिया गया जिससे आम आदमी भारत सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार, विदेश नीति, रात के अंधेरे में ऑपरेशन होने वाले तथ्यों पर बात ना करें तो बिहारियों को फोटोकॉपी योजना में फंसा दिया।

जैसा कि विपक्ष में बैठे लाभार्थी और राजनीतिक दलों को बिहार में किसी भी तरह सत्ता में आना है। जिसके लिए एक बड़ा दावा यह किया कि - "बिहार में करोड़ों दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों से उनका 'वोट का अधिकार' छीनने का षडयंत्र रचा जा रहा है। यह सरासर अन्याय है। यह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी के संविधान पर हमला है। यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। हम ​यह किसी कीमत पर नहीं होने देंगे।"

जिसको लेकर भारत के संसद में नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी, बिहार में राजद के प्राईवेट लिमिटेड पार्टी के अध्यक्ष पुत्र तेजस्वी यादव, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, CPI और माले ग्रुप से भी बंगाल से लोगों का हुजूम के साथ ही और INDIA गठबंधन के वरिष्ठ नेता व हजारों की संख्या में कार्यकर्ता तथाकथित अन्याय के खिलाफ सड़कों उतरे। जिसमें मुख्य वाहन पर जिसपर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चढ़ कर रैली का हिस्सा बने उसपर दर्जनों लोगों की मौजूदगी रही लेकिन पप्पू यादव जो लगभग 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से बिहार से लेकर दिल्ली की राजनीति में सदन का सदस्य रहे और आज भी हैं को नहीं चढ़ने दिया गया और वहीं मौजूद INDIA  गठबंधन के नेताओं में युवा और सबसे विद्वान कन्हैया कुमार को राहुल गांधी अपने साथ नहीं लेकर चल पाए। 

राहुल गांधी ने बिहार की राजनीति को लालू प्रसाद यादव के एक जाति के संख्या और गुंडागर्दी के इतिहास के साथ जाना कांग्रेस की क़ब्र सीधे खोदने वाली दिखाई दी। लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में लोगों को जिन्हें असहाय और कमजोर कहकर आवाज़ देने का काम किया का दावा हकीकत में लोगों को गुंडा और अपराधी बनाने में मदद करते दिखाई देता है। आज के बिहार बंदी में भी पुरे बिहार से जो ख़बरें आ रही है उसमें यह स्पष्ट है कि लालू प्रसाद यादव और उनकी जाति के लगभग 80% लोग सड़कों पर आकर आज भी लूट और डकैती करने का काम किया। आज बिहार बंदी में अपने जाति के लोगों को तेजस्वी यादव ने माता-बहन योजना के तहत माता-बहनों के प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ खिलवाड़ करने को बल दिया।

राहुल गांधी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है और ना ही सामान्य परिवार के सदस्य हैं। इसलिए राहुल गांधी को कांग्रेस को गठबंधन वह भी राजद जैसे गुंडागर्दी करने वाली पार्टी से दूरी बनाकर स्वतंत्र रूप से बिहार के चुनाव में आना चाहिए। बिहार को एक मजबूत और दृढ़ सरकार देने की किसी दल में क्षमता है तो वह कांग्रेस ही है और कमोवेश नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन के अंत के साथ अकेले अगर भाजपा चुनाव में रहे। लेकिन दोनों गठबंधन जातिवादी और जनसंख्या वृद्धि योजना के तहत देश और राज्यों का विकास छोड़कर सत्ताधारी बनने में आम लोगों को लेकर दंगाई बना रहीं। वहीं किसी पर FIR हो जाए तो कोई राजनीतिक दल किसी को पुछने तक नहीं जाती हैं।

आंदोलन के स्वरूप में बदलाव की जरूरत है अगर राजनीतिक दल करते हैं तो :-

आम लोगों के सहुलियत और उनके शुभ चिंतक बनकर आजाद भारत में भाजपा, कांग्रेस, राजद और जो भी राजनीतिक पार्टी हैं उन्होंने दंगा करने और आतंक फैलाने का काम किया। आम आदमी को जागरूक करने में किसी भी राजनीतिक दल ने आज तक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि सभी ने जनता के ही संसाधनों को लेकर उन्हें ही लूटेरा और गुंडा बनाकर सत्ताधारी बनते रहे हैं।

