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September 22, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 26

1942 बनाम 1973 बनाम 2025 कुछ तो समान है

Rahul Gandhi के Gen Z बयान पर विवाद, क्या बढ़ेगा भारत में विद्रोह? - News18  हिंदी

राहुल गांधी ने GEN-Z का जिक्र क्या किया तो कुछ लोगों को देश में गृह युद्ध के आसार नजर आने लगे तथा राजनीतिक दल के तौर पर भारतीय जनता पार्टी भी कहने से नहीं चूकी कि वे देश के भीतर एक ऐसा संघर्ष सड़क पर पैदा करना चाहते हैं जिससे अराजकता की स्थिति में जाकर देश खड़ा हो जाय। सवाल लाजिमी भी है। ऐसा कहते वक्त पहली बार लगा कि एक तरफ राजनीतिक सत्ता खड़ी है तो दूसरी तरफ विपक्ष का नेता खड़ा है। क्योंकि प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने एक बार भी ना तो कांग्रेस का नाम लिया ना ही इंडिया गठबंधन का नाम लिया। राहुल गांधी ने देश की मौजूदा राजनीतिक सत्ता से संविधान और लोगों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों को बचाये रखने के लिए देश के युवाओं, छात्रों को आगे आने का आव्हान किया। चूंकि हाल ही में भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल में जिस तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ उसने देश के भीतर भी नेपाल, श्रीलंका तथा बांग्लादेश में हुए तख्तापलट की यादों को ताजा कर दिया है। सवाल यह भी आकर खड़ा हो गया कि क्या भारत की राजनीतिक परिस्थिति इस मुहाने पर आकर खड़ी हो गई है कि सम्पूर्ण क्रांति के तर्ज पर, जैसा कभी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया था, युवाओं तथा छात्रों को आगे आने का आव्हान करना पड रहा है। यह बात अलहदा है कि भारत में लोकतंत्र की जड़े इतनी गहरी हैं कि यहां पर भले ही राजनीतिक परिस्थितियां बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल की तरह बद से बदतर भी हो जाएं तब भी इन देशों में हुआ तख्तापलट भारत में संभव नहीं है। मगर यह बात सौ टका सही है कि अगर देश का युवा और छात्र एकजुट होकर राजनीतिक सत्ता की खिलाफत करने सड़क पर उतर आये तो किसी भी सत्ता को भले ही वह तानाशाही सत्ता ही क्यों न हो उसे गद्दी छोड़नी ही पड़ती है और ऐसा भारत के भीतर भी हो चुका है। भारत के भीतर राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के लिए युवाओं, छात्रों को सामने आने का ऐलान जिस तर्ज पर राहुल गांधी ने किया उससे पहले ऐसा ही आव्हान 1942 के बाद पहली बार 1973 में जयप्रकाश नारायण ने किया था और भारत के भीतर सत्ता परिवर्तन को सफल करके भी दिखाया था। तो सवाल यह भी है कि क्या 50 साल बाद फिर से वैसी ही राजनीतिक परिस्थिति देश के सामने आकर खड़ी हो गई है जहां विपक्ष के नेता को राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के लिए युवाओं, छात्रों को एकजुट होकर सामने आने का आव्हान करना पड़ रहा है।

सम्पूर्ण क्रान्ति की खोज में मेरी विचार-यात्रा - My Journey in Search of  Complete Revolution (Set of 2 Volumes) | Exotic India Art

जयप्रकाश नारायण ने अपनी किताब "विचार यात्रा" में इसका उल्लेख भी किया है। 1973 के आखिरी महीनों में जब जयप्रकाश नारायण आचार्य विनोबा भावे के आश्रम पहुंचे तो वहां पर उन्होंने एक परचा लिखा था या कह सकते हैं कि एक अपील की थी देश के छात्रों और युवाओं के नाम जिसे उन्होंने नाम दिया था "यूथ फार डेमोक्रेसी" यानी "लोकतंत्र के लिए युवा"। जयप्रकाश नारायण की उस अपील का असर बहुत जल्द गुजरात के भीतर ही एक कालेज में बढ़ी हुई फीस के विरोध में देखने को मिला जिसने आगे चलकर स्थानीय मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दों को अपने में समेट लिया और बिहार आते - आते तो यह सम्पूर्ण क्रांति के रूप में तब्दील हो गया था। 1973 के दौर में देश की बागडोर सम्हालने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी एक तानाशाह की तरह राज कर रही थीं, राज्यों के मुख्यमंत्री साड़ियों की तरह बदले जा रहे थे, बेरोजगारी थी, मंहगाई थी और इन सबसे बढ़कर कानून के राज के ऊपर इंदिरा का राज चल रहा था। इन परिस्थितियों को लेकर जयप्रकाश नारायण चिंतित और निराश थे लेकिन उन्होंने महसूस किया कि जिस तरह से दुनिया भर के युवाओं के भीतर एक बैचेनी भरी छटपटाहट है। एक सूत्र में पिरोकर उसे एक दिशा देकर अराजक सत्ता से देश को मुक्ति दिलाई जा सकती है। यही सोचकर उन्होंने विनोबा भावे के आश्रम में बैठकर एक परचा लिखा जिसे "यूथ फार डेमोक्रेसी" का नाम दिया गया। उन दिनों गुजरात में भी चिमनभाई पटेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सत्ता थी। जिसका पूरा मंत्रीमंडल भृष्टाचारियों से भरा पड़ा था। बेकारी, बेरोजगारी, मंहगाई से जनता परेशान थी। युवा सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर इस्तीफे की मांग कर रहे थे मगर उनके पास मार्गदर्शक नहीं था। जेपी के परचे में उन्हें आगे का रास्ता दिखा। उन्होंने एक समिति बनाई जिसे "नव निर्माण समिति" का नाम दिया गया। उन्होंने जयप्रकाश नारायण को आमंत्रित किया और जेपी उनके बीच गये भी। वहां उन्होंने युवाओं -छात्रों से संवाद करते हुए पूछा कि आपने समिति तो बना ली उसका नामाकरण भी कर दिया "नव निर्माण समिति" लेकिन आपका विजन क्या है, रूप रेखा क्या है और आप जिस तरह से विधानसभा भंग कर चुनाव की मांग कर रहे हैं तो क्या चुनाव पुरानी लीक पर होंगे। सारी बातों पर गहन विचार विमर्श हुआ जेपी ने उन्हें टिप्स दिये। और गुजरात के छात्रों ने पहली बार अपनी मांगों के साथ राष्ट्रहित की मांगों को शामिल कर संघर्ष की शुरुआत की। उन्हें जनता का भी समर्थन मिला। चिमनभाई पटेल को गद्दी छोड़नी पड़ी। चुनाव में सत्ता कांग्रेस से निकलकर कांग्रेस (आर्गनाइजेशन) के पास चली गई। जिस पर जयप्रकाश नारायण ने कहा कि स्वराज के बाद पहली बार एक राजनीतिक परिवर्तन गुजरात में हुआ है। गुजरात आंदोलन ने भारत में लोकतंत्र के विकास की दिशा में मार्ग संशोधन का एक पुरुषार्थ किया है और इस शोध का सार तत्व यह है कि संसदीय लोकतंत्र में भी केवल इसके निष्क्रिय वाहक ही नहीं बने रहने चाहिए, चुने हुए प्रतिनिधियों से जवाब तलब करने वाले सक्रिय और अंत में प्रतिनिधियों की कार्यवाहियों पर अंकुश लगाने वाले सही मायने में डेमोस हैं यानी लोग हैं। गुजरात आंदोलन ने भारत में पहली बार लोकतंत्र के तंत्र में लोक का महत्व स्थापित किया, आम जनता की आकांक्षाओं का प्रतिपादन किया और वह भी तमाम संगठित राजनीतिक दलों के बावजूद उनसे ऊपर उठकर। और शायद इसीलिए आखिर में उन्होंने लिखा भी राजशक्ति से जनशक्ति सर्वोपरि है, राजशक्ति जनशक्ति के अधीन है। गुजरात आंदोलन के बाद भारत और भारतीय लोकतंत्र का स्वरूप आंदोलन के पहले वाला नहीं रहेगा यह तय है और हुआ भी वही।

जानें 18 मार्च 1974 को ऐसा क्या हुआ, जिस कारण पड़ी जेपी आंदोलन की नींव -  jayprakash movement jp aandolan bihar movement of student started from 18  march 1974 tedu - AajTak

गुजरात के बाद जब बिहार में आंदोलन शुरू हुआ और पटना कालेज के भीतर जब लाठियां चली तो छात्र जयप्रकाश नारायण के पास (कदम कुआं) गये और उनसे अपने आंदोलन की अगुवाई करने का निवेदन किया तब जयप्रकाश नारायण ने छात्रों से केवल और केवल सिर्फ एक ही वादा लिया कि छात्र हिंसा नहीं करेंगे और छात्रों ने भी कहा कि वे हिंसा नहीं करेंगे। इसके बाद जेपी ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ली। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में आंदोलन युनिवर्सिटी के संकट, राज्य के मुख्यमंत्री के सवालों से होता हुआ राष्ट्रीय तौर पर आगे बढ़ता चला गया। इस दौर में देश ने इमर्जेंसी को भी देखा। इसी दौर में ही देश के भीतर ये नारा गली-गली गूंजायमान हुआ "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"। इंदिरा गांधी के तालिबानी शासन का तख्तापलट हुआ। जयप्रकाश नारायण ने जब आंदोलन शुरू किया था तो उनके जहन में कुछ इस तरह के सवाल रहे होंगे। दुनिया भर में युवकों के बीच बेचैनी है, भारत में लोकतंत्र पर खतरा है, निर्वाचन प्रणाली दूषित हो चुकी है, चुनाव बहुत मंहगा हो गया है, राजनीति में जातिगत स्वार्थों की शह पर होने वाला बल प्रयोग बड़ा मायने रखता है। यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि उस समय जेपी के दिमाग में 1942 में महात्मा गांधी द्वारा किया गया "भारत छोड़ो" आंदोलन भी था। उन्होंने कहा कि 1942 1973 नहीं हो सकता लेकिन देश के भीतरी हालात तो आज भी (1973) ऐसे ही बने हुए हैं जैसे 1942 में थे तो इनको निपटाने के लिए आंदोलन की शक्ल में आगे बढ़ा जा सकता है। इसीलिए उन्होंने विनोबा भावे के आश्रम में बैठकर परचा लिखा यानी युवाओं और छात्रों से सामने आने की अपील की और नाम दिया "यूथ फार डेमोक्रेसी" यानी "लोकतंत्र के लिए युवा"।

Removed Indira Gandira Government under the leadership of JP Lalu Nitish  are the product of movement Why student organizations marginalized today  जेपी के नेतृत्व में पलट दी थी सत्ता, लालू-नीतीश उसी आन्दोलन

जयप्रकाश नारायण 1973 की जिन परिस्थितियों में राजनीतिक सत्ता को डिगाने का जिक्र कर रहे थे तो उन परिस्थितियों में और मौजूदा परिस्थितियों में क्या कोई तालमेल हो सकता है ? इंदिरा राज को मोदी राज के समकक्ष रखा जा सकता है क्या ? हाँ कहा जा सकता है कि मौजूदा राजनीतिक सत्ता उसी तर्ज पर चल पड़ी है। यानी 50 बरस पहले की परिस्थितियां फिर से आकर मुंह बाये खड़ी हो गई हैं। इसीलिए राहुल गांधी बतौर लीडर आफ अपोजीशन बार-बार छात्रों और युवाओं से इस बात का जिक्र करते हुए कह रहे हैं कि जब उन्हें यह समझ आ जायेगा कि उनको ही लोकतंत्र को बचाने के लिए, संविधान की रक्षा करने के लिए आगे आना है तो वे जरूर आगे आयेंगे। यानी भारत इंदिरा गांधी से नरेन्द्र मोदी तक की परिस्थितियों, जयप्रकाश नारायण से राहुल गांधी तक की परिस्थितियों और देश के भीतर लोकतंत्र तथा चुनाव के बीच की राजनीतिक परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फंस चुका है। पिछले 8-10 बरस से एक सिस्टम के जरिए हिन्दुस्तान की डेमोक्रेसी को हाईजैक किया जा चुका है। इसीलिए राहुल गांधी एक परिवर्तन का जिक्र तो करते हैं लेकिन वो ये भी जानते हैं कि मौजूदा समय में कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दलों में भृष्ट नेताओं की एक लम्बी कतार है। यह कतार संसदीय विशेषाधिकार पाने के कारण इतनी करप्ट हो चुकी है कि एक भी नेता ऐसा नहीं मिलेगा जो करोडपति से कम हो, उसका जुड़ाव जनता से कट चुका है वह अपने में ही मस्त है। इसीलिए विधानसभा और संसद में विधायक और सांसद के भीतर जनता को लेकर जो बेचैनी 
होनी चाहिए नदारत रहती है। शायद यह बात राहुल गांधी को अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बखूबी समझ आई होगी और हो सकता है वहीं से जनता के लिए बेचैनी पैदा हुई हो।

questioned Democracy what agents doing Rahul Gandhi allegations caused stir  within Congress 'लोकतंत्र पर ही सवाल उठा दिए, एजेंट क्या कर रहे थे?' राहुल  गांधी के आरोपों से कांग्रेस में ...

राहुल गांधी को यह भी समझ में आने लगा है कि तमाम राजनीतिक प्रयोगों के बाद मिल रही लगातार चुनावी असफलता के बाद भी अगर बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ है तो वह आंदोलन के जरिए ही हुआ है, युवाओं की भागीदारी से ही सुनिश्चित हुआ है चाहे वह इमर्जेंसी के बाद की परिस्थिति रही हो या मंडल-कमंडल की परिस्थिति रही हो। मौजूदा वक्त में राहुल गांधी को इतना तो समझ में आ गया है कि अगर बिहार में समूची जनता साथ खड़ी नहीं होती है तो तेजस्वी यादव केवल जातीय समीकरण के आसरे अपने बलबूते चुनाव नहीं जीत सकते हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने चुनाव के सारे तौर तरीके मौजूदा सत्ता को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार कर रखे हैं। यही स्थिति उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सामने भी है। राहुल गांधी को यह भी पता है कि तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने बूते जहां भी आगे बढ़ेंगे वहां पर राजनीतिक सत्ता उन्हें रोक देगी क्योंकि वह खुद भी कभी न कभी राजनीतिक सत्ता का हिस्सा रह चुके हैं । हां अगर जनता तय कर ले तो एक फिर नये तरीके की राजनीतिक परिस्थितियां देश में पनप सकती हैं शायद इसीलिए बार बार जिक्र किया जा रहा है युवा ताकत का, भारत के नागरिकों का तथा खुले तौर पर चुनाव आयोग को चुनौती भी यह कहते हुए दी जा रही है कि जिस दिन जनता जाग गई उस दिन आपका क्या होगा ? राहुल गांधी का कहना है कि मैं हिन्दुस्तान की जनता को, हिन्दुस्तान के युवाओं को सच्चाई दिखा सकता हूं ये मेरा काम है। उनके जो इंट्रेस्ट हैं, ये जो संविधान है वह हिन्दुस्तान की जनता का रखवाला है। सुरक्षा कवच है। मैं संविधान को बचाने में लगा हुआ हूं। हिन्दुस्तान की जनता को, युवाओं को एकबार ये पता लग गया कि वोट चोरी हो रही है तो उनकी पूरी ताकत लग जायेगी उसे रोकने के लिए।

Lok Nayak Jaiprakash Narayan Biography Death Anniversary Struggle For Life  400 Dacoit Surrender In Front Of Government Officials-जय प्रकाश नारायण के  घर अचानक पहुंच गया था चंबल का इनामी डकैत, अड़ गया

जिस बात को 50 बरस पहले जयप्रकाश नारायण ने लिखा था कि दुर्भाग्य से लोगों के नागरिक जीवन के लिए जरूरी यह स्थिति आज अनेक तरफ से खतरे में है। सबसे गंभीर खतरा निर्वाचन प्रणाली के दूषित होने से है। लोकतंत्र में चुनाव का महत्व जनता की वजह से ही है। जनता ही बीज स्वरूप है। चुनाव से ही लोग अपने शासक को चुनने के लिए अपने सर्वोपरि जन्मसिद्ध अधिकार का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आज चुनाव का केन्द्र बिंदु लोक और लोकतंत्र की प्रक्रिया से अलग हट गया है ना ये जनता से जुड़ा है ना ये डेमोक्रेसी से जुड़ा है आज भी वही परिस्थिति देश के सामने मुंह बाये खड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे की प्रक्रिया को असंवैधानिक तो करार दे दिया मगर असंवैधानिक तरीके से लिये गये रुपयों जप्ती तो की नहीं तो राजनीतिक दल आज भी उसी अवैधानिक रुपयों के बल पर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करते रहते हैं। दोपायों की खरीद फरोख्त करते रहते हैं। यानी एक पूरी प्रक्रिया करप्ट और तानाशाही तरीके से पूरे सिस्टम को खत्म कर चुकी है। ये सवाल जेपी के दौर में भी था आज भी है। जेपी ने लिखा है कि वास्तव में लोकतंत्र के लिए युवा को संगठन के बजाय आंदोलनजदा होना चाहिए।  तब के दौर में इंदिरा गांधी की खिलाफत करने वाले सारे राजनीतिक दल जेपी के पीछे खड़े हो गए थे यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी जेपी आंदोलन को समर्थन दे रहा था। लेकिन इस दौर में कई राजनीतिक दल अपनी स्वार्थपूर्ति के चलते वैचारिक मतभेद के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के साथ गलबहियाँ डाले ईलू-ईलू कर रहे हैं। सवाल किसी राजनीतिक दल या उससे जुड़े नेता का नहीं है सवाल देश को सम्हालने का है। सवाल देश की राजनीतिक परिस्थितियों में एक बड़े बदलाव और ट्रासंफार्मेशन का है। क्या उस दिशा में युवा बढ़ेगा ? उस दौर और इस दौर की परिस्थिति में सामंजस्य यही दिखता है कि जयप्रकाश नारायण की राह पर राहुल गांधी हैं तो उस वक्त की इंदिरा गांधी की राह पर नरेन्द्र मोदी हैं लेकिन दोनों परिस्थितियों में इस दौर का युवा उस दौर के युवाओं से इसलिए मात खा रहा है क्योंकि उस वक्त का युवा मौजूदा वक्त में राजनीतिक सत्ता के साथ खड़ा है वो बिहार के नेताओं की कतार है।

लोकसभा में राहुल गांधी के उठाए सवाल लोकतंत्र के लिए क्‍यों जरूरी हैं -  Junputh

शायद इसीलिए इतिहास अपने आपको दुहराते हुए 50 बरस बाद आकर ड्योढ़ी पर खड़ा होकर एकबार फिर युवाओं को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। वह भी तब जब इस वक्त भारत दुनिया में सबसे युवा देश है और युवाओं की ताकत, युवाओं की संख्या, युवाओं का संकट, युवाओं की त्रासदी ये सब कुछ युवाओं से ही जुड़ी हुई है तो फिर देश की जनता को, युवाओं को, छात्रों को और GEN - Z को ही तय करना पड़ेगा और यह भारत के राजनीतिक बदलाव की यह एक अनोखी और सुखद हवा होगी। क्योंकि इस दौर में युवाओं से जुड़े मुद्दों को मौजदा सत्ता द्वारा कहीं आंका ही नहीं जाता है। असमानता, मंहगाई, बेकारी, बेरोजगारी कोई मायने ही नहीं रखती है । सत्ता की करीबी कार्पोरेट के साथ है। उसके लिए उनका मुनाफा और मुनाफे की अर्थनीति ही मायने रखती है। लोक कल्याण लाभार्थी में तब्दील हो गया है यानी सत्ता के ऊपर निर्भर मौजूदा वक्त की परिस्थिति में देश टिका हुआ है और मौजूदा सत्ता को बनाये रखने के लिए देश के संवैधानिक संस्थान काम कर रहे हैं। जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि हो सकता है सत्ता में बैठे हुए (जो कुर्सियों पर बैठे हुए) हैं उनको ऐसा संघर्ष गैर संवैधानिक और लोकतांत्रिक विरोधी लगे (मौजूदा वक्त में सत्ताधारी दल बीजेपी यही कह रही है) लेकिन मुझे ये लगता है कि इसे भले ही संविधान के दायरे से बाहर का चाहे कह लो लेकिन इसे गैर संवैधानिक नहीं कह सकते यह लोकतांत्रिक विरोधी भी नहीं है। वास्तव में जब संवैधानिक परिस्थितियां या लोकतांत्रिक संस्थायें लोगों के दुख दर्द को मिटाने या उनके सवालों का उपयुक्त जवाब प्रस्तुत करने में असफल हो जाती हैं तो जनता इसके अलावा कर भी क्या सकती है। 
 


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 22, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 25

हैरान भर नहीं आखिरी उम्मीदों को तोड़ते दिख रहे हैं अदालती आदेश

Adani Videos Takedown: सच, कानून और सेंसरशिप? - YouTube

17 सितम्बर का दिन भारत के इतिहास में "अदाणी वीडियो टेकडाउन" दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। यू-ट्यूबरों पर विजय प्राप्ति के उपलक्ष्य में महान अदाणी भी अपने चैनलों पर कार्यक्रम कर सकते हैं। मोमबत्ती प्रज्वलन के साथ पथ संचलन कर सकते हैं। जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अदाणी से जुड़े मुद्दों पर बनाये गये 138 वीडियो के टेकडाउन के आदेश दिए हैं। भारत के लाखों यू-ट्यूबर प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं तो भेजें ही अदाणी जी की तस्वीर के सामने अगरबत्ती जला कर प्रार्थना करें कि उनका वीडियो सलामत रहे। टेकडाउन का नोटिस नहीं आए। ये टिप्पणी वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार की है जो उन्होंने दिल्ली की एक अदालत के बाद भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के संदर्भ में की है। दरअसल भारत के सबसे धनाढ्यपतियों में से एक गौतम अदाणी ग्रुप की एक कंपनी अदाणी इंटरप्राइजेज ने दिल्ली की एक अदालत में देश के प्रतिष्ठित यू-ट्यूबर्स के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था जिस एक पक्षीय सुनवाई करते हुए अदालत ने एक पक्षीय निर्णय पारित करते हुए आरोपी बनाये गये यू-ट्यूबर्स को आदेश दिया कि अदाणी के खिलाफ बनाये गये 138 वीडियो तथा 83 इंट्राग्राम पोस्ट को डिलीट कर दिया जाय। इसी तारतम्य में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी एक आदेश जारी कर अदालत द्वारा दिये गये आदेश का पालन करने को कहा है।

Government of India, Ministry of Information and Broadcasting 16.09.2025 - Digital News publishare - Subject - Compliance to court order - Adani Enterprise Ltd. V Paranjoy Guha Thakur आता & Ors. (order dated 06.09.2025) take Down of Defamatory content. Reg. I am directed to refer to the order dated 06.09.2025 in the matter of Adani Enterprise Ltd. V Paranjoy Guha Thakurata & Ors. (C. S. SCJ 1066 of 2025) before the Hon'ble Senior Civil Judge Rohini Court Delhi (copy enclosed) the lists of links are also enclosed herewith. The Hon'ble Court vide aforementioned order has directed defendents no 01 to 10 to expunge/remove all defamatory material from their respective articles/Social media posts within 5 days of the said order. However it has come to notice of this ministry that the above said order has not been complied with within the stipulated timeline. Accordingly you are directed to take appropriate action for compliance of the aforementioned order and submit the action taken to the ministry within 36 hours of the issue of this communication. This issue with the approval of the competent Authority.