अब समय आ गया है कि अगर किसी राजनीतिक दल को किसी भी तरह का विरोध करना है तो वह भारत सरकार और राज्य सरकार के कार्यालयों में ताला बंदी करें। सत्ता लोलुपता में जो भी सत्ताधारी पार्टी हैं उनके सांसद और विधायक को बंदी बनाये और नज़र बंद करें। वहीं बड़ा हौसला और दम रखते हैं तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का घेराव करें। वहीं सत्ताधारी पार्टी और सरकार को दिक्कत है तो सीधे विपक्ष के घरों में घुसकर दंगा फ़साद करें। अब राजनीति दल जनता को बकस दें।

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July 09, 2025
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बैठकी ~~~~~ धर्मनिरपेक्षता की आड़ में इस्लामिकरण (भाग-1)

धर्म के तीन अंग हैं-- 1-सापेक्ष, 2-अध्यात्म, 3-उपासना


 

बैठकी जमते हीं उमाकाका बोल पड़े --"सरजी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के हालिया बयान कि "इमर्जेंसी काल में कांग्रेस द्वारा जबरन संविधान की प्रस्तावना में ठूंसे गये शब्द "धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद" को हटाया जाना चाहिए"। इस बयान ने एक नये विवाद को जन्म दे दिया है।
सवाल ये है कि संविधान की प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ने का औचित्य क्या था!! जबकि संविधान के निर्माण के समय हीं इसमें धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा निहित थी!"

काकाजी, संविधान की अवधारणा में निहित होने के बावजूद कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान,42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के तहत, प्रस्तावना में संशोधन करते हुए पंथनिरपेक्षता को जोड़ा। पंथनिरपेक्षता का तात्पर्य धर्मनिरपेक्षता से है। जिसका अर्थ यह लगाया गया कि भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का पक्ष लेगी और न हीं किसी पंथ का विरोध करेगी। लेकिन दुर्भाग्य है हिंदुओं का! जिस कांग्रेस पर हिंदुओं ने विश्वास किया वो संविधान की मूल भावना का गला घोंटने के क्रम में, इस्लामिक आधार पर विभाजित और हिंदुओं के हिस्से के भारत को गजवा-ए-हिंद करने के षड्यंत्र के तहत, संविधान को हीं इस्लामिक संविधान बना डाला।--मास्टर साहब मुंह बनाये।

एकदम सही बोले हैं मास्टर साहब, दो-दो पापीस्तान ईस्ट और वेस्ट बनाये गये तो बाकी बचे खुचे बीच के भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था लेकिन गांधी और नेहरू जैसों की षड़यंत्रकारी कांग्रेस ने वो कभी होने नहीं दिया बल्कि बंटवारे के बाद,वो सारे संवैधानिक प्रक्रम किये जिससे शेष भारत भी मुस्लिम राष्ट्र बन जाये।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।

मुखियाजी, आजादी के बाद से हीं कांग्रेस ने तुष्टीकरण का ऐसा खेल खेला कि आज धर्मनिरपेक्ष भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं की ये स्थिति है कि इनके अयोध्या के श्रीराम मंदिर की सुरक्षा हेतु एनएसजी, काशी विश्वनाथ की सुरक्षा हेतु एटीएस का, वैष्णो देवी की सुरक्षा हेतु सीआरपीएफ की, बाबा अमरनाथ की यात्रा की सुरक्षा हेतु 70 हजार सुरक्षा कर्मी लगाना पड़ रहा है। जबकि एक भी मस्जिद नहीं जिसे सुरक्षा की आवश्यकता हो। --सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।

सरजी के पिताश्री स्व.पंडित शम्भु नाथ पाठक ने 1995 में एक पुस्तक "भारत में धर्मनिरपेक्षता,इस लोक के लिए श्राप" लिखा था जिसकी समालोचनात्मक विवेचना,तत्कालीन मुख्य मिडिया श्रोत,बीबीसी पर हुई थी। इस पुस्तक में उन्होंने सिद्ध किया था कि कोई धर्मनिरपेक्ष हो हीं नहीं सकता। सरजी, धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में  उनके विचारों को रखिये न!!--डा.पिंटु मेरी ओर देखकर।

डा. साहब, पुस्तक के आधार पर कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्ष का सही अर्थ बहुत कम लोगों को ज्ञात है। पुस्तक में वर्णित धर्मनिरपेक्षता को समझने के पहले संक्षेप में धर्म को समझिये--"प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए, समस्त बुराइयों से परहेज़ करते हुए, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, परमब्रह्म परमेश्वर से प्राणीमात्र के कल्याण की कामना हीं धर्म है।"


धर्म के तीन अंग हैं--

1-सापेक्ष,

2-अध्यात्म,

3-उपासना


धर्म में मुख्यतः दस गुणों की कल्पना की गई है जो सापेक्ष द्वारा प्रगट होता है। यथा सत्य, अहिंसा, त्याग, दया, क्षमा, नैतिकता आदि। :--
"धृति: क्षमा दयोऽ त्रेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:। धीर्विद्यता सत्यमऽ क्रोधो दशकर्म: धर्म लक्षणम्।।" 


स्पष्ट है विश्व में सनातन हीं एकमात्र धर्म है बाकि ईसाइयत या इस्लाम किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित व्यवहार के वो पुंज हैं जो निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु,धर्म के विपरित गुणों को धारित करते हैं। यही सनातन धर्म की विशेषता है कि किसी पंथ विशेष के विरुद्ध आजतक जबरन धर्मांतरण,हिंसा या जिहाद जैसे अमानवीय व्यवहार की आज्ञा नहीं देता। सनातन संस्कृति में "सर्व धर्म सम भाव","सर्वे भवन्तु सुखिन:","वसुधैव कुटुंबकम्","अहिंसा परमो धर्म" जैसे प्रतिमानों की प्रधानता है।--मैं चुप हुआ।

सरजी, आपके पिताश्री ने धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में परिभाषित किया है!!इसे स्पष्ट किजिये!!--मास्टर साहब मेरी ओर देखकर।

हं, बात साफ करीं जे राउर पिताजी,धर्मनिर्पेक्ष के बारे में का कहनी!!--मुखियाजी भी उत्सुक दिखे।

मुखियाजी, पिताजी ने स्पष्ट किया है कि आम आदमी, निर्पेक्ष और नि:पक्ष को समान अर्थों में लेते हैं जबकि पेक्ष का अर्थ हीन होता है तो निर्पेक्ष का अर्थ विहीनऔर पक्ष का अर्थ एक तरफ या एक भाग होता है तो नि:पक्ष का अर्थ हुआ तटस्थ। कोई तटस्थ हो ही नहीं सकता या तो आप धार्मिक हैं अथवा अधर्मी। 
अंग्रेजी शब्द सेक्युलर का हिंदी में हमने अर्थ धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष मान लिया जो गुलामी से भी बदतर है। दुनिया के प्रायः सभी मान्य भाषाओं में सेक्युलर का जो अर्थ दिया हुआ है वो है--धर्मनिर्पेक्ष, धर्मविहीन, अधर्म,पापमय,दुनियावी, सांसारिक, धर्म से उदासीन, धर्म की अवहेलना आदि।
हमारे ऋषि,मुनियों ने शास्त्रों में, बहुत पहले हीं धर्मनिरपेक्षता के अवगुणों एवं प्रभावों का वर्णन कर रखा है।----


"शुन:शेषोपनिषद,  अध्याय-3,सुक्त-25" ------


"काम: क्रोधो मद: लोभस्य मोह: मत्सर: पशुवृति एव। अनियमन्ते पीड्यन्ति सर्वेषु, धर्मनिरपेक्षस्य षऽठ लक्षणम्।।" अर्थात,काम, क्रोध,मद, लोभ,मोह एवं मत्सर ये धर्मनिरपेक्षता के छः लक्षण हैं। संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता का भारत में केवल और केवल सनातनी हिन्दू हीं शिकार हुए और हो रहें हैं क्योंकि यहां न मुसलमान धर्मनिरपेक्ष होता है और न ईसाई। कांग्रेस ने आजादी के साथ ही ऐसे ऐसे संवैधानिक कानून बनाये जिससे  हिंदू और उसकी पीढ़ियां अपने धर्म के प्रति उदासीन बनती जाय लेकिन दुसरी ओर अन्य पंथों को फलने फूलने का भरपूर अवसर मिले।--मैं रुका।