गौतम अडाणी से जूड़े हुए मामले में सूचना प्रसारण मंत्रालय ने सक्रियता दिखाई है उससे मीडिया जगत में इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 75 वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर दिया गया रिटर्न गिफ्ट माना जा रहा है वह भी अपरोक्ष रूप से गौतम अडाणी के अदृश्य हाथों।

US SEC seeks help from indian authorities on gautam adani case

The Union Ministry of Information and Broadcasting on Tuesday (September 16) sent notices to two media houses and a number on you Tube channels ordering them to take down a total of 138 videos and 83 Instagram posts that mentioned the Adani Group. These orders the ministry stated in a letter dated Tuesday, was based on an ex part order issued by the The North West Delhi district court on September 6 in a defamation case filled by Adani Enterprises. The court had told a number of journalists and activists including Paranjoy Guha Thakurata, Ravi Nair, Abir dasgupta, Ayaskanti Das and Ayush Joshi to take down articles and social media posts that allegedly defamed the Adani Group. As ex part order is issued when some parties to case - in this case the journalists and activists involved are not heard. Those who received notices from the Information and Broadcasting Ministry on Tuesday however, are not party to that case.

The wire too has been served this notice on Tuesday for a solitary Instagram post that referred to allegation levelled by the US securities and Exchange commission against the Adani Group, which are matters of record, others who have been included in the take down orders are News laundry, Ravish Kumar, Ajit Anjum, Dhruv Rathee, Akash Banerjee, aka Deshbhakt and others. Several of the videos flagged did not necessarily contain any new reportage or opinion. For in stance one of the News laundry videos that is listed is a subscription appeal that merely features a screen shot of an article about the Adani Group. The ministry's letter states that the publications had failed to take action in the time frame stipulated by the court order. Accordingly, you are directed to take appropriate action for compliance of the aforementioned order, and submit the action taken to the ministry within 36 hours of the issue of this communication it reads. Copies of the notice were also worked to meta platforms Inc and Google Inc. 
Episode of TV Newsance along with an explaine on how the cases against NDTVs former owner Pranv Roy and Radhika Roy were closed after the Adani takeover of the Channel also featured on the list. Roposts on the Dharavi Project and episodes of News laundry's weekly podcast NL Haffa, NL charcha and NL Tippani also feature on the list. Three videos of journalist Atul Chaurasia, includes ones where he discusses the case against Adani in the US. The ministry has also asked the interviews of NCP leaders Sharad Pawar and Ajit Pawar by journalist Sreenivasan Jain to be removed. In these interviews both leaders confirmed that Gautam Adani hosted a High-profile meeting in 2019, in which the possibility of the Nationalist Congress Party supporting the Bharatiya Janta Party was discussed. It also includes three videos done by the News minute including one episode case of South Central and Let Me Explain, which were hosted on the News laundry YouTube channel.

US कोर्ट से आई Adani पर बड़ी खबर... इन मामलों की होगी एकसाथ सुनवाई, टूट गए  ये शेयर! - Adani bribery case US court orders joint criminal civil trial  against tycoon these

Adani wins court order that flip free speech on its head. A Delhi Judge let the company compile its own blacklist of 'defamatory' journalism platforms must deletes flagged content within 36 hours.

On September 6 a Delhi district court granted Adani Enterprises Ltd's prayer for an ex part injunction to restrain nine journalists and organisations, along with unnamed others, from publishing or circulating 'unverified, unsubstantiated and exfacie defamatory' material about the company. The court ordered takedowns across platforms. It is a 'John Deo' order, which restrains even those not specifically named in the case. More striking Senior Civil Judge Anuj Kumar Singh of the Rohini District Courts handed Adani a censorship pipeline. He allowed the company to keep sending URLs and links of articles or posts that the company considers "alleged defamatory material" to interact inter mediaries or government agencies, who must then take them down within 36 hours. Adani has been given blanket liberty to compile its own rolling blacklist and have platforms erase it without further judicial serutiny, until the court says otherwise.

Wire - - I&B Ministry orders Takedown of 138 Videos, 83 Instagram Posts About Adani Using Ex-Part Court Order Aakas Banerjee, aka Deshbhakt, amongst other youTubers have been named this order.

गुजरात में भी एक कोर्ट ने भी अडाणी ग्रुप द्वारा दायर एक मानहानि के मामले में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा सहित राजू पारूलेकर को समंस जारी कर अदालत में तलब किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने Adani Group जमीन मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर  लगाई रोक

Gujarat court issues notices to two Journalists on Adani Group's defamation complaint. Adani Groups accused Abhishar Sharma, a youTuber and Raju Parulekar a blogger of spreading false and defamatory content to malign its reputation. A court in Gandhinagar has issued notices to journalists Abhishar Sharma and Raju Parulekar for personal appearance September 20 after criminal defamation complaints were filled against them by Adani Group. The business conglomerate accused Mr. Sharma, a youTuber and Mr. Parulekar, a blogger, of spreading false and defamatory content to malign its reputation. The court of Judicial Magistrate First Class, Gandhinagar, P. S. Adalat has issued notices to both individuals and directed them to appear on September 20 according to release issued by Adani Group. The group has invoked Section 356 (1, 2 and 3) of the Bhartiya Nayay Sanhita (BNSS) 2023, which are equivalent to the Indian Penal Code Section 499, 500 and 501 it said. The complaints point to a youTube video uploaded on August 18, 2025 by Sharma alleging that thousand of big has of land in Assam had been allotted to Adani and tying the company to a pattern of supposed political favours, as well as to a series of tweets and retweets by Parulekar since January 2025 making similar claims of land grabs, scams and undue benefits. The release said.

अदालत द्वारा जिस तरह का एक पक्षीय आदेश किया गया है वह अपने आप में चौंकाने वाला है। सवाल किया जा रहा है कि कोई भी अदालत इस तरह का पावर किसी को कैसे दे सकती है कि वह चुन चुन कर सोशल मीडिया से वीडियो को डिलीट करवाये। सवाल यह भी है कि लोकतंत्रात्मक गणराज्य में जब प्रधानमंत्री के कामों को लेकर आलोचनात्मक कमेंट किये जा सकते हैं और देश की सबसे बड़ी अदालत भी इसे लोकतंत्र के जिंदा रहने के तौर पर देखती है तो फिर गौतम अडाणी जैसे कारोबारी के अनैतिक लग रहे कारोबार को लेकर आलोचनात्मक टिप्पणी क्यों नहीं की जा सकती है ? अदालत दूसरे पक्ष की बात को सुने बिना इस तरह के आदेश क्यों कर कैसे दे सकती है? क्या गौतम अडाणी का रुतबा देश के सबसे बड़े कारोबारी होने के कारण राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से भी ऊपर हो गया है? क्या लोकतंत्र पर धनतंत्र हावी हो चुका है? इसी तरह से कारोबारी रुतवे से प्रभावित होने वाला दूसरा मामला है देश के सबसे बड़े सेठ मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू का । इस पर भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जो लिखा है वो वाकई चौंकाने वाला तो है ही वह यह भी बताता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत भी बड़े-बड़े प्रभावशाली कारोबारियों को किस हद तक जाकर संरक्षित कर सकती है।

No further complaint of proceedings based upon such same set of allegations shall be entertained before any judicial statutory or administrative forum was to secure finality, obviate repetitive inquiries and investigation on issues concluded by the SIT.

We may leave it open to the respondent - vantara to pursue its remedies in accordance with law for the deletion of any offending publication or for any action against those responsible for the misinformation or for action for defamation or private complaints under the BNS, 2023 and if any such proceedings are initiated, they shall be dealt with on their own merits by the competent court/authority.

ये हैं वनतारा वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किये गये आदेश के कुछ अंश। इस पर अंजली भारद्वाज ने लिखा है

Adani Ports को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, गुजरात सरकार को अभी नहीं लौटानी  पड़ेगी 108 हेक्‍टेयर जमीन - Big relief to Adani Ports as Supreme Court  stays Gujarat HC decision to

Absolutely shocking and disappointing that the SIT headed by Justice Chelameswar submitted its report on Vantara in SEALED cover! This is the same Judge who refused to attend Supreme Court Collegium meeting because of lack of transparency. How the mighty have fallen! 
The SIT was constituted by the court on August 25 to probe allegations of unlawful procurement of animals. Mistreatment in captivity and financial irregularities. Says Justice Chelameswar - As a Collegium member and the lone dissenting judge, his dissent is a historic as it is revealing of the Collegium's opacity.

The SIT formed in the Anant Ambani owned Vantara has submitted a report in a sealed cover. The investigating part is the bench composition. Before that note that the order for the SIT came really quickly...... after just one hearing. Unusual given how the courts function and the billionaire it involves. Now the bench hearing the case is headed by Justice Pankaj Mithal and consists of Prasanna B Vavale. However as per the Roster of Judges published on in July 2025, the presiding Judge, Justice Mithal does not here "Environmental Laws" in his roster. However, the two petitions basis which the SIT order was passed were categorised 'Environment Laws". So why was it listed before Justice Mithal's bench? As master of the Roster Chief Justice Gavai seems to have used his exclusive powers to' Specially assign' the case, as written in the Roster Document. The overall case of Vantara, with serveval High Court and Supreme Court orders intersecting to with each other, suggests something more is at play here.

Vantara Acquisition of Animals as per Regulation : Supreme Court Accept SIT Report - - The Supreme Court today (September 15) observed that the acquisition of animals in Vantara (Geens Zoological Rescue and Rehabilitation Centre) run by the Reliance Foundation Jamnagar Gujrat is prima facie within the regulatory mechanisms. There was no foul play found by the Special Investigation Team (SIT) constituted by the court to inquire in to various allegations. Including whether..........

Gautam Bhatia - -  Rubbing my eyes at these SC directions in the Vantara SIT case, especially (vi) - kept confidential but complete copy of the same be furnished to the respondent - Vantara, may be electronic copy of the same for its own use and record subject to an undertaking that it shall not be disclosed to third parties. The summary of the report which is exhaustive in it sat a sit does not carry comparable sensitiveness or attract the same degree of confidentiality but provides a faithful account of the conclusions reached by the SIT, shall not be treated as confidential. 

Actor Saurav Das was expelled ...