ए सरजी, कांग्रेस के शासनकाल का मैं वो दौर भी देखा हूॅं जिसमें कोई भी हिन्दू, चाहे  नेता हो या अधिकारी,अपने या सनातन के पक्ष में कुछ भी कहने से हिचकता था भले हीं उनके विरुद्ध धार्मिक आधार पर,अत्याचार क्यों न हो रहा हो! क्योंकि तुरंत उसके सर पे, संप्रदायिक होने का ठप्पा मढ़ दिया जाता था, उसकी स्थिति कुजाति की बन जाती थी।--डा.पिंटु


हाथ चमकाये।

इसमें दो मत नहीं कि भारत में धर्मनिरपेक्षता का जो स्वरूप है वो पूर्णतः छद्म धर्मनिरपेक्षता है। क्योंकि यहां किसी पंथ विशेष के पक्ष में तो किसी धर्म विशेष के विरुद्ध बनाये गये धार्मिक कानून, समानता के सिद्धांत का घोर उल्लंघन करता है। खैर,संविधान में पंथनिरपेक्षता और समाजवाद घुसेड़ने के प्रभावों की समीक्षा कल करेंगे।आज इतना हीं, चला जाय।--कहकर मास्टर साहब उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी......!!!!!!

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प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)

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July 09, 2025
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जातिवाद का सच (एक यथार्थ समाजशास्त्रीय अध्ययन)

सैकड़ों वर्षों से सनातनी,जातिवाद का दंश झेलते आ रहें हैं। आजादी के बाद भी,गांधी और नेहरू की कांग्रेस ने सत्ता पर काबिज रहने और हिंदुओं में द्वेष फैलाने और उनके विनाश हेतु संविधान में जातिगत आरक्षण की कील ठोक दी है। उद्देश्य बताया गया कि आरक्षण से पिछड़े, दलितों, वंचितों को अवसर मिलेगा और वे आर्थिक रूप से विकास के मुख्य धारा में आ जायेंगे। लेकिन आज 10 बर्षो के लिए निर्धारित संवैधानिक आरक्षण, चिरंजीवी हीं नहीं हो गया बल्कि आजादी के 78 साल बाद इसका दायरा और भी बढ़ता जा रहा है। स्पष्ट है आरक्षण का उद्देश्य वंचितों को उपर उठाने का नहीं था। यदि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया गया होता तो आज भारत विश्व में सबसे विकसित राष्ट्र होता लेकिन उद्देश्य तो हिंदुओं को बांटकर "गजवा-ए-हिंद" करना था।सच पुछिये तो जातिवाद भारतीय राजनीति का मुख्य आधार बन चूका है जिसपर जातिवादी पार्टियां और नेता अपनी रोटी सेंक सेंक कर सत्ता का सुख भोगते हैं। अबतक का इतिहास कहता है कि जातिवादी राजनीति का लाभ सिर्फ और सिर्फ तथाकथित नेता और उसका परिवार हीं उठाता रहा है लेकिन इसका दुष्परिणाम सभी हिन्दू और हिंदुस्तान झेल रहा है।


मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद विपक्षियों के पास सत्ता तक पुनः पहुंच बनाने के टूल्स के रूप में एक मात्र,जातिवादी राजनीति हीं नजर आ रहा है तभी तो हिंदुओं में बहुसंख्यक तबका-- पिछड़े और दलीत को साधने की राजनीति हेतु जातिय जनगणना को मुद्दा बनाया गया  लेकिन मोदी सरकार ने आने वाले जनगणना में जातिगत जनगणना कराने की बात कहकर उन्हें मुद्दा विहीन कर दिया। 


लेकिन यूपी और बिहार में एमवाई अर्थात मुस्लिम और यादव की राजनीति करने वाले सपा के अखिलेश यादव और लालू लाल- तेजस्वी यादव को यूपी के इटावा में घटित यादव जाति के कथावाचकों की जातिय धूर्तता और अभद्र व्यवहार पर ब्राह्मणों द्वारा की गई प्रतिक्रिया, एक अवसर के रूप में दिखने लगा है। ये जातिवादी नेताओं को ये नहीं दिख रहा कि कथावाचन जैसे पवित्र पथपर आसीन व्यक्ति ने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार क्यों किया! यदि इनकी मंशा ठीक होती तो नकली आधार कार्ड बनाकर अपनी जाति ब्राह्मण क्यों दर्शाया!! अर्थात ये कथावाचक नहीं धूर्त हैं।


जब यह माना जाता है कि सनातन में कथावाचन करने हेतु जातिय बंधन नहीं है तो जाति छुपाने की क्या आवश्यकता थी!!