Saurav Das... Executive - - Minded was one thing. What phrase can one coin for this? Alarming stuff happening in the supreme Court. Much like Loya judgement that closed all avenues of Criminal Cases in future, this too, has closed any such future possibility against Vantara and its affairs.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो या लोवर कोर्ट का आदेश दोनों अफलातून की इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि दुनिया का यह सबसे बड़ा झूठ है कि कानून सबके लिए बराबर है। कानून के जाल में तो केवल छोटी मछलियां फंसती हैं मगरमच्छ तो जाल फाड़ कर बाहर निकल आते हैं। मगर यहां तो कानून के कर्णधार खुद एक कदम आगे बढ़ कर मगरमच्छों को भविष्य में भी कानून के जाल में नहीं फंसने का इंतजाम करते हुए दिख रहे हैं। लोकतंत्र के तीन पाये तो बहुत पहले से ही नपुंसकता से ग्रसित दिख रहे थे। एक न्यायपालिका ही लोगों का आखिरी उम्मीद भरा आसरा होता है लेकिन जब वह भी जब इस तरह के आदेश पारित करता है तो कहीं न कहीं अदालतों पर से भरोसा डगमगाता है। वनतारा पर दिया गया आदेश सुप्रीम कोर्ट की नियत पर गंभीर सवाल तो खड़ा करता है?  तो क्या देशवासियों को यह नारा लगाना चाहिए - - अमृत काल का एक ही नारा सेठ बचाओ धर्म हमारा। लोकतंत्र के चारों पाये बोलें सेठ बचाओ कार्य हमारा।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 17, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 24

मोदी का पर्चा सुप्रीम कोर्ट ने जांचा नम्बर दिये सिफर

PM Modi set to take holy dip at ...

सितम्बर का महीना वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए इम्तिहान का महीना रहा है और अभी तक उनने जो मुख्यतः चार परीक्षाएं दी हैं उन परीक्षाओं के नतीजे सामने आये हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन चारों परीक्षाओं में फेल हो गये हैं। मसलन एथेनाॅल के जरिए केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को घेरने की परीक्षा हो या फिर वनतारा जू के मार्फत कार्पोरेट मुकेश अंबानी को घेरे में लेने की कवायद हो या कह लें केंचुआ के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कांधे पर बंदूक रखकर सुप्रीम कोर्ट और संविधान को चुनौती देने का सवाल हो तथा वक्फ कानून के नाम पर राजनीतिक पहेलियों को हल करने के सवाल हों उनकी कापियां जांच कर सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितम्बर यानी 17 सितम्बर के दो दिन पहले या कहें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के 48 घंटे पहले रिजल्ट डिक्लेयर कर दिया है। जिसका लब्बोलुआब यही है कि चारों पर्चों में पीएम मोदी फेल हो गये हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, अब बिकता रहेगा 20% एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल  - Alert Star News

एथेनाॅल को लेकर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उनके बेटे को कटघरे में खड़ा किया गया था और उसको लेकर देश में तो यही संदेश गया कि दिल्ली सत्ता नितिन गडकरी को यही मैसेज देना चाह रही है कि पार्टी के भीतर और संघ तथा कार्पोरेट के साथ मिलकर आप जो खेल खेल रहे हैं उसको बंद कर हट जाईये वरना आपको पता ही है कि सरकार के हाथ बहुत बड़े और पैने होते हैं। उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी तरह की एक याचिका देश के सबसे बड़े रईसों में शुमार मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू में हो रही अनियमितताओं को लेकर दाखिल की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनन-फानन में एक हाई लेबल एसआईटी गठित करते हुए 12 सितम्बर को जांच रिपोर्ट दाखिल करने की समय सीमा निर्धारित की थी जिसकी रिपोर्ट भी तय समय पर कोर्ट में पेश कर दी गई। उस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई मामला नहीं बनता इसलिए अब इस पर आगे कोई सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में वनतारा जू को लेकर दाखिल की गई याचिका को लेकर भी यही मैसेज कन्हवे हुआ था कि असल में इसके पीछे मुकेश अंबानी पर नकेल कसना था। यह बात अलहदा है कि एथेनाॅल और वनतारा जू पर आया फैसला संदेह के घेरे में है। फैसला आने के पहले ही कयास लगाए जाने लगे थे कि सुप्रीम कोर्ट इन दोनों मामलों में कोई भी ऐसा फैसला सुनाने से परहेज करेगा जिससे सत्ता असहज हो जाये और देश के भीतर राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने जैसी परिस्थिति पैदा हो। वैसे सुप्रीम कोर्ट को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए एथेनाॅल और वनतारा जू में एसआईटी की रिपोर्ट के जरिए जो तथ्य सामने आये हैं उन्हें जनसामान्य के लिए सार्वजनिक करना चाहिए।

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 3 प्रावधानों पर लगाई रोक, जानिए  हर अपडेट | Supreme Court interim decision on Wakf Amendment Act today  hearing on three issues

वक्फ कानून में किये जा रहे संशोधनों के जरिए सरकार की मंशा तो यही दिख रही थी, वह ही तय करेगी कि भारतीय मुसलमानों को कैसे रहना है, कैसे जीना है, उसके तौर तरीके क्या होंगे। वक्फ की संपत्ति भी सरकार तय करेगी तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संदेश दे दिया है कि सरकार अपनी मनमर्जी से सब कुछ तय नहीं कर सकती है। वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था जिसे 15 सितम्बर को डिक्लेयर करते हुए कहा गया कि हम अंतरिम तौर पर वक्फ़ कानून को पास कर देते हैं लेकिन उसमें जोड़े गए कई प्रावधानों पर तब तक के लिए रोक लगा देते हैं जब तक केन्द्र और राज्यों से नियम दिशानिर्देश बनकर नहीं आ जाते हैं। जहां पर मस्जिद है वो जमीन कोई सी भी हो मस्जिद वहीं रहेगी। इसी तरह से मंदिर, गुरूद्वारा भी वहीं पर रहेंगे। सरकार चाहती थी कि कलेक्टर के जरिए यह तय किया जाय कि कौन सी जमीन किसकी है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा नहीं यह कलेक्टर तय नहीं करेगा। सरकार वक्फ के भीतर यह सोचकर जिन प्रावधानों को लेकर आई थी कि चलेगी तो उसी की, जिले में कलेक्टर ही सर्वेसर्वा होगा, गवर्नेंस के तौर तरीके जिस तरह से देश के भीतर सामाजिक और धार्मिक संगठनों पर रोक लगाने की ओर कदम बढ़ा रहे थे सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उन पर रोक लगा दी है।

चित्र:All India Muslim Personal Law Board.jpg - विकिपीडिया

वक्फ कानून में लाये जा रहे कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य सैय्यद कासिम रसूल ने त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारे द्वारा ध्यानाकर्षित कराते समय व्यक्त की गई आशंकाओं पर भी गौर फर्माते हुए कई बातों को स्वीकार किया है। मसलन वक्फ वाय यूजर वाली हमारी बात मान ली गई है। कोई थर्ड पार्टी क्लेम नहीं होगा इसे भी मान लिया गया है। 5 साल की कैद को हटा दिया गया है। आर्विटरी खत्म नहीं होगा। कौन सी सम्पति वक्फ की है इसका फैसला वक्फ बोर्ड ही करेगा। राज्य आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन और केन्द्रीय आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या चार से ज्यादा नहीं होगी। इस बात का जिक्र किया गया था कि कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए कि घोषित वक्फ सम्पत्ति सरकारी है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा बिल्कुल नहीं। नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर फैसला देने की अनुमति कलेक्टर को नहीं दी जा सकती है। अगर ऐसा किया गया तो इससे अधिकारों का प्रतिकरण सिद्धांत यानी सेपरेशन आफ पावर का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक नियम नहीं बन जाते तब तक वक्फ सम्पत्ति घोषित करने से पहले 5 साल तक इस्लाम का अनुयायी होने की जो शर्त है उस पर भी स्टे लगाया जाता है। सरकार ने प्रावधान किया था कि ऐसी सम्पत्ति या जमीन जिस पर सरकार काबिज हो और उस पर वक्फ बोर्ड भी वक्फ सम्पत्ति होने का दावा कर रहा हो तब दावा किसका माना जायेगा इसका फैसला करने का अधिकार कलेक्टर को उसके विवेक पर करने दिया जाय सुप्रीम कोर्ट ने कहा बिल्कुल नहीं ये डीएम अपने विवेक पर कैसे कर सकता है। यह भी प्रावधान किया गया था कि कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद अगर सम्पत्ति को सरकारी सम्पत्ति मान लिया गया तो वह सम्पत्ति हमेशा के लिए राजस्व रिकार्ड में सरकारी सम्पत्ति के दर्ज हो जायेगी इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई है । जगह - जगह हो रहे सर्वे अब नहीं होंगे। वक्फ बोर्ड अब यह बताने के लिए बाध्य नहीं होगा कि सर्वे की जाने वाली सम्पत्ति वक्फ की है या नहीं। सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सदस्यों का मुस्लिम होना अनिवार्य है इसको लेकर भी विवाद था। तो कहा गया कि काउंसिल में दो गैर मुस्लिम व्यक्तियों को बतौर सदस्य शामिल किया जा सकता है तथा मुस्लिम सदस्यों में से दो मुस्लिम महिलाओं का होना अनिवार्य है।

आदिवासियों की तरह मुस्लिमों को भी मिले छूट | SamayLive

केन्द्र सरकार द्वारा वक्फ़ कानून में शामिल किये गये प्रावधानों की आंख मूंदकर वकालत कर रहे ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी के अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये अंतरिम आदेश पर प्रतिक्रिया चाही गई तो उन्होंने कहा कि जो कानून पारित हुआ है वह वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है उस पर निश्चित तौर पर सरकार विचार करेगी तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कार्रवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से सत्ता किस तरह से घुटने के बल आ गई है कि उसे डेमोक्रेसी की दुहाई देते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सर्वोपरि कहना पड़ रहा है। जरा फ्लैश बैक में झांके तो बीजेपी पार्लियामेंट के भीतर और ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी के अंदर जिन सवालों को उठा रही थी उन सारे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम फैसले द्वारा रोक लगा दी है। देश को यह भी समझ में आ गया है कि मोदी सरकार का नजरिया पालिटिकल टार्गेट का था। वह राजनीतिक तौर पर लाभ लेना चाहती थी जिस लाभ के पीछे हिन्दू एकजुटता का सवाल जो बीजेपी और मोदी सत्ता बार - बार खड़ा करती है शायद उसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर सेंध लगा डाली है कि आप हर जगह हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

आइये Chronology समझते है: कौन है श्रीमान ज्ञानेश कुमार गुप्ता❓ 📌 2018 से  21 → गृह मंत्रालय में अमित शाह के नीचे सचिव रहते हुए काम किया। 📌 2022 से  24 →

यह हकीकत है कि केंचुआ के मुख्य आयुक्त चाहे राजीव कुमार रहे हों या फिर ज्ञानेश गुप्ता हों इनकी इतनी हैसियत नहीं है कि वे देश के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती पेश कर सकें जब तक उनके सिर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का हाथ ना हो ! केंचुआ जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद भी बेधड़क बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वोटर लिस्ट पुनरीक्षण कार्यक्रम एसआईआर चला रहा है उसके पीछे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के वरदहस्त को नकारा नहीं जा सकता है। और यह तब और प्रगाढ़ हो गया जब केंचुआ ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर देश की सबसे बड़ी अदालत को ही चुनौती दे डाली कि हमें आर्डर देने वाले आप कौन होते हो। केंचुआ का हलफनामा संविधान की आड़ लेकर उस सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रहा है जिस सुप्रीम कोर्ट के दायरे में ही संविधान की व्याख्या करना आता है। ऐसा नहीं है कि विधायिका और न्यायपालिका में टकराव की परिस्थिति कोई पहली बार बन रही है लेकिन 2014 के बाद से जबसे बीजेपी और नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की सल्तनत सम्हाली है तबसे निरंतर न्यायपालिका को कमजोर करने का काम सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। अब तो आने वाले 10 सालों तक के लिए सुप्रीम कोर्ट के भीतर ऐसी व्यवस्था कर दी गई है जहां से बीजेपी के अनुकूल फैसले आने की संभावना बलवती बनी रहेगी। क्योंकि हाईकोर्ट के अलावा अब तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों की प्रगाढ़ता की खबरें और तस्वीरें गाहे-बगाहे मीडिया में वायरल होती रहती हैं। इसके बावजूद भी देशवासियों के लिए न्याय की अंतिम चौखट सुप्रीम कोर्ट ही बना हुआ है।