ब्राम्हणों द्वारा बनाये गये सन्मार्ग पर चलकर अन्य जातियों के भी साध्वी,संत की श्रेणी में आ गये हैं जिनका विरोध ब्राह्मणों ने किया हो, ऐसा तो नहीं सुना जैसे ---
राम रहीम(जाट), रामपाल(जाट), आसाराम(धोबी, सिन्धी), स्वामी नित्यानंद(दलील), स्वामी चिन्मयानंद (दलील),राधे मां(खत्री,सिंधी), साध्वी ऋतम्भरा(लोधी), साध्वी उमा भारती (लोधी), ब्रह्मकुमारी लेखराज बचानी(सिंधी बनिया),संत गणेश्वर (दलील,पाशी), साध्वी प्रभा(यादव), साक्षी महाराज (कुर्मी, पटेल), साध्वी प्रज्ञा (मल्लाह, दलील), साध्वी चिदर्पिता (मोर्य), स्वामी रामदेव (यादव), आदि, आदि।


लेकिन यूपी में हीं इस तरह का वाकया क्या यह सिद्ध नहीं करता कि इसके पीछे हिंदुओं में जातिगत जहर बोने का सुनियोजित षड्यंत्र है!! वैसे भी बिहार में चुनाव सर पर है तो एमवाई समीकरण साधना राजल की मजबूरी है और यूपी में जातिवादी राजनीति के लिए "बांटोगे तो कटोगे" की काट खोजना सपा की मजबुरी है।
खैर आइये जातिवाद का समाजशास्त्रीय सच आपके समक्ष रखता हूॅं -------------


हिंदूओं में जातिवाद से सामान्यत: तात्पर्य  "जाति व्यवस्था" में कालांतर एवं परिस्थिति वश उपजे- नियमों, कायदे, कानुनों के नाकारात्मक पक्षों को विशेष अर्थों में संक्षिप्तिकरण से है जिसका उपयोग निहित स्वार्थ के मद्देनजर किया जाता है |यहाँ स्पष्ट कर दूं कि सिक्के के दो पहलू की तरह  हर व्यवस्था के साकारात्मक एवं नाकारात्मक पक्ष होते हैं लेकिन जातिवाद में जातिव्यवस्था के साकारात्मक पक्ष से कोई लेना देना नहीं होता |


वैदिक काल से हीं हिंदू समाज, खुली व्यवस्था के तहत्, चार वर्णों में विभाजित था क्रमशः- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र |जिससे समाज अपनी चार मूलभूत आवश्यकताओं क्रमशः- ज्ञान, रक्षा, आजीविका एवं श्रम की आपूर्ति करता था |सामाजिक प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न, विसंगतियों के चलते ताकि मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति में बाधा न हो इसे जन्मना बनाया गया |फिर यही वर्ण समूहों ने भोगोलिक विस्तार, विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्र विस्तार, रक्तशुध्दि की अवधारणा, प्रजातिय भेद आदि को समाहित करते हुए विभिन्न जातियों का स्वरूप लेता गया |


लेकिन इन विभिन्न जातियों के बीच मानवीय एवं सामाजिक सहयोगात्मक संबंध परस्पर निर्भरता एवं सामाजिक समरसता को परिलक्षित करता था |पुनः उत्तर वैदिक काल एवं मध्य काल के आरम्भ से ही विदेशी आक्रमणकारियों का आना शुरू हो गया |चूकि समाज की सुरक्षा का भार एक छोटे समूह,सिर्फ क्षत्रियों पर हीं अवलंबित होने के कारण और अन्य वर्ण की उदासीनता के चलते , आक्रमणकारियों को हिंदूस्तान में सत्ता स्थापित करने में आसानी हुई और बहुसंख्यक हिन्दूओं पर शासन करने का अवसर मिला जिसे स्थायित्व देने हेतु विदेशी आक्रमणकारियों ने बहुसंख्यक हिंदूओं में परस्पर फूट और घृणा के संचार हेतु जातिगत घृणा, व्यवसायिक भेदभाव, छूआछूत, सामाजिक दूराव आदि जैसे हिन्दू संगठनात्मक पहलूओं को कमजोर करने के अनेकों साजिश का सहारा लिया और कामयाब भी हुए जिसमें प्रमुख था - असली मनुस्मृति में परस्पर विभिन्न वर्णों के बीच भेद और घृणा उत्पन्न करने वाले श्लोकों की रचना कर ठूसना| असली मनुस्मृति में मात्र 630 श्लोक हीं थे जिसमें मुगलों और बाद में अंग्रेजों ने कृत्रिम घृणात्मक श्लोक भरे जबकि मनुस्मृति में चारों वर्णों को समान महत्व दिया गया था ||आज मनुस्मृति में हजारों श्लोक मिलेंगे| ये कहाँ से आये ❓ये जबरदस्त शाजिस थी जिसका लाभ मुगलों और अंग्रेजों की तरह,आज के जातिवादी राजनितिज्ञ भी उठा रहे हैं |