बिहार SIR: राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश-जिनके नाम छूट गए BLA से  उनकी मदद कराएं | Supreme Court Hearing on Bihar Voter List SIR update 22  august election commission

हां तो बिहार में हो रहे एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच केंचुआ ने सुप्रीम अदालत में एक हलफनामा पेश करते हुए कहा है कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप न करे। जिसके मजमून को अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाते हुए छापा - - -  सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को नहीं दे सकता एसआईआर कराने का निर्देश, चुनाव आयोग ने दाखिल किया जवाबी हलफनामा - - निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने को कहा है। यानी वोटर लिस्ट में हमें क्या करना है, कब करना है, ये हम ही तय करेंगे। कोई दूसरा नहीं तय कर सकता है। कहा जा सकता है कि देश की एक संवैधानिक संस्था लोकतंत्र के एक पाये सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीमेशी को सीधे-सीधे चेलेंज कर रही है। अंग्रेजी अखबार The Hindu ने भी हेडलाइन बनाई है - - Election Commission, and no other authority decides when to conduct SIR : ECI tells SC - - A direction to conduct SIR at regular intervals throughout the country would encroach the exclusive jurisdiction of the Election Commission.

Supreme Court orders political parties on bihar Special Intensive Revision  1.60 लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट लेकिन आपत्तियां सिर्फ दो, SIR के मामले  में सुनवाई करते हुए सुप्रीम ...

इलेक्शन कमीशन ने अपने हलफनामा में लिखा कि वोटर लिस्ट अपडेट करने की सीमा तय नहीं है। हर चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन करना हमारी जिम्मेदारी है। बदलाव छोटा हो या बड़ा ये हमारा फैसला है। वोटर लिस्ट सही और भरोसेमंद रखना हमारी जिम्मेदारी है। कब समरी रिवीजन हो, कब इन्सेंटिव रिवीजन हो ये हम ही तय करेंगे। यानी सब कुछ हम ही तय करेंगे। उसने संविधान की धारा 121 का जिक्र करते हुए लिखा कि वोटर लिस्ट में बदलाव करने की कोई तय समय सीमा नहीं है बल्कि ये सामान्य जिम्मेदारी है जिसे हर आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या किसी सीट के खाली होने पर होने वाला चुनाव हो उससे पहले होना जरूरी है। चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में नियम 25 का भी जिक्र करते हुए लिखा कि मतदाता सूची में छोटे या बड़े स्तर पर बदलाव करना है या नहीं पूरी तरह से हमारे फैसले पर निर्भर करता है। इतना ही नहीं जनप्रतिनिधि अधिनियम 1950 का जिक्र करते हुए लिखा कि चूंकि मतदाता सूची को सही और भरोसेमंद रखना हमारी कानूनी जिम्मेदारी है इसलिए राज्य में एसआईआर कराने का निर्णय हम लेंगे। इसके बाद लिखा कि मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के अनुसार चुनाव आयोग को छूट है कि वो तय करे कि कब समरी रिवीजन तथा कब इन्सेंटिव रिवीजन किया जाय इतना ही नहीं उसने तो यह भी लिख दिया अपने हलफनामे में कि इसमें हस्तक्षेप करने अधिकार किसी दूसरी संस्था के साथ ही अदालत को भी नहीं है।

नियमित अंतराल पर एसआईआर का निर्देश चुनाव आयोग के विशेष अधिकार क्षेत्र का  अतिक्रमण करता है: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा - द इकोनॉमिक ...

अश्वनी कुमार उपाध्याय द्वारा "चुनाव आयोग को भारत में विशेष रूप से चुनाव के पहले एसआईआर कराने का निर्देश दिया जाय ताकि देश की राजनीति और नीति केवल भारतीय नागरिक ही तय करें" वाली याचिका पर सुनवाई करने के दौरान चुनाव आयोग द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने (मुद्दे, मुद्दों के बाद जनता की भावना, जनता की भावना से होने वाले चुनाव, चुनाव में वोटर लिस्ट को लेकर चुनाव आयोग द्वारा उठाए जा रहे सवाल) खुले तौर पर यह कह दिया "हम यह मानकर चलेंगे कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी को जानता है अगर कोई गड़बड़ी हो रही है तो हम इसको देखेंगे और अगर बिहार में एसआईआर के दौरान चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली में कोई अवैधता पाई जाती है तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। जब याचिकाकर्ता ने कहा कि चुनाव आयोग प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है, उसकी अनदेखी कर रहा है तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्शन कमीशन बिहार में हो रहे एसआईआर और देश के दूसरे राज्यों में होने वाले वोटर लिस्ट रिवीजन को अलग - अलग नजरिये से ना देखे। इसलिए बिहार में हो रहे एसआईआर पर टुकड़ों - टुकड़ों में राय मत दीजिए। अंतिम फैसला बिहार भर में ही नहीं पूरे देश में होने वाले एसआईआर पर लागू होगा। यानी बिहार में जिन 65 लाख लोगों को आपने मतदाता सूची से बाहर निकाल दिया है और आप पर गड़बड़ी करने का आरोप लगा और हमने आधार कार्ड को भी बतौर पहचान के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया तो आपको क्या दिक्कत थी यदि आधार कार्ड को लेकर किसी तरह की शंका थी तो उसकी जांच करा सकते हैं क्योंकि देश में कोई नहीं चाहता है कि चुनाव आयोग अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करे। यानी जिस बात का जिक्र प्रधानमंत्री अपनी हर रैली में करते रहते हैं कि विपक्षी पार्टियों अवैध प्रवासियों के आसरे चुनाव जीतने की कोशिश करती हैं। बीजेपी भी लगातार अवैध प्रवासियों की घुसपैठ का सवाल खड़ा करती रहती है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कोई भी अवैध प्रवासियों को वोटर लिस्ट में शामिल कराना नहीं चाहता है। केवल वास्तविक नागरिक को ही वोट देने की अनुमति होनी चाहिए। जो लोग फर्जी दस्तावेज के आधार पर शामिल हो रहे हैं उन्हें मतदाता सूची से बाहर रखा जाना चाहिए लेकिन आप इस रूप में कोई काम नहीं कर सकते हैं कि फलां अवैध प्रवासी है तो है क्योंकि हमने कह दिया सो कह दिया। आप किसी भी दस्तावेज को इस तरह से खारिज नहीं कर सकते हैं कि हमने खारिज कर दिया सो कर दिया। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट को इस तरह की टिप्पणी करनी पड़ गयी कि बिहार में आप जिस तरह की कार्यप्रणाली अपना रहे हैं और अगर हमको लगता है कि उसमें जरा सी भी गड़बड़ी या अवैधता हुई है तो हम एक झटके में सब कुछ रद्द कर देंगे।

सुप्रीम कोर्ट में EC का जवाब, SIR कराने का निर्देश निर्वाचन आयोग के  क्षेत्राधिकार पर अतिक्रमण होगा - dainiktribuneonline.com

कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही साफ और शार्प तरीके से सरकार को ये मैसेज देने की कोशिश की है कि आप अपने तौर पर गवर्नेंस के तौर तरीकों के तौर पर किसी धार्मिक - सामाजिक संगठन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं कि वो कैसे और किस रूप में चले तथा एक झटके में गवर्नेंस बाड़ी को सारे पावर भी नहीं दे सकते हैं। इलेक्शन कमीशन को चेताते हुए कहा कि गड़बड़ी मत कीजिए। ऐसा नहीं है कि संविधान ने अगर आपको कुछ अधिकारों से नवाजा है तो आप संवैधानिक संस्था के तौर पर संविधान का जिक्र करते हुए जो मन ने चाहा वही करेंगे। जनता की आवाज याचिकाकर्ता के तौर पर अगर हमारी चौखट पर पहुंचेगी तो हम उसको सुनेंगे भी और फैसला भी देंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसकी टिप्पणियों का मैसेज तो यही समझा जा सकता है कि उसने चुनाव आयोग को सीधी चेतावनी दी है कि आप आखिरी संस्था नहीं है, संविधान से बड़ा कोई नहीं है और संविधान की व्याख्या करना सुप्रीम कोर्ट का अधिकार है उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को नहीं है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। देश संविधान के तहत चलता है जो पूरे तरीके से धर्म निरपेक्षता में आस्था रखता है। धर्म निरपेक्षता के आधार पर हर धर्म की अपनी एक प्रक्रिया है उसमें हस्तक्षेप करना ठीक नहीं है। देश की संवैधानिक संस्थायें चैक एंड बैलेंस करना जानती हैं और सुप्रीम कोर्ट को चैक एंड बैलेंस करने में महारत हासिल है। और उसने एथेनाॅल, वनतारा जू, वक्फ कानून और चुनाव आयोग के एसआईआर के मामलों में चैक एंड बैलेंस का नजारा नट की तरह हवा में रस्सी पर चलते हुए पेश कर दिया है। सारी परिस्थितियों के बीच से यह संदेश भी उभर कर सामने आ रहा है कि मौजूदा समय में सब कुछ ठीक नहीं है और सब कुछ ठीक करने के लिए जो भी प्रयास मौजूदा राजनीतिक सत्ता कर रही है उसके लिए भी हालात बहुत अच्छे नहीं है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
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September 17, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 23

प्रधानमंत्री मोदी और मणिपुर का दौरा बनाम मोदी के लिए सितम्बर का इम्तहानी महीना

Modi in Manipur: PM pays first visit since ethnic violence in state;  inaugurates developmental projects worth Rs 7,300 crore | India News - The  Times of India