आरम्भ में शक आये, हुण आये लेकिन भारतीय संस्कृति ने उनका अलग अस्तित्व नहीं रहने दिया, उन्हें अपने में आत्मसात कर लिया लेकिन अरबों , मुगलों और फिर अंग्रेजों को आत्मसात नहीं कर पाये |इन लोगों ने हीं  भारत में स्थायी शासन एवं सत्ता के क्रम में हिंदूओं के जातिव्यवस्था में परस्पर घृणा, छूआछूत जैसे अमानवीय व्यवहार को षणयंत्र के तहत्, सत्ता से चिपके हिंदूओं को माध्यम बना उल्लू सीधा किये |


जिस तरह अरबों,मुगलों और अंग्रेजों ने "जातिवाद"को हिंदूओं के सामाजिक संगठन को क्षतविक्षत करने हेतु,अपने स्वार्थ में उपयोग किया वही काम आजादी के 78 साल बाद भी राजनीतिक दलों एवं राजनीतिक नेताओं द्वारा किया जा रहा है😡😡 |आजादी के बाद इतने बरसों में जातिव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आ चूका है लेकिन जनता को मूर्ख बनाने का सिलसिला आज भी कायम है | आजाद भारत में,जातिव्यवस्था का सहारा लेकर सत्ता सुख भोगने और वोट की राजनीति करने में जातिवाद एक सबसे शसक्त जरिया बन चुका है |


आइये देखते हैं जातिवाद कहाँ है !!! --
स्कूलों में है❓--नहीं
ट्यूशन में है❓-- नहीं
राशन की दूकान में है- नहीं
बैंक में है❓-- नहीं
होटलों में है❓-- नहीं
थियेटरों में है❓--नहीं
पान की दूकान पर है❓-- नहीं
बस, ट्रेन, हवाईजहाज में है❓-- नहीं
सब्जी मंडी में है❓-- नहीं
विभिन्न राजनीति दलों में है❓-- नहीं
शमशान में है❓-- नहीं
बाजार में है❓-- नहीं
किसी व्यवसाय में है❓-- नहीं
विभिन्न उत्सवों के आयोजन के अवसर पर पार्टी होती है उसमें ❓-- नहीं
चाय की दुकान पर है❓-- नहीं
शहरों, देहातों में छूआछूत आदि दिखता है❓-- नहीं
जब उपरोक्त कहीं जातिवाद दिखता नहीं है तो फिर !!!!!! 
ये कहाँ दिखता है❓--
जी, ये दिखता है ➡
ये दिखता है संबिधान में, 
ये दिखता है सरकारी नौकरियों में, 
ये दिखता है सरकारी लाभकारी योजनाओं में, 
ये दिखता है शिक्षा के क्षेत्र में, 
ये दिखता है सबर्णों को प्रताड़ित करने में (st/sc act), 
ये दिखता है राजनीतिक दलों एवं नेताओं के मुख में, 
ये दिखता है मिडिया के विभिन्न चैनलों में-- एक दलित या आरक्षित वर्ग की महिला या युवती के साथ बलात्कार हो जाय तो सारे मिडिया वाले और नेताओं का तांता लग जाता है और वहीं सैकड़ों सबर्ण महिला या युवती के साथ हो तो नेता और मिडिया गुंगे हो जाते हैं |