सत्ता और सत्ताधारी वाकई बड़ा बेरहम और बेदिल होता है। भले ही वह लाशों के मंजर को देखने या फिर मातपुरसी के लिए जाय मगर उसका ध्यान अपने सम्मान के लिए होने वाले नृत्य संगीत पर होता है। ऐसा ही नजारा गत दिनों मणिपुर में हुए नर संहार और महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी पर औपचारिक मातम पुरसी के लिए घटना के 865 दिन बाद जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गये तब देखने को मिला जहां उनका स्वागत आदिवासियों के जरिए नृत्य संगीत से होता रहा और वे आत्ममुग्ध होकर देखते रहे। न तो उन्होंने मणिपुर जाने के पहले न ही मणिपुर पहुंचने पर इस तरह से स्वागत सत्कार नहीं कराये जाने के निर्देश दिए हों। भरी बरसात खुद तो बेशकीमती गाड़ियों के उस काफिले के साथ कार में विराजमान रहे जिनकी कीमत शायद मणिपुर के सारे समाज को हड़प सकती है और आम आदमी के हाथों में राष्ट्रवाद के प्रतीक तिरंगे वाली झंड़ियां पकड़ा कर जबरिया रास्ते के किनारे बरसते पानी में खड़ा कर दिया गया। यह मणिपुर के भीतर का पहला शर्मनाक पहलू है प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान का। दूसरा शर्मनाक पहलू है जब प्रधानमंत्री कुछ चुनिंदा पीडितों के साथ बंद कमरे में बातचीत कर रहे थे जिसे न्यूज़ ऐजेंसी एएनआई के जरिए दूरदर्शन ने दिखलाया जिसमें एक बच्ची रोते हुए अपना दर्द बयां कर रही है। वहां मौजूद महिलायें आंसू बहाते हुए कुछ कह रही है उनकी आवाज को बंद कर दिया गया है। मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी नहीं चाहते होंगे कि किसी भी पीडित की आवाज देशवासियों को सुनाई दे सिवाय उनके भाषण के और उनकी शान को बढ़ाने वाले नारों के तथा कसीदे पढ़ रहे बयानों के अलावा। तीसरा शर्मनाक पहलू है प्रधानमंत्री ने दो साल दो महीने से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद मणिपुर जाकर लोगों के घावों पर मरहम लगाने के बजाय 7300 करोड़ रुपये की सरकारी रईसी वाली योजनाओं का जिक्र करते रहे यानी नरसंहार और महिला अस्मिता की कीमत रुपयों में आंकते रहे। इसी कड़ी में चौथी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति थी जब दिल्ली दरबार की पसंद के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी से घटना के लगभग 21 महीने तक चिपके रहने वाले एन वीरन सिंह ने अपने राज्य के पीडितों की पीड़ा का इजहार करने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सटीक वाक्य कहा था "आपदा में अवसर"

मणिपुर में जातीय हिंसा के धार्मिक हमलों में बदलने की कहानी - BBC News हिंदी

करीब दो बरस पहले मोबाइल पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसने पूरे देश को एकबार फिर झकझोर कर रख दिया था। वीडियो को देखने के बाद पता चला कि किस तरह मानवीय संवेदनाएं खत्म हो जाती हैं या यूं कहें कि मानवीय त्रासदियां कैसे हिंसक और अमानवीय हो जाती है। अगले दिन वह तस्वीर अखबारों की सुर्खियां बनकर छपी, न्यूज चैनलों के स्क्रीन पर भी वह वीडियो रेंगता हुआ दिखाई दिया और पहली बार इस वीडियो ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। 19 जुलाई 2023 को वायरल हुए इस वीडियो में साफ दिखाई दे रहा था कि दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनके प्राइवेट पार्ट पर आपत्तिजनक हरकतें करते हुए सार्वजानिक तौर पर जुलूस की शक्ल में सडकों पर घुमाया जा रहा है। इस वीडियो को प्रधानमंत्री ने भी देखा और अपनी वही प्रचलित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है और दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। 19 जुलाई को जब यह वीडियो सामने आई तब मणिपुर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि इस वीडियो में कैद घटना तो ढाई महीने पहले यानी 4 मई 2023 को थोबला जिले में घटी थी। अगर इस घटना का वीडियो वायरल नहीं होता तो देश जान ही नहीं पाता कि मणिपुर में ऐसी वीभत्स और शर्मनाक घटना को अंजाम दिया गया है। इस बात पर तो विश्वास ही नहीं किया जा सकता कि सरकार और पुलिस को इस घटना की जानकारी नहीं थी। मतलब बहुत साफ है कि सरकार और पुलिस को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस घिनौनी घटना का वीडियो भी बनाया गया है और उसे वायरल भी किया जा सकता है।

ब्रिटिश संसद में उठा मणिपुर का मुद्दा, विदेश मंत्री कैमरन ने हिंसा में  'धर्म की भूमिका' की ओर किया इशारा - BBC News हिंदी

इस वीडियो ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। जिसकी गूंज ब्रिटेन की संसद के भीतर बकायदा सवाल के तौर पर गूंजी, यह अलग बात है कि ब्रिटेन के विदेश मंत्री का जबाव भारत सरकार के अनुकूल था। कुछ सवाल तो पश्चिमी देशों में भी ईसाईयत को लेकर भी उभरे। अमेरिका में भी मणिपुरी घटना की चर्चा रही। मणिपुर में घटी घृणित, निंदनीय, अमानवीय, मानवता को शर्मसार करने वाली घटना के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्राथमिकता मणिपुर ना होकर कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव रहे। जैसा कि उनका मानना रहता है कि चुनावी जीत उनके हर दुष्कर्मों, कुकर्मों को वाशिंग मशीन की तरह धो देती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जीत भी मणिपुर की कालिख को धो डालेगी लेकिन बीजेपी वहां चुनाव हार गई। इसके बावजूद देश और विदेश से भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मणिपुर नहीं जाने को लेकर तीखी टिप्पणियां आती रहीं और प्रधानमंत्री मोदी उन्हें कपड़े में लगी धूल की तरह झटकारते रहे। मणिपुर की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह ने भी तकरीबन 21 महीने बाद 10 फरवरी 2025 को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को इस्तीफा सौंपा।

Manipur High Court revokes 2023 order on including Meiteis in Scheduled  Tribe list | India News – India TV

23 मार्च 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में मैतेई समाज को आदिवासी यानी सेड्यूल ट्राइव का दर्जा देने की वकालत करते हुए राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने को कहा। जिससे मैतेई और कुकी समुदाय के बीच पहली बार 3 मई को संघर्ष की परिस्थितियां बनी और 4 मई को थोबल जिले में 2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर प्रताड़ित करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला गया जिसका वीडियो 19 जुलाई को वायरल किया गया और वह तस्वीर दुनिया भर के पटल पर था गई लेकिन देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तो मदहोश होकर कर्नाटक में चुनाव प्रचार करने में व्यस्त और मस्त थे। हां घटना के बाद लीडर आफ अपोजीशन ने जरूर मणिपुर के लोगों का दर्द साझा करने के लिए दौरा किया। मणिपुर में आज भी मैतेई और कुकी समुदाय के लगभग 57 हजार लोग अलग - अलग विस्थापितों के लिए बनाये गये शिविर में रहकर अपने ही हाथों अपने ही घावों पर मरहम लगाने की स्थिति में नहीं हैं। इस बीच सरकार ने बहुत कुछ छुपाया, बहुत कुछ नहीं बताया। 2 साल 2 महीने से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री मणिपुर आकर मणिपुरवासियों को सपना दिखा रहे हैं, उन सपनों के आसरे ताना-बाना बुनकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली आपके कितने करीब है। प्रधानमंत्री ने आदिवासी वेषभूषा सज्जित रासरंग से अभिभूत होकर कई जगहों पर भाषण देते हुए आश्वासन और भरोसा दिलाने की कोशिश की कि केंद्र सरकार यानी दिल्ली की सरकार आपके साथ खड़ी है लेकिन जब उन्होंने उन दर्द भोगने वाले विस्थापितों में से चुनिंदा लोगों के बीच बंद कमरे में बैठकर बातें की जो पिछले ढाई बरस से हर दिन ऐसा जीवन जी रहे हैं जैसा उन्होंने न तो पहले कभी जिया है न ही इसकी कल्पना की थी उनके बीच एक रोती हुई बच्ची ने पीड़ा का इज़हार किया, दूसरे लोगों ने भी अश्रुपूरित होकर अपनी बातें रखीं जिन्हें दूरदर्शन ने देश को सुनने, जानने नहीं दिया जबकि उन्हें सुनना, जानना देशवासियों का हक भी है और अधिकार भी है।

मणिपुर हिंसा: जो पहले एक-दूसरे के दुश्मन थे, आज एक होकर मैतेई से लड़ रहे  हैं... क्यों? - Manipur Violence Those who were earlier enemies of each  other today unitedly fighting Meitei

देशवासियों को तो यह सुनाया गया जो प्रधानमंत्री कह रहे थे कि मणिपुर में किसी भी तरह की हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है। ये हिंसा हमारे पूर्वजों और हमारी भावी पीढ़ी के साथ भी बहुत बड़ा अन्याय है। अब 21वीं सदी ईस्ट की है नार्थ ईस्ट का है। इसीलिए मणिपुर के विकास को भारत सरकार ने निरंतर प्राथमिकता दी है और मणिपुर के नाम में ही मणि है (वैसे ही जैसे गुजरात के नाम में गु है) ये वो मणि है जो आने वाले समय में पूरे नार्थ ईस्ट की चमक को बढाने वाली है। देखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के पास तो एक सा रटा रटाया भाषण होता है जिसे वे जैसा देश वैसा भेष धारण कर सुना आते हैं फिर वह चाहे बिहार हो या बंगाल, असम हो या उत्तर प्रदेश और अब वही लोकलुभावनी फेहरिस्त लेकर मणिपुर में लगे घोषणा करने जैसे वे आरबीआई से नोट छपवाकर पोटली में बांधकर लाये हों, कर दी 7300 करोड़ की योजनाओं की घोषणा। जिस तरीके से प्रधानमंत्री घोषणा कर रहे थे उससे तो ऐसा लग रहा था कि वे मणिपुर के घावों पर मरहम लगाने के साथ ही उन घावों को कुरेद कर और छलनी किये जा रहे हैं। क्योंकि मणिपुरवासियों को तात्कालिक तौर पर शांति चाहिए, अपना घर चाहिए, अपना समाज चाहिए, माहौल चाहिए, सुरक्षा चाहिए, कानून का राज चाहिए, संविधान से मिले हुए हक चाहिए। ठीक है 7300 करोड़ से ड्रेनेज सिस्टम ठीक हो जायेगा, स्कूल, छात्रावास, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, एयरपोर्ट बन जायेंगे लेकिन सवाल है कि भावनाओं का जुडाव इस दौर में गायब क्यों हो गया है? आज जब प्रधानमंत्री मणिपुर आये और भावनाओं के जुडाव की दिशा में कदम बढ़ सकते थे और उन्हें बढ़ाने का दायित्व दिल्ली की इच्छा पर सरकार के मुखिया रहे एन वीरन सिंह को उठाना चाहिए था वह उन्होंने गवां दिया प्रधानमंत्री की चापलूसी करते हुए। प्रधानमंत्री जी बड़ी हिम्मत वाले हैं जो बरसते पानी में सड़क के रास्ते यहां तक आ गये। यहां तक का मतलब है चूराचांदपुर का इलाका जहां 260 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। 280 रिलीफ कैम्प चल रहे हैं। 57 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित जीवन जी रहे हैं।

पूर्वोत्तर भारत में आरएसएस की घुसपैठ | The Caravan

1960 से नार्थ ईस्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने से जुड़े संगठन विश्व हिन्दू परिषद, बनवासी आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, पर्यावरण आदि के लिए काम कर रहा है। आज की स्थिति में 4 हज़ार से ज्यादा प्रकल्प काम कर रहे हैं। मोदी ने भी दिल्ली सत्ता सम्हालते समय ईस्ट फर्स्ट का नारा दिया था और इस ईस्ट फर्स्ट के नारे के पीछे थी आरएसएस की मौजूदगी। अगस्त 1999 में नेशनल लिब्रेशन आफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री और लाल कृष्ण आडवाणी के गृह मंत्री रहते संघ के क्षेत्र कार्यवाह श्यामल कांति सेनगुप्ता, विभाग प्रचारक सुधामयदत्त और देवेन्द्र डे तथा जिला प्रचारक शुभांकर चक्रवर्ती का अपहरण किया था और 28 जुलाई 2001 को खबर आई थी कि चारों अपहरित स्वयंसेवकों की हत्या कर दी गई है। तो संघ के भीतर इस बात को लेकर आक्रोश था कि दिल्ली में हमारी सत्ता होते हुए भी ऐसी घटना घटित कैसे हो गई ? गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने नागपुर स्थित संघ हेडक्वार्टर में जाकर बकायदा श्रध्दांजलि अर्पित की थी। उस वक्त भी संघ नार्थ ईस्ट को लेकर गुस्से में था इस वक्त भी संघ नार्थ ईस्ट को लेकर गुस्से में है। संघ ने भी प्रधानमंत्री मोदी के मणिपुर नहीं जाने पर सवाल उठाये हैं। शायद संघ की नाराजगी को दूर करने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक से बतौर संघ प्रचारक अखबारों में लेख लिख कर संघ प्रमुख मोहन भागवत का जन्मदिन मनाते हैं और लालकिले की प्राचीर से संघ को सबसे बड़ा सेवक भी बताते हैं।

UK Parliament Update; British MP Fiona On Manipur Violence and BBC  Reporting | ब्रिटेन की संसद में उठा मणिपुर का मुद्दा: सांसद ने कहा- हिंसा  में चर्च भी जलाए जा रहे, 100

देश के भीतर एक अजीब सी परिस्थिति पैदा हो गई है जहां देश की राजनीति खुद को जिंदा रखने के लिए नाटक करती है। जो कि अपने आप में किसी त्रासदी से कम नहीं है। क्या सितम्बर का महीना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इम्तिहान का महीना है ? जिसमें दिल्ली के भीतर राजनीतिक तौर पर, संघ के भीतर वैचारिक तौर पर और राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक तौर पर उठ रहे सवालों को हल करने के लिए वहां जाना पड़ रहा है जिसको उन्होंने अनदेखा किया है। वह चीन, रूस, अमरिका, इजराइल, ईरान, मिडिल ईस्ट, फिलिस्तीन कोई भी हो सकता है। यह एक ऐसा कालखंड है जिसमें बहुत कुछ छुपा हुआ है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मणिपुर जाना एकाएक नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि पीएम ने सोचा हो कि चलो चलकर मणिपुर में तफरी कर आते हैं। ये परिस्थितियां तो उनके द्वारा बनाये गये उस कटघरे से उपज रही है कि अभी तक जो भी हुआ है उसकी भरपाई आपको ही करनी होगी और मणिपुर उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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September 12, 2025
Ahaan News

बिहार में बहुजन समाज पार्टी की ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ 10 सितम्बर से : अनिल कुमार

आज जातीय जनगणना के बाद भी बड़े राजनीतिक दल इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि वे उतनी ही सीटें और उतनी ही राजनीतिक भागीदारी दें, जितनी जनसंख्या किसी समाज की है


पटना : बहुजन समाज पार्टी (बसपा), 10 सितम्बर से पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद और सांसद रामजी गौतम के नेतृत्व में ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ निकालेगी। ये जानकारी आज पार्टी के पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मलेन के दौरान केंद्रीय प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार एवं अन्य पदाधिकारियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी। उन्होंने बताया कि आगामी 10 सितम्बर से यह यात्रा कैमूर ज़िले से प्रारंभ होगी और कैमूर, बक्सर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर होते हुए वैशाली में समाप्त होगी।

अनिल कुमार ने स्पष्ट किया कि यह यात्रा महज़ शक्ति प्रदर्शन नहीं है, बल्कि जनता की वास्तविक समस्याओं को उठाने और अधिकार दिलाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि बिहार की मौजूदा सरकार जनता को गुमराह करने और ठगने का काम कर रही है, जबकि बसपा स्पष्ट रूप से यह वादा करती है कि “जिसकी जितनी जनसंख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी” सुनिश्चित की जाएगी।

अनिल कुमार ने कहा कि आज जातीय जनगणना के बाद भी बड़े राजनीतिक दल इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि वे उतनी ही सीटें और उतनी ही राजनीतिक भागीदारी दें, जितनी जनसंख्या किसी समाज की है। जबकि बसपा यह वचन देती है कि विधानसभा की 243 सीटों पर सामाजिक न्याय की यही नीति अपनाई जाएगी।

अनिल कुमार ने भाजपा और महागठबंधन दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि बीते 40 सालों में इन दलों ने सिर्फ बिहार की जनता को ठगा है। न पलायन रुका, न बेरोजगारी की समस्या हल हुई। नीतीश कुमार द्वारा तीन डिसमिल ज़मीन देने की घोषणा आज भी अधूरी है। वहीं, बसपा ने आश्वस्त किया कि सत्ता में आने पर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर सरकारी ज़मीन दलित, पिछड़े और वंचित समाज के लोगों को उपलब्ध कराई जाएगी।

अनिल कुमार ने यह भी कहा कि बिहार में शिक्षा और रोजगार की स्थिति बदहाल है। गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग को न्याय दिलाना और उन्हें आगे बढ़ाना पार्टी की प्राथमिकता होगी। इसी उद्देश्य से यह जागरूकता यात्रा पूरे प्रदेश में निकाली जा रही है। इस दौरान बसपा नेताओं में मंजू चौहान, संतोष पाल सहित कई सामाजिक प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में अपनी भागीदारी दर्ज कराई और कहा कि यह यात्रा जनता के हक और अधिकार की आवाज बनेगी।

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September 12, 2025
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हाजीपुर पीएचसी में हुआ औषधीय वृक्षारोपन

ये सेंदुआरी में शिविर लगाकर की गयी स्वास्थ्य जांच

वैशाली : लायंस क्लब आफ पाटलीपुत्रा सेनेटेनियल पटना द्वारा हाजीपुर पीएचसी में औषधीय वृक्षारोपन किया गया। वृक्षारोपन पीएचसी के एमओआईसी डॉ संजय दास एवं डीएफवाई के डॉ शिव कुमार रावत के द्वारा किया गया। 


वहीं इसी उपलक्ष्य में सेंदुआरी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर शिविर लगातार टीबी, मधुमेह एवं ब्लड प्रेशर की जांच कर दवा का वितरण किया गया। मौके पर डॉक्टर फॉर यू के निरज कुमार भी थे उन्होंने टीबी जांच के लिए बलगम संग्रह भी किया।
 

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September 12, 2025
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मोबाइल एकेडमी में बेहतर कार्य को लेकर डीसीएम हुईं पुरस्कृत

आशा कार्यकर्ताओं ने 95 प्रतिशत ऑनलाइन कार्य पूरा किया

वैशाली : राज्य स्तरीय एआरसी की मीटिंग में वैशाली जिले को मोबाइल एकेडमी में बेहतर उपलब्धि के लिए एसपीओ डॉ सरिता कुमारी एवं प्रणय कुमार के द्वारा डीसीएम निभा रानी सिन्हा को सम्मानित किया गया। इस सम्बंध में डीसीएम ने बताया कि जिले में मातृ और शिशु मृत्युदर में कमी लाने के साथ-साथ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रतिबद्ध है। इसके लिए समय समय पर आशा कार्यकर्ताओं को हाई टेक तरीके से दक्ष किया जा रहा है। जिसके तहत आशा कार्यकर्ताओं को मोबाइल एकेडमी कोर्स कराया जा रहा है। इस संबंध में डीपीएम डॉ कुमार मनोज ने बताया कि चिकित्सा सेवा को और सुदृढ़ करने की नीयत से विभाग के द्वारा आशा कार्यकर्ताओं के लिए मोबाइल एकेडमी योजना संचालित है। जिसमें आशा कार्यकर्ताओं को मोबाइल एप की मदद से गर्भवती महिलाओं और पांच साल तक के बच्चों की देखभाल संबंधी ट्रेनिंग दी जाती है। 

इसके माध्यम से आशा जिले की गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों की विशेष तरह से देखभाल कर सकेंगी। इस ट्रेनिंग कोर्स में गर्भावस्था से लेकर जन्म के बाद दो साल तक की संपूर्ण जानकारी मौजूद है। इसके जरिए मां-बच्चे की जिंदगी बचाने में सहायता मिलेगी। साथ ही संस्थागत प्रसव को बढ़ावा भी मिलेगा। मोबाइल एकेडमी में वैशाली की सभी आशा के द्वारा कोर्स पूरा कर लिया गया है। मोबाइल एकेडमी आशा कार्यकर्ताओं के लिए एक ऑनलाइन कोर्स है जिसमें महिला चिकित्सक के द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सभी जानकारी दी जाती है। उसी के बेहतर कार्य हेतु डीसीएम को सम्मानित किया गया है।
 

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September 12, 2025
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मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत अब तक 142 ह्रदय रोग से ग्रसित बच्चों को मिला जीवनदान

दो बच्चों को इलाज के लिए भेजा गया अहमदाबाद


वैशाली : जिले से मुख्यमंत्री बाल ह्रदय योजना अंतर्गत अब तक 142 बच्चों का उपचार किया जा चुका है। इसी कड़ी में गुरुवार को हृदय रोग से ग्रसित दो बच्चे प्रीति कुमारी प्रखंड महुआ और प्रियांश कुमार बिदुपुर प्रखंड को जिला स्वास्थ्य समिति से पटना भेजा गया। इनका इलाज श्री सत्य साईं हृदय अस्पताल अहमदाबाद में निशुल्क कराया जाएगा। 

दोनों बच्चों को आरबीएसके चलंत चिकित्सा दल के वाहन से राज्य स्वास्थ्य समिति और फिर पटना एयरपोर्ट के लिए भेजा गया। वहां से वह हवाई माध्यम से अहमदाबाद जाएगें। मौके पर डीआईसी प्रबंधक सह आरबीएसके डीसी डॉ शाइस्ता, डीसीएम डॉ निभा रानी सिन्हा, डीडीए सूचित कुमार, डीईओ श्रवण कुमार, मो शाहनवाज समेत अन्य लोग मौजूद थे।
 

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September 12, 2025
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जनसंख्या स्थिरीकरण पर जागरूक समाज के लिए स्वास्थ्य मेले का आयोजन

चार स्टॉलों और दो कैनोपी में परिवार नियोजन के विविध उपायों पर मिली जानकारी


- 90 महिला बंध्याकरण का मिला है लक्ष्य

वैशाली : मिशन परिवार विकास की राह आसान करने तथा जनसंख्या स्थिरीकरण पर जिलेवासियों को जागरूक करने के लिए सोमवार को सदर अस्पताल परिसर में स्वास्थ्य मेले का आयोजन किया गया। इस स्वास्थ्य मेले की खासियत रही कि इसके चार स्टॉलों और दो कैनोपी में नव विवाहितों के परिवार नियोजन से लेकर जनसंख्या स्थिरीकरण तक की सामग्री और उसकी जानकारी उपलब्ध थी। मेले का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ श्यामनंदन प्रसाद ने किया। इसके बाद सिविल सर्जन ने डीपीएम और डीसीएम से परिवार नियोजन पर चल रही गतिविधियों और वर्तमान स्थिति की जानकारी सहित स्टॉलों का मुआयना किया। सीएस ने कहा कि जनसंख्या स्थिरीकरण पर हमारा समाज जागरूक हो इसके लिए समय समय पर परिवार नियोजन के लिए अभियान और स्वास्थ्य मेले का आयोजन किया जाता रहा है। हमें अभी भी समाज में पुरूषों को परिवार नियोजन के लिए आगे लाना होगा, बिना उनकी भागीदारी के यह अभियान सफल नहीं हो सकता। 

डीसीएम निभा रानी सिन्हा ने बताया कि मिशन परिवार विकास अभियान दिनांक 01 से 20 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है, जिसके तहत स्वास्थ्य मेले का आयोजन सोमवार को किया गया। चार स्टॉल में परिवार नियोजन के स्थायी और अस्थायी साधन के बारे में पूर्ण जानकारी और उपलब्धता रही। जिले में 90 महिला बंध्याकरण तथा 15 पुरूष नसबंदी का लक्ष्य भी मिला है। 
मौके पर सिविल सर्जन श्याम नंदन प्रसाद, जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ उदय नारायण सिन्हा, एनसीडीओ, जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ कुमार मनोज, डीसीएम निभा रानी सिन्हा, जिला अनुश्रवण एवं मूल्यांकन पदाधिकारी रितुराज सुचित सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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September 12, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 22

क्या सांसद अपढ़, अयोग्य, मूर्ख हैं ?