अब जातिवाद के नाम पर इस देश में कितना अमानवीय व्यवहार स्वीकृत है इसको ऐसे समझें--


हरिजन अपने को हरिजन कहे तो सरकारी नौकरी से लेकर सैकड़ों सरकारी सुविधाएं और यदि आप हरिजन को हरिजन कहें तो आपको संभवतः 10 साल के पहले हाईकोर्ट से बेल भी न मिले |


मैं तो राहत की सांस ले रहा हूॅं इस बात को लेकर कि जब इंदिरा गांधी ने 1984 में सोवियत इंटरकाॅसमाॅस कार्यक्रम के तहत सोयुज टी-11 पर यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय राकेश शर्मा को चुना,जो एक ब्राह्मण थे। इस अवसर पर आरक्षण की बात नहीं की गई !! आश्चर्य है, मोदी ने जब एक ब्राह्मण, हिमांशु शुक्ला को अंतरीक्ष सेंटर पर जाने वाले प्रथम भारतीय के रूप में चुना तो ये जातिवादी नेता चुप क्यों थे!! यहां आरक्षण की बात क्यों नहीं किये!!


आज के भारत का ये है सच्चा जातिवाद


परिणाम- देश में भ्रष्टाचार से लेकर हर प्रकार की प्रगति में बाधा हीं बाधा|
तो ये है इस तथाकथित आधुनिक भारत में जातिवाद का सच्चा स्वरूप जिससे न राष्ट्र का भला संभव है और न जनता का | हाँ अगर इससे किसी के अस्तित्व पर घोर संकट दिख रहा है तो वो है-- हिंदू और हिंदूस्तान

आलेख - लेखक


प्रोफेसर राजेन्द्र पाठक 

(समाजशास्त्री), बक्सर, बिहार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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July 07, 2025
Ahaan News

चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप जन सुराज में हुए शामिल, प्रशांत किशोर ने किया स्वागत और बोले - बिहार में व्यवस्था परिवर्तन की चाहत रखने वाले सभी लोगों को साथ आना चाहिए

प्रशांत किशोर जी की पहल के साथ जुड़कर बिहार में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को मजबूत करने के लिए जन सुराज में जुड़े हैं : मनीष कश्यप

जन सुराज की व्यवस्था परिवर्तन के अभियान को आज एक नई ऊर्जा मिली जब चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप औपचारिक रूप से जन सुराज परिवार में शामिल हो गए। मनीष कश्यप की पहचान सोशल मीडिया के माध्यम से जन सरोकार के विषयों को उठाने वाले की रही है।

पटना में जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने मनीष कश्यप का स्वागत करते हुए कहा, "मनीष कश्यप कोई नेता या सिर्फ यूट्यूबर नहीं हैं, वे बिहार में व्यवस्था परिवर्तन में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। वे हमेशा बिहार के उन लोगों के साथ खड़े रहे हैं जिनके साथ अन्याय हुआ है। उनका उद्देश्य समाज को कुछ देना है, न कि उसे नोचना। उनका जुड़ाव इस बात का संकेत है कि अब राजनीति में ईमानदारी और व्यवस्था परिवर्तन की बात ज़मीन पर असर कर रही है।"

प्रशांत किशोर जी की पहल के साथ जुड़कर बिहार में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को मजबूत करने के लिए जन सुराज में जुड़े हैं : मनीष कश्यप

इस अवसर पर मनीष कश्यप ने कहा, “बिहार में वास्तविक बदलाव लाने के लिए केवल सवाल पूछना ही नहीं, बल्कि खुद जवाब बनने की ज़रूरत है। इसी सोच के साथ मैं जन सुराज से जुड़ रहा हूं।” उन्होंने आगे कहा, “प्रशांत किशोर जी ने बिना जाति-धर्म के चश्मे से समाज को देखने की जो पहल की है और व्यवस्था परिवर्तन की बात को जन-जन तक पहुंचाया है, उनके साथ जुड़कर मैं स्वयं को जनसेवा के लिए समर्पित करना चाहता हूं।”

इस मौके पर जन सुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती, वरिष्ठ अधिवक्ता वाई. बी. गिरी, पूर्व विधायक किशोर कुमार, विधान पार्षद अफाक़ अहमद, महासचिव सरवर अली और युवा अध्यक्ष प्रोफेसर शांतनु उपस्थित थे।

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