9 सितम्बर को उप राष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न हो गया, नतीजा भी आ गया, एनडीए समर्थित आरएसएस वाले सी पी राधाकृष्णन अपने प्रतिद्वंद्वी इंडिया एलायंस समर्थित जस्टिस वी सुदर्शन रेड्डी से चुनाव जीत गये। जहां राधाकृष्णन को 452 वोट मिले वहीं जस्टिस सुदर्शन को 300 वोट मिले। यानी राधाकृष्णन ने 152 वोटों से जीत हासिल की है। मामला खत्म हो गया।

लेकिन दूसरे दिन से ही मीडिया में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई कि उप राष्ट्रपति चुनाव में क्रास वोटिंग हुई वोट रिजेक्ट हुए और यह बात सही भी है लेकिन क्रास वोटिंग किसने की है किनके वोट केंसिल हुए हैं उन पार्टियों के और उन सांसदों के नामों पर ना केवल कयास लगाए जाने लगे बल्कि बकायदा पार्टियों और सांसदों के नामों तक का खुलासा किया जाने लगा है । जबकि जो मतदान हुआ है वह गुप्त मतदान है। क्रास वोटिंग किसने - किसने की है इसका खुलासा क्रास वोट करने वाले के अलावा कोई भी नहीं कर सकता है और जिनने क्रास वोटिंग की है वे बताने से रहे।

समाचार पत्र - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर

कुछ अखबारों में प्रकाशित खबरों पर गौर किया जाना चाहिए जो क्रास वोटिंग पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। The Indian Express - - Where did the numbers go ? Day after Vice President poll, Opposition parties have a math problem. दि हिन्दुस्तान - - उध्व गुट में सेंध लगाने वाला कौन ? इंडिया गठबंधन के सांसदों से कैसे करवा दी क्रास वोटिंग। दि हिन्दुस्तान - - उध्व ठाकरे के 5 और शरद पवार की पार्टी के कुछ सांसदों ने किया क्रास वोट, किसने किया ? एनडीए उम्मीदवार को पड़े 452 विपक्षी उम्मीदवार जस्टिस वी सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। क्रास वोटिंग के संकेत मिले। दि हिन्दुस्तान - - भाजपा ने 20 करोड़ में खरीदा एक सांसद, टीएमसी ने बताया कौन कर सकता है क्रास वोटिंग। दि हिन्दुस्तान - - किसके ईशारे पर क्रास वोटिंग का खेल ?

समाचार पत्र तो यह सब कुछ भी लिख रहे हैं। संजय निरूपम ने दावा किया है कि उध्व गुट के पांच सांसदों ने क्रास वोटिंग की है ! ऐसे में चर्चा इस बात की भी हो रही है कि इस खेल का मुख्य खिलाड़ी कौन था ? इंडियन एक्सप्रेस के डेल्ही कांफिडेंसियल के मुताबिक भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे को केन्द्रीय नेतृत्व ने एनडीए के उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन के लिए समर्थन जुटाने के लिए चुना था। रिपोर्ट में अंदरूनी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि श्रीकांत शिंदे ने ना केवल एनडीए के सांसदों को एकजुट रखा बल्कि महाराष्ट्र से राधाकृष्णन के लिए कुछ अतिरिक्त वोट जुगाड़ करने में भी कामयाबी हासिल की। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 38 वर्षीय श्रीकांत शिंदे ने ऐसा इसलिए सफलता पूर्वक किया क्योंकि सभी दलों में उनके दोस्त हैं। एकनाथ शिंदे ने भी बाद में सोशल मीडिया मंच एक्स पर इसका ईशारा करते हुए लिखा "इंडिया गठबंधन और महा विकास आघाड़ी (एमवीए) में हमारे उन दोस्तों का विशेष धन्यावाद जिन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और एनडीए का समर्थन किया। कभी-कभी अंतरात्मा की आवाज पार्टी व्हिप पर भारी पड़ जाती है।

Vote Chori' Sarkar

कहा तो यहां तक जाता है कि 15 वोटों का नहीं घपला तो 26 वोटों का है। 15 वोटों की हेराफेरी में 10 वोट बीजेपी के हैं और 5 वोट कांग्रेस के हैं। जितने मुंह उतने दावे हो रहे हैं । लेकिन पुख्ता सबूत किसी के पास नहीं है केवल हवा हवाई अटकलबाज़ी हो रही है । मगर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में कैसे हार्स ट्रेडिंग कर कमलनाथ की सरकार के दोपाये माननीयों को अपने पाले में लाकर अपनी सरकार बनाई थी । कैसे बाला साहब ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के दोपायों को अलग कर पार्टियों का दो फाड़ कराया गया था। उस समय भी कहा गया था कि हरएक  विधायक को 50  खोखे यानी 50 करोड़ रुपये देकर खरीदा गया था। अब अगर सांसद को 20 खोखे दिये गये हैं तो फिर यह सांसदों का शर्मनाक अवमूल्यन है। वह इसलिए भी कि एक संसदीय क्षेत्र में कम से कम 4 विधानसभा क्षेत्र ही मान लिए जांय यानी 4 दोपाये। तब भी हरएक सांसद को कम से कम 200 खोखे तो मिलने ही चाहिए। बाकी तो उन दोपायों की मर्जी है कि वे कितने में बिकने को तैयार हैं।

vp election cross voting new vice president cp radhakrishnan क्रॉस वोटिंग  के शक की सुई किस पर? उपराष्ट्रपति चुनाव में किन सांसदों ने बदला पाला, India  News in Hindi - Hindustan

फिलहाल बात की जाय इस सबूत विहीन लगाये गये आरोपों पर की गई कुछ नेताओं की प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों पर। कांग्रेस के सांसदों पर भी क्रास वोटिंग करने - रिजेक्ट हुए वोटों को लेकर आरोप लगाये जा रहे हैं। जिस पर प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहे जाने वाले मनीष तिवारी ने न केवल पार्टी के सांसदों की निष्ठा और विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा किया बल्कि पार्टी नेतृत्व यानी कहा जाय तो सीधे तौर पर राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा दिया है। मनीष तिवारी से जब एक पत्रकार ने क्रास वोटिंग को लेकर सवाल किया तो वे क्रास वोटिंग क्यों की जाती है उसके प्रकार बताने लगे। मनीष ने कहा कि व्यक्तिगत लालच के वशीभूत होकर क्रास वोटिंग किया जाता है, पार्टी से विश्वासघात करने की मंशा से क्रास वोटिंग की जाती है। पार्टी की लीडरशिप कमजोर होने पर भी क्रास वोटिंग की जाती है। अब अगर कांग्रेस सांसदों पर लगाया जा रहा क्रास वोटिंग का आरोप सही है या वह बीजेपी के सांसद हों या फिर वह किसी भी पार्टी के सांसद हों जिनने भी क्रास वोटिंग की है भले ही वह अंतरात्मा की आवाज पर ही क्यों न करी हो वे लालची हैं, विश्वासघाती हैं और उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कमजोर है। ऐसे सांसदों को एकबार फिर अपनी अंतरात्मा को टटोल कर अपनी सांसदी और पार्टी से इस्तीफा दे देना चाहिए या फिर अपनी पार्टी के हाईकमान को हलफनामा देते हुए बताना चाहिए कि उसने न तो क्रास वोटिंग की है न ही रिजेक्ट किये जाने लायक वोट डाला है।

जहां तक डाले गये वोटों को रिजेक्ट किये जाने का सवाल है उसमें भी बीजेपी पहले से ही आरोपित होती रही है। हरियाणा और उत्तराखंड इसके सबसे बड़े जीते-जागते उदाहरण हैं। जहां वोट गिनने वाले ही शाजिशकर्ता के रूप में सामने आये थे । सरकार के लिए भी चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है कि वोटों की हेराफेरी पकड़ी गई थी और इस पर देश की सबसे बड़ी अदालत को दखलंदाजी करनी पड़ी थी । अगर उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी जो वोट रिजेक्ट किये गये हैं और उन पर संदेहात्मक ऊंगली उठाई जा रही है तो इसको नजरअंदाज करने के बजाय विश्वसनीयता कायम रखने के लिए हकीकत देश के सामने लाया जाना चाहिए।

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए तैयार कैसे हो गए? -  BBC News हिंदी

महाराष्ट्र के ढाई वर्षीय मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे ने जिस तरह की टिप्पणी की है वह भी इस बात की ओर ईशारा करती है कि महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों मसलन शिवसेना (उध्व ठाकरे गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट) के सांसदों ने क्रास वोटिंग की है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे ने जिस तरह से 20-20 करोड़ में सांसदों के बिकने और बीजेपी द्वारा खरीदे जाने का आरोप लगाया है तो क्या उनकी अपनी पार्टी टीएमसी के सांसद भी बीजेपी ने खरीदे हैं इसका खुलासा भी करना चाहिए पार्टी सुप्रीमो सीएम ममता बनर्जी को। भले ही हार्स ट्रेडिंग का खेल बीजेपी 2014 के बाद से बकायदा दोपायों की मंडी सजा कर करती आ रही हो !

रिजेक्ट हुए वोट भी  सांसदों की योग्यता पर सवालिया निशान लगाते हैं। क्या सांसद अपढ़, अयोग्य, मूर्ख हैं जो सही तरीके से अपना वोट भी नहीं डाल पाते वह भी तब जब उन्हें उनका हाईकमान तोते की तरह पढ़ाता-सिखाता है। जनता तो यही मानकर चलती है कि उसके द्वारा चुने गए माननीय पढ़े लिखे न सही समझदार तो हैं। मगर जब संसद के भीतर इस तरह से वोट रिजेक्ट होते हैं तो जनता की भावनाओं पर कुठाराघात होता है और वह ऐसे जाहिलों को चुनकर पछताती है।

जिस तरह से उप राष्ट्रपति चुनाव के बाद से क्रास वोटिंग को लेकर खबरें चलाई जा रही है उसमें इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सब सत्ता के ईशारे पर किया जा रहा हो इंडिया एलायंस और विपक्षी एकजुटता को विखंडित करने के लिए। इसका कारण भी है कि सत्ताधारी के कैंडीडेट जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति चुनने में तब जितने प्रतिशत वोट मिले थे अब जब सी पी राधाकृष्णन को चुना गया है उसमें भारी प्रतिशत की गिरावट आई है। जो इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इंडिया एलायंस में एकजुटता है और सत्ताधारी उस एकजुटता से भयभीत है और उस एकजुटता को विखंडित करने के लिए इस तरह की खबरें (इंडिया गठबंधन में गद्दार कौन ?) चलवा रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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